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वो 7 फिल्में, जिनकी सिर्फ कास्टिंग ही देख जनता ने पानी की तरह पैसा बहा डाला

‘विक्रम’ देखने के बाद अगर लगे कि यार ऐसा कुछ और भी बताओ ना, जहां फिल्म की कास्ट देखकर ही मुंह से ‘टेक माइ मनी’ निकल जाए. तो आगे की जानकारी आपके लिए ही है.

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Indian films with big superstars
इन फिल्मों की भारी-भरकम कास्ट ने रिलीज़ से पहले ही माहौल बना दिया था.
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22 जून 2022 (Updated: 22 जून 2022, 18:51 IST)
Updated: 22 जून 2022 18:51 IST
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‘विक्रम’. वो तमिल फिल्म जो आए दिन कमाई के नए रिकॉर्ड्स बना रही है. लोकेश कनगराज के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म अब तक करीब 375 करोड़ रुपए का वर्ल्डवाइड कलेक्शन कर चुकी है. फिल्म इस फिगर पर रुकती नहीं दिख रही. तमिलनाडु में तो ‘बाहुबली 2’ का रिकॉर्ड तोड़ ही चुकी है. साथ ही देश के बाकी हिस्सों में भी सॉलिड कलेक्शन कर रही है. 

‘विक्रम’ एक मास एंटरटेनर है. इसी नाम से 1986 में भी फिल्म आई थी. जहां लीड में कमल हासन थे. वो नई वाली फिल्म में भी हैं. और सिर्फ वो ही नहीं, बल्कि दो और दिग्गज कलाकारों ने फिल्म को लीड किया है. पिछले कुछ समय से तमिल सिनेमा में कंटेंट ड्रिवन फिल्में देने वाले विजय सेतुपति और मलयालम सिनेमा के पोस्टर बॉय फहद फ़ाज़िल. जब फिल्म की कास्ट अनाउंस हुई थी, तभी हमारे साथी मुबारक ने कह दिया था यही है बेस्ट कास्टिंग वाली फिल्म. उसकी मेजर वजह है कि ऐसी ऑन्सॉम्बल कास्ट हाल-फिलहाल में किसी इंडियन फिल्म में देखने को नहीं मिली. लोकेश कनगराज के डायरेक्शन से इतर सिर्फ फिल्म की कास्ट के लिए इसे एक बार तो देखा जाना चाहिए. खासतौर पर वो प्री इंटरवेल सीन. अगर आपने फिल्म देखी है तो समझ गए होंगे. अगर नहीं देखी, तो हम आपके लिए स्पॉइल नहीं करेंगे. बस जाकर फिल्म देख लीजिए. 

vikram movie
विक्रम से तीनों एक्टर्स के कैरेक्टर पोस्टर्स.   

‘विक्रम’ देखने के बाद अगर लगे कि यार ऐसा कुछ और भी बताओ ना, जहां फिल्म की कास्ट देखकर ही मुंह से ‘टेक माइ मनी’ निकल जाए. तो आगे की जानकारी आपके लिए ही है. बताएंगे उन इंडियन फिल्मों के बारे में जिनकी कास्ट में गर्दा उड़ाने वाले नाम थे. 


#1. थलपति 
भाषा: तमिल 
कास्ट: रजनीकांत, मामूटी, अमरीश पुरी, अरविंद स्वामी 

लेट एटीज़ में रजनीकांत फिल्म डायरेक्टर मणि रत्नम से मिले. एक नहीं, बल्कि दो बार. वो मणि रत्नम के साथ बस किसी भी तरह काम करना चाहते थे. मणि रत्नम ने उस समय मना कर दिया. कहा कि उनके पास ऐसी कोई स्क्रिप्ट नहीं जो रजनीकांत के स्टारडम को बरकरार रख सके, साथ ही वो ‘अ मणि रत्नम’ फिल्म भी रहे. उन्होंने कुछ समय लिया, लेकिन फिर ऐसी स्क्रिप्ट तैयार कर ली. वो फिल्म थी 1991 में आई ‘थलपति’. महाभारत के किरदार दुर्योधन और कर्ण पर आधारित फिल्म, जिसे मॉडर्न वर्ल्ड का बैकड्रॉप दिया गया. 

thalapathi
फिल्म की कहानी महाभारत पर आधारित है. 

फिल्म में रजनीकांत का कैरेक्टर कर्ण पर बेस्ड था. वहीं, उनके दुर्योधन बने मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार मामूटी. दोनों स्टार्स को साथ लाने में खूब पैसा भी खर्च हुआ. बताया जाता है कि तीन करोड़ रुपए की लागत में बनी ‘थलपति’ उस समय की सबसे महंगी साउथ इंडियन फिल्म थी. दीवाली के मौके पर रिलीज़ हुई ये फिल्म एक कमर्शियल और क्रिटिकल सक्सेस साबित हुई.   


