देश एक बार आजाद हुआ. 15 अगस्त 1947 को. मगर इसी देश का एक शहर इस दिन दूसरी बार आजाद हुआ था. क्योंकि इस शहर को पांच साल पहले एक बार और आजादी मिल चुकी थी. इस शहर को देश के पहले स्वतंत्र शहर के रूप में जाना जाता है. बात कर रहे हैं बलिया जिले की. आजादी के आंदोलन में अपने उग्र तेवर और संघर्ष की वजह से ही इस जिले के आगे एक शब्द जोड़ दिया गया. बागी. माने ये हो गया बागी बलिया. बलिया वाले बड़े चौड़े होकर खुद को बागी बलिया का बताते हैं. मगर इस वक्त ये चौड़ाई कुछ कम हो गई होगी. कारण हैं एक विधायक. बलिया में हैं तो 6 विधानसभाएं. माने 6 विधायक. मगर चर्चा में रहते हैं सिर्फ बैरिया विधानसभा के विधायक. नाम है सुरेंद्र सिंह. अबकी बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर बयान दिया है. हम क्या लिखें. शुद्ध हिंदी में दिया गया बयान है आप खुद ही सुन लें –
#WATCH BJP MLA Surendra Narayan Singh: Mayawati ji khud roz facial karwati hain, vo kya humare neta ko kya shaukeen kahengi. Baal paka hua hai aur rangeen karwake ke aaj bhi apne aap ko Mayawati ji jawan saabit karti hain, 60 varsh umar ho gayi lekin sab baal kaale hain pic.twitter.com/SGRK4gZpEI
— ANI UP (@ANINewsUP) March 19, 2019
इससे पहले अप्रैल, 2018 में दिए गए इनके बैक टू बैक दो बयान सुनिए/पढ़िए –
1. विपक्षी राष्ट्रविरोधी हैं. इनके आका इस्लाम में बैठे हैं तो किसी के इटली में बसते हैं. 2019 का लोकसभा चुनाव ‘इस्लाम बनाम भगवान’ होने जा रहा है. ‘भारत बनाम पाकिस्तान’ होने जा रहा है. भारत के लोगों को निर्णय लेना है कि इस्लाम जीतेगा या फिर भगवान जीतेगा.
Ye vipakshi rashtravirodhi hain. Inka aaka, kisi ka Islam mein baithta hai, kisi ka Italy mein basta hai…2019 ka chunav, Islam banam Bhagwaan hone jaa raha hai. Isliye Bharat ke logon, nirnay kar lena, ki Islam jeetega ya bhagwaan jitega: BJP Bairia MLA Surendra Singh in Ballia pic.twitter.com/Dh63cpMQD6
— ANI UP (@ANINewsUP) April 12, 2018
2. मनोवैज्ञानिक नजरिये से देखें तो तीन बच्चों की मां के साथ कोई भला दुष्कर्म कैसे कर सकता है? ये विधायक कुलदीप सेंगर के ख़िलाफ साज़िश है. विधायक की पत्नी ने भी कहा है कि लड़की झूठ बोल रही है. कोई बलात्कार नहीं हुआ है. दोनों का नार्को टेस्ट करा लिया जाए, सच सामने आ जाएगा.
UP BJP MLA Surendra Singh , on the #UnnaoHorror – You tell me ,a mother of three children ,will someone rape her ? We are married – a mother of 3-4 children ,someone rapes her , you get someone hit by a lathi and you rape his minor daughter , it’s psychologically not possible pic.twitter.com/SUbgwU325P — Alok Pandey (@alok_pandey) April 11, 2018
तो इन बयानों को देखकर एक चीज तो समझ आ गई कि विधायक एक नंबर के बयान बहादुर हैं. कुछ भी बोला करते हैं. भूल जाते हैं कि वो विधायक हैं. ऐसे बयान देना नहीं, रोकना उनका काम है. पर सुरेंद्र सिंह इन सब बातों को नहीं मानते. उनके मन में जो आता है वो बोल देते हैं. और ये आदत आज की नहीं है. बहुत पुरानी है. सुरेंद्र सिंह का इतिहास भी मजेदार है, वो भी आपको बताते हैं –
मास्टरी के साथ करते रहे संघ का काम
बैरिया विधानसभा में पड़ता है एक गांव. नाम है चांदपुर. यहीं के रहने वाले हैं सुरेंद्र सिंह. एक अक्टूबर 1962 को जन्मे. 1983 में ग्रैजुएट हो गए. 84 में बीएड किए. 86-87 में एमए किया. बस इसी के बाद उनको नौकरी मिल गई. मास्टर साहब बन गए. सहायक अध्यापक. पोस्टिंग मिली पास के ही गांव दुबे छपरा में. पीएन इंटर कॉलेज में. मास्टर बनने के बाद वो एमएड भी कर डाले. पर इस मास्टरी, पढ़ाई-लिखाई के पहले वो एक और क्लास में जाने लगे थे. संघ की क्लास में. राष्ट्रवाद की शिक्षा लेने. बीएड करते हुए ही प्रचारक का काम भी करते रहे. टीचर बनने के बाद संघ में तहसील कार्यवाह रहे. फिर जिला कार्यवाह का पद मिला. माने टीचरी भी चलती रही और प्रचारकी भी.

