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एनिमल: वहशियों का परम आनंद (फ़िल्म रिव्यू)

Sandeep Reddy Vanga की Animal (2023) कैसी फ़िल्म है? Ranbir Kapoor और Bobby Deol की acting कैसी है? फ़िल्म की story, theme, सिनेमाई अनुभव और सीक्वल (Animal Park) पर कुछ observations / notes यूं हैं.

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Animal movie review by gajendra singh bhati
"बुरा जो देखण मैं चला, बुरा मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपणा, मुझसे बुरा न कोय" - संदीप रेड्डी वांगा अपनी फ़िल्म में इस विचार के माध्यम से क्या कहना चाह रहे हैं? क्या हम समुचित समझ भी पाए हैं? फ़िल्म के एक द़ृश्य में रणविजय सिंह बलबीर का केंद्रीय पात्र.
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2 दिसंबर 2023 (Updated: 27 जनवरी 2024, 12:12 IST)
Updated: 27 जनवरी 2024 12:12 IST
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 Star Rating: 4.5 

मादक, विषबुझी फ़िल्म है. यदि विष पीना हो तो देखो. रौद्र और वीभत्स रस की यह फीचर लगभग एक instant classic है. अपने समय की भारतीय फ़िल्मों से तकरीबन आगे. डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा का अत्यंत बोल्ड सिग्नेचर. उनका अपने आइडिया को लेकर गज़ब का कमिटमेंट, ज़िद्द और ऊर्जा है. पॉलिटिकल करेक्टनेस, फ़िल्म आलोचकों और प्रगतिवादियों को फ़िल्म संभवतः भद्दा इशारा भी करती है आरंभ और अंत में.

एनिमल के कई रंग रूप हैं.

समाज के बड़े, बच्चों के साथ साइलेंट हिंसा करते हैं और फिर हैरत जताते हैं कि ये क्रिमिनल आते कहां से हैं. हमने इसे महान और हिंसक कोरियन फ़िल्म 'साइलेंस्ड' में देखा. एनिमल में भी देखते हैं. बलबीर सिंह (अनिल कपूर) हैरान, क्रोधित होकर पत्नी पर चीखता है - "हमने एक क्रिमिनल पैदा किया है". लेकिन वो पैदा ऐसे नहीं हुआ होता है. एक रात घर आकर बलबीर किशोरवय बेटे के कमरे में जाता है तो वह हाथ में चिट्ठी लिए सोया होता है. उसमें लिखा होता है - "अगले जनम में आप मेरे बेटे बनना और मैं आपका पापा बनूंगा. फिर मैं बताऊंगा प्यार कैसे करते हैं. फिर उससे अगले जनम में आप फिर मेरे पापा बनना और उसी तरह मुझे प्यार करना".

यह बच्चा डीसेंसेटाइज़ किया जाता है - पिता का इंतजार करते करते, उसके प्यार को तरसते और कभी न पाते हुए, कुरूप अमीरी, एनटाइटलमेंट के साथ और तमाम तरह की हिंसाओं के बीच जीते हुए. पिता से पिटता है, टीचर डंडे मारती है मामूली बात पर. रोंगटे खड़े करने वाला एक दृश्य है जहां टीनएजर बेटे रणविजय को बलबीर थप्पड़ें पर थप्पड़ें मारता है. लेकिन 'बंबई मेरी जान' के पत्थर हो चुके बच्चे दारा की तरह उसे भी कोई दर्द नहीं हो रहा होता. वह बड़ा हो जाता है, जानवर बन जाता है. एक बार कहता है - "आप ग्रेटेस्ट पापा नहीं हो, लेकिन मैं ग्रेटेस्ट सन ऑफ द वर्ल्ड हूं."

लेकिन फिल्म में सुविचारिता यहीं तक है. उसके बाद ये मुड़ती है, अपने असली ध्येय की तरफ. वह है - परदे पर मानव नाम के पशु को रचना. उसकी पूरी बर्बरता के साथ. ताकि दर्शक को रमाया, रिझाया, नशे में भिगोया जा सके.

