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मेरठ में अरुण गोविल के खिलाफ लड़ रहे अतुल प्रधान कौन हैं? सपा ने क्यों बदला उम्मीदवार?

मेरठ लोकसभा ऐसी सीटों में एक है, जहां अब तक समाजवादी पार्टी कभी नहीं जीत पाई है. लेकिन इस बार अतुल प्रधान की उम्मीदवारी के बाद इस सीट की चर्चा बढ़ गई है.

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Atul Pradhan Samajwadi party
सरधना से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं अतुल प्रधान. (फोटो- इंस्टाग्राम/Atul Pradhan)
2 अप्रैल 2024 (Published: 12:43 AM IST) कॉमेंट्स
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समाजवादी पार्टी ने ऐन मौके पर मेरठ लोकसभा सीट पर उम्मीदवार को बदल दिया. पहले यहां से सपा ने भानु प्रताप सिंह को उतारा था. लेकिन एक अप्रैल को अचानक पार्टी ने मेरठ से अतुल प्रधान के नाम की घोषणा कर दी. प्रधान मेरठ की सरधना सीट से सपा के विधायक हैं. प्रधान का मुकाबला बीजेपी के 'हाई प्रोफाइल' उम्मीदवार अरुण गोविल से है. ये लोकसभा की ऐसी सीटों में एक है, जहां अब तक समाजवादी पार्टी कभी नहीं जीत पाई है और ना ही दूसरे नंबर पर रही है.

मेरठ पश्चिमी यूपी की राजनीति का एक महत्वपूर्ण एपिसेंटर माना जाता है. पिछले तीन चुनावों से बीजेपी लगातार यहां से जीत रही है. लेकिन इस बार पार्टी ने तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काट दिया. और अरुण गोविल को उम्मीदवार बनाकर रिस्क लिया है. हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी महज 4700 वोटों से जीती थी. पिछले चुनाव में सपा और बसपा ने गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. लेकिन इस बार दोनों पार्टियां अलग लड़ रही हैं.

लोकसभा टिकट मिलने के बाद अतुल प्रधान ने अखिलेश यादव का धन्यवाद किया. उन्होंने एक्स पर लिखा, 

"समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्य्क्ष हमारे नेता आदरणीय अखिलेश यादव जी को हार्दिक धन्यवाद! जिन्होंने मेरठ की महान जनता का आवाज बुलंद करने का और सेवा का मौका दिया! हम सब मिलकर गरीब-नौजवान-किसान के हक और न्याय के लिए निरंतर संघर्ष करेंगे!"

सपा ने क्यों बदला उम्मीदवार?

समाजवादी पार्टी के नेताओं का मानना है कि अतुल की उम्मीदवारी से मेरठ का मुकाबला अब एकतरफा नहीं रहेगा. इससे पहले, पार्टी के भीतर कई लोग भानु प्रताप की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे. उन्हें 'बाहरी' माना जा रहा था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भानु प्रताप साहिबाबाद के रहने वाले हैं और सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं. साल 2017 में उन्होंने अपना राजनीतिक दल जनहित संघर्ष पार्टी लॉन्च कर सिकंदराबाद सीट से चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें 1000 से कुछ ज्यादा वोट मिले थे.

मेरठ में सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राजपाल सिंह ने एक्सप्रेस को बताया, 

"भानु प्रताप सिंह की उम्मीदवारी से हम सभी चौंक गए थे. वे सिर्फ बाहरी ही नहीं है, बल्कि उनके अपने इलाके में भी उनका कोई जन समर्थन नहीं है. भानु प्रताप को टिकट मिलने से कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी. अगर उनके बदले प्रधान को टिकट नहीं मिलता तो मेरठ सीट पर मुकाबला एकतरफा हो जाता."

कहा जा रहा है कि अखिलेश ने बीएसपी को टक्कर देने के लिए भानु प्रताप को टिकट दिया था. भानु दलित समुदाय से आते हैं. मेरठ सीट पर इस समुदाय के करीब 19 फीसदी वोटर हैं. लेकिन पहले ही उन पर बाहरी होने का टैग लग गया. इसके बाद, बीजेपी ने अरुण गोविल को उम्मीदवार बनाकर अखिलेश को दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया.

अरुण गोविल मेरठ के ही रहने वाले हैं. साल 2021 में बीजेपी में शामिल हुए थे. रामानंद सागर के टीवी सीरियल 'रामायण' में राम के किरदार से चर्चित हुए गोविल पर बीजेपी ने बड़ा दांव चला है. गोविल भी खुद इसे भुना रहे हैं. अपने पहले चुनावी सभा में उन्होंने अपनी "घर वापसी" का जिक्र किया, जिसे हिंदू धर्म के लोग राम के वनवास से लौटने को देखते हैं.

कौन हैं अतुल प्रधान?

