साल 2015. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले का कलीना गांव. एक 13 साल का छोरा अपने बापू के साथ खेत में कटे हुए गन्ने को ट्रैक्टर-ट्राली में भरवा रहा था. सारा गन्ना भर जाने के बाद छुटकू छोरा अपने बापू को कहने लगा,
जानिए 16 साल के उस छोरे को जो एशियन गेम्स में गोल्ड ले आया है
सौरभ चौधरी ने 10 मीटर पिस्टल इवेंट में भारत को तीसरा गोल्ड मेडल दिलाया है.

"पापा मैं भी आपके साथ चीनी मिल जाऊंगा ये गन्ना डालने. आप अकेले तंग हो जाओगे. दिन-रात काम करते हो, थोड़ा बहुत हमें भी करने दिया करो."
लेकिन बाप नहीं माना और बेटे को समझाते हुए कहने लगा,
"भाई माहरी तो जवानी इस मिट्टी में मिट्टी हो गई. मेरे साथ चीनी मिल जाके के करेगा? तू अपने खेल पै ध्यान दे. मन्ने तेरे पै पूरा भरोसा है कि तू देश के लिए सोना जीतेगा. बाकी खेती-बाड़ी मैं आप ही संभाल लूंगा."
उस दिन छोरा शूटिंग अकेडमी में चला गया और बापू चीनी मिल में.
21 अगस्त 2018. इंडोनेशिया की राज़धानी जकार्ता में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में छोरे ने पुरुषों के 10 मीटर पिस्टल इवेंट में भारत के लिए सोने पर निशाना लगाया. 16 साल के इस छोरे के इस कारनामें के बाद सारा देश खुशी में झूम उठा. इतनी कम उम्र में सोना जीतकर देशवासियों के दिलों में जगह बनाने वाले इस छोरे का नाम है सौरभ चौधरी.

एशियन गेम्स में मेडल जीतने के बाद तिरंगे के साथ फोटो खिंचवाते सौरभ चौधरी(फोटो-ANI).
2 सालों में 8 इंटरनेशनल मेडल
सौरभ ने 3 साल पहले 2015 में शूटिंग का अभ्यास करना शुरू किया था. अपने घर से 12 किलोमीटर दूर बिनौली के वीर शाहमल अकेडमी में कोच अमित श्योराण से शूटिंग के गुर सीखने शुरू किए. अकेडमी के ही सीनियर खिलाड़ी याद करते हुए बताते हैं कि सौरभ बड़ा ही हंसमुख और शांत बच्चा था. ट्रेनिंग शुरू करते ही उसे 10 में से 10 अंक लेने का चस्का था और बहुत जल्द ही उसने 10 में से 10 लेने शुरू कर दिए थे.
2018 का साल सौरभ के लिए खास रहा. इस साल उन्होंने जूनियर वर्ल्ड कप में तीन गोल्ड मेडल जीते और अब उन्होंने ओलंपिक के बाद सबसे मुश्किल माने जाने वाले एशियाड में वो कमाल कर दिखाया है, जिसका सपना बड़े-बड़े शूटर देखते हैं. यूथ ओलंपिक कोटा लेने वाला पहला भारतीय खिलाड़ी भी है. इसी साल जून के महीने में जर्मनी में आईएसएसएफ जूनियर वर्ल्ड कप हुआ था, जहां सौरभ ने 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में 243.7 अंकों के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीता था. सौरभ ने पिछले 2 सालों में 8 इंटरनेशनल मेडल देश की झोली में डाले हैं.
किसान के छोरे का खेती से भी पूरा लगाव
सौरभ के पिता जगमोहन सिंह किसान हैं. गांव में उनकी चार-पांच एकड़ की खेती है. उनकी मां ब्रिजेश देवी भी किसान ही हैं और घर के कामकाज के साथ-साथ गाय-भैंसे भी संभालती हैं. बड़े भाई नितिन ने हमें बताया,
"सौरभ को घर का दूध-घी बहुत पसंद है. मां बड़े चाव से उसको रोटी पर ढेर सारी मखनी भी खिलाती. सौरभ प्रैक्टिस के बाद बचे हुए समय में पापा के साथ खेतों में काम करवाने जाता है. घर के सभी लोग उसे मना करते हैं फिर भी वह नहीं मानता. वह खेती के लगभग सारे कामों में माहिर है. सौरभ कोई भी काम करते वक़्त बिल्कुल नहीं घबराता. यही उसके लगातार जीतते रहने का मंत्र भी है. बिना किसी दबाव के ही वह लगातार सोने पर ही निशाने लगा रहा है."

सौरभ की सादगी है फूलों सी.
सादगी ऐसी की अच्छे-अच्छे फीके पड़ जाएं
सौरभ के गोल्ड जीतने के बाद उनके कोच अमित श्योराण ने हमें बताया कि सौरभ बहुत ही शांत लड़का है, इतना शांत कि खूब भीड़ में भी अलग ही दिखाई पड़े. अकडमी में ज्यादा सुविधा नहीं थी. गर्मियों में टीन से बनी छत के नीचे दोपहर 12 बजे तक प्रैक्टिस करता था. जब मैं कहता था कि सौरभ बेटा घर चले जाओ बहुत गर्मी हो गई है. तो कहता था, कुछ गर्मी नहीं हुई है कोच साब. थोड़ी प्रैक्टिस और कर लूं, अबकी बार गोल्ड मेडल जीतना है. वह दिखावे में भी बिलकुल विश्वास नहीं रखता. सौरभ की सादगी का एक किस्सा याद करते हुए अमित बताते हैं,
"जब सौरभ का जूनियर वर्ल्डकप में गोल्ड मेडल आया तो मैंने कहा, बेटा सौरभ अब तो तू जूनियर वर्ल्ड चैंपियन बन गया है, तुम्हारे लिए एक बड़ा जश्न मनाते हैं. तो सौरभ बड़ी सादगी से कहता है गुरूजी जश्न 2020 में मनाना जब ओलम्पिक में गोल्ड जीतूंगा."
सौरभ का लक्ष्य 2020 के ओलंपिक में गोल्ड पर निशाना साधना है. जिस तरह महाभारत के अर्जुन को मछली की आंख दिखाई देती थी, उसी तरह निशानेबाजी के इस नए अर्जुन को भी 2020 के ओलंपिक में गोल्ड मेडल ही दिखाई दे रहा है.
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