एक कविता रोज में आज पढ़ें कबीर को.
सहज मिले अविनासी
पानी बिच मीन पियासी
मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी
आतम ग्यान बिना सब सूना, क्या मथुरा क्या कासी
घर में वसत धरीं नहिं सूझै, बाहर खोजन जासी
मृग की नाभि माँहि कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी
कहत कबीर, सुनौ भाई साधो, सहज मिले अविनासी ***
साधो ये मुर्दों का गांव
साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे पैगम्बर मरिहैं
मरि हैं जिन्दा जोगी राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी चंदा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहैं धरणि आकासा चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं
इन्हूं की आसा नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं
मरि हैं सहज अठ्ठासी तैंतीस कोट देवता मरि हैं
बड़ी काल की बाजी नाम अनाम अनंत रहत है
दूजा तत्व न होइ कहत कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो ना कोई ***
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