दबंग छात्र नेता से शुरू हुई दयाशंकर सिंह की राजनीति विवादों के बाद भी कैसे आगे बढ़ी?
BJP नेता दयाशंकर सिंह का नाम सुनते ही उनसे जुड़े विवाद पहले जेहन में आते हैं!

बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 6 फरवरी को जिन 45 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की, उनमें एक नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है. वो नाम है दयाशंकर सिंह. योगी सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री स्वाति सिंह के पति दयाशंकर सिंह को बलिया नगर से टिकट दिया गया है. इससे पहले लखनऊ की सरोजनी नगर सीट पर टिकट को लेकर दयाशंकर सिंह और उनकी पत्नी स्वाति सिंह दोनों ही दावा ठोक रहे थे, लेकिन बीजेपी ने यहां से दोनों का ही पत्ता काट दिया.
दयाशंकर सिंह मूल रूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं, जो बलिया से सटा हुआ है. उनकी पढ़ाई लिखाई और शुरुआती राजनीति बलिया की ही रही है. इसीलिए भाजपा ने जब सरोजनी नगर सीट से उनका टिकट काटा, तो बलिया नगर से दे दिया. 27 जून 1972 को जन्मे दयाशंकर सिंह ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरूआत छात्र राजनीति से की थी. लखनऊ विश्वविद्यालय में अपने कॉलेज के दिनों के दौरान वे आरएसएस के छात्र विंग एबीवीपी के सदस्य थे. 1997 से 1998 तक दयाशंकर लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव रहे. वहीं 1998 से 1999 तक अध्यक्ष.
साल 1999 का दयाशंकर से जुड़ा एक किस्सा है. उस समय यूपी में कल्याण सिंह की सरकार थी. लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुए स्टूडेंट यूनियन के चुनाव. ABVP के कैंडिडेट थे दयाशंकर सिंह. कैंपस में उनकी दबंग छवि थी. यूनिवर्सिटी में दो गैंग चलते थे. ऐसे में सामने वाली गैंग के एक लड़के का 1998 में कत्ल हुआ. इसमें दयाशंकर सिंह के खिलाफ भी रिपोर्ट हुई, मगर पुलिस उन पर हाथ नहीं डाल पाई. दयाशंकर सीएम कल्याण सिंह के खास थे. कहा जाता है कि उन्हें बचाने के लिए जांच क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दी गई.
साल 2000 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा उत्तर प्रदेश का सचिव बनाया गया. जिसके बाद भाजयुमो में कई पदों पर रहने के बाद 2007 में दयाशंकर को भाजयुमो उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बना दिया गया. फिर 2007 में ही दयाशंकर ने पहली बार बलिया नगर सीट से चुनाव लड़ा. यहां उनकी बुरी तरह हार हुई. उन्हें पूरे 7 हजार वोट भी नहीं मिले. जमानत जब्त हो गई. मगर इस हार से उनकी राजनीति में रुकावट नहीं आई.
लखनऊ के संपर्कों के सहारे वह पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति में आ गए. जिसके बाद 2010 और 2012 मे वे दो बार उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रदेश मंत्री बनाए गए. 2015 में उन्हें यूपी बीजेपी का उपाध्यक्ष बनाया गया. मार्च 2016 में यूपी में विधान परिषद का चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया. लेकिन दयाशंकर सिंह चुनाव हार गए.
फिर जुलाई 2016 में मायावती पर अभ्रद टिप्पणी के बाद उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया गया. ये मामला काफी बड़ा बन गया था. तब लगा कि दयाशंकर के राजनीतिक करियर पर अब लंबा ब्रेक लगेगा. लेकिन 2017 में सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने उनका निलंबन वापस ले लिया. और एक बार फिर दयाशंकर यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष बनाए गए. जिसके बाद से वे संगठन में इस पद को संभाल रहे हैं, साथ ही वे बीजेपी की ज्वाइनिंग कमेटी के सदस्य भी हैं.
विवादों से चर्चा में आए
संगठन में कई पदों पर रहे दयाशंकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2017 से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती पर अभद्र टिप्पणी को लेकर चर्चा में आए थे. उन्होंने 2016 में बसपा सुप्रीमो मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए अभद्र टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था,
मायावती टिकट बेचती हैं और बेचने के बाद यदि कोई ज़्यादा क़ीमत देता है तो फिर टिकट ज़्यादा क़ीमत लगाने वाले को दे देती हैं. यही नहीं, यदि उससे भी ज़्यादा क़ीमत टिकट की लगती है तो फिर सबसे ज़्यादा बोली लगाने वाले को ही टिकट मिलता है.
मायावती पर आरोप लगाते-लगाते दयाशंकर सिंह मर्यादा भूल गए और आपत्तिजनक तरीक़े से उनकी तुलना वेश्या से कर दी. दयाशंकर ने कहा,
"उनसे अच्छी तो वेश्या है जो कम से कम अपने वायदे पर तो खरी उतरती है."
दयाशंकर सिंह की इस टिप्पणी के बाद यूपी की राजनीति में बवाल मच गया. दयाशंकर सिंह ने माफी मांगी. लेकिन यूपी पुलिस ने दयाशंकर सिंह पर एससी/एसटी एक्ट के तहत FIR दर्ज कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.

