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फिल्म रिव्यू: लव सोनिया

ये फिल्म एक सोशल ड्रामा है, जिसमें मुद्दे से भटके बिना अपनी बात कही गई है.

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इस फिल्म की पूरी कहानी इन दो लड़कियों के इर्द-गिर्द ही घूमती है.
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श्वेतांक
14 सितंबर 2018 (Updated: 14 सितंबर 2018, 09:47 AM IST) कॉमेंट्स
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तबरेज नूरानी की 'लव सोनिया'. नाम आया है फिल्म का, लड़की को अपनी बहन को लिखे पत्र के समापन से. जब वो अपनी सारी बात कहकर. वादे कर के, अपनी ओर से प्यार भेजती है. उस बहन को जिसे उसके बाप ने गरीबी से हारकर एक कसाई को बेच दिया है. कसाई का मतलब वही है, जो आप समझ रहे हैं. कुछ ऐसे ही इशारों में फिल्म कई और बातें कहती है. मुंबई से कोई 1400 कि.मी. दूर एक गांव है. जहां दो बहनें अपने मां-बाप के साथ रहती हैं. ये बहनें हैं सोनिया और प्रीति. प्रीति को पापा ने बेच दिया. अब बची सोनिया. जिसे अपनी बहन को ढूंढना है. उसका एकसूत्री कार्यक्रम है. लेकिन डायरेक्टर का काम भटकता रहता है. गली-गली में. जिससे ये फिल्म परत दर परत खुलती है.
ये फिल्म जल्दबाज़ी नहीं करती. फेज़ दर फेज़ चलती है. तकरीबन सभी किरदारों की बैकस्टोरी अपने भीतर समेटे हुए, ये सबकी कहानी सुनाती है. शुरू होती है एक पिता से जो अपनी जमीन से हताश हो गया है. उसने उधार लिया है, इस उम्मीद में कि उसकी जमीन एक दिन सोना उगलेगी. लेकिन ऐसा होता न देख उसका जमीर भी हताश हो जाता है. अपने अंदर का आदमी और बाप दोनों मारकर वो अपनी बेटी बेच देता है. ये रोल किया है आदिल हुसैन ने. जब उनकी बेटियां काम नहीं करती तो धमकी देते हैं कि पेड़ पर फांसी लगा लेंगे. किसानों की लगातार बढ़ती आत्महत्या की ओर एक बार को ध्यान ले जाया जाता है और छेड़कर हाथ वापस खींच लिया जाता है. सिंबॉलिक तरीके से. इसके बाद वो मां आती है, जो इतनी बेबस है कि अपने पति के उस पर और उसकी बेटियों पर उठते हाथ को रोकना तो दूर, टोक तक नहीं पाती. उससे उसकी बेटी को बेच दिए जाने के फैसले का विरोध करने की क्या ही उम्मीद की जाए. देखने में ये सीन्स बहुत एलियन कॉन्सेप्ट टाइप लगते हैं. लेकिन घटते हमारे घरों और आसपास में ही हैं. ये याद दिला दिया जाता है.
आने वाले दिनों में आदिल हुसैन नॉर्वे की फिल्म 'व्हाट विल पीपल से' में दिखने वाले हैं.
फिल्म में आदिल हुसैन की बेटी प्रीति के किरदार में हैं रिया सिसोदिया.

इसके बाद ये फिल्म अपने टाइटल कैरेक्टर पर शिफ्ट हो जाती है. जो है सोनिया. वो अपनी बहन प्रीति को ढूंढने के लिए कुछ भी करने को, कहीं भी जाने को तैयार है. वो जाती है. वहीं जहां प्रीति को ले जाया गया है. मुंबई के एक वेश्यालय में. यहां डायरेक्टर का लेंस हर छोटी से छोटी चीज़ को देख लेना चाहता है. उसे उतने ही नंगे तरीके से दिखा देना चाहता है. चाहे वो इंसान हो या उनके अंदर का हैवान. यहां सोनिया के साथ-साथ हमारा भी परिचय कुछ और लोगों से होता है. ये लोग हैं- रश्मि, माधुरी, मनीष और फैज़ल. फैज़ल (मनोज बाजपेयी) उस वेश्यालय का मालिक है और रश्मि (फ्रीडा पिंटो), माधुरी (ऋचा चड्ढा) वहां काम करती हैं और मनीष (राजकुमार राव) कस्टमर है. ऐसा कस्टमर जो यहां सेक्स नहीं लड़कियों की मदद करने के लिए आता है. यहां कुछ बहुत सीरियस चीज़ें हो रही हैं, जो कि बहुत रेलेवेंट भी हैं. इसमें वर्जिनिटी को लेकर पूरे विश्व में बनी हुई वर्जना से लेकर ओरल सेक्स की ओर पागलपन और एसटीडी (Sexually Transmitted Diseases) तक का ज़िक्र आता है. लेकिन ये चीज़ें स्टोरी मे जोड़ी हुई नहीं, गूंथी हुईं लगती हैं. फिल्म का स्क्रीनप्ले यहां अंक बटोरता है.
राजकुमार राव और मनोज बाजपेयी इससे पहले फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में दिखे थे लेकिन दोनों के साथ में कोई सीन नहीं थे.
इस फिल्म में काम कर रहे तीन कलाकार राजकुमार, ऋचा और मनोज  'गैंग्स ऑफ वासेपुर सीरीज़' का भी हिस्सा रह चुके हैं.  

