जिस कमिटी ने 'लापता लेडीज़' को ऑस्कर्स भेजा, उसमें एक भी महिला क्यों नहीं थी?
Laapata Ladies को भारत की तरफ से 97th Academy Awards में भेजा गया. मगर Film Federation of India की Oscars selection committee में एक भी महिला नहीं थी. उस पर कमिटी ने साइटेशन में ऐसा क्या लिख दिया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई?
“Indian women are a strange mixture of submission and dominance”
ये वाक्य उस साइटेशन का हिस्सा है, जो ‘लापता लेडीज़’ को ऑस्कर्स में भेजे जाने के बाद फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) ने प्रेस रिलीज़ में लिखा था. इस एक वाक्य ने पूरे सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है. आप पूछेंगे क्यों? ‘लापता लेडीज़’ को ऑस्कर्स में भेजने का फैसला FFI की बनाई एक ज्यूरी ने लिया था. मगर इस ज्यूरी में इस साल कोई भी महिला नहीं थी. उसपर FFI ने साइटेशन में कुछ ऐसा लिख दिया, जिसके बाद से पूरे सोशल मीडिया ने FFI पर ‘सेक्सिस्ट’ होने का ठप्पा लगा दिया है.
सबसे पहले आपको बता दें कि 'साइटेशन' (Citation) क्या होती है. ये FFI की तरफ से एक तरह का प्रेस रीलीज़ है. इसमें 'लापता लेडीज़' को ऑस्कर्स में भेजने के लिए चुने जाने का कारण बताया गया. इसके पहले वाक्य से सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ गई है. ये वाक्य है:
"Indian women are a strange mixture of submission and dominance"
यानी
“भारतीय महिलाएं अधीनता और प्रबलता का अनोखा मिश्रण होती हैं.”
जब किरण राव की ‘लापता लेडीज़’ को भारत की ओर से ऑस्कर में भेजने की घोषणा की गई, तब ये साइटेशन चर्चा का विषय बन गया. लोगों ने इसे मेल गेज़ का उदाहरण माना. क्योंकि जिस ज्यूरी ने य़े फैसला लिया, उसमें महिला पर्सपेक्टिव नहीं था. क्योंकि ज्यूरी में कोई महिला नहीं थी. इसलिए ये वाक्य लोगों को सुनने में इतना भौंडा लगा. साइटेशन को लेकर जानी-मानी फिल्म क्रिटिक नम्रता जोशी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा,
"लापता लेडीज़ को ऑस्कर के लिए चुनने का FFI ने जो कारण साइटेशन में लिखा है, वो इस फिल्म को समझने का सबसे अटपटा तरीका है. ये सिर्फ भारतीय महिलाओं को ही नहीं बल्कि सभी महिलाओं को संबोधित करने का बेहद पेट्रोनाइज़िंग तरीका है. क्या ये किसी ऐसे पुरुष ने लिखा है, जो खुद को महिलाओं से सुपीरियर समझता है? "strange mixture of submission and dominance" इसका मतलब भी क्या है? ये अपमानजनक है."
हमने एक महिला पर्सपेक्टिव से इस साइटेशन को समझने के लिए फिल्ममेकर नम्रता राव से बात की. उन्होंने हाल ही में सलीम-जावेद की जोड़ी पर ‘एंग्री यंग मेन’ नाम की डॉक्यू-सीरीज बनाई थी. नम्रता इस बाबत कहती हैं,
“आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि भारतीय महिलाएं अधीनता और डॉमिनेशन का अनोखा मिश्रण होती हैं? इस एक लाइन से उस फिल्म (लापता लेडीज़) का सारा मायना बिगड़ गया. ये एक पुरुष के नज़रिए से किसी फिल्म को समझने का तरीका हो सकता है. ये अच्छी बात है कि इस फिल्म को ऑस्कर में भेजने के लिए चुना गया. मगर जिस वजह से इसका चुनाव हुआ, वो फिल्म की सीख से बिल्कुल उलट है. आप महिलाओं को सिर्फ इन किरदारों में फिट नहीं कर सकते. फिल्म का पॉइंट कुछ और है. ”
इस बारे में हमने ‘गिल्टी’ नाम की नेटफ्लिक्स फिल्म और ‘कर्मा कॉलिंग’ नाम की वेब सीरीज़ बना चुकीं फिल्ममेकर रुचि नारायण से भी बात की. रुचि ने ‘लापता लेडीज़’ के चुनाव और इस साइटेशन के बारे में बात करते हुए कहा,
“मैं बहुत खुश हूं कि ‘लापता लेडीज़’ को चुना गया है. ये बहुत अच्छी फिल्म है. मगर मुझे वो साइटेशन देखकर बड़ी हैरानी हुई. ऐसा नहीं है कि महिलाएं सबमिसिव है या डॉमिनेटिंग हैं या दोनों के बीच में हैं. मुझे डॉमिनेटिंग शब्द पढ़कर जोर से हंसी आई. क्योंकि कहां ही महिलाएं डॉमिनेट कर रहीं हैं! उनकी समझ में हम डॉमिनेटिंग हैं क्योंकि हम अपना काम कर रहें हैं. अगर पुरुष अपने कन्विक्शन को फॉलो करता है, तो उसे कोई डॉमिनेटिंग नहीं कहता.
फिल्म महिलाओं की स्थिति को बहुत प्यारे तरीके से दिखाती है. जिन्होंने ये साइटेशन लिखी वो खुद को प्रोग्रेसिव दिखाना चाह रहें हैं बस!”
