फिल्म रिव्यू: हैप्पी फिर भाग जाएगी
पहले वाली पाकिस्तान गई थी, ये वाली चायना पहुंची है.
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पहले जितनी अच्छी नहीं है लेकिन बुरी कतई नहीं है.
2016 के अगस्त महीने में एक फिल्म आई. जो सरप्राइज़ हिट साबित हुई. फ़िल्मी ज़ुबान में इसे स्लीपर हिट कहते हैं. आतंकवादियों के जैसे स्लीपर सेल होते हैं न वैसे ही फिल्मवालों की स्लीपर हिट होती है. यानी कि ऐसी फिल्म का हिट हो जाना जिसका ज़्यादा हो-हल्ला न हो. 'हैप्पी भाग जाएगी' ऐसी ही फिल्म थी जो किसी बड़ी स्टार-कास्ट और अंधाधुंध प्रमोशन के बिना ही करोड़ों कमा गई. एक साफ़-सुथरी कॉमेडी को लोगों ने खूब पसंद किया. पंजाब से पाकिस्तान जा पहुंची एक लड़की हैप्पी. उसकी तलाश में पहुंचा उसका बॉयफ्रेंड गुड्डू. और इन दोनों की खोज में ज़मीन-आसमान एक करने की कसम खाया हुआ दमन सिंह बग्गा. मज़ा ही आ गया था कसम से.

पहले वाली का पोस्टर.
अब 2018 के अगस्त में हैप्पी फिर से 'भाग' गई है. मुल्क इस बार भी पड़ोसी ही है लेकिन पश्चिम वाला नहीं पूरब वाला. चायना में है हैप्पी. कमाल की बात ये कि इस बार हैप्पी एक नहीं दो-दो हैं. कुछेक किरदार पुराने हैं तो कुछ नए. एक तो अपनी जानी-पहचानी हैप्पी है, जो गुड्डू के साथ म्यूजिक शो के चक्कर में चायना पहुंची है. साथ ही बग्गा साहब और उस्मान आफरीदी भी हैं जिन्हें जबरन चीन लाया गया है.
नए वालों में दूसरी वाली हैप्पी है जो अपने एक मिशन के चलते चीन की धरती पर कदम रखती है. एक है सरदार खुशवंत सिंह गिल, जो एक लाइन में कहा जाए तो क्यूट लेकिन कन्फ्यूज्ड बंदा है. एक अदनान चाव नाम का लोकल बाशिंदा है जो चायनीज़ होकर खालिस उर्दू बोलता है और इकबाल का कलाम सुनाता है. एक है चैंग जो काला सूट और काला चश्मा पहने तमाम फिल्म में किसी न किसी का पीछा करता रहता है.

जब हैप्पी पाकिस्तान में भागी थी.
कहानी कुछ यूं है कि दूसरी वाली हैप्पी को पहली वाली के धोखे में चायनीज़ माफिया ने उठवा लिया है. साथ ही हिंदुस्तान से बग्गा और पाकिस्तान से आफरीदी को भी उठा लाए हैं. ट्रेजेडी ये कि इस बार भी बग्गा शादी से ऐन पहले मंडप से ही उठवा लिया गया है. माफिया का अपना एक मिशन है जिसमें उन्हें हैप्पी की ज़रूरत है. लेकिन हैप्पी तो चायना पहुंचकर भी भाग चुकी. दोनों हैप्पियां गायब हैं. हर किसी का अपना एक मिशन है.
हैप्पी नंबर एक को गुड्डू का म्यूजिक शो करवाना है. हैप्पी नंबर टू को किसी की तलाश है. सरदार खुशवंत सिंह गिल को इश्क मुकम्मल करना है तो बग्गा को किसी न किसी से शादी करनी है. और आफरीदी सही सलामत पाकिस्तान पहुंचना चाहता है. इन तमाम मिशंस के रास्ते जब एक दूसरे से क्रॉस हो जाते हैं तो चायना में ग़ज़ब का हंगामा होता है. इसी हंगामे की मज़ेदार कहानी है 'हैप्पी फिर भाग जाएगी'.