शुरू में बंदर की जो कहानी आती है, उसका लब्बोलुबाब एक यह भी हो सकता है कि एनिमल फिल्म के जंगली पात्र इतने जंगली हैं कि उनको समझाना व्यर्थ है. जैसे कि उसकी (रणविजय) पत्नी उसे समझाकर थक जाती है. तर्क करती है. लेकिन वह कुतर्क करता है. वह man of integrity होने का दावा करता है. शुरू में कहता है - मेरी जिंदगी में कभी कोई दूसरी स्त्री नहीं आएगी. हमें लगता है कि स्टैंड करेगा इस बात पर. लेकिन फिर एक मोड़ आता है जब वह वादा तोड़ता है. दूसरी स्त्री से संबंध बनाता है. फिर पत्नी को जाकर बताता है. वह कहती है - तुम दूसरी स्त्री के साथ सोए, मैं दूसरे पुरुष के साथ सोऊं तो. बल्कि मैं सोऊंगी. तो कहता है - किसी दूसरी मर्द को तुम्हारे आस पास भी नहीं फटकने दूंगा. वह तलाक मांगती है तो वह भी देने से मना कर देता है. यानी वह मैन ऑफ इंटेग्रिटी नहीं है. उसकी स्त्रियां उसके प्यार के कांटे में फंसती है, और फंसकर रह जाती हैं, वो उन्हें कभी आज़ाद नहीं करता. उन्हें अपनी सनक की जेल में रखता है. अंत में युद्ध पर जाने से पहले कहता जाता है - मेरे जाने के बाद तुम शादी मत करना.

फ़िल्म देखकर यह भी लगता है कि क्या संदीप रेड्डी वांगा यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसे जानवरों को कभी जन्म नहीं देना. जन्म, माने, कभी हमारा समाज इतना असंवेदनशील न हो, हमारी परवरिश ऐसी न हो कि बच्चे जानवर बना दिए जाएं. इन पात्रों जैसे बना दिए जाएं जैसे ये हैं. लेकिन फिर वे पात्र ग्लैमराइज्ड भी हैं. लेकिन फिर डायरेक्टर बोल्ड भी होना चाहता है कि मुझे पोलिटिकल करेक्टनेस में मत बांधो, मुझे मुक्त होकर पेंट करने दो. मुक्त होकर कहानी कहने दो. अपनी कमियों के साथ, अराजकता के साथ परदे पर खाली हो लेने दो. मुझे एंटरटेनिंग, नशीली फिल्म बनाने दो जिससे मैं पैसा भी कमा लूं और अमर भी हो जाऊं.  

अंगुलिमाल की सिर्फ कहानियां सुनी हैं. यह फिल्म देखकर विजुअली बित्ता सा अहसास होता है कि वो कैसा रहा होगा. यह जो बित्ता सा है, इसे भी छू पाना, बहुत विराट छू पाना है. 'एनिमल' का मुख्य पात्र एक राक्षस है. और फिर उससे बड़ा राक्षस, उसी का एक स्वरूप फिल्म के एंड क्रेडिट्स में भी दिखता है, जो इसके अगले भाग (Animal Park) में दिखेगा.

एक पादरी जिसके पास संसार के सब अपराधी और बुरे से बुरे लोग आकर कनफेशन करते हैं, वह उससे मिलने के बाद उल्टियां कर रहा होता है. पसीने से लथपथ, कांप रहा पादरी किसी से कहता है - He's a satan. I declare today. He's a destructive force.

क्या ये संहारक शिव का रेफरेंस है? क्योंकि इस फिल्म को भद्रकाली पिक्चर्स ने बनाया है जो संदीप रेड्डी वांगा का प्रोडक्शन है. भद्रकाली, भयंकर क्रोध वाली संहारक. उनके पति वीरभद्र उग्र स्वरूप वाले, शिव के भयावह अवतार, उनके गण. इन दोनों के कई पुत्र, वे भी ऐसे हीं. क्या वांगा की कहानियों का एक दर्शन यहां से आ रहा है?  

रणविजय का किरदार एक बहुत स्ट्रॉन्ग ओपिनियन वाला है हर चीज़ को लेकर. कुछ वह फेंकता भी है, कुछ गंभीरता से भी कहता है.

यह पात्र एल्फा मेल की परिकल्पना बताता है. बर्बर, जंगली दिनों में जाकर, तब के समय काल के अनुसार. कि पहले ऐसा होता था. फिल्म अपने लिट्रल मीनिंग में जाती है - जानवर, पशु.

