2 जून 2016 (Updated: 28 अगस्त 2018, 12:25 PM IST) कॉमेंट्स
Small
Medium
Large
Small
Medium
Large
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने अफसरों से मीटिंग में कहा था- "अभी तो मैं पंद्रह साल तक यहीं हूं. कहीं नहीं जा रहा. काम तो करना पड़ेगा. जिसको राजनीति करनी है, नौकरी छोड़ के चुनाव लड़ ले". मुख्यमंत्री खुद अफसर रह चुके हैं. उपदेश देने से पहले उन्होंने भी वही किया था. हालांकि ऐसा करने वाले वो पहले अफसर नहीं हैं.
अफसरों को राजनीति अकसर आकर्षित कर लेती है. हिंदुस्तान के इतिहास में बहुत सारे नेता हुए हैं, जो पहले अफसर थे. इस सीरीज में आज हम बात करेंगे उन IAS अफसरों की, जो बाद में नेता बन गए.
1अजित जोगी, छत्तीसगढ़
मैकेनिकल इंजिनियर थे. यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट. कुछ दिन लेक्चरर रहे. फिर कलक्टर बन गए. कांग्रेस से जुड़े. नौकरी छोड़ दी. 1986 में राजीव गांधी ने इनको 'नया चेहरा' के रूप में आगे बढ़ाया. तब से 1998 तक दो बार राज्यसभा के सांसद रहे. 1998 में लोकसभा में चुने गये.
बहुत आर्टिकल और किताबें लिखीं हैं इन्होंने. गुरु आदमी हैं. इनकी एक किताब है- "The Role of District Collector"
1981 से 1985 तक इंदौर के कलेक्टर रहे अजीत जोगी पर अपने कार्यकाल में CAT, इंदौर (भारत सरकार की एक डिफेंस यूनिट) से डिज़ाइन पेपर चुराने का आरोप लगा था. जोगी पर ये पेपर CIA को बेचने का भी आरोप था. ये आरोप साबित नहीं हुए.
2014 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने अपने प्रतिद्वंदी बीजेपी के चंदू लाल साह के नाम से 11 और लोगों को निर्दलीय खड़ा करवाया था. अपनी तरफ से जनता को पूरा कंफ्यूज किए थे. पर जनता जान गई और ये हार गए. एनसीपी के नेता राम अवतार जग्गी के क़त्ल की FIR में अजीत जोगी का नाम था, लेकिन बाद में वो बरी हो गए थे. इस केस में इनके बेटे अमित जोगी करीब 10 महीने जेल में रहे थे.
2यशवंत सिन्हा, झारखंड
पॉलिटिकल साइंस पढ़े. फिर पढ़ाया भी. 1960 में आईएएस बने. 1984 में नौकरी छोड़ दी. जनता पार्टी जॉइन कर ली. 1988 में राज्यसभा गए. 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की कैबिनेट में फाइनेंस मिनिस्टर बने. फिर वाजपेयी के कैबिनेट में दो साल फाइनेंस मिनिस्टर और दो साल मिनिस्टर ऑफ़ एक्सटर्नल अफेयर्स भी रहे.
भारत-फ्रांस के रिश्तों में गर्मी लाने के लिए फ्रांस ने 2015 में इनको अपने सबसे बड़े सम्मान 'लीजन ऑफ़ ऑनर' से नवाजा. फिलहाल बीजेपी के 'मार्गदर्शक मंडल' में हैं.
एक किताब भी लिखी- 'Confessions of a Swadeshi Reformer'. ब्लॉग भी चलाते हैं- 'Musings of a Swadeshi Reformer'
दाग भी लगा दामन पर. यूटीआई स्कैम में नाम आया था.
