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2019 की ये पांच शानदार मराठी मूवीज़ देखिए, यकीनन थैंक यू बोलेंगे

बायोपिक से लेकर हिस्टॉरिकल ड्रामा तक सब कुछ है इसमें.

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इन पांच फिल्मों के अलावा भी 2019 में मराठी में उम्दा काम हुआ है. बताते रहेंगे आपको.
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31 दिसंबर 2019 (Updated: 31 दिसंबर 2019, 01:30 PM IST) कॉमेंट्स
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मराठी सिनेमा ने कथापरक फ़िल्में देने का अपना रूटीन 2019 में भी जारी रखा. अपनी रेप्युटेशन के मुताबिक कुछ अच्छी तो कुछ बहुत अच्छी फ़िल्में दीं. सबके बारे में बताएंगे तो बात लंबी खिंच जाएगी. फिलहाल इस ईयर एंडर में आपको पांच फिल्मों के बारे में बता देते हैं. वक्त निकाल कर इन्हें देखिएगा ज़रूर. मज़ा भी आएगा और हो सकता है आपका मन हमें थैंक यू बोलने का कर आए.
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# आनंदी गोपाळ डायरेक्टर - समीर विद्वांस कास्ट - भाग्यश्री मिलिंद, ललित प्रभाकर, योगेश सोमण, गीतांजली कुलकर्णी, क्षिती जोग रिलीज़ डेट - 15 फ़रवरी 2019
भारत की पहिली महिला डॉक्टर आनंदीबाई गोपाळ जोशी के जीवन पर बनी ये फिल्म 2019 में मराठी सिनेमा ने दिया सबसे उम्दा तोहफा कहा जाएगा. अपने देश में 2019 में भी महिलाओं की आज़ादी का हाल कुछ ख़ास उत्साहवर्धक नहीं है. ख़ास तौर से ग्रामीण भारत में तो बिल्कुल भी नहीं. ऐसे में लगभग 130 साल पहले का डॉ आनंदी जोशी का संघर्ष कैसा रहा होगा ये सोचा भी नहीं जा सकता. उनके इसी संघर्ष को कमाल के ढंग से परदे पर उतारा है डायरेक्टर समीर विद्वांस ने.
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भाग्यश्री का 'बालक पालक' के बाद ये एक और उम्दा काम है.

आनंदी की शादी महज़ दस साल की उम्र में गोपाळ जोशी नाम के एक आदमी से कर दी गई. गोपाळ जोशी की ये दूसरी शादी है. जो उन्होंने इस शर्त पर की है कि उन्हें अपनी पत्नी को पढ़ाने की आज़ादी होगी. गोपाळराव आनंदी को पढ़ाते हैं और इस क्रम में पति-पत्नी ढेर सारी दिक्कतों से लोहा लेते रहते हैं. आनंदी भी पहले अपने पति की मर्ज़ी की खातिर और बाद में एक ध्येय को नज़र में रखते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करती है. भारत की पहली महिला डॉक्टर होने का सम्मान प्राप्त करती हैं.
भाग्यश्री मिलिंद ने डॉ आनंदी का रोल डूबकर किया है. उनके हावभाव, उनकी संवाद अदायगी ज़बरदस्त है. उनके पति के रोल में ललित प्रभाकर ने कमाल का काम किया है. थोड़ा सा ज़िद्दी, थोड़ा सनकी, थोड़ा गुस्सैल गोपाळ जोशी ललित ने उत्तम ढंग से परदे पर साकार किया है. हिंदी की कई बायोपिक्स से निराश होने वाले लोग इसे देखकर भरपाई कर सकते हैं.


