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फिल्म रिव्यू- मेरी क्रिसमस

Sriram Raghavan नाम का ये आदमी वैसा सिनेमा बनाता है, जो वो बनाना चाहता है. अगर आप भावी फिल्ममेकर हैं, तो उनकी फिल्में आपके कोर्स का हिस्सा होनी चाहिए.

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'मेरी क्रिसमस' के पोस्टर पर विजय सेतुपति और कटरीना कैफ.
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12 जनवरी 2024 (Updated: 12 जनवरी 2024, 16:22 IST)
Updated: 12 जनवरी 2024 16:22 IST
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फिल्म- मेरी क्रिसमस
डायरेक्टर- श्रीराम राघवन 
स्टारकास्ट- कटरीना कैफ, विजय सेतुपति, विनय पाठक, संजय कपूर, अश्विनी कालसेकर
रेटिंग- **** (4 स्टार)


यार ये क्या डायरेक्टर है. इनका नाम है श्रीराम राघवन. आप इनकी फिल्मोग्रफी चेक करोगे, तो लगेगा कि ये आदमी क्रेज़ी फिल्में बना रहा है. उस तरीके से जैसे वो बनाना चाहता है. एक दम अपने किस्म का सिनेमा. पूरा समय लेकर. दर्शकों का पेशंस टेस्ट करते हुए. उनकी पिछली फिल्म थी Andhadhun. नई फिल्म का नाम है Merry Christmas. मगर रिलीज़ हुई है पोंगल पर. क्योंकि मार्केट का कुछ नहीं कर सकते.

ख़ैर, 'मेरी क्रिसमस' की कहानी एक रात में घटती है. क्रिसमस ईव पर. यानी 24 दिसंबर की रात. साल वो था, जब मुंबई को बंबई बुलाया जाता था. ये बताना ज़रूरी था क्योंकि फिल्म बंबई में ही सेट है. मरिया नाम की एक महिला, अलबर्ट नाम के पुरुष से मिलती है. आप बोलोगे कि बात तो हिंदू राष्ट्र की हुई थी! मगर इस पिक्चर का नाम 'द डिक्टेटर' नहीं, 'मेरी क्रिसमस' है. तो अपने को थोड़ा मैनेज करना पड़ेगा. इस अलबर्ट के नाम के आगे आइंसटाइन सरनेम नहीं लगता है. इसलिए ये IQ की बजाय ILU में यकीन रखते हैं. नतीजतन लड़की के चक्कर में फंस जाते हैं बाबू भैया. अलबर्ट, मरिया के घर जाता है. बढ़िया बॉन्डिंग होती है. इंसानी टेंडेंसी है, जब उनके साथ कुछ अच्छा होता है, तो उन्हें यकीन नहीं होता. कुछ तो गड़बड़ है दया का भाव कौंधता रहता है. शास्त्रों में उसे इंट्यूशन या सिक्सथ सेंस के नाम से जाना गया है. कई मामलों में वो सही साबित होता है. ये वही बदकिस्मत मौका था. उस रात कुछ ऐसा होता है, जिससे अलबर्ट और मरिया दोनों की ही ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाती हैं. ऐसा क्या होता है, ये भी हम हीं बता दें, तो पिक्चर बनाने का मक़सद क्या है.

'मेरी क्रिसमस' नाम की इस फिल्म में कटरीना कैफ और विजय सेतुपति नाम के दो एक्टर्स ने काम किया है. कटरीना बनी हैं मरिया. विजय ने अलबर्ट का रोल किया है. जब आप सिनेमाघरों में ये पिक्चर देख रहे होते हैं, तो आपको लगता है कि काश यार कटरीना को अच्छी हिंदी बोलनी आती. क्योंकि कटरीना ने 'ज़ीरो' से पहले अपने करियर में जितना काम किया है, उस सबसे बेहतर परफॉरमेंस आपको इस फिल्म में देखने को मिलती है. बस उनके डायलॉग्स समझ आ जाते, तो चार चांद लग जाते. तकरीबन यही चीज़ विजय सेतुपति के साथ भी होती है. अगर आपने 'एनिमल' देखी है, तो आपको पता होगा कि रश्मिका मंदन्ना ने गुस्से में रणबीर कपूर को क्या कहा था. क्योंकि अपने को तो आज तक उस मामले में क्लैरिटी नहीं मिली. क्यों? एक्सेंट. विजय सेतुपति क्या बोल रहे हैं, ये कई मौकों पर इस फिल्म में भी सुनाई और समझ नहीं आता. मगर उस आदमी को इतनी एक्टिंग आती है कि आपको हर बात सुनने की ज़रूरत नहीं है. देहभाषा और चेहरे के एक्सप्रेशन उनके लिए वो काम कर देते हैं. इसलिए 'मेरी क्रिसमस' को उस फ्रंट पर कोई दिक्कत नहीं आती.

