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GST का 5% स्लैब बदला तो आपकी जेब पर क्या असर होगा ?

गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) यानी आप जो सामान खरीदते हैं या सेवाएं इस्तेमाल करते हैं, उन पर लगने वाला टैक्स. अलग-अलग सामान और सेवाओं पर इस टैक्स के अलग-अलग रेट हैं यानी 5%, 12%, 18% और 28%. इन चार स्लैबों में बदलाव की मांग तब से हो रही है, जब से जीएसटी लागू हुआ है.

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जरूरी खाद्य चीजों की सांकेतिक तस्वीर
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18 अप्रैल 2022 (Updated: 4 मई 2022, 04:34 PM IST) कॉमेंट्स
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गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) यानी आप जो सामान खरीदते हैं या सेवाएं इस्तेमाल करते हैं, उन पर लगने वाला टैक्स. अलग-अलग सामान और सेवाओं पर इस टैक्स के अलग-अलग रेट हैं यानी 5%, 12%, 18% और 28%. इन चार स्लैबों में बदलाव की मांग तब से हो रही है, जब से जीएसटी लागू हुआ है. जीएसटी काउंसिल की मई में बैठक होनी है और अभी से अटकलों का बाजार गर्म है. इन अटकलों से निकली नई सुर्खी यह है कि काउंसिल 5% वाले रेट स्लैब को खत्म करके इसे 3% और 8% में बांट सकती है. हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है और खबरें सूत्रों के हवाले से उड़ी हैं. लेकिन हम आपको यहां बताएंगे कि 5% का रेट क्यों इतनी अहमियत रखता है और काउंसिल ने ऐसा कोई फैसला किया तो इसका आपकी जेब और घरेलू बजट पर क्या असर पड़ेगा.

सरकार का फायदा है ?

चूंकि 5% रेट में ज्यादातर पैकेज्ड और ब्रांडेड खाद्य वस्तुएं और रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली कुछ जरूरी चीजें आती हैं, ऐसे में जाहिर है उनमें से जो चीजें 8 फीसदी स्लैब में ले जाई जाएंगी, वो महंगी हो जाएंगी. इसी तरह जो चीजें 3% स्लैब में लाई जाएंगी, उन पर टैक्स का बोझ घटेगा और वो सस्ती होंगी. लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि जीएसटी में 3% का एक विशेष स्लैब पहले से है, जिसके तहत सोना, चांदी और कुछ हाई वैल्यू, लेकिन आम उपभोग की वस्तुएं हैं. जानकारों का कहना है कि चूंकि यह कवायद राज्यों का जीएसटी राजस्व बढ़ाने के मकसद से की जा रही है, ऐसे में इस बात के आसार कम ही हैं कि 5% से 3% वाले स्लैब में ज्यादा चीजें ट्रांसफर होंगी. अलबत्ता, इस बात की चर्चा है कि बहुत सी चीजें जो जीरो जीएसटी यानी करमुक्त हैं, उन्हें 3% के स्लैब में लाकर टैक्स चार्ज किया जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक 5% स्लैब में शामिल सभी चीजों पर 1% ज्यादा जीएसटी लगे तो सरकारी खजाने में करीब 50 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व आ सकता है. यानी अगर मान लें कि 5% का पूरा का पूरा स्लैब 8% में शिफ्ट हो जाएगा तो यह करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त रेवेन्यू जेनरेट करेगा. अगर आधी चीजें ऊपरी स्लैब में गईं तो भी 75 हजार करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आ जाएंगे. ये तो रही सरकार के फायदे की बात, लेकिन जाहिर यह रकम आपकी जेब से ही जाएगी, ऐसे में आपको कई बुनियादी चीजों के लिए जेब ढीली करनी पड़ेगी.

5% स्लैब में क्या है ?