फिर 2003 में सुरेंद्र सिंह के अलगाव का वक्त आया. तत्कालीन विधायक भरत सिंह (अब बलिया के सांसद) से कुछ अनबन हुई. अपना एक संगठन बना डाला. नाम द्वाबा विकास मंच. 2003 के विधानसभा चुनाव में अपना निर्दल प्रत्याशी खड़ा कर दिया. 10 हजार वोट मिले. भरत सिंह चुनाव हार गए. 2011-12 में कांग्रेस में रहे. मगर फिर कांग्रेस छोड़ दिए और बीजेपी से करीबी बढ़ानी शुरू कर दी. 2014 में ये करीबी और बढ़ी जब भरत सिंह लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे. उन्हें चुनाव लड़वाया. सांसद बनवाया. इसका रिटर्न गिफ्ट मिला 2017 के विधानसभा चुनाव में. स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि भरत सिंह की पैरवी पर ही सुरेंद्र की टिकट पक्की हुई. सुरेंद्र विधायक बन गए. मास्टरी से पांच साल की छुट्टी ले ली. पर अब यही सुरेंद्र सांसद भरत सिंह के लिए मुसीबत बन गए हैं. उनका भारत वर्सेज पाकिस्तान का बयान भी 12 अप्रैल को सांसद भरत सिंह के कार्यक्रम में ही आया. जब वो प्रधानमंत्री के अनशन के समर्थन में अनशन कर रहे थे.
दो बार खोपड़ी फुड़वा चुके हैं विधायक जी
लोकल पत्रकार बताते हैं कि सुरेंद्र विधायक तो 2017 में बने. मगर उनके तेवर हमेशा बागियों वाले ही रहे हैं. उनके पास कभी भी कोई शिकायत लेकर पहुंच जाए, तो वो बहस से लेकर मार करने को तैयार हो जाते थे. 2008 में उनके गांव का कोई आदमी उनके पास एक शिकायत लेकर पहुंचा. वो तुरंत बैरिया थाने पहुंच गए. थानेदार थे आरपी शर्मा. उनसे भिड़ गए. फिर पुलिस ने कर दिया लाठीचार्ज. कसके मारे गए. खोपड़ी फूट गई. जेल भी गए.
ऐसे ही एक बार दूबे छपरा से मास्टर साहब घर की तरफ जा रहे थे. रास्ते में कुछ शराबी बवाल कर रहे थे. वहां भी वो नेता बन गए. एक पार्टी की तरफ से बोल पड़े. वहां भी कसके पीट दिए गए. एक बार फिर खोपड़ी फूट गई.

किसी से भी भिड़ जाते हैं सुरेंद्र
एक ताजा मामला हुआ सुरेंद्र के विधायक बनने के बाद. 5-6 महीने पुरानी बात है. इनके पास खबर आई कि दुगधी थाने में कुछ बालू पकड़ी गई है. वहां गए और दरोगा से उलझ गए. वहां भी मारामारी की नौबत आ गई. साथियों ने मौका देखकर इनको वहां से हटा दिया तो मामला शांत हुआ. दो महीने पहले का एक और किस्सा है. एक शादी से विधायक लौट रहे थे. बैरिया की ही एक चौकी पर जाम लगा देखा. ट्रकों की लंबी लाइन. पता चला कि पुलिस वाले वसूली कर रहे हैं. तुरंत वो उतरे और आगे जाकर सिपाहियों को दौड़ा लिया. सिपाही इनको देखकर खेतों की तरफ दौड़ गए. ये भी कुछ देर तक दौड़ाए. फिर लौटे.
