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कहानी इंडियन आर्मी के गोरखा रेजिमेंट की, जिनकी अग्निपथ भर्ती रैली नेपाल ने रद्द कर दी

'जय महाकाली, आयो गोरखाली' के नारे के साथ दुश्मनों पर टूट पड़ने वाले गोरखाओं को भारतीय सेना का सबसे खतरनाक रेजिमेंट माना जाता है.

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Gorkha Recruitment
गोरखा रेजिमेंट को भारतीय सेना का सबसे खतरनाक रेजिमेंट माना जाता है. (सांकेतिक तस्वीर- PTI)
28 अगस्त 2022 (Updated: 28 अगस्त 2022, 13:09 IST)
Updated: 28 अगस्त 2022 13:09 IST
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फील्ड मार्शल सैम मॉनेकशॉ ने एक बार कहा था-  

“हर इंसान का कोई न कोई डर तो होता है. कुछ लोग होते हैं, जिनको तमाम डर होते हैं. लेकिन फिर भी अगर कोई कहे कि उसे कोई डर नहीं, तो वो या तो झूठा है, या गोरखा.”

फील्ड मार्शल सैम मॉनेकशॉ ने ये बात गोरखा रेजिमेंट के सैनिकों के लिए कही थी. गोरखा. या जिसे ठस नेपाली में कहते हैं गोरखाली. 

मौत का दूसरा नाम गोरखा रेजिमेंट. 'जय महाकाली, आयो गोरखाली' के नारे के साथ दुश्मनों पर टूट पड़ने वाली भारतीय सेना की सबसे खूंखार रेजिमेंट.  जिनके शौर्य और बहादुरी के किस्से पूरी दुनिया में सुनाए जाते हैं. बीते कुछ दिनों से गोरखा रेजिमेंट चर्चा में है. वजह है अग्निपथ स्कीम के अंतर्गत होने वाली भर्ती. गोरखा रेजिमेंट की भर्ती में दो तिहाई नेपाली सैनिकों को लिया जाता है और एक तिहाई भारतीय सैनिकों को. हर साल गोरखा रेजिमेंट डिपो, गोरखपुर और गोरखा रेजिमेंट डिपो, दार्जिलिंग की ओर से नेपाल में इसके लिए भर्ती रैली आयोजित की जाती थी.

समस्या तब शुरू हुई जब नई स्कीम यानी अग्निपथ के अंतर्गत भर्ती का विज्ञापन दिया गया. जिसके तहत 17 से 21 साल के युवाओं को अग्निवीर के रूप में चयन किया जायेगा. चार साल बाद प्रदर्शन के आधार पर इन अग्निवीरों की नौकरी परमानेंट की जाएगी. अग्निपथ स्कीम लॉन्च होते ही देशभर में इसके ख़िलाफ़ कई राज्यों में हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुये थे. लेकिन इसी दौरान तीनों सेनाओं अग्निपथ स्कीम के अंतर्गत भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी थी. 

नेपाल ने क्यों बंद की भर्ती?

नेपाल में 25 अगस्त से अग्निवीरों की भर्ती के लिए रैली होनी थी. जो अगले एक महीने तक अलग-अलग शहरों में चलनी थी. लेकिन नेपाल सरकार ने अग्निपथ स्कीम के अंतर्गत भर्ती रैली कराने से मना कर दिया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने नेपाल में भारत के एम्बेसडर नवीन श्रीवास्तव को बताया कि अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाली गोरखा भर्ती 1947 समझौते के अनुरूप नहीं है. खड़का के मुताबिक इस पर सरकार सारी पर्टियों से और बाकी लोगों से बात करके फैसला लेगी.

भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक खड़का ने नवीन श्रीवास्तव को बताया कि 1947 का समझौता अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाली भर्ती को मान्यता नहीं देता. इसलिये नेपाल सरकार को इस नई स्कीम के प्रभाव का आकलन करना होगा.  6 हफ्ते पहले भारत सरकार ने नेपाल सरकार से अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाली भर्ती के लिये अनुमति और सहयोग मांगा था. नेपाल सरकार ने चार साल की नौकरी के बाद गोरखाओं को रिटायर करने की बात पर चिंता जताई थी और कहा था कि समाज पर इसका गलत असर पड़ेगा. हांलाकि नेपाल के विदेश मंत्री खड़का ने कहा कि ये सरकार का आखिरी फैसला नहीं है. हम भारत सरकार से इस पर बात करेंगे और फिर फैसला लेंगे.

कैसे होती है गोरखाओं की भर्ती?

