गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी की पहली फिल्म साल 2014 में आई थी. भले कॉमिक्स के तौर पर गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी ज्यादा सफल न रही हो. फिल्म ने जबर पैसा, प्रशंसा और प्यार बटोरा था. इसी का अगला हिस्सा जो अब आया है, डायरेक्टर जेम्स गन के कहे अनुसार ही पहले जैसा नहीं है. उनका कहना था, ये फिल्म अलग होगी. लेकिन ये फिल्म अलग इस मायने में ऐसे भी निकल गई कि इसमें वो मजा नहीं आता. तो सबसे पहले फिल्म के पहले पार्ट के बारे में जानिए.
एक लड़का है. नाम पीटर क्विल, मिसौरी में रहता है. साल 1988 चल रहा है. उसकी मां की मौत होती है. और उसी रोज़ एक यूएफओ उसे उठा ले जाता है. 26 साल बीतते हैं और अब वो ब्रह्मांड के सबसे बड़े उठाईगीरों में से एक है. दुनिया उसे स्टार लॉर्ड कहती है. धरती के बाहर के ग्रहों पर रहता है, क्योंकि ये साइंस फिक्शन फिल्म है. और आप बहुत कुछ असंभव सा देखने वाले हैं, तो ये लॉजिकल है कि धरती से दूर ही ये सब हो. पीटर को रैवेजर्स ने पाला है. जिनका मुखिया योंडू है. रैवेजर्स को आप अन्तरिक्ष की एक ताकतवर दस्यु टुकड़ी समझ सकते हैं. वहीं एक साम्राज्य और है नोवा. नोवा के पीछे एक विलेन पड़ा है रोनन. रोनन ने मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स के एक सबसे बड़े विलेन थानोस से हाथ मिला लिए हैं.
https://youtu.be/B16Bo47KS2g
दुनिया पर कब्जा करने के लिए थानोस को पांच इनफिनिटी स्टोन्स चाहिए. सारा मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स उन्हीं पत्थरों के आस-पास घूमता है. थॉर में भी आपको एक ऐसा ही स्पेस स्टोन नज़र आएगा, और अवेंजर्स में विजन के सिर पर भी. डॉक्टर स्ट्रेंज में आई ऑफ एगमोटो वाला टाइम स्टोन भी इन्हीं में से एक है. तो अपना पीटर क्विल एक रोज़ ऑर्ब से पावर स्टोन चुरा लेता है. लेकिन पावर स्टोन की तलाश में तो रोनन है, ताकि वो उसे थानोस को दे दे, और थानोस उस पत्थर की मदद से नोवा ग्रह को खत्म कर दे.
सारी फिल्म में उसी पत्थर को पाने के लिए लड़ाई होती है. अब पीटर क्विल के साथ और लोग जुड़ते जाते हैं, जैसे गमोरा. जो कि थानोस की ही बेटी कहलाती है. उसके मां-बाप को मारकर थानोस ने उसे अपना मरकहा गुलाम सा बना लिया था. रॉकेट और ग्रूट जो क्रमश: एक बोलता लड़ाका रैकून और 'आई एम ग्रूट' बोलने वाला खूनी पेड़ है. उनके साथ ड्रैक्स भी आता है, जो रोनन के कारण अपना परिवार खो चुका है. ये सब मिलकर रोनन को मारते हैं और पूरे नोवा को बचा लेते हैं.
गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी 1 के अंत में स्टार लॉर्ड, गमोरा, रॉकेट और ड्रैक्स एक परिवार बन चुके होते हैं. ग्रूट, जिसने अपना बलिदान दे दिया था. वो भी गमले में पनपना शुरू कर देता है. गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी 2 आते-आते ग्रूट एक नन्हा सा पौधा बन चुका है. नोवा अंपायर ने इन सब लोगों को उनके विमान के साथ स्वतंत्र छोड़ दिया गया था, तो अपनी जांबाजी की खुंदक पूरी करने को अब वो किराये पर काम करते हैं.
ऐसे ही एक काम के लिए उनका सामना आयशा से होता है. जो सोवेरियंस की मुखिया है. ये आलसी लोग खुद लड़ने-भिड़ने वाला काम नहीं करते बल्कि इस काम के लिए ब्रह्मांड की रक्षा का ठेका लिए बैठे लोगों को बुलाते हैं. बदले में ब्रह्मांडरक्षकों को मिलती है नेबुला, माने गमोरा की बहन. यहां तक सब ठीक था लेकिन जिस रॉकेट के अंदर आवाज ही ब्रेडली कूपर जैसे आदमी की भरी हो. वो काहे न गड़बड़ करेगा? रॉकेट वहां से कुछ बैट्रीज पार कर देता है और सोवेरियन सेना उनके पीछे पड़ जाती है. वहां से भागते-भगाते वो पास के एक ग्रह पर जा गिरते हैं. और वहां एक ऐसा आदमी आता है, जो पीटर क्विल उर्फ स्टार लॉर्ड का पापा बताता है खुद को. इतना आपको पहले से पता था. आगे पीटर के जन्म से जुड़े, उसके पिता के मूल ग्रह से जुड़े राज खुलते हैं. योंडू जिससे हम नफरत सी करते हैं क्योंकि वो पीटर को धमकाता ही रहता है. उसके बीते इतिहास की कई बातें आती हैं. यहीं स्टाकर ओगोर्ड माने स्टारहॉक भी आते हैं. ये आदमी देखने लायक है.
