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  • Mulk Film Review: movie starring Tapsee Pannu, Rishi Kapoor, Manoj Pahwa and Rajat Kapoor directed by Anubhav Sinha

फिल्म रिव्यू: मुल्क

ये फिल्म उन बातों को कहती है, जो हम जानते हैं लेकिन कहना-सुनना नहीं चाहते.

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'मुल्क' को लिखा और डायरेक्ट किया है अनुभव सिन्हा ने.
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श्वेतांक
3 अगस्त 2018 (Updated: 11 सितंबर 2018, 07:51 AM IST)
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मुल्क यानी देश. जिसमें होते हैं हम और वो. मतलब हिन्दू-मुस्लिम. होते और भी लोग हैं लेकिन यहां फिल्म 'मुल्क' की बात हो रही है, जहां सिर्फ इन दोनों का ही ज़िक्र है. जरूरतमंद लोग हैं. खैर, 'मुल्क' जो भी है बड़े काम की है. क्योंकि ये वहां लगती है, जहां आप सहला भी नहीं सकते. ये बात करती है हिन्दू-मुसलमान के संबंधों की. किसी मुसलमान को देखते ही हमारे मन में अपने सीखे-समझे अनुसार एक रूप-रेखा तैयार हो जाती है. फिल्म इसी बनी बनाई धारणा के इर्द-गिर्द घूमती है. अपने अंदर कई भाव समेटे ये फिल्म हमें वहां लेकर जाती है, जहां हम पहले भी गए हैं. हिन्दू-मुस्लिम संबंधों पर कई फिल्में बनी हैं. लेकिन 'मुल्क' की नीयत साफ लगती है.
फिल्म की कहानी शुरू होती है बनारस के एक मुस्लिम परिवार से. जिसकी बहु का नाम आरती मोहम्मद है. शुरुआत में फैमिली ड्रामा लगने वाली ये फिल्म बाद में जाकर सोशल हो जाती है. बहरहाल, भरा-पूरा परिवार है. लेकिन एक लड़के को जिहाद का आइडिया मिल जाता है और सारा गुड़-गोबर हो जाता है. जब आपके मोहल्ले के किसी मुसलमान का लड़का आतंकवादी निकल जाए, तो आपको कैसा लगेगा. सिनेमाहॉल में बैठकर ये बात महसूस की जा सकती थी. क्योंकि सामने जो चल रहा था, उसपर विश्वास हो रहा था. ऐसी ही चीज़ें देखने-सुनने में आ रही थीं, जो हम रोज सुनकर टाल जाते हैं. लेकिन आज पकड़े गए थे. तो पूरा मामला सुना और तय किया कि किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेंगे. क्योंकि सारी दिक्कतें उस निष्कर्ष से ही शुरू हो रही थीं.
फिल्म 'मुल्क' में ऋषि कपूर, रजत कपूर, तापसी पन्नू, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा और आशुतोष राणा जैसे कलाकार नज़र आएंगे.
फिल्म 'मुल्क' में ऋषि कपूर, रजत कपूर, तापसी पन्नू, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा और आशुतोष राणा जैसे कलाकार नज़र आएंगे.

जिहादी बेटे के चक्कर में घरवालों को पिसना पड़ता है. कई तरह के चार्जेज़ लगाकर पिता को जेल में डाल दिया जाता है. ये पिता हैं मनोज पाहवा. इस आदमी ने छटाक भर के रोल में क्या काम किया है! अब शुरू होती है दूसरे हिस्से की फिल्म जो कोर्ट रूम ड्रामा में तब्दील हो जाती है. 'पिंक' में कटघरा संभालने के बाद अब तापसी काले कोट में नज़र आ रही थीं. अपने ससुर का केस लड़ रही थीं. अब जो लड़ाई चल रही है, वो कहती है 'माय नेम इज़ खान, एंड आय एम नॉट अ टेररिस्ट'. लेकिन चार-पांच सूत्री कार्यक्रम के अंतर्गत.
ये लड़ाई लंबी चलती है. फिल्म के आखिर तक. और इस बीच जो भी होता है, वो नैचुरल लगता है. तापसी के सामने भी एक वकील है. आशुतोष राणा. उन्होंने सरकारी वकील का रोल किया है, जिसका काम जिहादी बालक के पिता को आतंकवादी साबित करना था. संतोष आनंद नाम था. जब वो कोर्ट में बात करते हैं और जिस कंविक्शन के साथ करते हैं, वो चीज़ देखने वाली है.
इससे पहले आशुतोष फिल्म 'धड़क' में दिखे थे.
इससे पहले आशुतोष फिल्म 'धड़क' में दिखे थे.

