फ़िल्म रिव्यू : सीक्रेट सुपरस्टार
दिवाली वाले दिन की पिक्चर.
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फोटो - thelallantop
चेतावनी: गति सीमा में रहें. आगे तारीफ़ों के पुल हैं.
मिडल क्लास यानी छोटे घर और उससे भी ज़्यादा छोटे लोग. सभी की अपनी अपनी दिक्कतें.मिडल क्लास की महिलाओं की दिक्कत - परिवार. जो हो रहा है, होने दो. उसे अपनी किस्मत समझ झेलते जाओ. किसी एक इंसान (ज़्यादातर शौहर) पर इतना निर्भर हो जाओ कि उसकी परछाईं से निकलना ही नामुमकिन हो जाए. अगला आपका पति नहीं बल्कि आक़ा बन जाए. और फिर वही नियम कि गीज़र ऑन करने की भूल का खामियाज़ा आपको हाथ तुड़वाकर भुगतना पड़ेगा. कोई आपके सामने तर्क पेश भी करना चाहे तो वही सवाल मुंह बाए खड़ा हो कि "कहां जाएंगे हम?" बच्चों को कहीं घुमाना भी हो तो सोते हुए पति के बटुए से पैसे चुराकर उनकी फ़रमाइश पूरी करनी पड़े या फिर गहने बेचकर लैपटॉप लाना पड़े. और बिना बात गहने बेचने का ताप झेलना होगा सो अलग. ये सब कुछ यहां देखने को मिलता है. और सच तो ये है कि हमने इन चीज़ों से आंखें मिलाई हैं. अपने आस-पास होते हुए देखा है ये सब कुछ. उस वक़्त शायद ये सब कुछ समझ में नहीं आता था. लेकिन जब इसे आप पर्दे पर घटित होता हुआ देखते हैं तो खुद को कोसने लगते हैं. बेवजह.

मिडल क्लास की मां
मिडल क्लास बापों की दिक्कत - मालिकाना हक़. बच्चे के नम्बर कम आये, उसका गिटार तोड़ दिया. क्यूं? क्यूंकि वो बाप है. वो कुछ भी कर सकता है. वो उसे एक दिन अपनी दसवीं क्लास में पढ़ने वाली लड़की को मोबाइल पर एक लड़के की तस्वीर दिखा सकता है और कह सकता है कि वो उसकी बेटी का होने वाला शौहर है. क्यूं? क्यूंकि वो बाप है. वो कुछ भी कर सकता है. वो अपनी बीवी को जब मर्ज़ी आये, तमाचे जड़ सकता है. क्यूं? क्यूंकि वो उसके बच्चों का बाप है, उसका पति है. वो कुछ भी कर सकता है. उसके हिसाब से बच्चे की दुनिया स्याही से सने सफ़ेद काग़ज़ों से इधर या उधर नहीं होनी चाहिए. उसे सिर्फ पढ़ाई करनी चाहिए और दुनिया में बाकी का हर काम कूड़ा है. जो उसके हिसाब से उसके घर में रहने वाले हर शख्स के दिमाग में भरा हुआ है. मिडल क्लास का बाप निष्ठुर होता है. वो हाथ ऐसे छोड़ता है जैसे सामने वाले को कल का दिन ही नहीं देखने देगा. उसकी बीवी उसके लिए गरम खाना बनाने वाली मशीन होती है और बच्चे नम्बर लाने वाले रोबोट.

मिडल क्लास का बाप
मिडल क्लास के प्यार की दिक्कत - उलझनें. होता ये है कि मिडल क्लास के बच्चों की सबसे पहली दोस्ती अभाव और मुसीबतों से होती है. वो उसी में इतना उलझे रहते हैं कि बाकी चीज़ों के लिए वक़्त नहीं निकल पाता. बात भले ही छुटपन की हो लेकिन सब कुछ उनपर डिपेंड कर रहा होता है जिन्हें उस प्यार की भनक भी नहीं होती. इसके अपने एडवेंचर और मज़े हैं लेकिन काफी कुछ है जो एक छुट्टी, एक ट्रांसफर, एक रिपोर्ट कार्ड की वजह से छूट जाता है. एक झटके में सब कुछ यों ख़त्म होता है जैसे उसकी शुरुआत ही अंत के लिए हुई हो.

