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इस मशहूर पेंटिंग को देखकर दिमाग में ऐसा क्या होता है, जो देखने वाले देखते ही रहते हैं?

17वीं सदी का ये मास्टरपीस डच पेंटर जोहांस वर्मीर की रचना है, Girl with the pearl earring. कला के चाहने वालों में जिसकी ख्याति Monalisa जैसी ही है. इसी के पीछे की वजह जानने की कोशिश हाल ही में साइंटिस्ट्स ने की. भला इस पेंटिंग को लोग निहारते क्यों रह जाते हैं?

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असली पेंटिंग और नकल को देखकर दिमाग में होने वाले बदलावों के बारे में भी बताया गया.

‘गर्ल विथ अ पर्ल इयरिंग’ (Girl with a Pearl Earring). ये नाम है एक खूबसूरत पेंटिंग का. जो दुनिया की सबसे जानी-मानी पेंटिंग्स में से एक है. गूगल आर्ट एंड कल्चर की मानें तो यह चौथी सबसे ज्यादा देखी जाने वाली पेंटिंग है. डच पेंटिंग के गोल्डन एज की इस पेंटिंग को 15 लाख दर्शक हर साल देखने आते हैं. लेकिन इस आर्ट के साथ साइंस का संगम हाल ही में हुआ है. क्योंकि साइंटिस्ट्स बता रहे हैं कि हमारा दिमाग इस पेंटिंग को देखने के बाद कैसे रिएक्ट करता है?

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17वीं सदी का ये मास्टरपीस डच पेंटर जोहांस वर्मीर की रचना है. कला के चाहने वालों में जिसकी ख्याति ‘मोनालीसा’ जैसी ही है. मोती की बाली के लिए फेमस, इसी के पीछे की वजह जानने की कोशिश हाल ही में की गई. दरअसल, हेग के मौरित्सुइस (The Mauritshuis) म्यूजियम में लगी इस पेंटिंग और बाकी दूसरी पेंटिग्स को देखकर न्यूरोलॉजिस्ट - दिमाग की एक्टिविटी समझने की कोशिश कर रहे थे.

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इन हिस्सों पर टिकती हैं निगाहें (Image creedit : mauritshuis)

और रिसर्चर्स का मानना है कि इस पेंटिंग को देखकर, लोगों के खिंचे चले आने के पीछे एक खास दिमागी फिनामना है. जिसे ‘सस्टेंड अटेंशन लूप’ (Sustained attention loop) नाम दिया जाता है.

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क्या है ये फिनामना?

दरअसल, रिसर्चर्स का मानना है कि देखने वालों की आंखें पहले, इस महिला की आंखों की तरफ खिंचती हैं. फिर मुंह की तरफ और फिर कानों में टंगीं मोती की बालियों की तरफ. और यह पूरा प्रोसेस बार-बार होता है. यानी दर्शक किसी चक्र की तरह यह दोहराते हैं और पेंटिंग को निहारते रहते हैं. 

Phys.org के मुताबिक, इस रिसर्च से जुड़े न्यूरेंसिक्स कंपनी के साइंटिस्ट मार्टिन डे मुनिक्क बताते हैं,

पूरे प्रोसेस की वजह से लोग इस पेंटिंग को बाकियों के मुकाबले ज्यादा देर तक निहारते हैं. और आपको इस पेंटिंग पर ध्यान देना होगा, चाहें आप चाहें या नहीं. आपको इसे प्रेम करना होगा, आप चाहें या नहीं.

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वहीं दिमागी तरंगों के आधार पर साइंटिस्ट्स ने ये अंदाजा भी लगाया कि दिमाग का प्रीक्युनस  (Precuneus) नाम का हिस्सा ज्यादा स्टिम्युलेट या एक्टिव हुआ, जो कि खुद की पहचान और कॉन्सियसनेस से जुड़ा होता है. बताया जा रहा है कि पेंटिंग देखकर लोग खुद के भीतर झांकते हों, ऐसा भी हो सकता है.

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बकौल डे मुनिक्क यह अंदाजा लगाना तो आसान था कि पेंटिंग की यह गर्ल खास थी, पर जिस बात ने हमें सबसे ज्यादा चौंकाया वो इसके पीछे की वजह थी. जो EEG या दिमाग में होने वाली विधुतीय गतिविधियां और MRI स्कैन वगैरह को देखकर ही पता चल पाई. 

दूध का दूध और पानी का पानी

साइंटिस्ट्स ने ओरिजनल पेंटिंग और उनकी नकल देखकर दिमागी हरकतों पर भी नजर डाली. और पता चला कि असली पेंटिंग को देखकर होने वाला भावात्मक रिएक्शन, किसी नकल या पोस्टर को देखकर होने वाले रिस्पॉन्स के मुकाबले दस गुना ज्यादा था.

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