जब आरती कोर्ट में अपने परिवार को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रही होती है, तब जज साहब यानी कुमुद मिश्रा उन्हें आरती मोहम्मद के बदले मोहम्मद आरती बुला जाते हैं. हालांकि इसे वो फटाफट सुधार भी लेते हैं लेकिन इस दौरान उस नाम को पुकारने में उनकी असहजता सामने आ जाती है. इस टाइप की चीज़ें हमारी सोच में तत्काल प्रभाव से आमूलचूल बदलाव की मांग करती हैं. घर में सब लोग हार मान चुके हैं. सिर्फ उस बुजुर्ग आदमी को छोड़कर, जिसके घर के बाहर आतंकवादी और पाकिस्तान जाओ जैसी चीज़ें लिख दी जाती हैं.
मुराद अली मोहम्मद. यानी ऋषि कपूर. अगर उनके एक्सेंट को छोड़ दें तो उनका काम फिल्म में आला दर्जे का है. उन्होंने एक ऐसे मुस्लिम आदमी का किरदार किया है, जिसके पास लड़ने की सारी वजहें खत्म हो गई हैं. बची-खुची हिम्मत से बस वो अपनी खोई हुई इज़्ज़त वापस पा लेना चाहता है. फिल्म में एक सीन है, जहां आरती मुराद से पूछती है कि आप कैसे साबित करेंगे कि आप एक अच्छे मुसलमान हैं? इसके जवाब में ऋषि कपूर का एक लंबा मोनोलॉग है. उनके चुप होने के बाद कोर्ट में सन्नाटा पसर जाता है. क्योंकि उस समय वो आदमी हर वो बात कह देता है, जो हम जानते हैं लेकिन सुनना नही चाहते. जो बात हम खुले में कहते हैं, फिल्म उन्हें खोलकर रख देती है.
ऋषि कपूर को इसस लुक में दिखने के लिए रोज़ तीन घंटे मेकअब में खर्च करने पड़ते थे.
ऋषि कपूर को इस लुक में दिखने के लिए रोज़ तीन घंटे मेकअप में खर्च करने पड़ते थे.

फिल्म में रजत कपूर भी हैं. उनका किरदार एक पुलिसवाले का है. वो मुसलमान हैं. लेकिन वो अपने धर्म के बारे में अलग तरीके से सोचते हैं. उनकी ऐक्टिंग दिखती नहीं है क्योंकि वो ऐक्टिंग करते हैं. फिल्म के क्लाइमैक्स के दौरान तापसी और उनका एक इंटरोगेशन सीन है. इस सीन के बाद तापसी का जो रिएक्शन है, उससे बेहतर हिस्सा फिल्म में कोई और नहीं है. वो एक नैनो-सेकंड के लिए फिल्म के ट्रेलर में भी दिखता है, लेकिन तब हमें उनकी खीज का अंदाजा नहीं होता, इसलिए ज़्यादा ध्यान नहीं जाता. इस फिल्म में तापसी के काम को याद रखा जाएगा.
पहले पार्ट में माहौल थोड़ा खुशनुमा रहता है इसलिए फिल्म किस रफ्तार में चल रही है, उस तरफ ध्यान नहीं जाता. इंटरवल के बाद फिल्म बिलकुल साउथ इंडियन फिल्म की गोली की तरह निकलती है. आपको पता है कि इसकी रफ्तार बहुत तेज है, लेकिन आपको दिखाई देती है. म्यूज़िक की कमी फिल्म में नहीं खलती क्योंकि उसके लिए ज़्यादा स्पेस नहीं है. जहां होना चाहिए था वहां है. 'ठेंगे से' नाम का एक गाना है, जिसे सुनने में मज़ा आता है. दो और गाने हैं, जो माहौलानुसार हैं. कायदे के लिरिक्स वाले.
सब मिला-जुलाकर बात ये है कि 'मुल्क' आज के माहौल में बहुत ही जरूरी फिल्म है. सोचने-समझने पर जोर देती है. धर्मांधता पर लगाम लगाती है. लेखकों को फेसबुक पोस्ट लिखने के भरपूर अवसर प्रदान करती है. जहां तक इसे देखने की बात है, मैं भी तापसी के साथ जाऊंगा. अपने ऊपर एक एहसान करिए और ये फिल्म देख आइए. देखते समय आंख-कान और दिमाग खुला रखिएगा.


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