मिडल क्लास का प्यार
ये सब कुछ फ़िल्म सीक्रेट सुपरस्टार में ठीक उसी तरीके से दिखाए गए हैं जैसे ये असल ज़िन्दगी में मौजूद रहते हैं. कोई सजावट नहीं. कोई काट-छांट नहीं. कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं. ख़ालिस मिडल क्लास समस्याएं अपने सबसे कुरूप अवतार में. और यहीं सीक्रेट सुपरस्टार सब में सब नम्बर ले आती है.
आमिर खान इस फ़िल्म के हीरो नहीं हैं. न ही वो लीड ऐक्टर हैं. ऐसे वक़्त में जब एक ऐक्टर की मौजूदगी मात्र फ़िल्म के रिलीज़ होने से पहले ही उसे हिट फ़िल्म का तमगा दिलवा देती है, आमिर को थैंक यू कहा जाना चाहिए साइड ऐक्टर बनने के लिए. आमिर खान न बने रहने के लिए. ऐक्टिंग में वो कभी कसर छोड़ते नहीं हैं बशर्ते वो 1990 में आई फ़िल्म 'तुम मेरे हो' न हो. ;) ज़ायरा वसीम. फ़िल्म में इन्सिया. इन्सिया यानी औरत. शानदार काम. ज़ायरा ने अपनी पिछली फ़िल्म में कहा था, "अब दंगल होगा." सही कहा था. दंगल इस फ़िल्म में किया है. मेहर विज. इन्सिया की मां. इनसे प्यार हो जाना तय है. नहीं हुआ तो अपने दिमाग के साथ कुछ गड़बड़ समझिये. राज अर्जुन. फ़ारुख. इन्सिया का बाप. महाखड़ूस बाप जिससे आप 2 मिनट के अन्दर नफ़रत करने लगते हैं. यहीं राज अर्जुन जीत जाते हैं. उन्हें पिछले कुछ वक़्त में बाप की बेस्ट ऐक्टिंग का अवॉर्ड दे दिया जाना चाहिए.
दो तरीके हैं. पहला ये कि आप एक फ़िल्म बनाइये या उसमें काम कीजिये और फिर हल्ला काटने लगिए. एक वर्ग विशेष के स्वघोषित ध्वजवाहक बन जाइए. टीवी पर एक दो मज़ेदार शो में आ जाइए. खुद की अदालत लगवाइये. ख़बरों में जमे रहिये. तब तक पालक खिलाते रहिये जब तक पिछवाड़े से सरिया न निकल आए. दूसरा ये कि सीक्रेट सुपरस्टार जैसा कुछ बनाइये और वहां मारिये जहां सबसे ज़्यादा दर्द होता है. कि उसके बारे में कोई सोचे भी तो सिहर जाए. कि उसके ज़हन में वो सब कुछ वापस लौट आए जो उसने कहीं किसी कोने में ताला लगाकर रख दिया था और न भूलते हुए भी भूल गया था.

राज अर्जुन, मेहर विज, ज़ायरा वसीम और आमिर खान
फ़िल्म न्यूटन पर इंटेलेक्चुअल होने के आरोप लगे. लेकिन शायद दिवाली पर देश को साल की सबसे बेहतरीन फ़िल्म मिल गई है. सीक्रेट सुपरस्टार. डायरेक्टर और स्क्रीनराइटर अद्वैत चन्दन का डेब्यू. कमाल का काम. फ़िल्म पूरी तरह से अपनी कहानी और इमोशन पर चलती रहती है जिसके लिए अद्वैत को ढेर सारी बधाई दी जानी चाहिए. इस फ़िल्म के बाद अद्वैत के ऊपर अब गज़ब का प्रेशर आने वाला है.
बस एक बात जो इस फ़िल्म के साथ नहीं होनी चाहिए थी. वो ये कि इसकी शुरुआत में गोलमाल की (?)वीं किस्त का ट्रेलर आता है. शुरुआत ही गड़बड़ होती मालूम देती है. लेकिन फिर मुझे वो मिट्टी की हांडी याद आ जाती है जिसे काला पोत कर उसपर राक्षस की शकल बना घरों के ऊपर बुरी नज़र से बचाने के लिए टांग दिया जाता है.
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