बोलता है - एल्फा से कुछ कमज़ोर लोगों को जलन हुई तो फिर पैदा हुई पोएट्री. कि - मैं तेरे लिए चंदा लेकर आऊंगा. तो वो पोएट नहीं है. वो मर्द है, माइकल रोस्कम की गजब की बेल्जियन क्राइम ड्रामा 'बुलहैड' के किसान जैकी की तरह पशु हार्मोन्स से भरा मर्द. वो गीतांजलि से मिलता है तो उसे यह दिखता है कि सीधे सादे परिवार से है, तो बैकग्राउंड ठीक है. दिखती सुंदर है. कहता है - You have a big pelvis, हेल्दी बेबीज़ पैदा होंगे. जैसे कि मानव जीवन का सिर्फ यही उद्देश्य है. एक जंगली, भौतिक अवधारणा. मानव इवोल्यूशन से बढ़ा, यह पात्र डिवोल्यूशन पर रुका है.

गीतांजलि (रश्मिका) एक समझदार, सुलझी लड़की नहीं है. पहले वो सिर्फ एक हफ्ते पुरानी मुलाकात वाले लड़के से शादी कर रही होती है. फिर रणविजय की "एल्फा मेल", "भाई का दोस्त भाई नहीं होता" वाली स्पीच सुनकर इतनी इम्प्रेस हो जाती है कि शादी तोड़कर उससे कर लेती है. फिर आगे जाकर पछताती है. घोर पछतावा होता है. जब वह बार बार मना करने के बाद भी उसकी ब्रा के इलास्टिक को खींचकर छोड़ता है और उसकी पीठ पर लील जम जाती है, और बाद में मलहम लगा रहा होता है तो पुराने दिनों को याद करते हुए वो कहती है - जब पता लगा कि स्कूल में तुम्हारी बहन को छेड़ा और तुम गन लेकर गए तो ऐसा लगा कि ये फायरिंग कभी बंद ही न हो. कि कभी कोई मुझे छेड़ेगा तो न जाने तुम क्या करोगे उसका. लेकिन अब तुम्हे देखकर डर लगता है. गीतांजलि को ये नहीं पता था कि जो चरम सुख देगा, वो चरम यंत्रणा भी देगा.

एक जगह डायरेक्टर अपने सेंट्रल कैरेक्टर के चरित्र को हिटलर से भी जोड़ते हैं. शायद जस्टिफाई भी करते हैं? बलबीर सिंह की कंपनी है स्वास्तिक नाम से. उसका मोटो है - शक्ति, प्रगति, विजय. जब रणविजय पिता पर हमले के बाद लौटकर आता है और देखता है कि मजदूर काम बंद करके बैठे हैं और उसे भी उसका बहनोई हाशिए पर डाल देता है, तो क्या वो वर्ल्ड वॉर वन के बाद वाला हिटलर होता है जो वर्साय की संधि से अपमानित महसूस करता है और बदला लेना चाहता है और उसके बाद अपने भाषणों से वो जर्मनों को सम्मोहित करना शुरू करता है. रणविजय का मजदूरों की ड्रेस पहनकर आना और माइक के सामने खड़े होना और पीछे स्वास्तिक का साइन बना होना - ये सब विलक्षण रिज़ेब्लेंस देता है. भाषण देते हुए वो वैसी ही मुद्रा बनाता है मुट्ठी उठाकर. और हम कहीं इस संदर्भ को मिस न कर दें इसलिए आगे के एक दृश्य में डायरेक्टर इसे दोहराता भी है. रणविजय का किरदार कहता है कि कहीं उसे हिटलर न समझ लिया जाए, वह निशान स्वास्तिक का है, नाज़ियों वाला साइन नहीं, दोनों में फर्क है. हालांकि यह सब वो हास्य-विनोद में कह रहा होता है. यानी, कि वे सब संकेत संभवतः इस बात का रूपक ही थे कि रणविजय में एक हिटलर जैसी एक एनिमल स्ट्रीक है.

