The Lallantop
Advertisement

मूवी रिव्यू: दृश्यम 2

फ़िल्म ने नक़ल करके भी एक बेहतरीन प्रोडक्ट निकाला है. ज़्यादा चीज़ें ओरिजनल फ़िल्म से उठाई हैं और कुछ जोड़ा भी है.

Advertisement
drishyam 2 review
गर्दा है फ़िल्म मितरों
pic
अनुभव बाजपेयी
18 नवंबर 2022 (Updated: 18 नवंबर 2022, 10:37 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री में कुछ कॉमन है. बताइए ज़रा क्या कॉमन है? उनकी जन्म जयंती यानी दो अक्टूबर. पर दो अक्टूबर को कुछ और भी हुआ था. याद आया? चिन्मयानंद का सत्संग हुआ था दोस्तों. इस सत्संग में विजय सलगांवकर और उसका परिवार शामिल होने गया था. जिसने भी दृश्यम का पहला भाग देखा है उसे ये लाइन रट गई होगी. अब इसका दूसरा पार्ट भी आ गया है. देखते हैं कैसी है अजय देवगन की 'दृश्यम-2'.

फ़िल्म में अक्षय खन्ना, अजय देवगन और श्रेय सरन

जिसने 'दृश्यम' देखी, उसे पूरी कहानी पता है. इसलिए वो दोबारा रिपीट करने का कोई तुक बनता नहीं है. दूसरे पार्ट से ही शुरू करते हैं. 'दृश्यम' जहां ख़त्म होती है, 'दृश्यम-2' वहीं से शुरू होती. थोड़ा हिंट देती है और फिर सात साल का लीप लेकर आगे बढ़ जाती है. विजय वाला केस फिर खुलता है. नए सिरे से पड़ताल होती है. चूंकि मीरा देशमुख इस्तीफ़ा दे चुकी है, इसलिए एक नए आईजी साहब तरुण इस केस में आगे की जांच करते हैं. इंस्पेक्टर गायतोंडे को फिर बुलाया जाता है. इस दौरान बहुत कुछ घटता है और कमाल घटता है. ये तो रही मोटामाटी कहानी, अब इसके दूसरे आस्पेक्ट्स पर भी बात कर लेते हैं.

जिसने मोहनलाल वाली ओरिजनल दृश्यम-2 देखी है. उसे लगभग पहले से ही सबकुछ पता होगा. एक-दो बातों को छोड़कर कुछ ऐसा खास इसमें नया ऐड नहीं किया गया है. जैसे: आईजी के किरदार को फ़िल्म में थोड़ा ज़्यादा महत्व दिया गया है. और भी कुछ छोटे-मोटे एलिमेंट्स हैं, पर वो स्पॉइलर हो जाएंगे. जब एक बेहतरीन स्क्रीनप्ले का उदाहरण सामने हो, तो राइटर्स के ऊपर उस स्टैंडर्ड को मैच करने का दबाव भी होता है. आमिल और अभिषेक पाठक उस दबाव  में निखरते हैं. स्क्रीनप्ले टाइट है. कहीं पर भी रत्ती भर की ढिलाई नहीं लगती. 

मीरा के रोल में तबू 

आपको लग सकता है कि फर्स्ट हाफ को बिल्ड अप में निकाल दिया. इसे कम किया जा सकता था. पर किसी भी थ्रिलर के लिए बिल्डअप उतना ही ज़रूरी है, जितना उसका थ्रिल. बिल्डअप नहीं होगा, तो आगे मज़ा नहीं आएगा. कहानी कहने का ये एक बेहतरीन तरीका है, जहां दर्शक सबकुछ पहले से जान रहे होते हैं और फिर उसमें थ्रिल और सस्पेंस पैदा किया जाए. दर्शक कहानी से और ज़्यादा अटैच्ड महसूस करता है. यहां वही होता है. पहले के ही कुछ मिनटों में लेखक आपको इतना बड़ा तुरुप का इक्का दे देते हैं, कि दर्शक ख़ुद को पुलिसिया पड़ताल से आगे पाता है. ख़ुद को सुपीरियर पाना किसे पसंद नहीं! डायलॉग में सटायरिस्टिक ह्यूमर है. जैसे: याद रख हर कुत्ते का दिन आता है, मैं कुत्ता तो नहीं पर आज दिन मेरा है.