 #2. कभी खुशी कभी गम 
भाषा: हिंदी 
कास्ट: अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, करीना कपूर 

हिंदी सिनेमा के स्टार्स को साथ लाना बहुत मुश्किल होता है. आखिर, बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी भी साल में एक बार ही होती है. ऐसे में जब अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, जया बच्चन, काजोल, ऋतिक रोशन और करीना कपूर जैसे एक्टर्स एक ही फ्रेम में आए, तो ऑडियंस का एक्साइटेड होना लाज़मी था. ये कमाल किया करन जौहर ने, जो उस वक्त ‘कुछ कुछ होता है’ की सक्सेस वेव इन्जॉय कर रहे थे. करन बताते हैं कि उन्होंने ‘कभी खुशी कभी गम’ के लिए ‘कभी कभी’ की स्टोरीलाइन ली, ‘हम साथ साथ हैं’ से उसकी फैमिली वैल्यूज़ उधार ली, और बना दी अपनी ये फिल्म. 

hum saath saath hain
करन के मुताबिक उन्होंने अपनी फिल्म के लिए ‘कभी कभी’ और ‘हम साथ साथ हैं’ को मिला दिया.  

साल 2001 बॉलीवुड फिल्मों के लिए बड़ा साल था. ‘लगान’, ‘दिल चाहता है’ और ‘गदर’ जैसी फिल्में अपना इम्पैक्ट छोड़ चुकी थी. ऐसे में करन की फिल्म ने किसी को रिप्लेस नहीं किया, बल्कि अपनी एक मजबूत जगह बनाई. जो आज फैन्स के बीच कल्ट स्टेटस हासिल कर चुकी है.  


#3. गिरफ्तार 
भाषा: हिंदी
कास्ट: अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, कमल हासन, पूनम ढिल्लों 

रजनीकांत ने 1975 में अपना ऑन स्क्रीन डेब्यू किया. लेकिन उन्हें करियर के पहले बड़े ब्रेकथ्रू के लिए अगले पांच साल इंतज़ार करना पड़ा. जब 1980 में उनकी फिल्म ‘बिल्ला’ आई. जो अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘डॉन’ का रीमेक थी. दोनों एक्टर्स ने साथ काम भी किया. पहले ‘अंधा कानून’ में, और फिर ‘गिरफ्तार’ में. ये दोनों एक्टर्स ‘गिरफ्तार’ के पोस्टर्स पर ज़रूर थे, लेकिन फिल्म को लीड कर रहे थे कमल हासन. इंडियन सिनेमा के ये तीन सुपरस्टार उस दौर में साथ आए, जब पैन इंडियन वर्ड मेनस्ट्रीम तक नहीं हुआ था. 

amitabh bachchan and kamal haasan
फिल्म में अमिताभ बच्चन की एंट्री सेकंड हाफ में होती है. 

‘गिरफ्तार’ बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट रही, साथ ही उस साल की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म भी बनी. 


#4. हरीकृष्णनंस 
भाषा: मलयालम 
कास्ट: मोहनलाल, मामूटी, जूही चावला

मोहनलाल और मामूटी. मलयालम सिनेमा के स्तम्भ. दोनों ‘हरीकृष्णनंस’ नाम की फिल्म पर साथ काम कर रहे थे, जिसे डायरेक्ट कर रहे थे फहद फ़ाज़िल के पिता फ़ाज़िल. कहानी थी दो दोस्तों की जिन्हें मीरा नाम की लड़की से प्यार हो जाता है. मोहनलाल और मामूटी फिल्म में दोस्त बने, वहीं मीरा बनी थीं जूही चावला. अंत में वो लड़की दोनों दोस्तों में से किसे चुनती है, यही आगे की कहानी है. बस यहाँ एक पेच था. मोहनलाल और मामूटी के फैन्स का आपस में जबरदस्त कॉम्पिटीशन चलता है. इसलिए अगर किसी एक हीरो के साथ हिरोइन की शादी हुई तो दूसरे वाले के फैन्स भड़क जाएंगे. 

shah rukh khan
शाहरुख भी फिल्म से जुडने वाले थे, पर फिर बात नहीं बन पाई. 

ऐसे में मेकर्स ने जुगाड़ निकाला. फिल्म के दो क्लाइमैक्स रखे. जहां एक में मीरा मोहनलाल के किरदार को पसंद कर लेती है, तो दूसरे में मामूटी के कैरेक्टर को. दोनों वर्ज़न रिलीज़ कर दिए. सर्टीफिकेशन बोर्ड बिगड़ा. लीगल पचड़े हुए. लेकिन फिल्म को इससे सिर्फ फायदा ही हुआ. ‘हरीकृष्णनंस’ उस साल की हाईएस्ट ग्रॉसिंग मलयालम फिल्म बनी. फिल्म ने लंबे समय से बेजान पड़ी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री को भी बड़ा बूस्ट दिया. 

