मूवी रिव्यू: लूप लपेटा
‘लूप लपेटा’ कुछ मोमेंट्स पर आपको हंसाएगी, मज़ेदार लगेगी. लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ मोमेंट्स के लिए.
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रीमेक होने के बावजूद फिल्म ने कहानी को इंडियनाइज़ करने की अच्छी कोशिश की, लेकिन फिर भी चूक गई.
‘रश्मि रॉकेट’ से तापसी पन्नू ने अपना एथलीट वाला मोमेंटम यहां भी जारी रखा है. उनकी किरदार सवी एक एथलीट होती है. एक रेस के दौरान उसके घुटने में इंजरी आ जाती है, जिस वजह से उसका करियर खत्म हो जाता है. ये बात सवी बर्दाश्त नहीं कर पाती, और हॉस्पिटल की छत से सुसाइड करने की कोशिश करती है. वहां उसे मिलता है सत्या नाम का लड़का, जो उसे बचा लेता है. दोनों में प्यार हो जाता है. सत्या एक नंबर का बंडलबाज आदमी है. मेहनत नहीं, बल्कि किसी शॉर्टकट से अमीर बनना चाहता है.

फिल्म सत्या को बचाने वाले पार्ट को लेकर एक्साइटमेंट पैदा नहीं कर पाती.
अपने बॉस विक्टर के लिए काम करता है. ऐसे ही एक बार विक्टर उसे किसी के पास से 50 लाख रुपये का बैग लाने को भेजता है, और उसे 80 मिनट के अंदर वो बैग लाना है. सत्या की लापरवाही के चलते उससे वो बैग खो जाता है. अब सवी और उसके पास सिर्फ 50 मिनट हैं, किसी भी तरह 50 लाख रुपये अरेंज करने के लिए. सवी ऐसे में क्या करेगी, यही फिल्म का मेन प्लॉट है.
‘लूप लपेटा’ भले ही एक कल्ट जर्मन फिल्म का रीमेक है, लेकिन इसे इंडियनाइज़ करने की कोशिश की गई है. जैसे इसका मायथोलॉजी कनेक्ट. सवी और सत्या की कहानी को सावित्री और सत्यवान की कहानी पर बेस किया गया है. दोनों के नाम भी उन्हीं के नामों पर आधारित है. ऊपर से सत्या की जान का दुश्मन बना विक्टर लाल गाड़ी में घूमता है, जिसके आगे बड़े सींग लगे हैं, जैसे यमराज का रुपक हो. एक सीन में सत्या सवी को सावित्री और सत्यवान की कहानी भी सुनाता है, कि कैसे वो मौत के मुंह से उसे बचा लाई थी. ‘लूप लपेटा’ ने ओरिजिनल फिल्म को भी ट्रिब्यूट दी है, जैसे एक सीन में सवी को लाल बालों वाली लड़की मिलती है.
‘लूप लपेटा’ की ओवरऑल फ़ील क्वर्की है. फिर चाहे वो पॉपिंग कलर्स हों, या फिर कैमरा मूवमेंट. कुछ मोमेंट्स अपने ह्यूमर के लिए भी बचा लिए. जैसे एक जगह जूलिया नाम की लड़की की रॉबर्ट से शादी हो रही होती है. कार्ड पर Julia Weds Robert लिखा होता है, मतलब सही वर्डप्ले. पुलिस अपनी बंदूकों से गोली चलाती है तो पुरानी फिल्मों की तरह धांय, धांय वाली आवाज़ आती है. लेकिन इस सब के बीच मेकर्स ने एक बड़ी बात नज़रअंदाज़ कर दी. आपका कैमरा चाहे कितना भी अलग-अलग तरीकों से मूव करता रहे, या आपके शॉट्स कितने भी कलरफुल हों, पर एक पॉइंट के बाद कहानी पर ध्यान जाएगा ही, और यहीं बड़ा ब्लंडर हो जाता है. फिल्म का मेन प्लॉट था कि 50 मिनट में सवी सत्या की हेल्प कैसे करेगी. एक तो टाइम कम, ऊपर से इतना बड़ा जुगाड़. सवी क्या करेगी, सत्या कैसे बचेगा, फिल्म किसी भी पॉइंट पर ये जिज्ञासा क्रिएट नहीं कर पाती कि आप इन सवालों का जवाब जानना चाहेंगे. उन दोनों को अपनी इस भागदौड़ के दौरान जो कैरेक्टर्स मिलते हैं, फिल्म उनकी कहानी में अपना ज्यादा टाइम इंवेस्ट करती है. इस वजह से लेंथ भी बढ़ जाती है और प्लॉट के साथ इंसाफ भी नहीं हो पाता.

एक्टर्स के लिए यहां ज्यादा स्कोप नहीं था.
‘रन लोला रन’ ने अपने लीड किरदारों की बैकस्टोरी नहीं दिखाई. ‘लूप लपेटा’ इससे उलट करती है, लेकिन फिर थोड़ी देर बाद ही अपने कैरेक्टर्स की जर्नी से ऑफ ट्रैक हो जाती है. राइटिंग की कमजोरी पर एक्टर्स भी कुछ नहीं कर सकते. तापसी का काम हर प्रोजेक्ट के साथ बेटर ही होता जा रहा है, ऐसे में ‘लूप लपेटा’ भी एक्सेप्शन नहीं. ताहिर बने हैं कम समझ वाला सत्या, जो बिना सोचे काम करता है. उसकी एक स्माइल है, जिसे देखकर समझ आता है कि ये बंदा ज्यादा समझदार नहीं. ताहिर ने पूरी फिल्म में उसके एक्सप्रेशन को तरीके से कैरी किया है.
‘लूप लपेटा’ कुछ मोमेंट्स पर आपको हंसाएगी, मज़ेदार लगेगी. लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ मोमेंट्स के लिए. दो घंटे 10 मिनट की फिल्म देखने के बाद लगेगा कि सवी और सत्या की कहानी के अलावा हर चीज को स्पेस मिला है. फिर बता दें कि ‘लूप लपेटा’ को आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.