# बाबा डायरेक्टर - राज आर गुप्ता कास्ट - दीपक डोबरियाल, नंदिता धुरी पाटकर, आर्यन मेघजी, चित्तरंजन गिरी, स्पृहा जोशी रिलीज़ डेट - 2 अगस्त 2019
जब-जब भी पिता-पुत्र के रिश्ते पर बनी बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट बनेगी, तो ‘बाबा’ उसमें ज़रूर-ज़रूर जगह पाएगी. रूह को खुश कर देने वाला सिनेमा है ये. ये फिल्म दो तरह के डिपार्टमेंट में एवरेस्ट सी उंचाइयां छूती है. एक तो बेहद सरल, साधारण लेकिन सुपर्ब कहानी में. और दूसरी कलाकारों के अप्रतिम अभिनय में. कहानी कुछ यूं है कि एक मूक-बधीर कपल, माधव और आनंदी के पास एक स्वस्थ बच्चा शंकर पल रहा है. बोलने-सुनने में असमर्थ माता-पिता की परवरिश में शंकर खुद भी बोलना नहीं सीख पाया है. कहानी में एक पेंच ये है कि वो माधव और आनंदी की अपनी औलाद नहीं है. वो किसी अमीर घर की बेटी की संतान है, जिसे किसी वजह से त्याग दिया गया था.
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दीपक डोबरियाल की एक्टिंग शब्दशः स्पीचलेस कर देती है.

फिर एक दिन शंकर की असली मां लौट आई. वो चाहती है कि उसे बच्चा वापस कर दिया जाए. माधव और आनंदी के राज़ी होने का तो सवाल ही नहीं. ज़ाहिर है मामला कोर्ट में पहुंचता है. ये भी ज़ाहिर है कि कोर्ट बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को ही देखेगा. जो कि अमीर मां की पनाह में ही मुमकिन है. तो कैसे पार पाएंगे माधव और आनंदी इस सिचुएशन से? क्या उन्हें अपना बच्चा खोना पड़ेगा? या कोई करिश्मा होगा? ये सब फिल्म देखकर जानिएगा.
दीपक डोबरियाल ने इस रोल का सोना बना दिया है. उन्होंने दिल, जान, जिगर, प्राण सब झोंक कर अभिनय किया है. उनके साथ-साथ कदम मिलाकर चलती हैं नंदिता धुरी पाटकर. एक मां की ममता के जितने भी रंग हो सकते हैं वो आप उनके निभाए किरदार में से हाथ बढ़ाकर चुन सकते हैं. बच्चे आर्यन मेघजी को सिर्फ हावभाव और आंखों से अभिनय करना था. और उन्होंने क्या खूबी से किया है. फिल्म देखिए और आनंद लीजिए.


# धप्पा डायरेक्टर - निपुण धर्माधिकारी कास्ट - वृषाली कुलकर्णी, इरावती हर्षे, श्रीकांत यादव, गिरीश कुलकर्णी, चंद्रकांत काळे रिलीज़ डेट - 1 फ़रवरी 2019
निपुण धर्माधिकारी की 'धप्पा' उन फिल्मों में से एक है जो मौजूदा हालात में बेहद ज़रूरी बन गई हैं. जब धर्मों के बीच आपसी प्रेम की मात्रा तलहटी छू रही है तब ऐसी फ़िल्में बनती रहनी चाहिए. धप्पा कहानी है धर्मांधता के ज़हर से लोहा लेते कुछ बच्चों की. गणेशोत्सव में सोसाइटी के बच्चों ने एक नाटक करने की सोची है. विषय पर्यावरण से जुड़ा हुआ है. नाटक के किरदारों में हैं एक परी, संत तुकाराम और जीज़स क्राइस्ट. ये आखिरी वाली हस्ती ही समस्या बन जाती है.
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तमाम बच्चों ने ग़ज़ब की परफॉरमेंस दी है 'धप्पा' में.

कुछ धर्मांध लोग हैं जिन्हें गणेशोत्सव में ईसाईयों के जीज़स नहीं चाहिए. वो धमकाते हैं सोसाइटी वालों को. तोड़फोड़ करते हैं. बड़े लोग नाटक कैंसिल करने का फैसला लेते हैं. लेकिन बच्चे माने तब न! वो नाटक करने की ठान लेते हैं और 'ऑपरेशन ज़ैप ज़ैप' चलाते हैं. क्या है ये ऑपरेशन, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. हम तो बस इतना बता देते हैं कि धर्म के नाम पर आम लोगों की ज़िंदगी नर्क बनाने वालों को करारा थप्पड़ मारती है ये फिल्म.
सभी बच्चों ने शानदार काम किया है. एक प्रासंगिक फिल्म बनाने के लिए डायरेक्टर निपुण धर्माधिकारी को पूरे मार्क्स.


