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वो इंडियन डायरेक्टर जिसने अपनी फिल्म बनाने के लिए हैरी पॉटर सीरीज़ की फिल्म ठुकरा दी

मीरा नायरः जो भारत से बाहर रहकर भारतीय समाज पर फिल्में बनाती हैं.

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मीरा नायर ने 'हैरी पॉटर' छोड़कर अपनी 'द नेमसेक' बनाई थी.
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15 अक्तूबर 2020 (Updated: 15 अक्तूबर 2020, 06:06 AM IST) कॉमेंट्स
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मीरा नायर. भारतीय मूल की अमेरिकन फिल्ममेकर, जो भारत से बाहर रहकर भारतीय समाज पर फिल्में बनाती हैं. ओडिशा के राउरकेला में 15 अक्टूबर 1957 को जन्मीं लेकिन शुरुआती पढ़ाई-लिखाई हुई शिमला और फिर दिल्ली के मिरांडा हाउस में. थिएटर में इंटरेस्ट था इसलिए साथ में इसे टाइम देती रहीं. पढ़ाई में अच्छी थीं तो ऐसा दिन भी देखा जब दुनिया की दो सबसे फेमस यूनिवर्सिटी कैंब्रिज और हावर्ड में सेलेक्शन हो गया. हावर्ड पहुंचीं तो डॉक्यूमेंट्रीज़ देखने को मिली और एक्टिंग का ख्वाब फिल्ममेकिंग में तब्दील हो गया. डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाने से शुरू हुआ ये सफर दुनियाभर की मशहूर फिल्में बनाने के बाद आज भी बदस्तूर ज़ारी है. जानिए उनकी सबसे खास फिल्मों की सबसे लल्लनटॉप बातें:
मीरा नायर ने अपना करियर बतौर डॉक्यूमेंट्री डायरेक्टर शुरू किया था.
मीरा नायर ने अपना करियर बतौर डॉक्यूमेंट्री डायरेक्टर शुरू किया था.

1. सलाम बॉम्बे
प्लॉट- साल 1988 में आई ये फिल्म मीरा की पहली फीचर फिल्म थी (नोट: ये फिल्म उस दौर में बनी थी, जब बॉम्बे 'कस वर्ड्स' की लिस्ट में नहीं आता था). इसे मीरा के साथ NFDC (National Film and Development Corporation) ने मिलकर प्रोड्यूस किया था. फिल्म कृष्णा (शफीक सैयद) नाम के एक बच्चे के बारे में है जिसे घर जाने के लिए पांच सौ रुपए की दरकार है. वो उसी पैसे की जुगाड़ में पहले सर्कस में काम करता था. उसके बंद होने के बाद 'चिल्लम' (रघुबीर यादव) की मदद से बॉम्बे के ग्रांट रोड रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता है और 'चाय-पाव' के नाम से जाना जाता है. वहां से मिले पैसों से चिल्लम के ड्रग्स के इंतजाम के अलावा अपना पेट भरता और बाकी पैसे जमा करता. कहानी लेयर्ड और लंबी है, फिल्म देखने पर पता चलेगी. इसे ऑडियंस और क्रिटिक्स दोनों ने ही बहुत पसंद किया था.
'सलाम बॉम्बे' के एक सीन में रघुबीर यादव और शफीक
'सलाम बॉम्बे' के एक सीन में रघुबीर यादव और शफीक सैयद.

अवॉर्ड्स- इसे अपने देश में बेस्ट हिंदी फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड तो मिला ही, साथ ही कई और देशों में हुए फिल्म फेस्टिवल (कान और मॉन्ट्रियल फिल्म फेस्टिवल) में भी इसे ढेरों अवॉर्ड्स मिले. फिल्म 'सलाम बॉम्बे' इंडिया की ओर से दूसरी फिल्म थी जो ऑस्कर में 'बेस्ट फॉरेन फिल्म' कैटेगरी में नॉमिनेट की गई थी.
फिल्म की खास बातें:
#. फिल्म के शुरुआती दौर में इसका नाम 'चल बॉम्बे चल' तय किया गया था.
फिल्म 'सलाम बॉम्बे' का पोस्टर.
फिल्म 'सलाम बॉम्बे' का पोस्टर.