बीजेपी से निलंबन के बाद दयाशंकर सिंह के समर्थकों ने पार्टी में उनकी वापसी की मांग को लेकर जुलाई 2016 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कई पोस्टर लगाए थे. (साभार-आजतक)
इस पूरे विवाद में दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह बड़ा चेहरा बनकर उभरीं. दरअसल, दयाशंकर सिंह के बयान के बाद बीएसपी कार्यकर्ताओं ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी की अगुआई में लखनऊ में विरोध प्रदर्शन के दौरान दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी कीं. तब स्वाति सिंह ने महिला सम्मान को मुद्दा बनाकर मायावती के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

विवाद के बाद 29 जुलाई 2016 को दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह लखनऊ के हजरतगंज थाने में अपने सास-ससुर के साथ BSP नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज कराने पहुंची थीं. (साभार- इंडियन एक्सप्रेस)
स्वाति सिंह जिस तरह मुखर थीं, उससे बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को उनमें संभावना नज़र आई. तो 2017 के चुनाव में लखनऊ की सरोजनीनगर विधानसभा सीट से बीजेपी ने उन्हें टिकट दे दिया. जहां से स्वाति ने जीत दर्ज़ की और पहली बार में मंत्री बन गईं.
पत्नी के साथ भी हो चुका विवाद
बात साल 2008 की है. जब स्वाति सिंह ने पति दयाशंकर के खिलाफ मारपीट की शिकायत की थी. उस वक्त नौबत तलाक तक पहुंच गई थी, लेकिन फिर सुलह की कोशिशें हुईं और मामला शांत हो गया. दोनों को करीब से जानने वाले बताते हैं कि दोनों साथ में नहीं रहते हैं. मंत्री स्वाति सिंह अपने मायके में वहीं दयाशंकर सिंह अपनी मां के साथ रहते हैं.आजतक
की रिपोर्ट के अनुसार कुछ रोज पहले ही मंत्री स्वाति सिंह का एक कथित ऑडियो वायरल हुआ था. जिसमें दावा किया गया था कि स्वाति सिंह किसी व्यक्ति से बात करते हुए अपने पति दयाशंकर सिंह पर मारपीट करने और प्रताड़ित करने के गंभीर आरोप लगा रही हैं. दयाशंकर सिंह से इन आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया था कि 'जिसका ऑडियो है, उसी से पूछिए.'

पीएम मोदी के साथ दयाशंकर सिंह (साभार-फेसबुक)
स्वाति सिंह और दयाशंकर सिंह, यूपी की राजनीति में पिछले दिनों शायद सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली पति-पत्नी की जोड़ी है. विवादों से सुर्खियों में आए और फिर एक ही सीट से दोनों ने दावेदारी ठोंक एक और विवाद खड़ा कर दिया. खैर दयाशंकर को तो बीजेपी ने टिकट दे दिया है, लेकिन स्वाति सिंह का पत्ता कट गया. खबर लिखे जाने तक फिलहाल सपा ने दयाशंकर के खिलाफ बलिया नगर से कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है. बलिया में छठे चरण में 3 मार्च को मतदान होगा.