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सरकारी नौकरी के लालच में एथलीट बना वो जैवलिन थ्रोअर, जो आज नीरज चोपड़ा से भी आगे निकल गया!

क़िस्से पाकिस्तानी जैवलिन थ्रोअर अरशद नदीम के.

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अरशद नदीम. फोटो: AP

पिछले महीने US में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप खेली गई थी. इस चैम्पियनशिप में भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने सिल्वर मेडल जीता. उनके इस मेडल ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में गोल्ड की उम्मीद जगाई थी. लेकिन नीरज चोट के चलते इस टूर्नामेंट से होकर बाहर हो गए. और नीरज के ना रहने पर उनके पाकिस्तानी दोस्त अरशद नदीम (Arshad Nadeem) ने कॉमनवेल्थ में झंडे गाड़ दिए. नदीम वर्ल्ड चैंपियनशिप में 86.16 मीटर के थ्रो के साथ नंबर पांच पर रहे थे.

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वर्ल्ड एथलेटिक्स में इस प्रदर्शन के बाद नदीम ने उन सवालों का जवाब कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में गोल्ड जीतकर दिया. नदीम 90.18m के थ्रो के साथ 90 मीटर पार करने वाले पहले साउथ एशियन बन गए.

25 साल के अरशद नदीम का कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड तक का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा. उनके परिवार ने किस तरह से इस खिलाड़ी के लिए संघर्ष किया. किस तरह से उनके कोच ने उनका सपोर्ट किया. ये कहानी प्रेरणादायक है.

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# नेज़ाबाज़ी से जैवलिन तक का सफऱ

इंडियन एक्सप्रेस के नितिन शर्मा को दिए एक इंटरव्यू में अरशद के पिता मुहम्मद अशरफ ने उनके बचपन से जुड़ी बातें साझा कीं. इस इंटरव्यू के मुताबिक, अरशद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मियां चन्नू इलाके से आते हैं. जहां उनके अब्बा मज़दूरी किया करते थे. बचपन में अब्बा पाकिस्तान के मशहूर खेल नेज़ाबाज़ी देखने के लिए अशरफ को भी साथ ले जाते थे. इस खेल में एक साथ कई खिलाड़ी घुड़सवार हाथ में किसी लंबी सी स्टिक से ज़मीन पर रखे एक निशान को उठाते हैं.

नदीम को ये खेल बहुत पंसद आया और अब्बा से ज़िद करके उन्होंने भी ये खेल खेलना शुरू कर दिया. वो हर रोज़ इस स्टिक के साथ ट्रेनिंग करते. हालांकि कुछ ही दिनों बाद नदीम का दिल अब टेप बॉल क्रिकेट की तरफ जाने लगा. और फिर एक रोज़ स्कूल में इस खिलाड़ी को अपनी दिशा मिल ही गई. नेज़ाबाज़ी की ट्रेनिंग स्कूल में काम आई. स्कूल में एथलेटिक्स इवेंट हुआ और वहां कई सीनियर्स ने उनके जैवलिन थ्रो वाले टैलेंट को पहचान लिया गया. इसके बाद नदीम ने स्कूल के समय के कोच रशीद अहमद सकी के साथ जैवलिन फेंकने की तैयारी शुरू कर दी.

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# मुफ़्लिसी में आसान नहीं था खेल

नदीम अपने घर में आठ भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे. अब्बा मज़दूरी किया करते थे, इसलिए घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे. लेकिन इसके बावजूद अरशद के पिता मोहम्मद अशरफ ने बेटे की डाइट में कोई कमी नहीं आने दी. अशरफ शुरुआती दौर में ही ये बात पहचान गए थे कि अरशद में कुछ तो अलग है. उन्होंने हमेशा ये कोशिश की कि नदीम को हमेशा दूध और घी मिले.

अशरफ उस समय हर रोज़ 400-500 रुपये कमाते थे. ऐसे में पूरे परिवार के लिए ये सब मैनेज करना आसान नहीं था. लेकिन उन्होंने ये तय कर लिया था कि नदीम का शरीर तंदरुस्त बनाना है. वो ये नहीं चाहते थे कि उनकी तरह अरशद भी मुश्किल ज़िन्दगी देखे. 

