-समझउ होली नंगिचाई रही-
सरदी कइ दिन बीति गए, सूटर कम्मर सब तिड़ी भए कोइरा तापइ ते पिंडु छूट, अब सुरजउ दादा सीध भए खरही मां पिलवा कुलबुलाइ, समझउ, होली नंगिचाई रही
हिंंदी: सर्दी को कई दिन बीत गए, स्वेटर कंबल सब गायब हुए अलाव तापने से छूटा पीछा, सूरज दादा सीधे हुए कोने में पिल्ला कुलबुला रहा , समझो होली नजदीक है
दिनु थ्वारा थ्वारा बड़ा भवा, मौसम मां गर्मी बढ़ई लागि ख्यातन मां मटरा नाचि-नाचि, अरसी के गरमां परइ लागि पछियाउ बयरिया सुरसुराइ, समझउ होली नंगिचाई रही
हिंदी: दिन थोड़ा-थोड़ा बड़ा हुआ, मौसम में गर्मी बढ़ने लगी खेतों में मटर नाच-नाच, अलसी से गले मिलने लगे जब पछुआ हवा सुरसुराने लगे, समझो होली नज़दीक है
सरसों पीली, पीले कंदइल, पीले ग्यांदा अउ अमरबेल चहुंरंग बसंती महकि उठा, लरिका बगियन मां करइ खेल जब पियर पपीता पुलपुलाइ, समझउ होली नंगिचाई रही
हिंदी: पीली सरसों, पीले कंदेल, पीले गेंदे और अमरबेल चारों और बसंत महक उठा है, लड़के बागों में खेल रहे हैं जब पीला पपीता पुलपुलाने लगे, समझो होली नज़दीक है
आलू नित बैंगन दादा संग, गोभी के संग अठिलाई रहे सेहत का अपनी धरउ ध्यानु, भिंडी का ई समुझाइ रहे भाजिन मां किरवा गुजगुजाइ, समझउ होली नंगिचाई रही
हिंदी: आलू बैंगन दादा के संग, तो कभी गोभी के संग अठखेलियाँ कर रहे हैं सेहत का अपनी ध्यान रक्खो, ऐसा भिन्डी को समझा भी रहे हैं जब सब्जियों में कीड़े गुजगुजाने लगें, समझो होली नज़दीक है
बप्पा ध्वाटइं, बचुवा छानइं, छानइं भउजी के संग द्यावर ल्वाटा भरि भरि कइ भांग पिए, महतौं हैं ठाढ़ पनारा तर महतीनिउं धरि धरि लुबलुबाइ, समझउ होली नंगिचाई रही
हिंदी: बाप घोटे, बेटा छाने, छानें भौजी के संग देवर लोटे में भर भर भांग पिये, महतिया छत से गिरते परनाले से टार हुए पड़े हैं मह्तिया की पत्नी भी जब भांग में मस्त हों, समझो होली नज़दीक है
पूजि पंचिमी चउराहे पर, रंडा औ कंडा ढेरु किहिन कड़ी केंवारा थुनिहा लक्कड़, लाइ ढ्यार पर तोपि दिहिन जब रोजु बुढ़उनू हुनहुनाइं, समझउ होली नंगिचाई रही
हिंदी: चौराहे पर पंचमी पूज के, रंडा और कंडा का चौराहे पर ढेर लगा दिया कड़ी, किवांड़े और घर में पड़ी लकड़ियाँ उठाकर ढेर पर ही डाल दिए, जब रोज बुढ़ऊनू हुनहुनायें, समझो होली नज़दीक है
नए पात पहिरइ की खातिर, बिरवन मां पतिझारु भवा है यहइ बात जेहि के कारन, सबका राजा मधुमास भवा ठूंठउ मां कल्ला रुगरुगाइं, समझउ होली नंगिचाई रही
हिंदी: नए पत्ते पहनने की खातिर, पेड़ों में पतझड़ हो गया इसी बात के कारण मधुमास सबका राजा बना सूख चुके पेड़ में भी हरियाली आने लगे, समझो होली नज़दीक है
एक कविता रोज: समझउ होली नंगिचाई रही
मौसम जो है ये बौराया हुआ है. पुरवाई हवा जोर पर है. इस मौसम को कैसे बयान किया जाए. आओ तुमको गांव ले चलते हैं.
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फोटो - thelallantop
मौसम जो है ये बौराया हुआ है. पुरवाई हवा जोर पर है. दिन में गर्मी और रात में हल्की ठंड. बीच में बारिश हो गई. इस मौसम को कैसे बयान किया जाए. आओ तुमको गांव ले चलते हैं. जब होली करीब होती है, तब मौसम खुशगवार होता है. इस पर अवधी कविता लिखी है के.के. मिश्र ने. 'समझउ होली नंगिचाए रही.' पढ़ते हुए लगातार चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहेगी. हम रोज आपको प्रतिष्ठित कवियों की कविताएं पढ़वाते हैं. आज एक बहुत कम जाने गए कवि को पढ़िए. दूसरा, आंचलिकता का साहित्य में अपना सौंदर्य और स्थान है और कविता में वह सबसे ज्यादा मुखर है. तो उसे भी दर्ज कीजिए. के.के. मिश्र अवधी में लिखते हैं, अलीगंज लखनऊ में रहते हैं और एजुकेशन स्टडीज पढ़ाते हैं. कविता और गद्य दोनों में हाथ रवां है. 50 से ज्यादा रचनाएं छपी हैं. व्यंग्य ज्यादा लिखते हैं.
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