पुराने जमाने में एक बड़ी समस्या थी. बारिश में तत्काल पकौड़े बनाने की समस्या. बारिश शुरू होने के बाद तय करना पड़ता था कि अब पकौड़े तले जाएं. और ऐसे में कोई रॉ मेटेरियल (प्याज, बेसन, तेल… वगैरा) कम पड़ जाए या ना ही हो तो माहौल का बंटाधार. लेकिन स्मार्टफोन ने बड़ी सुविधा कर दी. अब आप फोन में वेदर फोरकास्ट (weather forecast) देखकर जान लेते हैं कि आज बारिश हो सकती है या नहीं. और उसी के हिसाब से बेसन, प्याज, मिर्च और धनिया वगैरा संजो सकते हैं. ताकि उन्हें गर्म तेल में स्विमिंग करवाई जा सके. लेकिन, लेकिन… अगर हम आपको बताएं, कि जब आप वेदर ऐप में देखते हैं और लिखा रहता है- 30%. तो इसका मतलब ये नहीं होता कि बारिश होने के 30% चांस हैं या फिर 30% इलाके में ही बारिश होगी. मामला कुछ और है.
मौसम वाले ऐप में 30% बारिश का मतलब आज तक आप गलत तो नहीं समझ रहे थे!
अक्सर कुछ लोग बारिश वाले 30 प्रतिशत का मतलब समझते हैं कि आज बारिश की तीस प्रतिशत संभावना है. वहीं कुछ को लगता है कि 30 फीसद का मतलब है कि 30 प्रतिशत एरिया में ही बारिश होगी. लेकिन ये दोनों ही मायने ठीक नहीं हैं.


ये प्रतिशत और प्रॉबेब्लिटी वगैरा में पड़ने से पहले आपको एक कहानी सुनाते हैं. कहानी एक कंप्यूटर में मौसम बनाने की. कहानी शुरू होती है अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (MIT) में. 60 का दशक था. MIT के एक कमरे में एक कंप्यूटर था, रॉयल मैक्बी. इस कंप्यूटर में एक जनाब, एडवर्ड लॉरेंज कुछ अनोखा कर रहे थे. दरअसल इस कंप्यूटर में बनाया जा रहा था- ‘मौसम.’ कहें तो मौसम की नकल- कंप्यूटर में बादल, धुंध और कोहरे जैसे कुछ 12 पैमाने फीड किए गए थे. जिनकी मदद से लॉरेंज एक सिम्युलेशन चलाते थे. जो कंप्यूटर के भीतर मौसम में होने वाले बदलावों की नकल करता था.
मामला ये था कि लॉरेंज समझना चाहते थे कि मौसम काम कैसे करता है? मौसम को प्रेडिक्ट कैसे किया जा सकता है? और ऐसे तमाम सावाल इस प्रयोग के साथ जुड़े थे. फिर एक रोज़ कुछ ऐसा हुआ, जिसने मौसम को समझने की तस्वीर ही बदल दी.
दरअसल एक दिन लॉरेंज ने कंप्यूटर में डेटा फीड करने में थोड़ा आलस बरता. और दशमलव के बाद कुछ नंबर्स को राउंड ऑफ कर दिया. जैसे हम कभी-कभी 1.003 को 1.000 मान लेते हैं ना. नंबर डाल के लॉरेंज कॉफी लेने कमरे से निकले. और जब वापस आए तो तस्वीर ही कुछ अलग थी.
उन्होंने नोटिस किया कि शुरुआत में सिर्फ कुछ पॉइंट्स में बदलाव करने की वजह से कंप्यूटर वाले मौसम में बड़े बदलाव हुए. बताया गया कि शुरुआती कंडीशन में थोड़ी सी भी छेड़-छाड़ की जाए तो इससे बड़े बदलाव आ सकते हैं. बाद में इसे नाम दिया गया, केयॉस थ्योरी. इसके बारे में आप ज्यादा जानकारी यहां क्लिक करके ले सकते हैं.