दूसरी वाली का पोस्टर.
इससे ज़्यादा कहानी आप न ही जाने तो बेहतर. आपका मज़ा ख़राब हो जाएगा.
एक्टिंग के फ्रंट पर बात करें तो सबसे ज़्यादा दिल खुश जिमी शेरगिल करते हैं. इधर कुछ दिनों से एक अक्खड़ शख्स का किरदार जिमी बेहतरीन ढंग से निभाने लगे हैं. पता ही नहीं चला कि 'मोहब्बतें' का वो चॉकलेटी चेहरे वाला लड़का कब इतना दबंग कब बन गया. उनकी डायलॉग डिलीवरी और कॉमिक टाइमिंग ज़बरदस्त है. एक आदमी उन्हें सलाह देता है कि लड़कियों को घूरो मत, चायना में इसे बदतमीज़ी कहते हैं. वो पलटकर जवाब देते हैं इंडिया में इसे आशिकी कहते हैं. ये ऐटीट्युड उनका तमाम फिल्म चलता रहता है. लगता है वो कपड़े नहीं, ऐटीट्युड पहनकर चलते हैं. उनकी और पियूष मिश्रा की जुगलबंदी कमाल की है. ये दोनों जब भी साथ स्क्रीन पर होते हैं हंसी की सुनामी आई रहती है.

बग्गा विथ आफरीदी.
पियूष मिश्रा उतने ही शानदार हैं जितने पहले पार्ट में थे. हालांकि इस वाले में उनके हिस्से चुटीले डायलॉग कम आए हैं लेकिन जितने भी आए हैं उतने में उन्होंने कहर ढा दिया है. सोनाक्षी सिन्हा ठीक-ठाक हैं. कुछ सीन्स में वो बहुत अच्छी लगती हैं तो कुछेक में बिल्कुल मिसफिट लगती हैं. सच बात तो ये है कि वो इस फिल्म में इकलौती हैं जिनसे थोड़ी-बहुत निराशा होती है.
इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि हमारा दिमाग डायना पेंटी को हैप्पी के रूप में कबूल कर चुका है. उनकी जगह किसी और को ज़्यादा फुटेज मिलना जंचता नहीं. डायना का रोल बेहद छोटा है. फिल्म के क्रेडिट्स में तो इसे एक्सटेंडेड स्पेशल अपीयरेंस कहा गया है. उन्हें ज़्यादा स्पेस मिलता तो अच्छा लगता. बावजूद इसके डायना जब-जब भी स्क्रीन पर आती हैं, खुश कर जाती हैं. उनका सीटी मारनेवाला एक सीन है, उसी में वो पैसे वसूल करवा देती हैं.

दर्शकों को हैप्पी तो ये वाली हैप्पी करती है.
खुशवंत सिंह गिल के रोल में पंजाबी सिंगर जस्सी गिल अच्छे लगे हैं. वो 2011 से पंजाबी गाने ग़ा रहे हैं और 2014 से पंजाबी फिल्मों में एक्टिंग कर रहे हैं. हिंदी में ये उनकी पहली फिल्म है. वो फ्रेश लगते हैं. निराश नहीं करते. अली फज़ल के हिस्से कुछ ख़ास नहीं आया है. उतना भी नहीं जितना पहले वाली में था.
संगीत के फ्रंट पर एक-दो गाने अच्छे हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं कि याद रह जाए. पहली क़िस्त के कई गाने कमाल के थे. 'आशिक तेरा' हो, 'ज़रा सी दोस्ती' हो या फिर 'यारम'. बहुत पसंद किया गया था उन गानों को. उनके मुकाबले इस वाली के गाने थोड़े मायूस करते हैं. हालांकि 'कोई गल नहीं' गाना दिलचस्प ढंग से लिखा गया है. गूगल करने पर पता चला कि खुद डायरेक्टर मुदस्सर अज़ीज़ ने लिखा है. मेरा पर्सनल फेवरेट गाना है 'कुड़िये नी तेरे'. वो भी सिंगर की वजह से. उदित नारायण की आवाज़ आज भी अलग से पहचानी जाती है और आज भी उतनी ही ख़ुशी दे जाती है.

जस्सी गिल खूब जमे हैं.
अगर पहली वाली से कम्पेयर करें तो 'हैप्पी फिर भाग जाएगी' उन्नीस ही साबित होगी. कई सारे लूपहोल्स हैं जो हज़म नहीं होते. लेकिन फिर ये भी है कि कॉमेडी फिल्मों में तार्किकता के साथ थोड़ी सी लिबर्टी तो ली ही जाती है. अगर हर बात में मीनमेख निकालने की कसम न खाई हो तो फिल्म ज़रूर पसंद आएगी. कुछेक पंच तो इतने उम्दा हैं कि आप देर तक हंसते रहते हैं. जैसा कि पहले भी बताया साफ़-सुथरी कॉमेडी है जो फॅमिली के साथ देखने दिखाने लायक यकीनन है. तो जाइए और हैप्पी की चायना पर चढ़ाई एन्जॉय कीजिए.
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