# खारी-बिस्कीट डायरेक्टर - संजय जाधव कास्ट - वेदश्री खाडिलकर, आदर्श कदम, नंदिता पाटकर रिलीज़ डेट - 1 नवंबर 2019
बच्चों को लेकर मराठी सिनेमा कितना अप्रतिम काम कर रहा है इसका एक और उदाहरण है 'खारी-बिस्कीट'. खारी और बिस्कीट नाम के दो भाई-बहन हैं. बहन छोटी है और देख नहीं सकती. उसका सपना है कि उसे सचिन तेंडुलकर को वर्ल्ड कप उठाते हुए देखना है. वो अपने भाई से ज़िद करती है कि वो उसे स्टेडियम में ले जाकर वर्ल्ड कप फाइनल दिखाएं. फिर शुरू होता है सपनों का पीछा. कैसे बिस्किट अपनी बहन का ये ख्वाब पूरा कर पाता है ये देखने वाली जर्नी है. और इतनी मस्त जर्नी है कि आपको दोनों बच्चों से प्यार हो जाएगा. वेदश्री खाडिलकर और आदर्श कदम ये दो नाम आपके ज़हन में हमेशा के लिए जगह बना लेंगे.
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'खारी-बिस्कुट' देखते हुए नागेश कुकुनूर की धनक याद आ जाती है.

2011 वर्ल्ड कप के इर्दगिर्द बुनी गई ये फिल्म बेहद स्वीट है. ज़रूर देखिएगा. डायरेक्टर संजय जाधव ने फिल्म में तमाम इमोशंस सही जगह पिरोए हैं.


# हिरकणी डायरेक्टर - प्रसाद ओक कास्ट - सोनाली कुलकर्णी, चिन्मय मांडलेकर रिलीज़ डेट - 24 अक्टूबर 2019
इतिहास का बेडा गर्क करने वाली फिल्मों का इधर ढेर सा लग गया है. ऐतिहासिक कहानियों में भी फिल्मकारों ने वो कहानियां चुनीं जिनमें युद्ध थे, हिंसा थी, राजनीति थी. हिरकणी एक ऐसी फिल्म थी जिसने इतिहास से एक ऐसी कहानी चुनी, जो मां की ममता के इर्दगिर्द थी. हिरकणी नाम की महाराष्ट्र के रायगड किले में एक मीनार है. जिसे खुद शिवाजी महाराज ने बनवाया था. क्यों बनवाया था इसी की कहानी है ये फिल्म. ये वो कहानी है जो महाराष्ट्र के घर-घर में पता है.
हिरकणी रायगड किले के नीचे मौजूद एक गांव में रहती है. रोज़ दूध बेचने किले पर जाती है. एक दिन उसे वापसी में देर हो जाती है और किले के गेट बंद हो जाते हैं. महाराज का सख्त आदेश है कि सूर्यास्त के बाद किसी के भी लिए किले के दरवाज़े न खोले जाए. हिरकणी की विनतियों का किसी पर कोई असर नहीं होता. ऐसे में हिरकणी एक ख़तरनाक रास्ता अपनाती है. किले की पश्चिम दिशा में एक खड़ी चट्टान है, वहां से नीचे उतरने का इरादा करती है. मां की ममता प्रकृति की बाधाओं से भिड़ जाती है. और कामयाब होकर दिखाती है.
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'हिरकणी' की कहानी महाराष्ट्र के घर-घर में पता है.

अपने बच्चे तक पहुंचने की जद्दोजहद को सोनाली कुलकर्णी ने बेहद कन्विंसिंग ढंग से परदे पर उतारा है. उन्होंने एक देहाती मां के रोल में जान डाल दी है. महज़ उनकी एक्टिंग के लिए देखी जा सकती है हिरकणी.
तो ये थीं हमारी 2019 की प्यारी पांच फिल्मों की सूचि. इन्हें और बाक़ी की बाकी बची हुई अच्छी फिल्मों को हम अपनी सीरीज 'चला चित्रपट बघूया' में शामिल करेंगे ही. देखते-पढ़ते रहिएगा.


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