फ़िल्म रिव्यू - मुक्काबाज़ : देशप्रेम में लोटती अनुराग कश्यप की फ़िल्म
विनीत सिंह, ज़ोया हुसैन, जिमी शेरगिल और रवि किशन की फ़िल्म.

भारत माता की जय!
छोटा शहर. छोटे शहर का मिडल क्लास आदमी. पैदा हुआ, पढ़ा-लिखा, नौकरी ढूंढा, नौकरी मिली तो मिली वरना शादी की, बच्चे पैदा किये और मर गया. गजब संतोषी प्रवृत्ति. क्या है कि सपने देखने का टाइम नहीं मिलता और अलार्म बज जाता है. स्कूल या नौकरी या नौकरी ढूंढने जाने के लिए. इसी बीच संयोग से एक कोई उल्टी खोपड़ी का पैदा हो जाता/जाती है. और यहीं छोटे शहर के मिडल क्लास में बवाल मच जाता है. ये एकदम वैसा होता है जैसे साबू के गुस्सा आने पर बृहस्पति ग्रह पर ज्वालामुखी फट पड़ता है. लेकिन कहानी तब बनती है जब एक ही शहर में दो साबू एक-दूसरे का रास्ता काट जाएं. श्रवण और सुनयना. एक दूसरे के प्यार में पड़े बरेली के दो साबू. और उनकी लव-स्टोरी - मुक्काबाज़. भारत माता की जय!
अनुराग कश्यप कृत, विनीत सिंह, ज़ोया हुसैन और जिमी शेरगिल द्वारा अभिनीत लहालोट कर देने वाला चलचित्र. भारत माता की जय!
ये अनुराग कश्यप की अब तक की सबसे ज़िम्मेदार फ़िल्म है. इस फ़िल्म में कदम-कदम पर देश से जुड़ी समस्याओं और उनके समाधान की बात की गई है. देशप्रेम में डूबी फ़िल्म जिसने ज्वलंत मुद्दों पर सवाल उठाये हैं. इसके साथ ही ये एक विकट लव स्टोरी है जो पूरी तरह से पारिवारिक है. यहां जो भी लिखा है, सच है. भारत माता की जय!
फ़िल्म की कहानी बेहद ज़मीनी है. इस कहानी को लिखने वाले विनीत ने बनारस के दिनों में इसे अपने आस पास देखा और महसूस किया था. लिहाज़ा कहानी पेवर और सच्ची है. देश में आप गलती से बड़े सपने देख लें तो उन्हें पूरा करने के लिए आपको कई चौखटों पर माथा टेकना पड़ता है. ये एक परंपरा है जिसे होना ही होता है. खेल की दुनिया तो इसी पर टिकी हुई है. यहां खिलाड़ियों को अपने भले के लिए किसी 'आका' की गुड बुक्स में रहना होता है. इसके लिए उसे प्याज़-लहसुन लाने से लेकर उसकी मालिश करनी पड़ती है, उसके पैर दबाने पड़ते हैं और कभी कभी अमृत समझ उसकी पेशाब भी पीनी पड़ती है. ये किसी लड़ाई से कम नहीं होता है. भारत माता की जय!
और इसी लड़ाई के दौरान उसे एक और मोर्चे को संभालना होता है - घर. मां-बाप और पत्नी को 'देखना' होता है. बाप को बेटे की आंखें किताबों में गड़ी मिलनी चाहिए. मिडल क्लास बाप को पूरे रिपोर्ट कार्ड में सिर्फ मैथ्स दिखाई देता है. इसके सिवा सारे अक्षर उसके लिए पारदर्शी होते हैं. एक दिन लड़का पूछ लेता है - "आप कौन सा अपने जीवन में बहुत तोप मार लिए?" संस्कार को बाप ही के साथ सांप सूंघ जाता है. ये क्रूर दुनिया में उस बेटे का पहला कदम होता है. भारत माता की जय!