इसे ऐसे समझें कि फैज़ल सोनिया की वर्जिनिटी को सेफ रखना चाहता है. विदेशी कस्टमर्स के लिए. इसीलिए उससे सिर्फ ओरल सेक्स करवाया जाता है. और एक बार वर्जिनिटी और उससे जुड़ा भ्रम तोड़ने के बाद दोबारा भ्रम और लड़की दोनों को वर्जिन बना दिया जाता है. लगातार अनसेफ सेक्स करने के चलते माधुरी को एसटीडी हो जाता है, जिसका बदला वो फैज़ल से बड़े प्यार से लेती है. कुछ और ऐसे ही सीन्स की मदद से ऋचा पूरी फिल्म में शाइन करती हैं. जब ये सब हो रहा है, तब तक सोनिया अपनी बहन को ढूंढ लेती है. लेकिन प्रीति, सोनिया से मिलना ही नहीं चाहती. उसे लगता है सोनिया उससे जलती है. क्यों जलती है ये नहीं बता सकते. पर्सनल है. लेकिन हम जो स्क्रीन पर देखते हैं, वो बहुत रियल लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि हमें जो पता है और बताया जाता है, ये उसके बहुत करीब है.
मृणाल इसके बाद ऋतिक रौशन के साथ फिल्म 'सुपर 30' में दिखने वाली है.
मृणाल इसके बाद ऋतिक रौशन के साथ फिल्म 'सुपर 30' में दिखने वाली हैं.

मनीष को समस्या है बालिग लड़कियों के इस देह व्यापार में होने से. वो अपनी सारी जान लगा देता है सोनिया और एक और बालिग लड़की को बचाने में. वो पुलिस को लेकर रेड डलवाता है उस जगह पर. ताकि इन बच्चियों को इस दलदल से निकाला जा सके. इस सीन में हमारी सुरक्षा के लिए नियुक्त की गई पुलिस की पोल-खोल होती है. उस इलाके का पुलिस इंचार्ज आकर ये रेड बंद करवाता है, इस सीन में राजकुमार राव एकदम से फट पड़ते हैं. ऐसा फटना देखकर आप भी एक बार को चौंक जाएं. इस फिल्म में वो अपने 'ओमेर्टा' वाले लुक में नज़र आते हैं. और बहुत तेजी से उस सीन में हावी हो जाते हैं. इस दौरान उनके सामने मनोज बाजपेयी खड़े होते हैं, जिनका फिल्म में कैमियो बताया जा रहा था. लेकिन यहां वो एक मजबूत और लंबे किरदार में दिखाई देते हैं. इसमें उनके कैरेक्ट का दो ज़ोन है, जिसमें वो गिरगिट जैसे रंग बदलते हैं. इससे आपका इंट्रेस्ट उस किरदार और उसके अगले सीन में बना रहता है.
पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई मनोज बाजपेयी की फिल्म 'गली गुलियां' की काफी तारीफ हो रही है.
पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई मनोज बाजपेयी की फिल्म 'गली गुलियां' की काफी तारीफ हो रही है.

फिल्म में सोनिया का रोल किया है मृणाल ठाकुर ने. जबकि उनकी बहन प्रीति का किरदार निभाया है रिया सिसोदिया ने. रिया के पास मौके और स्क्रीनस्पेस दोनों ही कम हैं. लेकिन मृणाल के पास अपनी क्रीज़ में पांव जमाने का भरपूर समय था. वो कोशिश करती हैं, लेकिन उनका परफॉर्मेंस ऐसा नहीं बन पाया है, जिसे आने वाले समय में याद किया जाएगा. लेकिन कहीं वो अपने पांव पीछे खींचती भी नज़र नहीं आती हैं. 'लव सोनिया' में इस चीज़ की जिम्मेदारी ऋचा चड्ढा और फ्रीडा पिंटो ने उठाई है. साइड रोल में होने बावजूद इन दोनों कलाकारों का काम सराहनीय है. और ये चीज़ आराम से नज़र में आ जाती है. फिल्म में संगीत नहीं है. क्योंकि मेकर्स को उसकी जरूरत महसूस नहीं है. फिल्म देखते वक्त आपको भी नहीं होगी.
फ्रीडा ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 2008 में आई फिल्म 'स्लमडॉग मिलेनियर' से की थी, जबकि ऋचा आखिरी बार फिल्म 'दासदेव' में दिखी थीं.
फ्रीडा ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 2008 में आई फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' से की थी, जबकि ऋचा आखिरी बार फिल्म 'दासदेव' में दिखी थीं. 

डायलॉग बोलने में एकदम अमिताभ बच्चन वाला फील आ जाता है. इसलिए इस फिल्म में जो है उसे संवाद की श्रेणी में रखेंगे. वो संवाद जो सिनेमा और दर्शक बीच होता है. ये फिल्म एक सोशल ड्रामा है, जिसमें मुद्दे से भटके बिना अपनी बात कही गई है. ये एक ऐसी फिल्म है, जिसे आप अपनी फैमिली के साथ बैठकर नहीं देख सकते. लेकिन मौका मिले तो अकेले-अकेले जाकर पूरी फैमिली देख सकती है. इससे दोनों का फायदा होगा फिल्म का भी और आपका भी. फिल्म को आर्थिक और आपको मानसिक.


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