इसी सिलसिले में हमने फिल्ममेकर बिजुकुमार दामोदरन से भी बात की. दामोदरन एक अवॉर्ड विनिंग मलयालम फिल्मकार हैं. ये 2015 में FFI की ऑस्कर सिलेक्शन ज्यूरी का हिस्सा भी रह चुके हैं. इसलिए हमने इस साइटेशन के पीछे का मतलब और मक़सद समझने के लिए उनसे संपर्क किया. उन्होंने कहा,
“जब मैंने साइटेशन पढ़ी, तो मुझे भी लगा कि ये किसने लिखी है! क्योंकि ये सही साइटेशन नहीं है. जो भी उन्होंने औरतों के बारे में लिखा, वो बिल्कुल सही नहीं है. वो और अच्छे से लिख सकते थे. मुझे नहीं पता ये कौन लिखता है? ये कमिटी नहीं लिखती. जो भी लिखता है, उसे और ध्यान देना चाहिए. अक्सर (साइटेशन को) कमिटी भी देखती है, पर इस बार पता नहीं क्या हुआ.”
इस पर जब इंडिया टुडे ने जानू बरुआ से बात की. जानू फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की ऑस्कर सेलेक्शन कमिटी के चेयरमैन हैं. उन्होंने साइटेशन को लेकर हो रहे विवाद पर कहा,
“मुझे लगता है कि इसे गलत तरीके से बिलकुल नहीं लिया जाना चाहिए. हम सब अलग-अलग चीज़ों का मिश्रण हैं. हमें इसे सेलीब्रेट करना चाहिए. भारतीय समाज एक अस्त-व्यस्त तरीके की सोसायटी है. यही चीज़ इस फिल्म (लापता लेडीज़) में बहुत खूबसूरती से दर्शाई गई है. हमारा कल्चर, हमारी परंपराएं, सब इतने अलग हैं. यही हमे पश्चिमी देशों से अलग करता. हमें इसमें ज़्यादा नहीं पड़ना चाहिए. और इसे पॉज़िटिव तरीके से देखना चाहिए.”
आपको बता दें कि यहां जिस कमिटी की बात हो रही है, उसमें 13 पुरुष थे और एक भी महिला नहीं थी. जानू बरुआ ने इसपर इंडिया टुडे से कहा,
"मुझे नहीं पता कि इस मसले पर क्या कहना चाहिए. ये हमारे लिए एक सीख है. मगर मैं बताना चाहता हूं कि कमिटी में एक महिला भी थीं. मगर किन्हीं कारणों की वजह से वो नहीं आ पाईं."
जब फिल्ममेकर बिजुकुमार दामोदरन से कमिटी में महिलाओं के न होने पर और ज्यूरी के स्ट्रक्चर पर हमने बात की, तो उन्होंने बताया
“ये मेरे लिए काफी हैरान करने वाला है कि इस साल कोई भी महिला इस कमिटी का हिस्सा नहीं थीं. असल में FFI को अपना ज्यूरी बनाने का प्रोसेस बेहतर करना चाहिए. उन्हें जेन्डर इक्वॉलिटी को ध्यान में रखना चाहिए. सब प्रोफेशनल तरीके से होना चाहिए. 10 से ज़्यादा लोग हैं ज्यूरी में और एक भी महिला नहीं ये बहुत निराशा की बात है.”
भार्गव पुरोहित, गुजराती म्यूज़िक कम्पोज़र हैं. साथ ही इस साल FFI की ऑस्कर ज्यूरी का हिस्सा भी थे. उन्होंने गुजरात समाचार नाम के एक पोर्टल को बताया था कि 'लापता लेडीज़' बाकी फिल्मों से ज़्यादा भारतीय थी, इसलिए उसे वैश्विक स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने करने के लिए चुना गया. अब सवाल ये भी उठता है, कि क्या बाकी फिल्में कम भारतीय थीं? क्या ये फिल्मों को चुनने का सही क्राइटिरिया है? इसपर दामोदरन ने कहा,
"ये क्राइटिरिया होना ज़रूरी नहीं है. शायद इस बार की ज्यूरी ने मिलकर ये डिसाइड किया हो. शायद ये उनकी समझ में सही रहा हो. अगर 'लापता लेडीज़' और ‘ऑल वी इमैजिन ऐज़ लाइट’ की बात करें, तो दोनों ही फिल्मों को इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिली है. किसे चुना, कैसे चुना? सब ज्यूरी के सामूहिक फैसले पर निर्भर करता है."
इस बार ऑस्कर में भेजे जाने के लिए Animal, Aattam, Maharaja, Kalki 2898 AD, Hanu-Man और कान फिल्म फेस्टिवल के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक ग्रां प्री जीतने वाली All We Imagine As Light जैसी फिल्में भी रेस में थी. मगर 13 पुरुषों ने 9 दिनों में 29 फिल्में में से 'लापता लेडीज़' को चुना. जिसके बारे में सोशल मीडिया पर काफी बहस भी चली. कुछ लोगों का कहना है कि साइटेशन दर्शाती है कि भारतीय पुरुष महिलाओं को कैसे देखते हैं. इसे बुद्धिजीवियों की भाषा में 'मेल गेज़' (male gaze) का नाम भी दिया गया है. लोग ये भी कह रहें हैं कि ज्यूरी ने फिल्म को गलत तरीके से समझा है.
हमने इस बारे में ‘लापता लेडीज़’ की डायरेक्टर किरण राव से भी बात करने की कोशिश की. किरण ने हमसे सवाल मांगे. मगर उसके बाद उनका कोई जवाब नहीं आया. ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘डियर ज़िंदगी’ फेम डायरेक्टर गौरी शिंदे से भी हमने संपर्क करने की कोशिश की. मगर उनके पर्सनल असिस्टेंट ने कहा कि वो इस बारे में बात नहीं कर पाएंगी.
वीडियो: चोरी की कहानी पर बनी है किरण राव की 'लापता लेडीज़'?