# इस फिल्म में काम करने वाले अधिकतर बच्चे बॉम्बे की सड़कों पर ही रहने वाले थे. इन्हें फिल्म में कास्ट करने से पहले मीरा ने बाकायदा इनके लिए एक्टिंग वर्कशॉप्स ऑर्गनाइज़ किए थे. फिल्म के लीड एक्टर शफीक़ सैय्यद भी उन्हीं बच्चों में से एक थे. # इस फिल्म के पूरे हो जाने के बाद डायरेक्टर मीरा नायर ने बॉम्बे की सड़कों पर रह रहे बच्चों के लिए 'सलाम बालक' नाम का एक ट्रस्ट शुरू किया. ये ट्रस्ट बच्चों की देखभाल का काम करता है. शफीक़ सैय्यद भी इसी ट्रस्ट के हिस्सा थे लेकिन अब वो बैंगलोर में ऑटो चलाते है.
सलाम बालक ट्रस्ट का लोगो और फिल्म के दौरान सड़कों पर रहने वाले बच्चों के साथ मीरा.
फिल्म के दौरान सड़कों पर रहने वाले बच्चों के साथ मीरा.

# फिल्म की शूटिंग के दौरान ड्रग डीलर बाबा का रोल करने वाले नाना पाटेकर सच में चाकू घायल से हो गए थे. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सीन से पहले शफीक़ मीरा की बात अच्छे से समझ नहीं पाए थे.
#. मशहूर एक्टर इरफ़ान खान पहली बार इसी फिल्म में नज़र आए थे. फिल्म में इरफ़ान चाय-पाव के लिए चिट्ठी लिखने वाले के किरदार में चंद सेकंड के लिए स्क्रीन पर नज़र आते हैं.
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2. मॉनसून वेडिंग
प्लॉट- मीरा नायर की ये फिल्म साल 2001 में रिलीज़ हुई थी. 'बिग फैट इंडियन वेडिंग' यानी बहुत बड़ी और खर्चीली शादी के कॉन्सेप्ट पर बेस्ड थी. आदतन मीरा की इस फिल्म में कई और पुट भी मौजूद हैं. एक शादी हो रही है. पापा ढेर सारे पैसे खर्च रहे हैं. लड़की शादी से खुश नहीं है. अजीब सी घुटन है, अफसोस है. एक बहुत पैसे वाले 'गरीब' से अंकल हैं. बैकग्राउंड में दो और लव स्टोरीज चल रही हैं. मौज है. सीख है.
फिल्म 'मॉनेसून वेडिंग' का एक सीन.
फिल्म 'मॉनसून वेडिंग' का एक सीन.

अवॉर्ड्स-फिल्म 'मॉनसून वेडिंग' को वेनिस फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लॉयन अवॉर्ड मिला था. सत्यजीत रे की 'अपराजिता' (1956) के बाद ये दूसरी भारतीय फिल्म थी, जिसे ये अवॉर्ड दिया गया. British Independent Film Award में इसे बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म का अवॉर्ड भी मिला.
फिल्म की खास बातें:
# शूट की गई फिल्म की एक बड़ी फुटेज एयरपोर्ट के X-Ray मशीन में खराब हो गई थी. इसमें शादी का सीन शामिल था. उन सीन्स को पैसे जमा करके दोबारा शूट किया गया. # फिल्म के एक सीन में इवेंट मैनेजर दुबे जी टेंट के लिए लगे बांस पर खड़े होकर बात करते हुए दिखते हैं. लेकिन वो बात करते-करते नीचे आ जाते हैं और नेटवर्क को गरियाते हुए कहते हैं कि ऊपर चढ़कर आवाज़ नहीं आ रही थी और नीचे आते ही आने लगी. ये सीन ऊपर बांस पर खड़े होकर ही शूट होना था लेकिन दुबेजी के किरदार में विजय राज ने पूरी सीन को इंप्रोवाइज़ कर दिया, जो मीरा को भी पसंद आया है और उसे वैसे ही फिल्म में रखा गया.
फिल्म के उस सीन में विजय राज.
फिल्म के उस सीन में विजय राज.

# मीरा ने फिल्म लिखते वक्त लड़के के पेरेंट्स के रिलेशनशिप पर भी एक प्रॉपर सब-प्लॉट तैयार किया गया था. ये रोल फिल्म में रोशन सेठ और सोनी राजदान ने किया था. मसला ये हुआ कि फिल्म की शूटिंग के लिए 30 दिन का शेड्यूल तय किया गया था. समय की पाबंदी के कारण उस प्लॉट को फिल्म से निकालना पड़ता. इससे पहले कि ऐसा कुछ हो मीरा का दिमाग फिर गया और उन्होंने पूरी फिल्म 40 दिन में शूट की. सबप्लॉट को मिलाकर. # ललित वर्मा यानी नसीरुद्दीन शाह के घर में उनके मर चुके बड़े भाई और रिया के पापा सुरेंद्र वर्मा की एक फ़ोटो लटकी नज़र आती है. वो फ़ोटो मीरा के ही एक दोस्त की थी, जो कुछ दिन पहले ही मरे थे. # इस फिल्म में पिम्मी का किरदार निभाने वाली लिलेट दुबे और मीरा एक-दूसरे को कॉलेज के दिनों से जानती थीं. उन्होंने साथ में कई सारे नाटकों में भी काम किया है. लेकिन खास बात ये कि मीरा जहां इस फिल्म को डायरेक्ट कर रही थीं, वहीं लिलेट फिल्म में अपनी बेटी के साथ एक्टिंग कर रही थीं. फिल्म में लिलेट की बेटी नेहा दुबे ने आएशा वर्मा का रोल किया था, जिससे रणदीप हुड्डा का किरदार प्यार करता है.
फिल्म के एक सीन में लिलेट और नेहा.
फिल्म के एक सीन में लिलेट और नेहा.

