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फ़िल्म रिव्यू: अनकही कहानियां

कैसी है नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई तीन धाकड़ डायरेक्टर्स की ये फ़िल्म.

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फ़िल्म रिव्यू: 'अनकही कहानियां'.
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शुभम्
17 सितंबर 2021 (Updated: 17 सितंबर 2021, 02:15 PM IST) कॉमेंट्स
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17 सितम्बर की भरी दोपहरी में 12 बजे नेटफ्लिक्स पर एंथोलॉजी फ़िल्म 'अनकही कहानियां' रिलीज़ हुई. रिलीज़ होते ही फ़िल्म हमने देख डाली. इस फ़िल्म की कुल लंबाई एक घंटा पचास मिनट है. क्रेडिट-व्रेडिट सब मिलाकर. इसमें तीन कहानियां हैं. कितनी रोचक हैं ये 'अनकही कहानियां' आपको आगे बताएंगे. # प्रेम तेरे कितने रूप? पहली कहानी एक लव स्टोरी है. प्रदीप लाहोरिया की लव स्टोरी. ये भाईसाब गाडोवार से मुंबई आ कर बसे हैं. डिलाइट नाम के कपड़ों के शोरूम में काम करते हैं. जहां लेडीज़ सेक्शन इनके जिम्मे है. जिस कमरे में ये रहते हैं वहां इनका रूमी पूरे दिन अपनी गर्लफ्रेंड से गुटरगू में लगा रहता है. उससे बचके दुकान आएं, तो दुकान में जेंट्स सेक्शन संभालने वाला शेंटी हर शाम उसकी ज़ुबान में कहूं तो 'सेटिंग' से मिलने चला जाता है. अगल-बगल सबकी प्रेम की नैया चल रही है सिवाय प्रदीप के. ऐसे में एक दिन इनके जीवन में आती है परी. जो कि एक मैनेक्विन है. यानी पुतला. परी के साथ प्रदीप दिल की बात करने लगता है. एकदम प्रेमिका की तरह मैनेक्विन का ख्याल रखने लगता है. जाहिर है दुनिया प्रदीप के इस प्रेम को नहीं समझ पाती. बस इससे ज्यादा तो नहीं बता सकते. आगे क्या होता है फ़िल्म में देखें.
परी और प्रदीप.
परी और प्रदीप.


दूसरी कहानी भी एक प्रेम कहानी है. इसमें दो लोग हैं. नंदू और मंजरी. नंदू प्रकाश टॉकीज़ में काम करता है. और ऐसा लगता है अकेला ही काम करता है. टिकट काटने से लेकर टिकट चेक करने तक. टॉयलेट साफ़ करने से लेकर इंटरवल में समोसे बेचने तक. सब काम नंदू को ही करना पड़ता है. दूसरी है मंजरी. घर पे मां है जिसने उसका कॉलेज छुड़वा दिया है. भाई मारता है. पड़ोसी हैरेस करता है. फ़िर भी मां ये सब नज़रअंदाज़ कर देती है. मंजरी को कढ़ाई आती है. जिससे वो पैसे कमाती है. मंजरी हर हफ्ते अपनी दोस्त के साथ प्रकाश टॉकीज़ जाती है फ़िल्में देखने. यहां नंदू और उसकी मुलाकात होती है. दोनों की प्रेमकहानी शुरू हो जाती है. आगे का मामला खुद देखकर जानिए.
नंदू और मंजरी का 90s वाला टीनएज प्रेम.
नंदू और मंजरी का 90s वाला टीनएज प्रेम.


तीसरी कहानी पिछली दोनों कहानियों से अलग है. ये कहानी प्यार की नहीं, कम्पेटिबिलिटी की है. कहानी के दो मुख्य पात्र हैं मानव और तनु. दोनों के जीवन में सेम परेशानी चल रही है. जिस को दोनों एक साथ मिलकर सोल्व करने की कोशिश कर रहे हैं. इस कहानी के बारे में ज्यादा नहीं बता सकते. स्पॉइल हो जाएगा मामला.
मानव और तनु की अर्बन कहानी.
मानव और तनु की अर्बन कहानी.

# प्रदीप और परी की कहानी पहली कहानी को ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘बरेली की बर्फी’ जैसी फिल्मों की मेकर अश्वनी अय्यर तिवारी ने डायरेक्ट किया है. पियूष गुप्ता, श्रेयस जैन और नितेश तिवारी ने मिलकर इस कहानी को लिखा है. ये एक प्रेम कहानी से ज्यादा अकेलेपन की कहानी है. मुंबई या किसी भी महानगर में रह रहे लाखों लोगों की कहानी है. जो गांव-कस्बों में अपने घर-परिवार को छोड़ बड़े शहरों में दिन प्रतिदिन मशीन बनते जा रहे हैं. फ़िल्म की कहानी बहुत सिंपल है. यही इस कहानी का प्लस और माइनस पॉइंट है. मतलब कहानी में कुछ भी ऐसा ख़ास घटित नहीं होता जो याद रहे. फ़िल्म में अभिषेक बैनर्जी मुख्य रोल मे हैं. कहानी के डिमांड के हिसाब से अभिषेक ने अच्छा काम किया है. इनके साथ दुकान में काम करने वाले शेंटी की छोटी सी भूमिका निभाने वाले राजीव पांडे का काम भी अच्छा है. हमने ट्रेलर रिव्यू में आपसे कहा था कि ये कहानी सबसे रोचक लग रही है. लेकिन अफ़सोस बाकी दो कहानियों के मुकाबले फ़िल्म में ये कहानी सबसे कमज़ोर बैठती है.
अभिषेक बेनर्जी ने सधा अभिनय किया है फ़िल्म में.
अभिषेक बेनर्जी ने सधा अभिनय किया है फ़िल्म में.