मोहनलाल, मामूटी और जूही चावला के अलावा शाहरुख खान भी फिल्म का हिस्सा बनने वाले थे. उनके साथ कुछ प्रोमोशनल फोटोज़ भी शूट किये गए. लेकिन किसी वजह से वो प्रोजेक्ट से नहीं जुड़ पाए. 


#5. कंडुकोंडेन कंडुकोंडेन
भाषा: तमिल 
कास्ट: तबू, मामूटी, अजीत, ऐश्वर्या राय

राजीव मेनन की फिल्म ‘कंडुकोंडेन कंडुकोंडेन’ बनकर तैयार थी. फिर भी वो उसे रिलीज़ नहीं कर पा रहे थे. इसकी बड़ी वजह थी ऐश्वर्या राय. दरअसल, ऐश्वर्या की फिल्में ‘ताल’ और ‘हम दिल दे चुके सनम’ बॉक्स ऑफिस पर अच्छा पैसा पीट रही थीं. ऐश्वर्या उनकी भी फिल्म का अहम हिस्सा थीं, ऐसे में वो अपना कलेक्शन बिगाड़ना नहीं चाहते थे. सिर्फ ऐश्वर्या ही नहीं, उनके साथ मामूटी, तबू और अजीत जैसे एक्टर्स थे. वो अजीत जो इस फिल्म को साइन करने तक स्टार नहीं बने थे. लेकिन उसकी रिलीज़ तक बन चुके थे. 
फिल्म ने कमर्शियल और क्रिटिकल, दोनों फ्रंट्स पर डिलीवर किया. अपने एक गाने के लिए नैशनल अवॉर्ड जीता. साथ ही तमिलनाडु बॉक्स ऑफिस पर अपना 150 दिनों का रन पूरा किया.


#6. सीताम्मा वाकीटलू सिरिमल्ले चेत्तु   
भाषा: तेलुगु 
कास्ट: महेश बाबू, वेंकटेश, समांथा प्रभु, अंजली 

महेश बाबू और वेंकटेश इस फिल्म में एक दूसरे के भाई बने. समांथा प्रभु और अंजली ने उन दोनों के लव इट्रेस्ट के रोल निभाए. जब 11 जनवरी, 2013 को ये तेलुगु फिल्म रिलीज़ हुई तब ऑडियंस का फर्स्ट रिएक्शन लिया गया. ज्यादातर लोगों ने खुश होकर एक ही बात कही, कि पिछले 25 साल में ऐसा पहली बार हुआ है, मज़ा आ गया. आखिर ऐसा हुआ क्या था? महेश बाबू और वेंकटेश स्टारर ‘सीताम्मा वाकीटलू सिरिमल्ले चेत्तु’ करीब पिछले 25 सालों में आई पहली मल्टी-स्टारर तेलुगु फिल्म थी. 

mahesh babu and venkatesh
महेश बाबू और वेंकटेश ने फिल्म में दो बेरोजगार भाइयों के किरदार निभाए हैं. 

इस फैक्टर ने फिल्म के पॉज़िटिव वर्ड ऑफ माउथ में काफी हेल्प की. 30 करोड़ रुपए के बजट में बनी इस फिल्म ने अपने डिस्ट्रिब्यूटर्स को करीब 51 करोड़ रुपए कमाकर दिए. जो उस वक्त के हिसाब से अच्छा कलेक्शन था. याद दिला दें कि ये तेलुगु फिल्म प्री बाहुबली एरा में बनी थी.  


#7. सौदागर 
भाषा: हिंदी 
कास्ट: दिलीप कुमार, राजकुमार, मनीषा कोइराला, अमरीश पुरी 

‘सौदागर’. वो फिल्म जिस पर बात उसकी कास्टिंग के किस्सों के बिना पूरी नहीं हो सकती. कैसे दिलीप कुमार और राजकुमार एक साथ काम नहीं करना चाहते थे. सुभाष घई को उन्हें साथ लाने के लिए क्या जतन करने पड़े. फिर फिल्म की शूटिंग कैसे पूरी हुई. इंटरनेट ऐसे किस्सों से भरा पड़ा है. फिल्म की कहानी में विवेक मुश्रन और मनीषा कोइराला के कैरेक्टर्स कैटेलिस्ट बने. लेकिन उसे लीड किया था दिलीप कुमार और राजकुमार के किरदारों ने ही. 

saudagar movie
फिल्म के एक सीन में दिलीप कुमार और राजकुमार. 

जिन्हें लगता है कि एक उम्र आ जाने के बाद एक्टर्स अपने दम पर फिल्म नहीं चला सकते, उन्हें ‘सौदागर’ का बॉक्स ऑफिस रन देख लेना चाहिए. सुभाष घई के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म देशभर में सिल्वर जुबिली सक्सेस साबित हुई. यानी कि सिनेमाघरों पर लगातार 25 हफ्तों तक चली. साथ ही इसने सुभाष घई को उनके करियर का इकलौता बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिलाया.

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