सारा मसला वहां आकर खड़ा होता है कि आपने मेरे दो घंटे इसलिए खर्च करवाए, ताकि मैं आखिरी आधे घंटे के लिए खुद को तैयार कर सकूं. क्योंकि पूरी फिल्म आखिरी के आधे धंटे में घटती है. और ऐसी घटती है कि आपको पिछले दो घंटों का मलाल नहीं रहता. श्रीराम राघवन की ‘बदलापुर’ की टैगलाइन थी- Dont miss the beginning. यहां उसका ठीक उलट है. डोंट मिस द एंडिंग. क्योंकि पूरी पिक्चर में जो गुबार जमा हुआ, वो वहां जाकर फटता है. और क्या फटता है. आपकी सारी शिकायतें, बोरियत, निराशा, सबका बदला पूरा हो जाता है.

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विजय सेतुपति, कटरीना कैफ और प्रोड्यूसर रमेेश तौरानी के साथ डायरेक्टर श्रीराम राघवन (लाल टी-शर्ट में).

इसे आप whodunnit या मिस्ट्री, थ्रिलर, किसी भी जॉनर में बांध सकते हैं. अगर आप बांधना चाहें, तब. वरना ये सिनेमा है. इसे पूरा एंजॉय किया जाना चाहिए. खूब चाव लेकर. फिल्म की रफ्तार से शिकायत हो सकती है. मगर ये पिक्चर लाइफ की तरह है. आपको पता नहीं है कि अगले पल क्या देखने को मिलने वाला है. आप तैयारी करके बैठे हैं, मगर इस परीक्षा का सिलेबस ही कुछ और है. डायलॉग्स ऐसे जैसे आप किसी रोस्ट शो में बैठे हैं. मैंने पर्सनली ये ट्राय किया कि फिल्म देखते वक्त कुछ नोट्स बनाए जाएं. ताकि आपको फिल्म देखने के कुछ घंटों बाद भी वो चीज़ें याद रह पाएं. मगर फिर मुझे लगा कि अगर फिल्ममेकर ने इतनी मेहनत नहीं की कि आपको उसका सिनेमा याद रहे, तो हम उतनी मेहनत क्यों करें. हम तो एंटरटेनमेंट के लिए फिल्म देखने गए हैं. एंटरटेन करने के बाद भी उस फिल्म की कुछ बातें आपके साथ रह जाएं, तब उसे यादगार एक्सपीरियंस या सिनेमा कहेंगे. 'मेरी क्रिसमस' ने मुझे वो अनुभव दिया.

मसलन, फिल्म का एक सीन है. इसमें अलबर्ट को उसकी प्रेमिका रोज़ी कहती है कि उन दोनों का साथ आना मुमकिन नहीं है. इस पर अलबर्ट कहता है- 'तुमने ये बात पहले क्यों नहीं सोची'. इस पर रोज़ी उसे कहती है- 'तुम तो अभी भी ये नहीं सोच रहे'. आप इस तरह के सीन्स के दौरान एंटरटेन्ड भी महसूस करते हैं और सोचने को भी मजबूर होते हैं. ऐसा अमूमन हिंदी सिनेमा में बहुत कम देखने को मिलता है. इतनी बारीक लिखावट. आप इसे वन-लाइनर मानकर आगे बढ़ सकते हैं. मगर वो ब्लैक कॉमेडी है. जो आपको हंसाने के साथ असहज महसूस करवाती है. मैंने बहुत समय से ये चीज़ महसूस नहीं की थी. जिसे अवेयर सिनेमा कहते हैं.

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फिल्म के एक सीन में कटरीना और विजय.

श्रीराम राघवन अपनी फिल्मों में उस तरह का म्यूज़िक इस्तेमाल करते हैं, जिसे उन्होंने बहुत सुना हो. या उससे बहुत रिलेट करते हों. वो इसकी मदद से नॉस्टैल्जिया का भाव पैदा करने की कोशिश करते हैं. मगर 'मेरी क्रिसमस' में म्यूज़िक नैरिटिव का हिस्सा है. गाने के crescendo यानी जिस हिस्से में सबसे तेज़ आवाज़ आती है, वहां फिल्म का सबसे बड़ा राज़ दफ्न है. वो अपनी कहानी के लिए बंबई या पुणे की सरज़मीन चुनते हैं, तो वो उसे वैसे ही दिखाते हैं, जैसा उन्होंने उस शहर को खुद देखा है. उन्हें बंबई का लोकेशन एस्टैब्लिश करने के लिए गेटवे ऑफ इंडिया के सामने कबूतरों का उड़ने वाला शॉट इस्तेमाल नहीं करना पड़ता. अगर आप भावी फिल्ममेकर हैं, तो उनकी फिल्में आपके कोर्स का हिस्सा होनी चाहिए.

इस फिल्म के बारे में घंटों बात हो सकती है. ओरिगैमी से लेकर क्रिसमस गिफ्ट तक के बारे में. विनय पाठक से लेकर अश्विनी कालसेकर की परफॉरमेंस तक की. करीना कपूर की 'जाने जां' से आप एक पैरलेल बिल्ड कर सकते हैं. मगर हम कहेंगे तो आपको लगेगा कि हमने ओवर हाइप कर दिया. फिर आप पिक्चर देखकर आएंगे और आपको वो वाइब नहीं आएगी, तो ठीकरा हम पर फूटेगा. इसलिए तार को चिट्ठी समझिए. खुद फिल्म देखकर आइए और तय करिए. 

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