# मेडल नहीं बस एक नौकरी चाहते थे अरशद

नदीम जैवलिन की प्रैक्टिस तो कर रहे थे, लेकिन उनके प्लांस में स्पोर्ट्स में बहुत बड़ा नाम बनाना नहीं था. ना तो वह अपने मुल्क के लिए जैवलिन में कोई बड़ा मेडल लाने की तैयारी कर रहे थे. एक साधारण से परिवार से आए नदीम का एक ही सपना था, बस एक सरकारी नौकर मिल जाए. जिससे उनके परिवार की मुश्किलें दूर हो सकें.

इसी तलाश में उन्होंने स्पोर्ट्स कोटा के अंडर पाकिस्तान वाटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी (WAPDA) के लिए ट्रायल्स भी दिए. लेकिन उनकी किस्मत में एक सरकारी नौकरी से कहीं ज्यादा, मुल्क और खेल के लिए कुछ बड़ा करना लिखा था. इन्हीं ट्रायल्स में पांच बार के पाकिस्तानी नेशनल चैम्पियन और पूर्व एशियन मेडलिस्ट जैवलिन थ्रोअर सैय्यद हुसैन बुखारी ने अरशद को पहचान लिया.

उन्होंने देखा कि एक लड़का 55m आसानी से फेंक रहा. उन्होंने ठान लिया कि इस लड़के को तैयार करना है. ट्रायल्स के बाद बुखारी ने नदीम को बुलाया और पाकिस्तान वाटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी (WAPDA) से उन्हें स्पोर्ट्स कोटा में जॉब देने की सिफारिश कर दी.

बुखारी जानते थे कि अगर इस लड़के को सही ट्रेनिंग दी जाए, इसे हॉस्टल मिल जाए, अच्छी डाइट मिले तो ये पाकिस्तान के लिए मेडल ला सकता है. जैसा बुखारी ने सोचा था हुआ भी वैसा ही. दो महीने बाद ही उन्होंने 60m का मार्क छू लिया और सिर्फ 18 साल की उम्र में चार महीने बाद उन्होंने 70m भी छू लिया. 2015 में 70m का मार्क छूने के तीन साल के अंदर ही नदीम 80m तक भी पहुंच गए. 2018 में जकार्ता में खेले गए एशियन गेम्स के दौरान उन्होंने 80.75m फेंक ये रिकॉर्ड बनाया. इतना ही नहीं ये दूरी लगातार बढ़ती ही रही. इसके बाद पिछले ही साल ईरान में हुए इमाम रेज़ा कप में उन्होंने 86.38m का थ्रो भी फेंका.

# नीरज को मिलेगा मिल्खा जैसा प्यार?

अरशद का ये सफर प्रेरणादायक है. उनके इस बेमिसाल प्रदर्शन के बाद पाकिस्तान में भी जैवलिन को लेकर भी क्रेज़ बढ़ा है. आज भारत में नीरज चोपड़ा और पाकिस्तान में अरशद नदीम ने जैवलिन के खेल में अपने देशों को एक नई ऊर्ज़ा दी है. इन दोनों खिलाड़ियों ने साल 2016 में पहली बार एक दूसरे का सामना किया था. जब गुवाहाटी में हुए साउथ एशियन गेम्स में दोनों खिलाड़ी आमने-सामने थे. उस इवेंट में नीरज ने गोल्ड, वहीं अरशद ने ब्रॉन्ज़ जीता था.

जैवलिन में नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की टक्कर क्रिकेट के इंडिया-पाकिस्तान मुकाबले जैसी ही देखी जाती है. जैवलिन जैसे खेल के लिए ये अच्छा भी है. क्योंकि इससे इस खेल के लिए दोनों मुल्कों में और ज़्यादा प्यार देखने को मिलेगा.

पाकिस्तान के जैवलिन हीरो अरशद नदीम के कोच बुखारी तो ये भी ख्वाहिश रखते हैं कि वो एक दिन नीरज और अरशद, दोनों को लाहौर या इस्लामाबाद के जिन्ना स्टेडियम में मुकाबला करते देखें. उनका कहना है कि नीरज भी उनके बेटे जैसे हैं और उन्हें विश्वास है कि नीरज को भी पाकिस्तान में वैसे ही प्यार मिलेगा. जैसा 1960 में अब्दुल खालिक के खिलाफ़ मिल्खा सिंह को मिला था.

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