आप एक स्मार्टफोन लेते समय बहुत सारे फीचर देखते होंगे. मसलन सबसे पहले तो कैमरे के मेगापिक्सल पर नजर जाती होगी. शतक से कम पर तो बात ही नहीं होती होगी. प्रोसेसर से लेकर बैटरी के बारे में भी जानकारी लेते होंगे. ठीक बात है. लेना भी चाहिए. मगर एक फीचर के बारे में जानकारी लेना बंद कर दीजिए. ये वो फीचर है जो आजकल स्मार्टफोन कंपनियों का नया झुनझुना है अपना प्रोडक्ट बेचने का. ना-ना, हम सूरज की रोशनी को टक्कर देने वाले डिस्प्ले की बात नहीं कर रहे. वो पुराना हो गया.
12GB रैम वाले फोन पर इतराने से पहले ये तो जान लीजिए इसे लेने का फायदा हुआ भी या नहीं?
हम बात कर रहे हैं 12 जीबी की रैम वाले फीचर की जो आजकल हर दूसरे फोन में नजर आता है. फोन का बेस मॉडल 8 जीबी का और उसके बाद सीधे 12 जीबी. कई पहलवान तो सीधे 12 जीबी से ही स्टार्ट हो रहे. किसी काम का नहीं है ये. बताते हैं कैसे?

हम तो बात कर रहे हैं 12 जीबी की रैम वाले फीचर की जो आजकल हर दूसरे फोन में नजर आता है. फोन का बेस मॉडल 8 जीबी का और उसके बाद सीधे 12 जीबी. कई पहलवान तो सीधे 12 जीबी से ही स्टार्ट हो रहे. किसी काम का नहीं है ये. बताते हैं कैसे?
RAM की ‘राम कहानी’Random Access Memory यानी रैम (RAM) के नाम में ही सब साफ समझ आ जाता है. आसान भाषा में कहें तो फोन का वो हिस्सा जो ऐसी जानकारी को स्टोर करता है जो आप अभी तो इस्तेमाल नहीं कर रहे, लेकिन थोड़ी देर में कर सकते हैं. ऐसी मेमोरी जो स्मार्टफोन के इंटर्नल स्टोरेज से बहुत तेज है लेकिन कम मात्रा में मिलती है. फोन के स्पेसिफिकेशन में साफ ज़िक्र होता है 8 जीबी + 128 जीबी. यहां पर 128 जीबी इनबिल्ट स्टोरेज है और 8 जीबी रैम. इसे थोड़ा और आसान बनाते हैं.
आप फोन पर गेम खेल रहे थे और कॉल आ गया. आप कॉल उठाओगे ही सही और पूरे चांस हैं कि वापस गेम खेलने भी लग जाओगे. अब सोचिए कि जब आप वापस गेम पर पहुंचे तो वो फिर से स्टार्ट हो तो आपको कैसा लगेगा. जाहिर है कि बहुत कोफ्त होगी और इसी कोफ्त से बचाने के लिए है रैम. बैकएंड पर काम करती है और आपने गेम को जहां पर छोड़ा था वहीं से ही आपको फिर मिल जाता है.

आसान को और आसान करें तो जैसे होटल के गेट पर दरबान होता है वैसे ही कुछ रैम का काम होता है. अब दरबान नहीं होगा तो ऐसा तो नहीं है कि कि दरवाजा आप नहीं खोलेंगे. दरवाजा खोलने के लिए दरबान कितनी कद-काठी या वजन का हो, ऐसा भी जरूरी नहीं. दरबान है बस उतना ठीक है.
कुछ साल पहले फोनबफ नाम की एक कंपनी है जो फोन की स्पीड, बैटरी, ड्रॉप टेस्ट जैसे प्वाइंट को कवर करती है. इस कंपनी ने एक 3 जीबी रैम वाले आईफोन और एक 8 जीबी रैम वाले फ्लैगशिप एंड्रॉयड फोन को टेस्ट किया. नतीजे आंखें खोल देने वाले रहे. दोनों फोन पर एक साथ एक ही संख्या मे ऐप्स को ओपन किया गया और उन पर एक जैसे ही टास्क परफ़ॉर्म किए गए. अगर एक फोन से कोई सोशल मीडिया ऐप पर पोस्ट डाली गई तो सेम पोस्ट दूसरे फोन से भी डाली गई. कमाल की बात ये कि ऐसा एक रोबोटिक आर्म की मदद से किया गया जिससे किसी भी किस्म का टाइम डिफरेंस पैदा ना हो. एक साथ कई टास्क परफ़ॉर्म करने के बाद उनको फिर से ओपन करके भी देखा गया. टेस्ट का नतीजा ये निकला कि दोनों फोन के बीच में टाई हो गया. आंकड़ों के हिसाब से ऐसा होना नहीं चाहिए था. मतलब कहां 3 जीबी और कहां 8 जीबी. थोड़े में बहुत ज्यादा ऐसा ही कुछ किया आईफोन ने. मतलब रैम के ज्यादा या कम होने से कोई फर्क नहीं पड़ा.
वैसे भी ये कोई रहस्य नहीं कि एप्पल रैम के गेम में नहीं है. वो तो कभी बताता भी नहीं कि उसके आईफोन में कितनी रैम है. भला हो जैरी भईया (JerryRigEverything) का जो काट-पीटकर सब पता लगा लेते हैं. मगर इसी एप्पल के पिछले साल के एक एलान ने काफी कुछ क्लियर कर दिया. तब कंपनी ने बताया कि उसके AI फीचर जिनको वो Apple Inteligence बुलाता है, वो सिर्फ iPhone 15 Pro और Max के साथ iPhone 16 में या उसके आगे आने वाले मॉडल में ही चलेंगे. मतलब पुराने आईफोन में AI नहीं चलेगा.

कंपनी ने बताया कि Apple Intelligence के लिए 8 जीबी रैम की जरूरत है और पुराने मॉडल 4 और 6 जीबी के साथ ही आते हैं. अब ये बात भी सभी को पता है कि AI को चलाने के लिए कितने बड़े सिस्टम की जरूरत होती है. ग्राफिक कार्ड से लेकर बड़े सर्वर तक. अब उसी के सिस्टम के एक हिस्से को जब आईफोन में चलाना हुआ तो 8 जीबी से काम बन गया. Apple intelligence आईफोन के नए मॉडल में चल रहा है. कंपनी अब नए मॉडल के साथ रैम में कोई बदलाव नहीं करने वाली है.
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कहने का मतलब आप भी इस 12 जीबी और 18 जीबी वाले झुनझुने में मत उलझिए. इसकी जगह अगर दमदार प्रोसेसर और Silicon-Carbon Battery वाले फोन पर पैसा लगाएंगे तो ज्यादा फायदा होगा. एक्स्ट्रा रैम को 'नमस्ते' कह दीजिए.
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