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गदर: मूवी रिव्यू

इस फिल्म की मूल आत्मा ऐक्शन नहीं, बल्कि प्रेम है. इसे सनी देओल, सनी देओल, अमरीश पुरी और सनी देओल के लिए देखा जाना चाहिए.

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gadar movie review starring sunny deol
'गदर' 2 से पहले असली वाली 'गदर' थिएटर में लग चुकी है
9 जून 2023 (Updated: 9 जून 2023, 20:48 IST)
Updated: 9 जून 2023 20:48 IST
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साल था 2001. तीन हज़ार लोग सिनेमा के बाहर इकट्ठे हुए, बोले: "अभी पिक्चर दिखाओ, नहीं तो थिएटर तोड़ देंगे." ये पिक्चर थी सनी देओल की 'गदर : एक प्रेम कथा'. पूरा किस्सा आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं. अपन असली मुद्दे पर आ धमकते हैं. ‘गदर 2’ से पहले 'गदर' रिलीज हुई है. अभी मेकर्स का ये एक तरह का पायलट प्रोजेक्ट है. इसे लिमिटेड थिएटर्स में रिलीज किया गया है. बढ़िया माहौल जमने पर स्क्रीन्स बढ़ाई जाएंगी. खैर जो भी हो, हमने 'गदर' देख ली है. आपको बताते हैं कि फ़िल्म कैसी लगी?

इस फिल्म पर दो हिस्सों में बात होनी चाहिए. फर्स्ट हाफ बिल्कुल स्वीट और सेकंड हाफ ऐक्शन से भरपूर. इंटरमिशन एकदम उस जगह आता है, जहां अशरफ अली अपनी बेटी सकीना को प्लेन में बिठाकर पाकिस्तान ले जा रहा होता है. हालांकि फिल्म खुलती ही मारकाट से है. ओम पुरी का नरेशन बंटवारे की सूचना देता है. उसके बाद पाकिस्तान से लाशें भरकर आती हैं और यही हिन्दुस्तान की तरफ से भी होता है. दंगे होते हैं. तारा सिंह अपनी मैडम जी को यानी सकीना को बचाता है. फिर कैमरा एक बहुत प्यारे गिफ्ट, प्रेम की निशानी ताजमहल पर ज़ूम होता है. लिखकर आता है, 'गदर: एक प्रेम कथा'. मुझे फिल्म का नाम इंट्रोड्यूज करने का ये तरीका बहुत पसंद आया. चूंकि ज़ूम शॉट की बात हुई है. इसलिए इस पर ज़रा रुककर बात कर लेते हैं. आधुनिक फिल्म ग्रामर में ज़ूम शॉट को बहुत क्लीशे और दोयम दर्जे का माना जाता है. आजकल के फिल्ममेकर अपनी फिल्मों में इसके इस्तेमाल से बचते हैं. डॉली ज़ूम शॉट तो यूज होता है, पर सिम्पल ज़ूम नहीं होता. लेकिन 'गदर' में अनिल शर्मा ने इस शॉट का सिनेमैटोग्राफर नजीब खान की मदद से बहुत अच्छा इस्तेमाल किया है.

बहरहाल, मैं ये कह रहा था, फर्स्ट हाफ मुझे बहुत ज़्यादा पसंद आया. दूसरा भी अच्छा है. पर उसमें ज़्यादा एक्शन दिखाने के चक्कर में फिल्म की सॉफ्टनेस छूट गई है. मेरी निजी राय है, इस फिल्म की मूल आत्मा ऐक्शन नहीं, बल्कि प्रेम है. तारा सिंह सबकुछ अपने प्रेम को बचाने के लिए ही करता है. पहले सवा घंटे में फिल्म आपकी आत्मा को छूती है. दूसरे हाफ में फोकस शिफ्ट मारधाड़ पर ज़्यादा हो जाता है. हालांकि सनी देओल होंगे, तो ऐक्शन का होना स्वाभाविक है. उनकी टारगेट ऑडियंस ही ऐसी है. फिल्म का एक्शन है भी ज़ोरदार.

ये बहस यहीं छोड़ते हैं. आगे की तरफ बढ़ते हैं. सनी देओल और अमीषा पटेल के इंट्रोडक्ट्री सीन की एक खासियत है. दोनों पहली बार जब फ्रेम में आते हैं, सिर्फ उनकी आंखें दिखती हैं. खासकर सनी देओल का इंट्रोडक्शन. कई सेकंड तक उनकी आंखों के भाव ही दिखते हैं. पहले समभाव, फिर क्रोध. इसके बाद ज़ोर से चिल्लाने पर उनका चेहरा दिखता है. और थिएटर में बजती हैं, तालियां. ऐसे कई मौके आए, जब थिएटर तालियों और सीटियों से गूंज उठा. आखिरी कुछ मिनट में तो ये लगातार हुआ. चाहे सनी का हैन्डपम्प उखाड़ना हो या हिन्दुस्तान जिंदाबाद वाला डायलॉग बोलना. या फिर वीजा पर दस्तखत से इनकार किए जाने पर उनका कहना: "एक कागज़ पर मोहर नहीं लगेगी तो क्या तारा पाकिस्तान नहीं जाएगा? मुझे मेरे बच्चे को उसकी मां से मिलाने से कोई ताकत, कोई सरहद नहीं रोक सकती."

