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पड़ताल: क्या भारत पर 43,000 करोड़ रुपये का तेल का पिछला लोन था, जिसे पीएम मोदी ने चुकाया?

क्या इसी वजह से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं, जानिए पूरी सच्चाई...

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पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर सरकार के विरोध में और पक्ष में दोनों तरफ से तमाम झूठे-सच्चे मैसेज चल रहे हैं.
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अविनाश
24 मई 2018 (Updated: 24 मई 2018, 10:52 AM IST) कॉमेंट्स
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इस वक्त देश में बहुत से लोग पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत से परेशान हैं. बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो इससे परेशान नहीं हैं. परेशान न होने वाले लोगों में से कुछ ये कह रहे हैं कि पिछली सरकार पर तेल का लोन था, जो ये सरकार चुकता कर रही है, इसलिए कीमत बढ़ेगी ही. ये लोन 43,000 करोड़ रुपये का है, जो यूपीए की सरकार ने ईरान को पेट्रोल खरीदने के बदले नहीं चुकाए हैं. अब मोदी सरकार ने ये पैसे चुका दिए हैं और इसी वजह से भारत में पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं. कुछ पोस्ट देखिए-



भारत ने ईरान का कर्ज चुका दिया है और इसकी वजह से कुछ लोगों को बेहद ही गर्व का अनुभव हो रहा है. वो इस बात पर गर्व कर रहे हैं कि उन्होंने महंगा पेट्रोल खरीदकर देश की इतनी सेवा की है, जितनी आजतक किसी ने नहीं की थी. लेकिन थोड़ा रुकिए, ठहरिए और याद करने की कोशिश करिए. अपने देश को नहीं, ईरान को. क्या हुआ था उसके साथ, क्यों आई थी ऐसी नौबत और क्या सच में भारत पर 43,000 करोड़ रुपये का कर्ज था. क्या वाकई पूरा मामला वैसा है, जैसा फेसबुक-व्हाट्सऐप पर दो लाइन में बताया जा रहा है. हम आपको ये पूरा मामला समझाते हैं, जो न तो इतना आसान है और न ही वैसा है, जैसा पेश किया जा रहा है.
भारत अपने तेल की ज़रूरतें पूरी करने के लिए सबसे ज्यादा सऊदी अरब पर निर्भर है. इसके बाद सबसे ज्यादा तेल ईरान और फिर इराक से आता था. ये क्रम 2011 तक चलता रहा. 2011 में अमेरिका और अन्य ताकतवर देशों ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि ईरान 2006 से ही अपने लिए परमाणु हथियार बना रहा था. इसका नतीजा ये हुआ कि ईरान भारत को जो हर रोज 4,00,000 बैरल तेल भेजता था, वो घटकर 1,00,000 बैरल प्रति दिन पर आ गया. भारत ईरान से खरीदे गए तेल का 55 फीसदी पैसा तुर्की के हल्कबैंक के जरिए पेमेंट करता था. वहीं बाकी बची 45 फीसदी रकम भारत यूको बैंक के जरिए रुपये में ईरान को देता था. 2013 में अमेरिका ने ईरान पर और भी प्रतिबंध लगा दिए, जिसकी वजह से ईरान हल्कबैंक के जरिए भारत से पैसे नहीं ले पाया. नतीजा ये हुआ कि भारत की कंपनियों पर ईरान का कुल 6.4 बिलियन डॉलर (अगर एक डॉलर की कीमत 66 रुपये माने तो कुल करीब 43,000 करोड़ रुपये) बकाया हो गए.
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इस बकाये में भारत की तेल कंपनी मंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड को 500 मिलियन डॉलर (करीब 3,326.38 करोड़ रुपये), निजी कंपनी एस्सार ऑयल को 500 मिलियन डॉलर (करीब 3,326.38 करोड़ रुपये) और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन को करीब 250 मिलियन डॉलर (करीब 1663.18 करोड़ रुपये) देने थे. इसके अलावा हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन को 642 करोड़ रुपये और एचपीसीएल मित्तल एनर्जी को 200 करोड़ रुपये के अलावा और दूसरी कंपनियों का भी ईरान पर बकाया था. ये प्रतिबंध 14 जुलाई, 2015 तक चलता रहा. इसके बाद ईरान पर से कुछ प्रतिबंध हटा लिए गए. लेकिन हल्कबैंक के जरिए पेमेंट लेने पर रोक बरकरार रही. इसकी वजह से भारत की कंपनियां ईरान को पैसे नहीं चुका पाईं. वहीं हर रोज करीब 1 लाख बैरल तेल उन्होंने खरीदना जारी रखा.
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इसके बाद आया 2016, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान गए. वहां उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी से मुलाकात की और कई समझौतों पर दस्तखत किए. वहीं भारत में रिजर्व बैंक भी इस कोशिश में लगा था कि किसी तरह से भारत की तेल कंपनियां ईरान को अपना बकाया चुका दें. इस दौरान ईरान ने प्रतिबंध हटने के बाद से नियमों में बदलाव कर दिया. पहले तो ईरान भारत को दिए जाने वाले तेल पर आधा ही ट्रांसपोर्टेशन चार्ज लेता था, लेकिन उसने पूरा किराया लेना शुरू कर दिया. इसके बाद ईरान जो 45 फीसदी तेल की रकम रुपये में लेता था और बाकी पैसे हल्कबैंक के जरिए लेता था, उसे भी खत्म कर दिया. नतीजा ये हुआ कि भारत को पैसे चुकाने के लिए अब नए रास्ते खोजने थे. ईरान एक तो अपने बकाये पर ब्याज चाहता था और दूसरा वो चाहता था कि उसे पैसे का भुगतान यूरो में किया जाए. इसके लिए आगे आया रिजर्व बैंक. उसने यूको बैंक के जरिए ईरान को भुगतान करने का प्रस्ताव दिया. 2016 में जब पीएम मोदी ईरान के दौरे पर गए, तो उस वक्त बकाये की करीब 5000 करोड़ रुपये की किश्त चुका दी गई और धीरे-धीरे छह किश्तों में भारत ने ईरान के 43,000 करोड़ रुपये का कर्ज चुका दिया.
रिजर्व बैंक ने हल्कबैंक और यूरोपियन यूनियन के जरिए पैसे का भुगतान कर दिया है.
रिजर्व बैंक ने हल्कबैंक और यूरोपियन यूनियन के जरिए पैसे का भुगतान कर दिया है.