गोरखाओं की भर्ती भारतीय सेना की कुल सात गोरखा रेजिमेंट्स में होती है. ये सात रेजिमेंट मिलकर 43 बटालियन बनाती हैं. गोरखा भर्ती के लिये दो गोरखा रिक्रुटमेंट डिपॉट्स (GRD) बनाये गये हैं. ये दो डिपॉट्स दार्जलिंग (वेस्ट बंगाल) और गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं. इन 43 बटालियनों में जो गोरखा भर्ती किये जाते हैं वो भारत और नेपाल दोनों देशों से होते हैं. 
भारत से जो गोरखा भर्ती किये जाते हैं वो उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दार्जलिंग, असम और मेघालय जैसे राज्यों के होते हैं. इनकी भर्ती इन राज्यों में बने आर्मी रिक्रुटमेंट ऑफिस (ARO) से की जाती है.

वहीं नेपाली गोरखाओं की भर्ती कि बात करें तो इसके लिये भारत, नेपाल और UK मिलकर भर्ती रैली के लिये तारीख तय करते हैं. फिर उस तारीख पर नेपाल में तीनों देश रिटेन और फिजिकल टेस्ट आयोजित कराते हैं. टेस्ट में क्वालिफाई करने वाले कैंडिडेट्स को तीनों देशों की सेना में भर्ती किया जाता है.

नेपाल ने क्यों रोकी भर्ती? 

इस समय करीब 30 हजार नेपाली सैनिक भारतीय सेना में अपनी सेवा दे रहे हैं. नेपाल में करीब 1 लाख 40 हजार से ज्यादा गोरखा पेंशनर्स हैं. जो इंडियन आर्मी से रिटायर हो चुके हैं. बेरोजगारी और आर्थिक मंदी से जूझ रहे नेपाल की लोकल इकॉनमी के लिए इंडियन आर्मी की सैलरी और पेंशन संजीवनी की तरह है. अग्निपथ स्कीम के अंतर्गत 75 प्रतिशत अग्निवीरों को चार साल बाद बिना पेंशन के रवाना कर दिया जाएगा. इस कदम से नेपाल को झटका लगा है. दूसरा बड़ा सवाल है कि चार साल बाद वापस लौटे अग्निवीरों का भविष्य क्या होगा? उनके गैर-कानूनी हथियारबंद संगठनों से जुड़ने को लेकर भी काफी चिंताएं हैं. इसके अलावा नेपाल की कई राजनीतिक पार्टियों की ये भी दलील है कि हमारे जवान किसी दूसरे देश के लिए, किसी तीसरे देश से क्यों लड़ें? बीबीसी हिंदी की खबर के मुताबिक कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनाइटेड मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नेता प्रदीप ज्ञवाली ने कहा,

हमारी पार्टी चाहती है कि भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं की भर्ती नीति की समीक्षा होनी चाहिए. हमारे नागरिक किसी दूसरे देश की सेना में जाकर किसी तीसरे देश से क्यों लड़ेंगे? हम भारत से भी अच्छा संबंध चाहते हैं और चीन से भी. पाकिस्तान से भी हमारा द्विपक्षीय संबंध है. हमारे लोग भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से क्यों लड़ें? दूसरी तरफ़ एक सवाल यह भी है कि भारत से करोड़ों डॉलर की पेंशन और सैलरी आती है. लोगों को रोज़गार मिलता है. इन दोनों पक्षों के आधार पर त्रिपक्षीय संधि की समीक्षा की ज़रूरत है.

18 इंच के चक्कू को खून चखाने वाले गोरखा सैनिक और उनसे जुड़ा एक क़रार


“वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो।”

मोमिन ख़ां मोमिन लिख गए हैं. ग़ालिब के समकालीन.

क़रार प्यार में होता है, सरहदों पर होता है, व्यापार में होता है. आज हम भी बात करेंगे एक क़रार पर ही. क़रार, जो तीन देशों के बीच हुआ.

एक देश, जिसकी फ़ितरत थी गुलाम बनाने की. एक देश, जिसने अपना हक़ छीनकर लिया था. और एक देश, जिसकी जद्दोजहद थी पहचान बनाने की.

गोरखा पैक्ट-1947. साल 47 में यूनाइटेड किंगडम, भारत और नेपाल के बीच हुआ क़रार. क़रार, जिसमें ज़िक्र था 18 इंच के चक्कू को खून चखाने वाले गोरखा सैनिकों का.

कौन हैं गोरखा?

नेपाल की पहाड़ी जाति. पहाड़ी ‘लड़ाका’ जाति. गोरखाओं को दो बातों के लिए ख़ास तौर पर जाना जाता रहा है- साहस और वफादारी. ये फिज़िकली और मेंटली काफी स्टॉन्ग होते हैं. यही वजह थी कि अंग्रेजों ने 1857 के भी पहले से गोरखा सैनिकों की अपनी सेना में प्रमुखता से भर्ती शुरू कर दी थी. गोरखाओं की पहचान उनके एक ख़ास हथियार से भी होती है- ‘खुकरी’. 16 से 18 इंच का एक चक्कू. धारदार. आगे से कुछ कर्व लिया हुआ. खुकरी लेकर गोरखे दुश्मन पर टूट पड़ते. आपने शायद जेपी दत्ता की फिल्मों में देखा हो सैनिकों की बंदूक के आगे खुसा हुआ बड़ा सा चाकू. यही है खुकरी.