इस फिल्म में मुझे मासूम सनी देओल ज़्यादा अच्छे लगते हैं. जब वो प्यार से सकीना को ताजमहल गिफ्ट करते हैं, या फिर जब गाने गाते हैं. मज़ा आता है. ऐक्शन तो वो करते ही एक नम्बर हैं. दो ऐक्शन सीन इस फिल्म की जान हैं. दोनों की कोरियोग्राफी बहुत अच्छी है. एक तो जब कुछ लोग तारा के घर सकीना को मारने के लिए घुस आते हैं. इसके बाद तारा जो लाठी लेकर जुटता है, मौज आ जाती है. दूसरा सीन है, मालगाड़ी में चढ़कर भारत भागने का. ये सिर्फ ऐक्शन के लिहाज से अच्छा सीक्वेंस नहीं है. बल्कि कैमरा वर्क के लिहाज से बहुत जबरदस्त सीक्वेंस है. करीब 10 मिनट लम्बे इस सीन को शूट करना बहुत कठिन रहा होगा. पर बहुत बढ़िया शूट है, चाहे मूविंग शॉट हों या स्टैटिक. अनिल शर्मा ने एक बार ऐसा किस्सा भी सुनाया था कि रेलवे ट्रैक पर शूट करने के लिए मोटर ट्रॉली मिली नहीं, तो उन लोगों ने मैनुअल ट्रॉली धक्का लगाकर ऑपरेट की. इसमें क्रू के ऊपर ट्रेन चढ़ते-चढ़ते बची थी. 

अमीषा पटेल सकीना के रोल में बढ़िया हैं. उनका अपीयरेंस अच्छा है. कई मौकों पर उन्होंने अभिनय भी बढ़िया किया है. पर कई मौकों पर ओवर ऐक्टिंग भी बहुत की है. खासकर जब कई सालों बाद वो अपने परिवार से बात करती हैं. उस सीन में भयानक ओवर ऐक्टिंग है. दरमियान सिंह के रोल में विवेक शौक़ का काम बहुत बढ़िया है. उनकी कॉमिक टाइमिंग सीधे आपकी बत्तीसी पर चोट करती है. वैसे कॉमिक टाइमिंग सनी देओल की भी अच्छी है. अमरीश पुरी को मैंने अब तक बड़े पर्दे पर दो बार देखा है. एक बार जब ‘डीडीएलजे’ को दोबारा रिलीज किया गया. दूसरी बार 'गदर' में. उनमें क्षण को पकड़ लेने की अद्भुत क्षमता है. वो कमाल के कलाकार हैं! ऐसा कोई सीन नहीं, जिसमें लगे कि वो अपना 100 प्रतिशत नहीं दे रहे. अमरीश पुरी स्क्रीन के जादूगर थे. जब उन्हें बताया जाता है, सकीना जिंदा है और वो उससे बात करने के लिए सब छोड़कर भागते हैं. न उसमें अमरीश पुरी कमर्शियल फिल्मों की नाटकीयता आने देते हैं और न ही आर्ट फिल्मों की झलक. यहां दोनों तरह के सिनेमा का संगम होता है. ये अमरीश पुरी ही कर सकते थे. ये तो ऐक्टिंग की बात हुई. 'गदर' का म्यूजिक भी कल्ट है. उत्तम सिंह ने हमें कमाल का गिफ्ट दिया है. उदित नारायण की आवाज़ थिएटर में सुनना एक अलग अनुभव था. इस फिल्म को हिट कराने में इसके म्यूजिक की भी महान भूमिका थी. इस पर कभी विस्तार से बात करेंगे.

'गदर' को 4K में रिलीज किया गया है. इसके हर फ्रेम को रंगा गया है, उनमें सुधार हुआ है. पर कुछ फ्रेम छूट गए हैं या यूं कहें उनमें सुधार नहीं हो सका है. ऐसे फ्रेम काफी धुंधले हैं. इसकी आवाज़ को शायद रीमास्टर किया गया है. क्योंकि सनी देओल जब चिल्लाते हैं, तो उसके साथ एक दहाड़ जोड़ी गयी है. जो मुझे पर्सनली नहीं पसंद आई. क्योंकि सनी देओल का चिल्लाना ही अपने आप में दहाड़ है. चूंकि फिल्म आज से दो दशक पहले बनाई गई थी, इसलिए इसमें कई सारी दिक्कतें हैं. खासकर कुछ शब्द ऐसे इस्तेमाल किए गए हैं, जो शायद आज इस्तेमाल नहीं होते हैं. ऐसे ही कई लोग 'गदर' के डायलॉग्स को महिला विरोधी बता सकते हैं. पर इसे 2001 के सांचे में रखकर ही जज किया जाना चाहिए. इसलिए मैं उन सब चीज़ों को छोड़ रहा हूं. सनी देओल के फैन हैं या नॉस्टैल्जिया ताज़ा करना चाहते हैं या फिर अमरीश पुरी को बड़े पर्दे पर देखने की ख्वाहिश है, तो इससे बढ़िया मौका नहीं मिलेगा. फिल्म अपने नजदीकी सिनेमाघरों में जाकर देख डालिए. 

वीडियो: सनी देओल की गदर न्यू सीन्स के साथ रिलीज़ हो रही, मेकर्स ने इसके लिए 2 करोड़ रुपये खर्च कर डाले

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