अब बात उस मैसेज की, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इसमें कहा गया है कि पीएम मोदी ने देश का कर्ज चुकाया है, जो पूरी तरह से गलत है. भारत की तेल कंपनियों ने ईरान से तेल खरीदा और उसे भारत में बेचा. जब इन तेल कंपनियों ने भारत में लोगों को तेल बेचा, तो लोगों से उसका पैसा लिया. कंपनियों ने लोगों से तो पैसे ले लिए, लेकिन जिस रास्ते पेमेंट होनी थी, उसमें दिक्कत के चलते वो पैसे ईरान तक नहीं पहुंच पाए. इसका सीधा सा मतलब ये है कि लोगों से लिए गए पैसे कंपनियों के पास थे, जो वो ईरान को नहीं दे पा रहे थे. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कूटनीति पैसे चुकाने का जरिया बनी और कंपनियों के पास रखे गए पैसे ईरान तक पहुंच गए. इसमें देश के लोन जैसी कोई बात नहीं थी, क्योंकि पैसा सरकार के ऊपर नहीं, निजी और सरकारी कंपनियों के ऊपर बकाया था और ये वो पैसा था, जो कंपनियां लोगों से वसूल चुकी थीं और ईरान को दे नहीं पाई थीं. यानी सीधी सी बात ये है कि उस पैसे का आज पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत से कोई वास्ता नहीं है.
जब लोग सोशल मीडिया पर कुछ भी लिख रहे हैं, तो हम पीछे क्यों रहें :P
रही बात 43,000 करोड़ रुपये की. तो 2 जुलाई 2016 को कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल ने खुद ही ट्वीटर पर अनाउंस किया था कि सरकार को अचानक से काले धन के रूप में 43,000 करोड़ रुपये मिले हैं. बात का यकीन न हो तो खुद ही ट्वीट देख लीजिए.
अब सरकार को काला धन ही इतना मिल गया था, तो ईरान का कर्ज चुका दिए होते. पेट्रोल के दाम बढ़ाकर आम आदमी से पैसे लेने की ज़रूरत ही क्या थी! :P
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि सरकार ने ईरान को 43,000 करोड़ रुपये का कर्ज तो चुकाया है. लेकिन ये कर्ज भारत सरकार पर नहीं था. ये कर्ज था तेल कंपनियों पर, जिन्होंने तेल के बदले आम आदमी से पैसे वसूल लिए थे. अब उनके खाते में जमा पैसे को भारत सरकार ने ईरान के हवाले कर दिया है. इसलिए इस 43,000 करोड़ रुपये का बोझ हमारे सरकारी खजाने पर नहीं पड़ा है. अब अगर आपको कोई तेल के दाम बढ़ने के पीछे इस लॉजिक को दे, तो उसे सिरे से खारिज़ करिए और उस तक सही बात पहुंचाइए.


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