फिल्म की शुरुआत ही एक अन्तरिक्ष से आए मोन्स्टर की लड़ाई से होती है. जिसके ठीक बीच में ग्रूट बच्चों जैसे फिरता नज़र आता है. ग्रूट को इस फिल्म की मार्केटिंग में खूब भुनाया गया है. ये फिल्मों की मार्केटिंग का वो तरीका है, जहां आपको बार-बार बताया जाता है कि आपको ये पसंद है. चीजें पेश इस तरह से की जाती हैं कि आप इसका कितनी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. गार्डियंस ऑफ द गैलेक्सी को ग्रूट ने बहुत-बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाया है. पहली फिल्म में ग्रूट का सैक्रीफाइज, अवेंजर्स में फिल कॉलसन की मौत या थॉर डार्क वर्ल्ड में थॉर की मां की अंत्येष्टि जैसा ही दुःख देने वाला था. संवेदना के इस तार को पकड़कर मार्वल स्टूडियो ने आपको ग्रूट की क्यूटनेस थमा दी. और सिनेमाघर तक खींच लाए.
लेकिन इस सबके बाद भी फिल्म कहीं भी उस लेवल तक नहीं पहुंचती जहां पहली थी. फिल्म खुद से जोड़कर नहीं रख पाती. ये गलती हमारी और आपकी भी है. जेम्स गन ने पहले ही कह दिया था कि ये फिल्म पहली फिल्म से अलग होगी लेकिन एक सच ये भी है फिल्म अलग होकर भी उतनी बेहतर नहीं है. लड़ाई का पहला सीन ही बहुत लंबा खींचा हुआ लगता है. स्टार लॉर्ड और ईगो का पूरा सीक्वेंस बहुत उबाऊ सा है. एक समय तो ऐसा होता है कि लगता है फिल्म जाकर कहीं रुक सी गई है.
https://youtu.be/4hdv_6gl4gk?t=128
फिल्म के विजुअल्स शानदार हैं. म्यूजिक की बात ही मत कीजिए. पहली फिल्म से Awesome mix बजता है. रॉकेट ने पूरी फिल्म में शिप के अंदर ऑसम मिक्स बजाया है. आधे के बाद फिल्म रफ़्तार पकड़ लेती है. थीम सांग बजता है और रोएं झनझनाते हैं. कहानी भी कसी हुई लगने लगती है. क्योंकि ये मार्वल स्टूडियो की फिल्म थी तो कुछ बातें पहले से तय थीं. जो होनी थी और हुईं. स्टेन ली फिल्म में नज़र आते हैं. जेम्स गन की फिल्म है तो अमूमन नज़र आने वाला बतख हॉवर्ड भी दिखता है. स्टार वॉर्स को अपने तरीके से ट्रिब्यूट देने के लिए सेकंड फेज की फिल्मों में किसी न किसी कैरेक्टर को हाथ गंवाते जरुर दिखाया जाता है, वो भी हुआ.
पूरी फिल्म उन चीजों को तलाशने के बारे में है. जो आपके जीवन भर का मकसद होता है, ये प्रेम के तौर पर भी हो सकता है और नफरत के तौर भी. संदेश ये दे दिया गया कि कभी-कभी वो चीज सारा समय आपके साथ ही होती है और पता नहीं लगता. अंत में चीजें जाकर बेहतर हो जाती हैं. क्लाइमैक्स फिर आपको वहीं ले-जाकर खडा कर देता है, जहां से आप कहो सही पिक्चर थी यार.
कुल जमा इस फिल्म में एक चीज की बहुत ज्यादा कमी है, वो है डेप्थ. मार्वल के चाहने वालों का फिल्मों से एक इमोशनल जुड़ाव भी होता है. तकनीकी के लेवल पर वो दक्ष हैं ये हमें पता है. वो VFX में कमाल करेंगे. कोई लोच नहीं छोड़ेंगे. ये तो होगा ही होगा. लेकिन खुद मार्वल का जैसा भौकाल है, उसके आगे ये फिल्म ज़रा सी महीन रह गई.
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