3. द नेमसेक
प्लॉट- साल 2006 में आई मीरा नायर की ये फिल्म 'क्रॉस कल्चर' और उससे होने वाली दिक्कतों के बारे में थी. अशोक और आशिमा गांगुली नाम के बंगाली पति-पत्नी न्यू यॉर्क आते हैं. और यहां से उनके संघर्ष की कहानी शुरू होती है. संघर्ष कैसा? अपने कल्चर को बचाए रखने के साथ-साथ उसे अपने बच्चों में भी डालने का. वो इस प्रोसेस में इतना घुस जाते हैं कि अपने बच्चों से ही दूर होने लगते हैं. इन सब के बीच उनके बच्चों के दिमाग में क्या चलता है? उनके बर्ताव में क्या अंतर आता है? उनकी मानसिकता में किस हद तक बदल पाती है? जैसी चीजों के बारे में बात की गई है. ये फिल्म झुंपा लाहिरी की 'द नेमसेक' नाम की ही किताब पर बेस्ड है.
'द नेमसेक' के एक सीन में गांगुली परिवार.
'द नेमसेक' के एक सीन में गांगुली परिवार.

अवॉर्ड्स- इस फिल्म के लिए मीरा नायर को बुल्गेरिया के Love is Folly International Film Festival में "Golden Aphrodite" अवॉर्ड मिला था. कास्टिंग सोसाईटी ऑफ अमेरिका में इस फिल्म को "Best Feature Film Casting" के अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था.
फिल्म की खास बातें:
# मीरा पहले इस फिल्म में अभिषेक बच्चन और रानी मुखर्जी को लेना चाहती थीं. समय की कमी की वजह से उन्हें तब्बू और काल पेन को कास्ट करना पड़ा. काल पेन हॉलीवुड एक्टर हैं और तब तक 'होमलैंड' टीवी सीरीज़ के अलावा, 'कॉस्मोपॉलिटन', 'हैरल्ड एंड कुमार गो टू वाइट कैसल' जैसी फिल्मों में काम कर चुके थे. उन्हें फिल्म में लेने की सलाह 'हैरल्ड एंड कुमार' में काल के को-एक्टर रहे जॉन चो ने मीरा को दी थी.
फिल्म 'हैरल्ड एंड कुमार' के एक सीन में जॉन चो.
फिल्म 'हैरल्ड एंड कुमार' के एक सीन में जॉन चो और काल पेन. 

# जब मीरा 'द नेमसेक' की सारी तैयारी कर चुकी थीं और शूटिंग से महज़ एक महीने दूर थीं, तब उन्हें एक ऑफर मिला. बड़ा ऑफर. 'हैरी पॉटर' सीरीज़ की चौथी फिल्म डायरेक्ट करने का ऑफर. 'हैरी पॉटर' मीरा के बेटे की बहुत पसंद थी. मीरा अपने बेटे के लिए वो फिल्म डायरेक्ट भी करना चाहती थीं. ये बात उन्होंने अपने बेटे से भी डिस्कस की. इस पर उनके बेटे का जवाब था- '' 'हैरी पॉटर' तो कोई भी डायरेक्टर बना सकता है लेकिन 'द नेमसेक' सिर्फ आप ही बना सकती हैं.'' इसके बाद मीरा ने 'द नेमसेक' बनाई.
फिल्म 'हैरी पॉटर गॉबलेट ऑफ फायर' का एक सीन.
फिल्म 'हैरी पॉटर गॉब्लेट ऑफ फायर' का एक सीन.