# नंदू और मंजरी की कहानी ‘उड़ता पंजाब’, ‘सोनचिरैया’ और कुछ दिनों पहले नेटफ्लिक्स की ‘रे’ सीरीज़ में मनोज बाजपेयी और गजराज राव के साथ शॉर्टफ़िल्म ‘हंगामा क्यों है बरपा’ बनाने वाले अभिषेक चौबे इस दूसरी लवस्टोरी के डायरेक्टर हैं. स्क्रीनप्ले और संवाद हुसैन हैदरी और अभिषेक चौबे ने मिलकर लिखे हैं. ये कहानी नाइंटीज़ की है. और सबसे अच्छी बात ये है ऐसा कहीं लिखकर नहीं आता है. बल्कि अभिषेक ने निरमा के जिंगल से, पुराने नोटों से, कपड़ों से और बाकी चीज़ों से क्रिएटिवली ये समयकाल दर्शाया है. इस फ़िल्म की कहानी जयंत कैकिनी की लिखी कन्नड़ कहानी 'मध्यांतर' पर बेस्ड है. फ़िल्म में डायलॉग बहुत कम हैं. अभिषेक ने शानदार ढंग से छोटे-छोटे सीन्स से मैसेज कन्वे किया है.
कहानी टीनएज में होने वाले फर्स्ट लव की है. जिसमें पहले तो सबकुछ सुहाना लगता है. प्रेमी-प्रेमिका को एक दूसरे के अंदर फिल्म में तीन घंटों में पूरी जिंदगी का सच्चा प्यार दिखाने वाले हीरो-हीरोइन नज़र आते हैं. लेकिन कुछ वक़्त बाद असल रियलिटी हिट करती है. फ़िल्म में ‘सैराट’वाली रिंकू राजगुरु और डेलज़ाद हिवाले हैं. दोनों ने अच्छी एक्टिंग की है. रिंकू तो कुशल अभिनेत्रियों में गिनी ही जाती हैं. लेकिन फ़िल्म में डेलज़ाद ने भी अच्छा काम किया है. पूरी उम्मीद है इस फ़िल्म के बाद उनके पास ज्यादा प्रोजेक्ट्स आएंगे. हालांकि इस फ़िल्म की एंडिंग अधूरी लगती है. शायद कहानी का नाम 'मध्यांतर' है इसलिए जानबूझ कर ऐसा किया गया हो. जो भी कारण हो कहानी कमज़ोर है लेकिन डायरेक्शन बेहतरीन है.
अभिषेक चौबे ने किया है कमाल का निर्देशन.
अभिषेक चौबे ने किया है कमाल का निर्देशन.

# मानव और तनु की कहानी ‘हिंदी मीडियम’ के डायरेक्टर साकेत चौधरी इस कहानी के डायरेक्टर हैं. जिसे लिखा खुद साकेत ने ज़ीनत लखानी के साथ मिलकर है. ये कहानी पिछली दो कहानियों से विपरीत पॉश वर्ल्ड की है. स्टोरी वाइज़ ये कहानी सबसे अच्छी है. जिसमें कुणाल कपूर और ज़ोया हुसैन ने बहुत ही बढ़िया अभिनय किया है. ये कहानी प्यार से ज्यादा धोखे की है. जो दिखाती है कोई सही-गलत नहीं होता. सिचुएशन और वक़्त का खेल होता है.
ज़ोया हुसैन और कुणाल कपूर ने बढ़िया एक्टिंग की है.
ज़ोया हुसैन और कुणाल कपूर ने बढ़िया एक्टिंग की है.

# देखें या नहीं ये कहानियां यहां मुश्किल हमें ये आ रही है कि 'अनकही कहानियां' का एक फ़िल्म के रूप में आंकलन करें. या अलग-अलग. क्यूंकि डायरेक्शन के हिसाब से अभिषेक चौबे की 'नंदू-मंजरी की कहानी' बहुत अच्छी लगी है. और कहानी के हिसाब से 'मानव-तनु की'. हां एक्टिंग तीनों फ़िल्मों के सभी एक्टर्स ने अच्छी की है. लेकिन 'प्रदीप-परी' और 'नंदू- मंजरी' की कहानी उतनी रोचक नहीं है. तो कुल बात ये है 'अनकही कहानियां' एक सिंपल एंथोलॉजी फ़िल्म है. जिसे आप चाहें तो देख सकते हैं. ये फ़िल्म बोर नहीं करेगी. लेकिन खत्म होने के बाद आपके ज़हन में भी नहीं टिकेगी.

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