एक खिलाड़ी जो उस खेल के 'आका' से जूझ रहा है. वो 'आका' जो अपनी ऊंची जाति के मद में चूर है. खिलाड़ी यानी श्रवण सिंह और आका यानी भगवान मिश्रा. श्रवण उन लोगों में से नहीं है जो अपने फायदे की खातिर किसी के घर का राशन ढोया करे. लिहाज़ा भगवान के सामने सीन तान खड़ा हो जाता है. ज़रुरत पड़ने पर तमाचा भी जड़ देता है. और ये खुद को साच में भगवान समझने वाले ऊंची जाति के दबंग भगवान मिश्रा को सहन नहीं होता है. वो वादा करता है कि श्रवण को बढ़ने नहीं देगा. श्रवण आगे बढ़ने को आतुर था क्यूंकि वो अनाप शनाप प्रेम में था. भगवान मिश्रा की भतीजी के प्रेम में. और इसी अनाप शनाप प्रेम और उससे भी ज़्यादा अनाप शनाप जातीय समीकरण की कहानी है मुक्काबाज़. भारत माता की जय!
फ़िल्म की ताक़त कहानी का बहुत यकीनी और ज़मीनी होना है. और इसके साथ ही इस फ़िल्म का म्यूज़िक. रचित अरोड़ा के कम्पोज़ किये, हुसैन हैदरी और विनीत सिंह के लिखे गाने इस फ़िल्म के सहयात्री हैं. ये एक म्यूज़िकल फ़िल्म है. ढेरों गाने जो पूरी फ़िल्म में फैले हुए हैं. बात चाहे एक आइटम नंबर की हो या बिछोह में लगभग पागल हो रहे भैंस सी बुद्धि वाले मुक्काबाज़ की व्यथा हो, फ़िल्म के गाने पूरी तरह से उस इमोशन को हम तक पहुंचाते हैं. भारत माता की जय!
विनीत सिंह ने इस फ़िल्म के लिए जो मेहनत की है, सालों बाद उसपर किताबें लिखी जाएंगी. जिस उम्र में एक मुक्केबाज़ का करियर ख़त्म होने को होता है, विनीत ने उस उम्र में खुद को मुक्केबाज़ी सिखाई है. एक साल तक पटियाला में रहकर विनीत ने अपनी देह को जैसे तपाया है, उसका असर फ़िल्म में उनके काम पर दिखता है. फ़िल्म बनाने से पहले अनुराग ने विनीत से कहा था कि अगर बॉक्सर नहीं बने तो फ़िल्म नहीं बनेगी. क्यूं कहा था, फ़िल्म देखते ही समझ में आ जाता है. भारत माता की जय!
ज़ोया हुसैन की ये पहली फ़ीचर फ़िल्म है. चूंकि उनका कैरेक्टर एक गूंगी लड़की का है इसलिए इसमें उनके हिस्से एक भी डायलॉग नहीं हैं. वो भगवान मिश्रा की भतीजी हैं. सुनयना मिश्रा. भगवान मिश्रा जो सिर्फ अपने शहर का ही नहीं अपने घर का भी दबंग है. जिसका बड़ा भाई इस खौफ में जीता है कि एक दिन वो उसे मरवा देगा. इस परिवार में सुनयना मिश्रा वो ताक़त है जो भगवान मिश्रा के ख़िलाफ़ बगावत करती है. वो उसे घूरती है और ऊंची जाति के मर्द होने के नाते भगवान मिश्रा के लिए इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता है. ज़ोया ने बहुत ही आराम से सब कुछ कर दिया है. हांलाकि वो बताती हैं कि उन्हें कई जगहों पर इतना दबाव महसूस हो रहा था कि उनका सर दुखने लगता था लेकिन स्क्रीन पर वो दबाव कहीं भी नहीं दिखा. इसके लिए वो पूरी तरह से शाबाशी की हक़दार हैं. भारत माता की जय!
फ़िल्म एक छोटे शहर में बनी एक छोटे शहर की कहानी है. मार-धाड़ एवम ऐक्शन व रोमांस से भरपूर पारिवारिक मनोरंजन फ़िल्म.
देखी जाए.
भारत माता की जय!
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