देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह का लॉकडाउन अभी भी लागू है. कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन खत्म होने के बाद गतिविधियां थोड़ी सामान्य हुई हैं, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से बड़े जमावड़े अभी भी नहीं हो पा रहे हैं. इनमें धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्यक्रम शामिल हैं. जैसे- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखाएं, धार्मिक सत्संग, रैलियां, कथावाचन. इनके बारे में कुछ सवाल-जवाबों से समझेंगे कि ये अभी किस तरह चल रहे हैं. पहली किश्त में बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की.
1. RSS की शाखाएं
ख़ुद को सांस्कृतिक संगठन बताने वाले RSS में शाखाओं का बड़ा रोल है. ये संघ की विचारधारा से अपने स्वयंसेवकों को जोड़े रखने की कवायद है. शाखाओं में किसी सार्वजनिक जगह (पार्क, खुला मैदान) में एक घंटे का कार्यक्रम होता है. इनमें व्यायाम, सूर्य नमस्कार, दंड प्रहार, समता (परेड), प्रार्थना, गीत होते हैं. संघ कहता है कि शाखाओं में भारत और विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं को लेकर बौद्धिक चर्चा भी होती है.
शाखाएं कई समय पर लगती हैं. इन्हें संघ की भाषा में प्रभात शाखा, सायं शाखा, रात्रि शाखा, मंडली (हफ्ते में एक या दो बार लगने वाली शाखा), संघ मंडली (महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा) आदि कहते हैं. 2019 की RSS की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, संघ की कुल 84,877 शाखाएं लगती हैं, जिनमें 59,266 रोज़ आयोजित होती हैं. 17,299 शाखाएं साप्ताहिक होती हैं. विश्व के दूसरे देशों में भी ये कार्यक्रम होते हैं.

अभी शाखाएं कैसे चल रही हैं?
फिलहाल संघ की शाखाएं ऑनलाइन चल रही हैं और ऐसा देशभर में हो रहा है. इसके लिए गूगल मीट, ज़ूम और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दूसरे माध्यमों की मदद ली जाती है. इन्हें ई-शाखा कहा जा रहा है. लोग घरों से जॉइन करते हैं. RSS के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने ‘दी लल्लनटॉप’ को बताया,
स्वयंसेवकों ने शाखा के वॉट्सऐप ग्रुप बना रखे हैं. संघ के बौद्धिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में घरों से लोगों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया. स्वयंसेवकों ने शाखा की तरफ से हेल्पलाइन भी शुरू की. आईटी के तमाम लोग संघ से जुड़े हैं. संघ का मानना है कि जीवन के मूल्य, संवेदनाएं, प्रेम प्रत्यक्ष मिलने और संवाद करने से आते हैं. वो रोबोट से नहीं हो सकता, लेकिन संघ दोनों चीजों पर ज़ोर देता है.

ज़मीन पर कैसे संचालित होती हैं ऑनलाइन शाखाएं?
दिल्ली में शाखाएं आयोजित करवाने वाले RSS के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर ‘दी लल्लनटॉप’ को बताया-
लॉकडाउन के कुछ दिन बाद ही ऑनलाइन शाखाएं लगनी शुरू हो गईं. दिल्ली में लगभग 2000 शाखाएं लगती थीं, उनमें 90 फीसदी ऑनलाइन लग रही हैं. 10 फीसदी जो नहीं लग रहीं, वे आयु में वरिष्ठ लोगों और टेक्नोलॉजी के कारण नहीं लग पा रही हैं.

क्या कुछ दिक्कतें भी आ रही हैं?
इस सवाल के जवाब में पदाधिकारी कहते हैं-
शारीरिक गतिविधियां- जैसे सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, योग, ये सब लोग अपने स्थान पर करते हैं. स्वाभाविक है, सामूहिक खेल नहीं हो पाते. जन शिक्षक जैसे निर्देश देते हैं, वैसा करते हैं. हमारी भूमिका के बारे में अलग-अलग विषय पर चर्चा होती है.
ये ऑनलाइन पूरे भारत में हो रहा है. कहीं कम मात्रा में, कहीं ज़्यादा. जहां नेटवर्क की दिक्कत है, वहां थोड़ी कठिनाई होती है. शाखाओं में किसी में 200 लोग शामिल होते हैं, कहीं 25-30 लोग होते हैं, तो कहीं पांच-छह लोग भी होते हैं.

क्या आगे भी ऑनलाइन शाखाएं जारी रखेंगे?
उन्होंने कहा-
हमारी वजह से कोरोना न फैले, इसके लिए सावधानी ज़रूरी है. जब ज़मीन पर उतरने का समय आएगा, उतर जाएंगे. अभी ऐसी तारीख तय नहीं है. बाहर की दुनिया में भ्रम है या फैलाया जाता रहा है कि संघ बड़ा रूढ़िवादी है. टेक्नोलॉजी, युवा से दूर है. ऐसा कुछ नहीं है. संघ ने टेक्नोलॉजी को बहुत तेजी से अडॉप्ट किया है. स्वयंसेवक भी जुड़े रहना चाहते हैं.
ऑनलाइन शाखाओं से क्या बदलाव आए हैं?
इलाहाबाद में RSS से जुड़े स्वयंसेवक और शोध छात्र आनंद कुमार सिंह बताते हैं-
मोहल्ले में तो अभी शाखाएं नहीं लग रही हैं. कोई स्वयंसेवक जाकर ध्वज-प्रणाम कर आता है. लेकिन घरों की छतों पर शाखाएं लग रही हैं. घरों में ऑनलाइन शाखा का फायदा ये हुआ है कि महिलाएं भी बड़ी संख्या में भाग ले रही हैं. बच्चे भी भाग लेते हैं. गुरु पूर्णिमा जैसे कार्यक्रम भी आयोजित हुए. इसके अलावा सेवा कार्य भी चल रहे हैं.

लगातार बढ़ती शाखाएं
1975 में संघ की 8500 शाखाएं आयोजित होती थीं, जो 1977 में 11,000 हो गईं. 1982 में 20,000 थीं. 2004 तक 51,000 से ज़्यादा शाखाएं भारत में चलती थीं. 2014 तक इनकी संख्या बढ़कर 40,000 हो गई. अगस्त, 2015 तक 51,335 शाखाएं थीं.
शाखा में कार्यवाह पद सबसे बड़ा होता है. इसके बाद रोज़ के हिसाब से चलने के लिए मुख्य शिक्षक होते हैं.
2016 तक दिल्ली में 1,898 शाखाएं लगती थीं. उत्तर प्रदेश में 8,000 से ज़्यादा शाखाएं लगती हैं और केरल में 6,845 शाखाएं चलती हैं.
शाखाओं में जब कोई खास कार्यक्रम होता है, तो स्वयंसेवक अपनी पूरी यूनिफॉर्म (गणवेश) में आते हैं. अक्टूबर, 2016 में RSS ने 91 साल बाद यूनिफॉर्म में बदलाव किया. संघ की हाफ खाकी पैंट को बदलकर फुल कर दिया गया और इसका रंग भूरा हो गया. इसके अलावा बेल्ट भी बदले गए. RSS की ज़्यादातर शाखाएं हिंदी प्रदेशों में लगती हैं.
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