बाकी सरल भाषा में समझें, तो मौसम के मामले में डेटा में एक छोटे से बदलाव से सब यहां का वहां हो सकता है. इसलिए मौसम का सटीक अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में बारिश का ठीक-ठीक प्रेडिक्शन करने का मामला भी थोड़ा अलग होता है. समझते हैं.
30% चांस का क्या मतलब है?अब आते हैं अपने मोबाइल फोन के ऐप पर. जिसे आप खोलते हैं और बादल और बूंदों के इमोजी के साथ लिखा दिखता है पर्सेंटेज. 30%, 40%...

अक्सर कुछ लोग बारिश वाले 30% का मतलब समझते हैं कि 30% चांस है कि आज बारिश होगी. वहीं कुछ को लगता है कि 30% का मतलब है कि 30 फीसद एरिया में ही बारिश होगी. लेकिन ये दोनों ही एकदम ठीक नहीं हैं.
रॉयल मेटेरोलॉजिकल सोसायटी की मानें तो यहां 30% का मतलब है कि 30 फीसद फोरकास्ट के सिम्युलेशन ने बताया कि बारिश हो सकती है.
दरअसल केयॉस थ्योरी में हमने जाना कि मौसम वगैरा का सटीक हाल बताने का मामला जटिल है. कुछ पॉइंट्स के इधर-उधर होने भर से मामला गड़बड़ा जाता है. ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए, फोरकास्टर्स या मौसम बताने वाले लोग- छोटे-छोटे बदलावों के साथ कई बार सिम्युलेशन चलाते हैं. इन्हें टेक्निकल भाषा में एनसेंबल्स फोरकास्ट कहा जाता है.
क्योंकि अगर एक ही सिम्युलेशन चलाया जाएगा, तो उसमें एक-दो पॉइंट्स इधर-उधर होने भर से पता चले बारिश की जगह कड़क धूप दिखाई दे.
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और सरल करके समझते हैं. शुरुआत में हमारे लॉरेंज साहब वाला ‘वेदर सिम्युलेशन’ याद करिए. उसमें हमने देखा कि मामूली सी जानकारी बदलने भर से बड़े बदलाव हो जाते हैं. तो लगभग एक जैसे हालात में कई रिजल्ट मिल सकते हैं. इसलिए कई कंप्यूटर सिम्युलेशन चलाए जाते हैं. ताकि देखा जा सके कि चलाए गए आस-पास वाली रीडिंग में कुल कितने सिम्युलेशन में बारिश के आसार आ रहे हैं.
कई सिम्युलेशन चलाने पर अगर लगभग सभी में एक जैसे ही हालात दिखें, तो मौसम बताने वाले कॉन्फिडेंस के साथ बता सकते हैं कि बारिश के ज्यादा चांस हैं. फर्ज करिए 90%. वहीं अगर कुछ सिम्युलेशन में बारिश और कुछ में धूप वगैरा दिखाए, तो फोरकास्टर्स को कम कॉन्फिडेंस होगा. और वो कम प्रतिशत संभावना जताएंगे, फर्ज करिए 30% चांस.
मतलब हम समझें कि कई सिम्युलेशन चालाए जाते हैं, ताकि मौसम का ठीक-ठीक अंदाजा लगाया जा सके. कि कितनों में बारिश दिखा रहा, कितनों में कुछ और.
अब ऐसे ही सिम्युलेशन में जितने फीसद में बारिश के बारे में बताया जाता है, वही पर्सेंटेज आपको ऐप पर दिखता है. मसलन 100 में से 10 वेदर सिम्युलेशन में बारिश के बारे में जानकारी मिलती है. तो वेदर ऐप पर 10% चांस लिखा मिलेगा. हां, मोटा माटी कह सकते हैं कि इतने फीसद चांस हैं कि बारिश हो सकती है. लेकिन अब आप इसका असल मतलब समझ गए हैं. तो दोस्तों के सामने फ्लेक्स करिए.
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