# फिल्म के क्रेडिट्स में काल पेन का नाम दो बार आता है. एक बार उन्हें 'गोगोल' और दूसरी बार 'निखिल' के लिए क्रेडिट दिया गया है. और ये जानबूझ कर किया गया था. # मीरा के पास फिल्म का बजट हमेशा बहुत लिमिटेड रहता है. इस फिल्म में भी वो खस्ताहाल ही थीं. इसलिए न्यू यॉर्क के कई सीन्स जैसे डिस्को, हनीमून और मौसमी मौसी के घर में शूट हुए सीन्स कलकत्ता में शूट किए गए थे. # तबू ने फिल्म की मेकिंग से जुड़ा एक किस्सा शेयर करते हुए बताया कि इतने सालों तक इंडिया में रहने के बावजूद उन्होंने कभी ताज महल नहीं देखा था. ताज उन्होंने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही पहली बार देखा था.
'द नेमसेक' फैमिली के साथ ताज महल घूमती तबू.
'द नेमसेक' फैमिली के साथ ताज महल घूमती तबू.

4. द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट 
प्लॉट- ये मीरा नायर की सबसे लेटेस्ट फिल्म है, जो 2012 में आई थी. ये फिल्म मोहसीन हामिद की नॉवल 'द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट' पर बेस्ड थी. इस फिल्म पाकिस्तान के बारे में है. कैसे 2001 में अमेरिका के ट्विन टॉवर्स पर हमलों के बाद पाकिस्तान की इमेज दुनियाभर में खराब हो गई या कर दी गई. इस फिल्म में ये चीज़ें अमेरिका में काम करने वाले एक पाकिस्तानी लड़के की नज़र से दिखाई गईं हैं. उस हमले के बाद उसकी ज़िंदगी किस क़दर बदल जाती है, यही इस फिल्म की कहानी है.
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'द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट ' का पोस्टर.

अवॉर्ड्स- अमेरीका के सालाना फिल्म फेस्टिवल Mill Valley Film Festival में इस फिल्म को Audience Favorite—World Cinema award मिला था. इसके अलावा जर्मनी के सालाना फिल्म फेस्टिवल German Film Award for Peace में भी इसके लिए मीरा नायर को The Bridge नाम का अवॉर्ड दिया गया था.
फिल्म की खास बातें:
#  शुरुआत में फिल्म में लीड रोल के लिए एक्टर शाहिद कपूर का नाम चुना गया था. लेकिन किसी वजह से वो इस फिल्म का हिस्सा नहीं बन पाए. शाहिद की जगह फिल्म में ब्रिटिश-पाकिस्तानी एक्टर-रैपर रिज़वान अहमद को साइन कर लिया गया. एक्टिंग के लिए रिज़वान एमी अवॉर्ड्स के लिए दो बार नॉमिनेट होने के साथ एक बार ये अवॉर्ड जीत भी चुके हैं.
शाहिद कपूर और रिज़वान अहमद.
शाहिद कपूर और रिज़वान अहमद.

# मीरा ने अपने एक इंटरव्यू में इस फिल्म से जुड़ा एक किस्सा बताया कि कैसे एक एक्टर ने शूटिंग के पहले ही दिन उनका लिखा डायलॉग बोलने से इंकार कर दिया था. क्योंकि वो उससे सहमत नहीं थे. उन्होंने बताया कि पहला सीन एक कैफे में शूट होने वाला था लेकिन उस एक्टर ने डायलॉग बोलने से मना कर दिया. उन्हें जल्दी-जल्दी में वो पूरा सीन दोबारा से लिखना पड़ा.
फिल्म का ओपनिंग सीन.
फिल्म के उस सीन में दोनों एक्टर्स.

# फिल्म के एक सीन में चंगेज की गर्लफ्रेंड एरिका कैमरे से फोटो खिंचती दिखती हैं. उस सीन में कैमरे पर Canon EOS 5D Mark II लिखा नज़र आता है. मीरा ने बताया कि ये 'एडिटिंग मिस्टेक' थी और गलती से फाइनल कट में चला गया था. # मीरा जब इस फिल्म के लिए इन्वेस्टर ढूंढ़ रही थीं उस वक्त उनके साथ एक घटना हुई. इससे उन्हें ये पता चला कि पाकिस्तानियों को दुनियाभर में कितनी हेय दृष्टि से देखा जाता है. उनके इन्वेस्टर ने उन्हें फिल्म के लिए दो मिलियन डॉलर दिए. इस पर मीरा ने कहा कि उनकी फिल्म इतने कम पैसे पूरी नहीं पाएगी. इसके लिए उन्हें और पैसे लगेंगे. इन्वेस्टर ने उन्हें तपाक से जवाब देते हुए कहा कि अगर तुम फिल्म में पाकिस्तानी हीरो ले रही हो, तो इतना बजट काफी है.


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