जीएसटी के 5% स्लैब में सभी तरह के ब्रांडेड और पैकेज्ड अनाज, जिसमें चावल, आटा, दाल भी शामिल हैं. यही चीजें खुले में यानी बिना पैकेज्ड या अनब्रांडेड बिकने पर जीएसटी से मुक्त हैं. पांच फीसदी स्लैब में कई अन्य चीजें हैं, जैसे: मसाले, चाय, कॉफी, चीनी, मिठाई, नमकीन, कोयला, बुजर्गों की छड़ी, सुनने की मशीन, 1000 रुपये से कम दाम के फुटवियर और गारमेंट आदि. पांच फीसदी स्लैब में आने वाली सर्विसेज हैं : रेस्टोरेंट में खाना, टेलरिंग, न्यूज पेपर प्रिंटिंग, इकॉनमी क्लास का फ्लाइट टिकट, टूर ऑपरेटर्स की सेवाएं आदि.

सब्जी
ताजी फल-सब्जियों पर जीएसटी नहीं लगता (फोटो साभार : आजतक)

 

टैक्स-फ्री चीजों पर नजर ?

जिन चीजों पर जीएसटी नहीं लगता, उनमें शामिल हैं: फल-सब्जी, दूध, खुले में बिकने वाले अनाज, आटा, नमक, गुड़, बेसन, मीट, अंडे, बिंदी, सिंदूर, चूड़ियां, हैंडलूम, जूट, किताबें, अखबार, राखी, लकड़ी या पत्थर की छोटी मूर्तियां. इसी तरह कुछ सेवाएं भी जीएसटी से मुक्त हैं, जैसे : 1000 रुपये प्रतिदिन से सस्ते होटल में ठहरना, सैलरी, सेविंग अकाउंट पर बैंक चार्जेज आदि. यह फेहरिस्त लंबी है और राज्य सरकारें चाहती है कि इनमें शामिल ऐसी चीजें जिनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है, उन्हें 3% के दायरे में लाया जाए. हालांकि ऐसा कोई प्रस्ताव किसी भी राज्य की तरफ से अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है और माना जा रहा है कि टैक्स-फ्री लिस्ट में छेड़छाड़ पर सरकारों को विरोध का सामना करना पड़ सकता है.

राज्यों की असली टेंशन ?

1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होते समय राज्यों को यह कानूनी गारंटी दी गई थी कि उनका जीएसटी राजस्व हर साल 14% बढ़ेगा और इससे कम राजस्व की भरपाई केंद्र सरकार करेगी. यानी अगर किसी राज्य को किसी साल जीएसटी के मद में जीरो पर्सेंट ग्रोथ हुई तो 14% रकम की भरपाई केंद्र करेगा. अगर किसी राज्य को पिछले साल के मुकाबले 10% कम जीएसटी मिला तो 10 पर्सेंट घाटे की भरपाई के साथ ही 14% अनुमानित ग्रोथ की रकम यानी कुल 24% राजस्व की भरपाई केंद्र सरकार करेगी. यह गारंटी 5 साल के लिए दी गई थी, जिसकी मियाद जून 2022 में खत्म हो रही है. चूंकि अब भी कई राज्यों का जीएसटी कलेक्शन घटता आ रहा है, ऐसे में उन्हें चिंता सता रही है कि बिना केंद्रीय मदद के उनका बजट बिगड़ सकता है. ऐसे में राज्य इस गारंटी की मियाद आगे बढ़ाने की मांग करते रहे हैं. दूसरी ओर केंद्र सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि वह जीएसटी क्षतिपूर्ति की गारंटी और नहीं दे सकती. असल में भरपाई की यह रकम केंद्र अपनी जेब से नहीं देता. इसके लिए सिन गुड्स कही जानी वाली कुछ लग्जरी चीजों पर सेस लगाकर इसकी वसूली होती है, जिसे कंपेनसेशन सेस कहते हैं. गौरतलब यह है कि पिछले कुछ वर्षों में इस सेस की वसूली भी गिरती रही है. ऐसे में केंद्र के सामने मुश्किल आ खड़ी हुई कि वह राज्यों के घाटे की भरपाई कहां से करे? चूंकि यह गारंटी जीएसटी कानून में मिली है, ऐसे में केंद्र सरकार ने अब तक देर-सबेर यह भरपाई की है. लेकिन अब वह राज्यों से कह रही है कि वे जीएसटी राजस्व के मामले में आत्मनिर्भर बनें. यही कारण है कि राज्य जीएसटी कलेक्शन बढ़ाने के लिए नए तरीके ढूंढ रहे हैं.

वीडियो- GST का नया स्लैब क्यों आने वाला है?

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