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फिल्म रिव्यू : रनिंग शादी से डॉट कॉम हटवाने वालों पे रोना आया

न ये बहुत अच्छी है न बहुत बुरी. न ये पकाती है, न ये बहुत ही क्लास है. न ये बहुत स्लो है, न उबाऊ.

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आशीष मिश्रा
16 फ़रवरी 2017 (Updated: 16 फ़रवरी 2017, 04:15 AM IST) कॉमेंट्स
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फिल्म देखने जाते वक्त आप थोड़ा सा मन बनाते हो. इतनी तो उम्मीद रखते हो कि शांति से फिल्म देख सको. और अगर उन लोगों में से हो जो फिल्म को डूबकर देखना चाहते हैं, तो चाहते हो आपके लिए सबकुछ ऐसा हो कि आप इत्मीनान से फिल्म देख सकें. रनिंग शादी में ऐसा नहीं होता. रनिंग शादी का नाम पहले रनिंग शादी डॉट कॉम था, लेकिन धन्य हो वो शादियां कराने वाली वेबसाइट जिसने फिल्म को कोर्ट तक घसीट लिया. उनकी दलील थी कि ये उनका ट्रेडमार्क है, नतीजा डायरेक्टर को फिल्म का नाम ही बदलना पड़ा. फिल्म में जहां भी रनिंग शादी डॉट कॉम बोला गया है, 'शादी डॉट कॉम' वाले हिस्से पर मुंह पर चेंपी लगा दी गई है. डिवाइन रिवेंज देखिए, दूसरी फिल्मों में ये चेंपी गालियां बोले जाने पर लगती है. हर बार किसकी पोपट हुई? नहीं बताओ किसकी पोपट हुई? लेकिन यही जब बार-बार होता है, बीच फिल्म में होता है, फिल्म के अंत में भी होता है, और वहां भी होता है, जहां फिल्म के बीच किसी कागज पर 'रनिंग शादी डॉट कॉम' लिखा होना था, तो बहुत इरिटेटिंग लगता है.
तो फिल्म कहानी है अमित साध की उर्फ़ राम भरोसे की जो तापसी पन्नू के घरवालों के कपड़े की दुकान में काम करता है. राम भरोसे मैट्रिक फेल है, राम भरोसे बिहारी है, और राम भरोसे निम्मी माने तापसी पन्नू पर लट्टू है. ये लट्टू जहां घूमता है, उस शहर का नाम अमृतसर है. राम भरोसे का एक दोस्त भी है. सरबजीत उर्फ़ सायबर या कहो सायबर जीत. शादी से प्रेमियों को भागता देख भरोसे और सायबर को इस नई वेबसाइट का ख्याल आता है. और प्रेमी जोड़ों को भगाकर ब्याह कराने में मदद कराने को रनिंग शादी डॉट कॉम जन्म लेती है. 
फिल्म बड़े ही सामान्य तरीके से कई बड़े मुद्दों को टच करती निकल जाती है. जैसे शादी के पहले सेक्स, टीन एज प्रेग्नेंसी, समलैंगिकता, इंटरकास्ट मैरिज. इंटर धरम मैरिज, इंटर देश-परदेस मैरिज. क्योंकि फिल्म का एक बड़ा हिस्सा अपनी मर्जी से शादी की बात पर फोकस्ड है. ये एक तरह से अच्छा भी है, ये बिन कहे ये जताना भी है कि देख लो, क्या-क्या बुरा है, किस-किस चीज पर अक्लमंदी बरतनी चाहिए. दुनिया ने दो लोग अपनी मर्जी से अपनी ज़िंदगी न जी सकें, इसके लिए क्या-क्या स्टैण्डर्ड तय कर रखे हैं. ये चीजों को यूं दिखाने का और चेंज के बीज बोने का इंटेलीजेंट तरीका भी है.
कुछ चीजें हैं, जो खटकती भी हैं, जैसे तापसी पन्नू का बार-बार हीरो को 'बिहारन से शादी न कर लेना' कह कर कोंचना, ऐसे में समझ नहीं आता कि दिखाने वाला क्या बिहारियों को हेय समझता था. या ये 'कुछ पंजाबियों' की उस मानसिकता पर चोट थी, जिसके चलते वो बिहारियों को 'पइये' कहने में गुरेज़ नहीं करते. या ये बिहार और पंजाब की लव स्टोरी में जीरावन छिडकने की कोशिश थी. या ये इशारा था कि मैं फिल्मों में पॉलिटिकली करेक्टनेस खोजना थोड़ा कम कर दूं? 
दी लल्लनटॉप से जब मिली रनिंग शादी की टीम  फिल्म में एक कमी है. इश्क सलीके से पका नहीं है. या ये कह लो कि ये अच्छा भी है, हमने इश्क को पकाने के नाम पर खुद को पहले ही इतना पका डाला है कि इस फिल्म ने नहीं पकाया तो हमें थोड़ा अलग लगा. हर इश्क का अलग फ्लेवर होता है, इश्क व्यवस्थित तरीके से तो होता नहीं तो चलो यहां भी नहीं. तापसी पन्नू टिपिकल पंजाबी लड़की बनी हैं. निम्मी नाम से आपके दिमाग में जो छवि उभरती है, बस वैसी ही. लड़की जो टेम्परेरी टैटू कराती है. उद्दंड होकर इश्क भी करती है और घर वालों के नाम से घबरा भी जाती है. लेकिन है बड़ी कांफिडेंट.
अमित साध से फर्स्ट हाफ में आपको कोई ख़ास मतलब नहीं होता. हां वो वो हीरो हैं तो आप उनको देखते जाते हो. लेकिन जैसे ही वो बिहार पहुंचते हैं, आपको उनकी बातों पर हंसी आना शुरू हो जाती है. फिल्म की बिहारी 'फ़िल्मी बिहारी' है, पर अमित साध के मुंह से जिस तरह से निकलती है, वो मजेदार है. अमित साध तमाम चटे, फोकस से बाहर और परेशान से सीनों में बहुत मजेदार लगे हैं. अगली बार कोई इनको लेकर फिल्म बनाए तो ये न बताए कि कैमरा कहां है. ये आदमी अच्छा काम करेगा. 
बाकी फिल्म का ये है, कि न ये बहुत अच्छी है न बहुत बुरी. न ये कायदे की लव स्टोरी है, न किसी वेबसाइट की कहानी. न ये पकाती है, न ये बहुत ही क्लास है. न ये बहुत स्लो है, न उबाऊ. इसके गाने ऐसे हैं, जो कई गाने बनाने वालों ने साथ में बनाए. फिल्म के साथ आते जाते हैं और अच्छे लगते हैं, बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन थियेटर से निकलने के बाद याद नहीं रहते. कुल जमा ये 'ठीक' फिल्म है. https://www.youtube.com/watch?v=MjoLve_AOvw

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