क्रिटिक्स पर जमकर बरसे संदीप रेड्डी वांगा, कहा - 'फिल्मों के मामले में ये लोग अशिक्षित हैं'
Sandeep Reddy Vanga ने कहा कि क्रिटिक्स को चीन चले जाना चाहिए क्योंकि इन लोगों के रिव्यू में सिर्फ इंग्लिश होती है. उनका कहना है कि ये लोग वहां जाकर इंग्लिश पढ़ाएं.

Animal की रिलीज़ के बाद उसकी आलोचना हुई. फिल्म के ऑफिशियल सोशल मीडिया अकाउंट ने ऐसे रिव्यूज़ को कोट कर के उन पर तंज कसे. फिर चाहे वो स्वानंद किरकिरे की बात हो या सुचारिता त्यागी का रिव्यू. सुचारिता ने ‘एनिमल’ को बकवास फिल्म कहा था. फिल्म के अकाउंट ने उनके रिव्यू को कोट कर ‘एनिमल’ का कलेक्शन चिपका दिया. इस रिएक्शन की कड़ी आलोचना हुई. लोग लिखने लगे कि मेकर्स फिल्म की आलोचना नहीं सह सकते. बेवजह अकड़ दिखा रहे हैं. ‘कबीर सिंह’ के बाद से ही वांगा की फिल्मों को ऐसे पेश किया जाता है जैसे उनकी क्रिटिक्स से कोई जंग हो.
हाल ही में उन्होंने Connect FM Canada से बात की. वहां क्रिटिक्स की जी भर के आलोचना की. उन्होंने कहा कि यहां के क्रिटिक्स को फिल्म रिव्यू करने की समझ ही नहीं. ‘एनिमल’ के कुछ सीन्स को लेकर वांगा पर आरोप लगा था कि उन्होंने बस ऑडियंस या क्रिटिक्स को उकसाने के लिए वो सीन डाले. इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि क्या आपको बुरा लगता है जब फिल्ममेकर की मंशा पर सवाल उठाए जाते हैं? संदीप का कहना था,
संख्या बढ़ चुकी है. ‘कबीर सिंह’ के वक्त 20 लोग थे. अब 50 हो गए हैं. कल 100 हो जायेंगे पर फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लाखों लोगों को मेरा काम अच्छा लग रहा है. मुझे कभी नहीं लगता कि मैं इन 20-50 लोगों को परेशान करने के लिए कुछ करूंगा. रणबीर कपूर फिल्म के एंड में जो करते हैं, क्रिटिक्स को लगा कि वो उन लोगों पर कमेंट किया गया है. अनुपम चोपड़ा को लगा कि वो क्रिटिक्स के लिए ही किया गया है. लेकिन मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था. मैं चाहता था कि ऑडियंस ‘एनिमल पार्क’ को सपोर्ट करे. उन्होंने उसे गलत ढंग से समझा. जिस मोमेंट पर रणबीर का किरदार वो जेस्चर करता है, ठीक उसके बाद मेरा नाम आता है. तब उन्हें लगा कि मैं उन्हें जवाब दे रहा हूं. मैं ये नहीं करता.
संदीप अपने कई इंटरव्यूज़ में कह चुके हैं कि क्रिटिक्स को फिल्म के संदर्भ में चीज़ें देखनी चाहिए. जब उनसे इस स्टेटमेंट के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था,
ये उनकी (क्रिटिक्स) क्षमता से बाहर है. मैंने उन्हें दूसरी फिल्मों के रिव्यू करते हुए भी देखा है. मुझे लगता है कि इन सभी लोगों को चीन जाना चाहिए. आपको पता है कि चीन में सबसे ज़्यादा क्या चलता है? इंग्लिश ट्यूशन. क्रिटिक्स की इंग्लिश अच्छी है, तो उन्हें वहां जाकर इंग्लिश सिखानी चाहिए. हर बार उनका रिव्यू देखने पर आपको इंग्लिश का नया शब्द मिलेगा. उसके सिवा वहां कुछ नहीं होता. ‘कबीर सिंह’ में भी उन्होंने चुनिंदा चीज़ों पर बात की. कैसे कबीर ने प्रीति को थप्पड़ मारा. ये किसी ने नहीं कहा कि प्रीति ने भी कबीर को थप्पड़ मारा. ‘एनिमल’ के लिए ये लोग कहते हैं कि हीरो ने लड़की को जूते चूमने को कहा. ये तो हुआ ही नहीं. फिर क्यों बता रहे हो.
आप कैसे कह सकते हैं कि ये फिल्म तीन घंटे का टॉर्चर है? ये बहुत शर्मनाक है. आपको लगता है कि अनुपमा चोपड़ा, राजीव मसंद और सुचारिता त्यागी के रिव्यू की वजह से मुझे पहले दिन इतनी बड़ी ओपनिंग मिली? ऐसा क्राफ्ट की वजह से हुआ. कोई क्राफ्ट के बारे में बात ही नहीं करता. कोई एडिटिंग और साउंड डिज़ाइन के बारे में बात ही नहीं करता. जब फिल्मों की बात आती है तो ये लोग अशिक्षित हैं. उनके पास फिल्म का रिव्यू या उसकी आलोचना करने का कोई सेंस ही नहीं है. वो सिर्फ सेंसिटिव पार्ट को देखते हैं और उसी पर बोलते हैं. उनका काम हो गया.
इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अनुपमा चोपड़ा और राजीव मसंद जैसे क्रिटिक्स पहले उनकी फिल्मों की आलोचना करते हैं, फिर उन्हें अपने शो पर आने का न्योता देते हैं. वांगा ने क्रिटिक्स को सुनाया. इस बात को एक पक्ष सोशल मीडिया पर सेलिब्रेट कर रहा है. दूसरी ओर कुछ लोग क्रिटिक्स और उनके रिव्यू का समर्थन भी कर रहे हैं. फिल्मों पर लिखने वाले असीम छाबड़ा ने सुचारिता त्यागी के सपोर्ट में लिखा,
मैंने अभी तक ‘एनिमल’ नहीं देखी है और फिल्म को देखने का कोई प्लान भी नहीं. ये मेरी अपनी मर्ज़ी है. लेकिन जिस घमंड के साथ फिल्म की टीम फिल्म क्रिटिक सुचारिता त्यागी का मज़ाक उड़ाने की कोशिश कर रही है, वो चौंकाने वाला है. स्वतंत्र विचार और फिल्मों की आलोचना को इस देश में बरकरार रखना होगा.
खतरे के निशान हर तरफ हैं – सिनेमा के इतिहास के बारे में कोई ज्ञान ना रखने वाले सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स से लेकर वो ट्रेड पंडित जो फिल्म के 1000 करोड़ क्लब में जाते ही खुश होने लगते हैं.
‘कबीर सिंह’ के वक्त भी वांगा ने क्रिटिक्स पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी. ‘एनिमल’ के वक्त भी यही हुआ. अब उनका कहना है कि ‘एनिमल पार्क’ और ‘स्पिरिट’ देखकर क्रिटिक्स मर जाएंगे. वो फिल्मों की आलोचना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. इन फिल्मों को लेकर क्या रिएक्शन आएगा, इसका जवाब भविष्य में ही मिलेगा.