विधायक और उनके समर्थकों पर छह महीने पहले बैरिया रेंज में वन दरोगा को पीटने का आरोप लगा. विधायक को शिकायत मिली थी कि वन दरोगा अवैध वसूली करते हैं. पेड़ कटवाते हैं. तो ये विरोध करने पहुंचे. चिरैया मोड़ पर. बवाल बढ़ गया तो इन्होंने और इनके समर्थकों ने वन दरोगा को पीट दिया. इसमें वन दरोगा का पैर टूट गया. वनकर्मी विरोध में आ गए. धरना-प्रदर्शन करने लगे. फिर डीएम ने मामले को निपटवाने के लिए मध्यस्थता की. विधायक सुरेंद्र सिंह ने माफी मांगी और विवाद खत्म हुआ.
विधायक सुरेंद्र सिंह कुछ दिन पहले लखनऊ में भी बवाल काट चुके हैं. जगह थी पीडब्ल्यूडी मुख्यालय. वहां ये पीडब्ल्यूडी के सचिव से भिड़ गए थे. वजह थी उनके इलाके की एक सड़क के लिए पैसा नहीं जारी हो रहा था. तो ये पैसा निकलवाने के लिए सुरेंद्र वहां पहुंच गए और दो-तीन घंटे तक बवाल किया.
सुरेंद्र सिंह फिलहाल अपने बयानों के लिए चर्चा में हैं.
अवैध खनन के खिलाफ लड़ते थे, अब इन पर लग रहे आरोप
बैरिया विधानसभा यूपी और बिहार बॉर्डर पर पड़ती है. गंगा और घाघरा नदी के किनारे पड़ने वाला कटान का क्षेत्र भी यहीं है. सो यहां बाढ़ की समस्या रहती है. तो इस मुद्दे को लेकर भी सुरेंद्र सिंह शुरू से ही एक्टिव रहे हैं. वहां की भी कोई शिकायत आने पर ये विरोध करने पहुंच जाते थे. अधिकारियों से भिड़ जाते थे. वहां भी कई बार मारपीट हो चुकी है. मगर स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि इनके विधायक बनने के बाद इस क्षेत्र में अवैध खनन और बढ़ गया है. बालू खनन की शिकायतें रोज आती हैं. बैरिया में कुछ लोगों के लिए बालू सोने की तरह हो गई है. ये कुछ लोग विधायक जी के आदमी बताए जाते हैं.
इसी तरह इलाके में अवैध शराब का भी धंधा जोरों पर है. पिछले कुछ महीनों में ही 50 से ज्यादा ट्रक अवैध हरियाणा मेड शराब के साथ पकड़े जा चुके हैं. इसकी वजह भी बैरिया विधानसभा का बिहार से सटा होना है. अब बिहार में तो शराब बैन है तो ये अवैध सप्लाई भी यहीं से हो रही है.

विधायक का इतिहास तो आपने जान लिया. शुरू से ही बवाली किस्म के रहे हैं. हालांकि यही जुझारुपन, बागीपन ही इनकी ताकत बना. मगर अब ये बवाल वो अपनी जुबान से करने लगे हैं. आलम ये है कि उनके इस बड़बोलेपन के कारण उनके समर्थक ही उनका विरोध करने लगे हैं. पार्टी के नेता भी इनसे खुश नहीं हैं. मगर सुरेंद्र सिंह मानने को तैयार नहीं हैं. पहले गैंगरेप के आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर वाले मामले में विवादित बयान दिए. फिर भारत और पाकिस्तान के बीच ही चुनाव करवा दिए. खैर पहले बयान पर अब सफाई आ गई है. बोले- गलत बयान दे दिया था. मुझे बताया गया था कि जिसका रेप हुआ वो तीन बच्चों की मां है. जबकि विधायक तीन बच्चों का बाप है.
पर अब इस सफाई से क्या फायदा. जो नुकसान होना था वो तो हो गया है. विधायक का तो पता नहीं, ऐसे बयानों से बीजेपी की लंका लगी पड़ी है. उन्नाव गैंगरेप का विवाद पहले से ही है. मगर यहीं सवाल भी खड़ा होता है. अगर बीजेपी को इन बयानों से वाकेयी कोई फर्क पड़ता है तो वो कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती. फिर ऐसा पहली बार नहीं है जब बीजेपी के किसी नेता ने भड़काऊ बयान दिया हो. भारत-पाकिस्तान किया हो. हिंदू-मुसलमान किया हो. संगीत सोम, सुरेश राणा जैसे तमाम चेहरे हैं जो विवादित बयान देकर ही चर्चा में आए और नेता बन गए. शायद यही कारण है कि इस रास्ते पर सब चलना चाहते हैं. फिर बीजेपी इन पर कार्रवाई न करके इन्हें एक तरह से मौन स्वीकृति दे ही रही है.
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