3जयप्रकाश नारायण, आंध्र प्रदेश
डॉक्टर थे. फिर आईएएस बने. सेकंड रैंक लाये थे यूपीएससी में. शानदार रिकॉर्ड रहा है. विशाखापट्नम स्टील प्लांट के विस्थापित 8000 लोगों को रोजगार मुहैया कराया. सिंचाई और पानी-निकास का इंतजाम कर किसानों का दिल जीत लिया था. कुछ नई पॉलिसी भी लाए थे. लोक अदालत और को-ऑपरेटिव में बढ़िया काम किया. हैदराबाद के सॉफ्टवेर हब बनने में इनका काफी योगदान रहा. केंद्र के विजिलेंस कमीशन, सेकंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमीशन और रूरल हेल्थ मिशन के सदस्य रहे.
1996 में इनको लगा था कि ख़राब गवर्नेंस इंडिया की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है. इसीलिए इन्होंने लोकसत्ता मूवमेंट चलाया. जिसका मकसद जनता को चुनाव, पुलिस, संविधान, सरकारी पॉलिसी सबके बारे में बताना था. राजनीतिक सुधार, पुलिस सुधार, 2-G स्कैम, सूचना का अधिकार सबमें लोकसत्ता ने भाग लिया है.
2006 में इन्होंने मूवमेंट को 'लोकसत्ता पार्टी' में बदल दिया. स्वच्छ राजनीति करने के लिए. आंध्र प्रदेश में एमएलए रहते हुए विधान सभा में ये हमेशा मुखर रहे हैं. बेकार पॉलिसी के खिलाफ आवाज उठाई है और हमेशा आधुनिक उपायों की वकालत की है.
द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, इकॉनोमिक टाइम्स में रेगुलर लिखते रहे हैं. जनता को ऐसे ही लोग चाहिए.
4पी एल पुनिया, उत्तर प्रदेश
एमए-पीएचडी हैं. आईएएस बने. 2005 में नौकरी छोड़ी. 2009 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा गए. 2014 में चुनाव हार गए. पर राज्यसभा पहुंच गए. नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल्ड कास्ट के चेयरपर्सन रहे.
पुनिया का नाम 1995 में उछला था. मुलायम सिंह की सरकार जाने के बाद मायावती मुख्यमंत्री बनीं. माया ने पुनिया को अपना प्रिंसिपल सेक्रेटरी बना दिया. एक शेड्यूल्ड कास्ट के अफसर का इस पोस्ट पर होना बदलते भारत की निशानी थी.
बाद में पुनिया ने कांग्रेस जॉइन कर ली और यूपी में कांग्रेस का पिछड़ा चेहरा बने.
5आर के सिंह, बिहार
आईएएस अफसर बने. होम सेक्रेटरी रहे. अपनी ईमानदारी और कड़े मिजाज के लिए जाने जाते रहे. चिदंबरम ने उनको चुन के होम सेक्रेटरी बनाया था.
यही हैं वो डीएम जिसने समस्तीपुर में आडवाणी की रथयात्रा को रोक दिया था. 2013 में रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस की ख़राब नीतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे. फिर बीजेपी जॉइन कर लिया. 2014 में आरा से सांसद बने. नीतिश कुमार ने इनको कई बार अपनी सरकार में आने का न्योता दिया था.
हाल के बिहार चुनावों में सिंह नाराज हो गए थे. अपनी ही पार्टी पर आरोप लगाया कि चुनाव जीतने के लिए ईमानदार लोगों को छोड़कर अपराधियों को टिकट दे रही है.
इसके अलावा ये IAS अफसर भी बाद में राजनीति के मैदान में उतरे. पर इन्हें वैसी लोकप्रियता नसीब नहीं हुई है.
6. क्रिस्टी फर्नान्डीज़, केरल 7. भागीरथ प्रसाद, मध्य प्रदेश 8. चन्द्र पाल, उत्तर प्रदेश 9. मुन्नी लाल, बिहार 10. के पी रमैया, बिहार 11. युद्धवीर सिंह खयालिया, हरियाणा
अगली कड़ी में उन नेताओं की बात करेंगे, जो पहले IPS अफसर थे.
यह स्टोरी टीम 'दी लल्लनटॉप' से जुड़े ऋषभ ने लिखी है.