अभिषेक पाठक के डायरेक्शन के बारे में बात करें तो, उनके सामने पहले से एक नज़ीर थी. उन्होंने उसी को रिलीजियसली फॉलो किया है. पर इसके लिए अनुशासन चाहिए, जो अभिषेक में दिखता है. उन्होंने बहुत सारा अपना इनपुट भी डाला है. चाहे वो तरुण का किरदार हो या फिर गोवा को दिखाने का उनका नज़रिया. कुछ ऐसे शॉट भी हैं, जो इस फ़िल्म को मास अपीलिंग बनाते हैं. साथ ही टेंशन बिल्डिंग बहुत कमाल है. एक सीन है, जहां पर विजय को इन्वेस्टिगेट किया जा रहा है. उसी के पैरलल दूसरे कमरे में उनकी फैमिली को टॉर्चर किया जा रहा है. शेक करता हुआ कैमरा और फास्ट पेस एडिटिंग इसमें चार चांद लगाते हैं. कई हैंडहेल्ड शॉट काफ़ी अच्छे हैं. जैसे: शुरू में जब दो आदमी लड़ रहे होते हैं, उनका साइड से लिया गया फॉलो शॉट बहुत अच्छा लगता है. और भी कई सारे अच्छे पीओवी शॉट हैं, जिनमें कैमरा बॉडी में रिग किया गया है. कहने का मतलब है, सुधीर के चौधरी की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है.

विजय के रोल में अजय

अजय देवगन विजय के रोल में एक नम्बर ऐक्टर साबित हुए हैं. मुझे पर्सनली उनके ऐसे ही रोल पसंद हैं, जिनमें वो अंडरटोन रहकर किरदार निभाते हैं. चिल्लाते नहीं हैं. ओवर द टॉप ऐक्टिंग नहीं करते. दृश्यम में जहां उन्होंने विजय को छोड़ा था, वहीं से पकड़ लिया है. तबू इसमें एक पुलिस ऑफिसर नहीं, बल्कि मां के रोल में हैं. एक क़त्ल हुए जवान बेटे की मां की बेबसी, गुस्से को उन्होंने बढ़िया ढंग से सामने रखा है. इंस्पेक्टर गायतोंडे के रोल में कमलेश सावंत और मीरा के पति के रोल में रजत कपूर ने रियलिस्टिक काम किया है. उनके अलावा अजय की डरी हुई पत्नी के रोल में श्रिया सरन और उनकी बेटी बनी इशिता दत्ता ने भी सही काम किया है. इस फ़िल्म में जो एक कलाकर अलग से निखरकर आए हैं, वो हैं अक्षय खन्ना. आईजी तरुण के रोल में उन्होंने बहुत बेहतरीन काम किया है. उस किरदार के व्यंग्यात्मक रवैए को उन्होंने बढ़िया निभाया है. इसे देखकर उनका आर्टिकल 375 में निभाया वकील का किरदार याद आता है.

मेकर्स के सामने मलयालम फ़िल्म का एक बढ़िया उदाहरण था. पर इस फ़िल्म ने उसकी नक़ल करके भी एक बेहतरीन प्रोडक्ट निकाला है. ज़्यादा चीज़ें ओरिजनल फ़िल्म से उठाई हैं, और कुछ जोड़ा भी है. देखकर आइए, यदि मलयालम वाली दृश्यम-2 नहीं देखी है, तब और ज़्यादा मज़ा आने वाला है.

थ्रिलर फिल्म ‘दृश्यम-2’ की कहानी कैसी है और कितनी असरदार है, जानिए

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement