कच्छों के ऐड में फोकस पहनने से ज्यादा उतारने पर क्यों है?
ये बता देते हैं कि लड़की पीछे पड़ जाएगी. कोई नहीं बताता कि इलास्टिक से आपको निशान नहीं पड़ेगा.
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फोटो - thelallantop

लेकिन इन सब फन-फैक्ट्स के बीच हम ये न भूलें कि ऐड एक चड्ढी का है. यानी ये चड्ढी सिंबल है एक तरह के शरीर का. एक तरह के सेक्स का.बात शरीर की. ये विज्ञापन हो या दूसरे चड्ढी-बनियान के ऐड. इनसे एक तरह की इरॉटिक फीलिंग जोड़ दी जाती है. क्योंकि जिन अंगों को ये ढकते हैं, वो सेक्स के लिए बने होते हैं. और इन सब में हम एक बात भूल जाते हैं कि ये कपड़े ही हैं. जैसे हमारे बाकी कपड़े होते हैं. लेकिन अंडरवियर के ऐड में हमेशा कपड़े पहनने से ज्यादा फोकस उसके उतरने पर दिया जाता है. अंडरवियर बेचने का ये तरीका बीते कुछ सालों में काफी देखा गया है. बेचने वाले आपको ये नहीं बताते कि ये सॉफ्ट हैं. आपकी स्किन पर इलास्टिक का दर्द या निशान नहीं छोड़ेंगे. या इन्हें धोने में आपको आराम होगा. ये तो बस ये बताते हैं कि ये इतने सुंदर हैं कि देखते ही लड़की इन्हें उतारने को राज़ी हो जाएगी. एक लक्ष्मी चाची वाला विज्ञापन भी चला था, जब हम छोटे थे. जिसमें चाची खींच कर दिखाती थीं कि पैंटी का इलास्टिक कितना मजबूत है. लेकिन वो ऐड अब हमारे बीच एक मजाक बन चुका है. कुल मिलाकर बात ये कही जा रही है, कि ये चड्ढी 'सेक्सी' मर्दों के लिए है. सेक्सी ही नहीं, 'असल' मर्दों के लिए. जो दुबले-पतले नहीं होते. या तोंदू टाइप के नहीं होते. जो 'पौरुष' से भरे होते हैं. ऐड चड्ढी का हो या डिओडोरेंट का. मकसद सिर्फ ये है कि मर्दों के 'असल' होने का एक पैमाना तय कर दें. ताकि हम सबके दिमाग में ये एक तथ्य की तरह स्थापित हो जाए कि मर्द ऐसा ही होना चाहिए. बात सेक्स की. हमें ऐड में लड़की का चेहरा नहीं दिखता. चेहरा तो लड़के का भी नहीं दिखता. पर उसकी छाती और चड्ढी दिखते हैं. लेकिन एक बात जरूर साफ़ दिखती है कि लड़की लड़के के साथ बराबरी में नहीं खड़ी है. वो बैठी हुई है. या यूं कहिए कि लड़के के सामने झुकी हुई है. नतमस्तक है. अंडरवियर की सेक्स अपील ने उसे लड़के का गुलाम बना दिया है. ये एक ऐसी चीज है, जिससे लड़के का पौरुष और ज्यादा स्थापित होता है. क्योंकि पौरुष तो डॉमिनेट करने में है. बराबरी में नहीं. और यही पौरुष तब दिखता है, जब अक्षय कुमार बनियान के ऐड में गुंडों से लड़ते हुए लड़की को बचा लेते हैं. और फिर लड़कियां उनसे पूरी तरह सम्मोहित हो जाती हैं. क्योंकि बनियान सिर्फ बनियान नहीं है. कच्छे सिर्फ कच्छे नहीं. आफ्टरशेव लोशन हों, डिओडोरेंट या अंडरवियर के ऐड. वो पुरुष को ज्यादा पुरुष और औरत को ज्यादा औरत बनाना चाहते हैं. इसलिए मॉडलिंग में समाज की सोच के मुताबिक किसी 'औसत' से दिखने वाले लड़के या लड़की को कोई जगह नहीं मिलती. क्योंकि जो औसत होता है, वो आम होता है. और मार्केट का काम तो आपको ख़ास बनने का लालच देना है. एक पूरे पन्ने का विज्ञापन, जो घर-घर पहुंच रहा है, आपसे कह रहा है कि ये चड्ढी पहनो, तो औरत तुम्हारी गुलाम बनकर तुम्हारे सामने झुक जाएगी. सेक्स के समय तुम उसे डॉमिनेट कर पाओगे. विज्ञापन का काम ध्यान खींचना होता है और वो उसने खींच लिया है. लेकिन ये तय है कि पुरुषवादी समाज की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति ये चड्ढी तो नहीं ही खरीदेगा.
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