अतुल सपा मुखिया अखिलेश के करीबी माने जाते हैं. गुर्जर समुदाय से आने वाले अतुल कॉलेज के समय से ही पार्टी से जुड़े हैं. मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान वे काफी एक्टिव रहे. अखिलेश ने मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें समाजवादी पार्टी के छात्र सभा (स्टूडेंट विंग) का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. उनकी पत्नी सीमा सरधना से जिला परिषद रह चुकी हैं. पिछले साल सपा के समर्थन से सीमा ने मेयर चुनाव भी लड़ा था लेकिन हार गई थीं.

41 साल के प्रधान ने साल 2012 में पहली बार सरधना से विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन हार गए थे. 2017 में भी उन्हें जीत नहीं मिली. मीडिया रिपोर्ट्स बताती है कि लगातार दो हार के बावजूद अतुल हमेशा अखिलेश यादव के गुड बुक्स में रहे. साल 2015 में अतुल ने  फलावदा में एक 'सद्भावना रैली' रैली आयोजित करवाई थी. इस रैली में बहुत बड़ी जुटी थी. ये वो समय था जब 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अखिलेश यादव की सरकार लगातार आलोचनाओं का सामना कर रही थी.

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रधान को एक बार फिर मौका मिला. इस चुनाव में सपा और आरएलडी का गठबंधन था. इसका फायदा प्रधान को मिला और उन्होंने बीजेपी के सीनियर नेता संगीत सोम को 18 हजार वोटों से हरा दिया. ये अतुल के लिए बड़ा कमबैक था. चुनाव जीतने के बाद उनकी चर्चा खूब हुई थी.

PM मोदी पर बयान के कारण केस दर्ज

यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बयानबाजी करने के कारण अतुल प्रधान के खिलाफ एक केस भी दर्ज हुआ था. मेरठ के दौराला थाने के एक इंस्पेक्टर नरेंद्र कुमार शर्मा ने FIR दर्ज करवाई थी. इसका आधार बना था एक वीडियो. इसमें अतुल ने कहा था, 

"वो जो हैं प्रधानमंत्री सारे दिन झूठ बोलते हैं ना. अगर सबसे बड़ा झूठा इंसान है इस पृथ्वी पर राजनीति में, वह देश का प्रधानमंत्री है. हमारे सबसे ज्यादा बड़े झूठे प्रधानमंत्री हैं. हर दिन झूठ बोला जाता है. इतनी बड़ी गद्दी पर हर दिन लोगों से झूठ बोलना. उनके जो चेले चपाटे हैं वे भी ऐसे ही झूठ बोलते हैं." 

2022 विधानसभा चुनाव के दौरान जमा किए गए अतुल के हलफनामे से पता चलता है कि उनके खिलाफ 38 केस दर्ज हैं. पिछले साल भी उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे गाड़ियों के काफिले के साथ नजर आ रहे थे. दिल्ली में उन्होंने सनरूफ से निकलकर एक वीडियो बनाया था और अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट किया था. दिल्ली पुलिस ने ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन में उन्हें नोटिस भी जारी किया था.  

पिछले चुनावों में क्या रहा?

18 लाख जनसंख्या वाली मेरठ लोकसभा सीट में हापुड़ का कुछ हिस्सा भी लगता है. ये सीट बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण है. चुनौतीपूर्ण इसलिए, क्योंकि मेरठ में 19% एससी मतदाता हैं और लगभग 34% मुसलमान हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने बहुजन समाज पार्टी के हाजी याकूब कुरैशी को महज 4,000 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी. वहीं अन्य जातियों में 2.25 लाख वैश्य मतदाता हैं. करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण हैं. ओबीसी समुदाय में आने वाले जाट 11 फीसदी और गुर्जर 5 फीसदी हैं.

ये भी पढ़ें- पार्टी या पति, लोकसभा चुनाव में किसको समर्थन दें? दुविधा में फंसीं कांग्रेस विधायक

लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने सीटिंग सांसद राजेंद्र अग्रवाल को एकबार फिर से टिकट दिया. अग्रवाल को 5,32,981 वोट मिले. वहीं, बसपा से मो.शाजिद अखलाक को 3 लाख और सपा के शाहिद मंजू को 2 लाख 11 हजार वोट हासिल हुए थे. कांग्रेस ने इस सीट से बॉलीवुड अभिनेत्री नगमा को टिकट दिया था. लेकिन नगमा के आने से पार्टी की किस्मत नहीं बदली और उन्हें 42,911 वोटों से संतोष करना पड़ा.

पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 में भाजपा ने राजेंद्र अग्रवाल को एक बार फिर मौका दिया. उन्होंने 5,86,184 वोट हासिल किया था. लेकिन 5,81,455 वोट पाने वाले बसपा के हाजी याकूब कुरैशी से उन्हें कड़ी टक्कर मिली. कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में हरेंद्र अग्रवाल को उतारा था लेकिन उन्हें 34,479 वोट ही मिलें.

अब इस चुनाव में मेरठ का मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है क्योंकि बसपा ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है.

वीडियो: राज्यसभा चुनाव में सपा विधायकों के दगा देने का कारण क्या रहा?

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