जब टीम जीतती है तो मैं एक जर्मन हूं, लेकिन टीम के हारते ही मैं एक शरणार्थी हो जाता हूं.
मेसुत ओज़िल, तुर्किश मूल के जर्मन फुटबॉलर.
जब मैं स्कोर करता हूं तो फ्रेंच हूं, नहीं करता तो अरब.
करीम बेन्ज़ेमा, अल्ज़ीरियन मूल के फ्रेंच फुटबॉलर.
जब मैं अच्छा खेलता हूं वे मुझे बेल्जियन स्ट्राइकर कहते हैं. और जब मैं बुरा खेलता हूँ तो कॉन्गो मूल का बेल्जियन हो जाता हूं.
रोमेलु लुकाकू, कॉन्गो मूल के बेल्जियन फुटबॉलर.
अगर आप फुटबॉल फॉलो करते होंगे तो आप इन नामों को जानते ही होंगे. और अगर ना भी करते हों तो भी हो सकता है कि आपने कभी ना कभी इन नामों को सुना हो. अगर नहीं सुना तो गूगल कर लीजिए. इन तीनों फुटबॉलर्स ने अपने हुनर से पूरी दुनिया में अपना डंका बजाया है. कई अलग-अलग टीमों के लिए खेलते हुए यह बहुत कुछ जीत चुके हैं.
लेकिन एक गलती करते ही लोग सबकुछ भुलाकर इनके खिलाफ जहर उगलने लगते हैं. और इससे पहले की आप पूछें कि मैं इनके अलग-अलग सालों के बयान इकट्ठा करके आज क्यों ज्ञान दे रहा हूं? मैं खुद ही बता देता हूं. मैं आज ऐसा इसलिए कर रहा क्योंकि आज हमारे अपने देश ने भी यही रास्ता पकड़ लिया है.
# Shami Abuse
संडे, 24 अक्टूबर को पाकिस्तान ने T20 वर्ल्ड कप 2021 में भारत को हरा दिया. यह किसी भी फॉरमेट के वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के हाथों भारत की पहली हार थी. वैसे तो इस हार में पूरी टीम ने अपना योगदान दिया, लेकिन इसकी पटकथा शायद पहले ही लिखी जा चुकी थी. आधे फिट हार्दिक पंड्या को टीम का अभिन्न अंग बनाने की जिद इस पटकथा का सारांश थी.
और बाकी का काम, झोला भरकर चुने गए स्पिनर्स और पेसर्स की कमी जैसे मुद्दों ने पूरा कर दिया. पहले बैटिंग करते हुए टीम 151 रन ही बना पाई. क्योंकि हमारे ओपनर्स को आज भी अंदर आती गेंदों के आगे समस्या होती है. और मिडल ऑर्डर महीनों से चिल करते हुए रन बनाना ही भूल चुका है. ऐसे में होना तो यही था, लेकिन इंडियन फ़ैन्स इसके लिए तैयार नहीं थे. क्योंकि क्रिकेट के मैदान पर हम गणनाओं से ज्यादा दिल पर भरोसा करते हैं.
और राहत फतेह अली खान ने दशक भर पहले ही बोल दिया था,
‘दिल तो बच्चा है जी.’
लेकिन जो बात उन्होंने नहीं बोली थी, वो ये है कि कुछ बच्चे बड़े चंठ होते हैं. और इन चंठ बच्चों को आप कितना भी तमीज सिखाओ, ये सीख ही नहीं पाते. इनकी खुजली खत्म ही नहीं होती. फिर आप चाहे इनके हाथ-पैर बांधकर धूप में लुढ़का दो. या छड़ी से पीटते-पीटते छड़ी तोड़ डालो. ये नहीं सुधरेंगे.
8 years, 355 international wickets and so many match-winning performances 🙌
We are immensely proud of what @MdShami11 has done for 🇮🇳 every time we needed it! 🙌
We stand with #Shami bhai. More power to you 💪 pic.twitter.com/RLYmK1ZYLy
— Punjab Kings (@PunjabKingsIPL) October 25, 2021
और ऐसे ही बच्चों ने इस पूरी हार का ठीकरा मोहम्मद शमी पर फोड़ दिया. क्यों फोड़ा, ये बताने की जरूरत नहीं है. पब्लिक सब जानती है. इन महामूर्खों को क्रिकेट छोड़कर इस मैच की बाकी सभी चीजों में इंट्रेस्ट था. क्योंकि ऐसे लोग पाकिस्तान का नाम आते ही अपने दुख-दर्द भूलकर एक अलग ही चाशनी में डूब जाते हैं.
और चाशनी भी ऐसी कि इससे मिठाई बनाएं तो डायरिया फैल जाए. क्योंकि इस चाशनी में सड़ांध है. नफरत है, और है बहुत सारी घृणा. इससे मिठाई तो बन ही नहीं सकती. और अगर बनाएंगे तो प्रेम की जगह डायरिया फैलना तय है. इन मूर्खों ने मैच के तुरंत बाद से ही सोशल मीडिया पर अपनी घृणा उलीचनी शुरू कर दी.
# Shami Trolling
शमी को निशाना बनाने के चक्कर में इन्होंने सारी हदें पार कर दीं. और ऐसे-ऐसे कमेंट्स किए जिन्हें कोई भी जागरूक समाज बर्दाश्त नहीं करेगा. ये लोग इस फैक्ट को हजम कर गए, कि ये वही शमी हैं जिन्होंने 2015 और 2019 के वनडे वर्ल्ड कप में कमाल का प्रदर्शन किया था. और जिनकी गेंदों ने 2015 के वर्ल्ड कप में पाकिस्तानी बल्लेबाजों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
और ऐसा अनजाने में नहीं हुआ. ये जानबूझकर किया गया. क्योंकि बाहर से हम चाहे जितने गौतम बुद्ध हों, हमारा अंतर्मन तो आज भी अंगुलिमाल ही है. हम हर आने-जाने वाले की उंगलियां काट लेना चाहते हैं. क्योंकि इनका कर्म ही वही है. और ये तब तक ये करेंगे जब तक कोई बुद्ध इन्हें नहीं बोल देता,
‘मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा?’
तीन प्वॉइंट में समझें टीम इंडिया क्यों पाक से जीतना डिजर्व नहीं करती थी!