एक प्रमुख दृश्य है जहां 'केजीएफ' की तर्ज पर एक मेमथ मशीनगन वह बनवाता है. उसका महाराष्ट्रियन सप्लायर (उपेंद्र लिमये) कहता है - "दिल्ली में परिकल्पित, बैंगलोर में निर्मित और महाराष्ट्र में असेंबल की गई. 100 परसेंट मेड इन इंडिया. आत्मनिर्भर भारत". 'एनिमल' हिंसक, वीभत्स सिनेमा की दुनिया में आत्मनिर्भर भारत का ताकतवर नमूना है. कि हम भी क्या कर सकते हैं. जब सब किया जा चुका है तो फिर भी हम कितना इनोवेट कर सकते हैं. कोरियन सिनेमा की चाकू, ब्लेड, फरसों वाली मारकाट विजुअली स्टनिंग लगती है (मसलन, 'अ मैन फ्रॉम नोवेयर' का अंतिम फाइट सीन). उसी से प्रेरणा लेते हुए होटल के गलियारे वाला सीन आता है. जहां "अर्जुन वैल्ली" गीत आता है और रणविजय कुल्हाड़ा लिए अनगिनत पशु मास्कधारी लोगों से भिड़ता है. इंडियन फिल्मों के लिहाज से स्टनिंग सीन.  

अपनी फिल्मों की हिंसा, टॉक्सिसिटी, कठोरता के लिए संदीप की प्रेरणा दक्षिण में 'परुथीवीरन' जैसी फिल्मों से आती हैं, जो बेहद कंटीली, कठोर हैं. और 'एनिमल' के लिए कोरियन फिल्मों से भी. रणबीर का किरदार रणविजय 'नान कडवल' के अघोरी पात्र की तरह है. वह न तो समाज में मानता है, न व्यवस्था में, न कानून में, न पॉलिटिकल करेक्टनेस में, न नैतिक-अनैतिक में (चाहे वो दिखावा करता है कि नैतिक है, लेकिन नहीं है).

वह अस्थिर भी है. कभी अति कर देता है हिंसा की. कभी कहता है - मैंने पूरे नियंत्रण में किया जो भी किया. अगर स्कूल में अपने से बड़े लड़कों को डराने के लिए मशीन गन ले जाकर चला देता है, तो कहता है सिर्फ डराने के लिए किया. अब अगर कहेंगे कि मशीनगन क्यों लेकर गया? तो डायरेक्टर कहेगा कि चूंकि उसका सिक्योरिटी गार्ड साथ में था और उसके पास यही हथियार था तो ये उससे ले गया, आसपास कुछ और होता तो वो ले जाता. बहन से कहता है कि तेरे पति को मार दूंगा, और कुछ कर भी देता है. शत्रु के राज़ बताने वाली जासूस की जान बख्श भी देता है. लेकिन उसके साथ सोते हुए कॉन्डोम भी यूज़ नहीं करता. यानी वो उसके साथ इसलिए नहीं सोता कि शत्रु के राज़ उगलवाने थे, इसलिए भी कि उसे सुख भोगना था. प्रण के उलट परस्त्रीगमन करना था.

ये फिल्म नहीं बननी थी. यह विचार भी मन में आ सकता है. लेकिन every devil needs to be born.

ये एक एल्फा मेल की कहानी है, और ये सिर्फ एल्फा मेल्स के लिए ही है. न तो इस दुनिया में स्त्रियों की कोई जगह है, न ही ये फिल्म उनके लिए है. फिल्म में रणविजय जैसे अपने पिता बलबीर को कहता है कि अगले जनम में मैं आपका पापा बनूंगा और सिखाऊंगा कि प्यार कैसे किया जाता है बच्चों से. वैसे ही कामना है कि वांगा अगले जनम में एक स्त्री बनें और फिर अपनी ही बनाई फ़िल्में देखें.  

इसका दूसरा पहलू, और अगर कोई समझदार व्यक्ति रीड करे तो फिल्म यह भी कह रही है कि पुरुषों ने इस दुनिया को कितना गंदा, हिंसक, कुरूप बना दिया है. और उनकी इस दुनिया के नंगे ख़ूनी नाच को स्त्रियां डर डरकर, बिदककर देख रही हैं और सिर्फ सरवाइव कर रही हैं. रणविजय मां को प्यार करता है, वो उसे डिफेंड करती है, लेकिन उसका कोई वजूद नहीं. रणविजय की दोनों बहनों का कोई वजूद नहीं. पत्नी का कोई वजूद नहीं. प्रेमिका का नहीं. वे सब नाचीज़ हैं.