1814 की बात है. ईस्ट इंडिया कंपनी की जड़ें भारत में गहरा रही थीं. अब उनकी नज़र नेपाल पर थी. धीरे-धीरे उन्होंने सरहदों पर खिसकना शुरू किया. लेकिन ये गोरखों की धरती थी. नंगी खुकरियां लेकर गोरखे टूट पड़े. सॉफिस्टिकेटेड अंग्रेजों ने ये खुल्ला युद्ध पहले कभी न देखा था. साल भीतर ही उन्हें समझ आ गया कि ये दांव उल्टा पड़ रहा है. लेकिन अंग्रेजी सेना भी संख्या बल और धन बल में आगे थी. गोरखा सेना के लिए भी ज़्यादा दिन टिके रहना मुश्किल था.

लिहाज़ा 1815 में संधि हुई. सुगौली संधि. ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच. इस संधि के मुताबिक नेपाल के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति तय हुई. साथ ही ये तय हुआ कि ब्रिटेन की सैन्य सेवाओं में गोरखाओं की भर्ती की जाएगी.

इसके बाद अंग्रेजी सेना में गोरखाओं की भर्ती होने लगी. 1857 में जब भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ तो गोरखा अंग्रेजों की तरफ से भारतीय क्रांतिकारियों के ख़िलाफ लड़े थे. क्योंकि उस समय गोरखे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन थे. इसके बाद गोरखे अंग्रेजों की फौज में रहे. उनकी तरफ से दो विश्वयुद्ध भी लड़े. और क्या भौकाल से लड़े कि अंग्रेजों ने इन्हें नया नाम दे डाला- मार्शल रेस (Martial Race).

गोरखा सोल्जर पैक्ट-1947

फिर आता है 1947. भारत को अंग्रेजी शासन से आज़ादी मिलती है. अंग्रेज अपना टीन-तंबू लेकर भारत से निकलते हैं. लेकिन अंग्रेजों के पास ये टीन-तंबू के अलावा एक चीज और थी- 10 गोरखा रेजीमेंट. जिनमें उन्होंने गोरखाओं की भर्ती की थी. ये रेजीमेंट अंग्रेजी सेना के साथ जाएंगी? या आज़ाद भारत की सेना में रहेंगी?

इसके लिए हुआ एक क़रार. गोरखा सोल्जर पैक्ट – 1947.

गोरखा किस तरफ रहेंगे, ये फ़ैसला उन पर ही छोड़ा गया. नतीजा- 10 में से छह रेजीमेंट ने भारतीय सेना के साथ रहना पसंद किया. चार रेजीमेंट गईं अंग्रेजों के साथ. पैक्ट में तय हुआ कि –

“भारतीय और ब्रिटिश सेनाओं में गोरखाओं को समान अवसर, समान लाभ, समान स्थायित्व दिया जाएगा. कोई भेद नहीं. गोरखाओं के हितों का ध्यान रखा जाएगा.”

और भी बातें तय हुईं –

# भारतीय और ब्रिटिश सेनाओं में गोरखा सैनिकों की नियुक्ति नेपाली सिटिज़न के तौर पर ही होगी.

# उनकी सभी धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का ख़्याल रखा जाएगा.

# समान वेतन, समान भत्ते. पेंशन के भी हक़दार.

# हर तीन साल में लंबी छुट्टी. अपने देश जाने के लिए.

भारत में सैन्य प्रशिक्षण

नेपाल के नागरिक भारतीय आर्मी जॉइन कर सकते हैं. एक जवान और एक अधिकारी के तौर पर. समझौते के तहत गोरखा सैनिकों की नियुक्ति नेपाली सिटिज़न के तौर पर होती है. नेपाल का नागरिक राष्ट्रीय रक्षा अकादमी या संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा दे सकता है और एक अधिकारी के रूप में भारतीय सेना में शामिल हो सकता है. नेपाली सेना अपने अधिकारियों को ट्रेनिंग के लिए भारत के सैन्य अकादमियों और युद्ध कॉलेजों में प्रशिक्षण के लिए भेजती है. आखिर में एक ऐतिहासिक तथ्य और. आजादी के बाद पाकिस्तान ने गोरखाओं को अपनी सेना में शामिल होने का ऑफर दिया. 1962 युद्ध के बाद चीन ने भी ऑफर दिया लेकिन नेपाल ने तब स्पष्ट मना कर दिया था. 

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