लेकिन जो दर्शक जागरूक नहीं है, उसके लिए ये एक नशा है. एक गंदा नशा. वो ऐसी चीजों पर हंसेगा, नाचेगा, जिस पर किसी सभ्य, संवेदनशील व्यक्ति न हंसे, न नाचे.
 
लेकिन यह फिल्म सिर्फ विचार के बारे में ही नहीं है. ये एक सिनेमाई भाषा भी है. विजुअल स्टोरीटेलिंग भी है. "रोजा जानेमन" का हैश्ड वर्जन बहुत प्रभावोत्पादक ठंडी फुहार बनकर जब आता है तो यह फ़िल्म की सबसे नशीली गिरफ्त में लेने वाली चीजों में से एक होता है. स्टाइलिश. और यह मणिरत्नम के सिनेमा (रोजा) को ट्रिब्यूट लगता है, कि मैं संदीप रेड्डी वांगा, सिनेमाई भाषा और महत्वाकांक्षा पहले रखता हूं और विचार बाद में.

गैर-वैचारिक और विशुद्ध विजुअल / सिनेमाई भाषा में ये एक कमाल की फ़िल्म है, एक क्लासिक है और नया रेफरेंस पॉइंट है. इसका बैकग्राउंड स्कोर ऑलटाइम बेस्ट है. फ़िल्म की सबसे बड़ी मज़बूतियों में से है. जितनी तारीफ करें, कम. इसकी एडिटिंग सुपर बोल्ड है. घातक है. सिनेमा की ऑलटाइम बेस्ट एडिटिंग में से एक है. स्टोरी जहां जहां से कटती और जुड़ती है, इससे बोल्ड चीज मैंने सिनेमा परदे पर पिछली बार कब देखी थी याद नहीं आता. मसलन, बॉबी देओल की एंट्री वाला फ्रेम, जिसमें ऊपर रणबीर का शॉट चल रहा होता है और नीचे से बॉबी का फ्रेम प्रवेश कर रहा होता है. ऐसे कई मौके आते हैं. एडिटिंग स्वयं वांगा की है. यह एक ऐसी चीज है जिसमें कोई अस्पष्टता नहीं. वे फिलहाल दुनिया के बेस्ट एडिटर्स में हो गए हैं.

एक्टिंग लाजवाब है. मुझे रणबीर कपूर के करियर की पहली फ़िल्म लगी जिसमें उनकी एक्टिंग सबसे पावरफुल ढंग से सामने आई है. समाजवादी, प्यारे राज कपूर अपनी 'ग्रेव' में उनका ये अवतार देखकर कष्ट पा रहे होंगे.

बॉबी देओल ने 'करीब' जैसी प्यारी फिल्में की हैं और 'बिच्छु' से लेकर 'सोल्जर' जैसी सफल एंटरटेनिंग फिल्में भी. लेकिन कभी उन्हें सीरियसली लिया जाए ऐसा नहीं रहा. वे सनी देओल के छोटे भाई ही रहे. लेकिन 'एनिमल' उनका करियर बेस्ट है. उनका किरदार अबरार अपने इंट्रो सीन में एक नाचता हुआ पिशाच लगता है. बॉबी अब सनी के छोटे भाई नहीं रहे, अब सनी बॉबी के बड़े भाई हो गए हैं. और इंडियन सिनेमा को एक नया एक्टर मिला है.  

अंगुलिमाल की बात हुई थी आरंभ में. हर अंगुलिमाल की कहानी का अंत बुद्ध से ही होता है. 'एनिमल' सिर्फ एक शुरुआत है, और 'एनिमल पार्क' शायद अंत न हो. लेकिन जब भी इस कथा का अंत हो तो बुद्ध पर ही हो.

अस्तु!

Film: Animal । Director: Sandeep Reddy Vanga । Cast: Ranbir Kapoor, Bobby Deol, Rashmika Mandanna, Anil Kapoor, Tripti Dimri, Babloo Prithiveeraj, Saurabh Sachdeva, Charu Shankar, Siddhant Karnick, Ahmad Ibn Umar । Run time: 3hr 21m । Rating: A (Gore, blood, marital rape, child abuse, profanity) । Watch at: Netflix

एनिमलः फ़िल्म रिव्यू [वीडियो]

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