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प्राचीन अस्पताल के तहखाने में दबी मिलीं हड्डियां, 400 साल पहले 'कोकेन' का यूज कर रहे थे लोग!

Archeology and History: तहखाने में दबे इन कंकालों ने यूरोप में ड्रग्स के व्यापार की नई कहानी बताई. दरअसल जिओर्डानो ने कुल नौ खोपड़ियों और दिमाग के टिश्यू के सैंपल का एनालिसिस किया.

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दबे इन कंकालों ने यूरोप में ड्रग्स के व्यापार की नई कहानी बताई (Image: Research Gate, Mattia M.)

साल 1451 से 1512 के बीच- इंसानों में कोकेन के इस्तेमाल का पहला जिक्र, शायद फ्लोरेंटाइन (इटली) ट्रैवलर अमेरिगो वेसपुक्की की लेखनी में मिलता है. इससे अगले 300 साल तक इस ड्रग के दवा की तरह इस्तेमाल पर जोर दिया जाता रहा. बता दें साल 1860 में जर्मन केमिस्ट अल्बर्ट नीमन ने पहली बार कोका पौधे की पत्तियों से एक्टिव तत्व निकाला था. और उसे कोकेन नाम दिया था. वहीं अब एक हालिया रिसर्च बता रही है कि इससे कुछ 200 साल पहले भी, यूरोप में इस ड्रग का इस्तेमाल हो रहा था.

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द न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक, साल 2019 में पहली बार - इटली की मिलान यूनिवर्सिटी की रिसर्चर गइआ जिओर्डानो, सदियों पुराने अस्पताल के तालाबंद तहखाने में उतरीं. और जो दिखाई दिया, उनके होश ही उड़ गए. जिओर्डानो बताती हैं,

पूरे फर्श पर हड्डियां ही हड्डियां दिखाई देती हैं, हर जगह हड्डियां.

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तहखाने में मौजूद कंकाल (Image: Research gate, elaborazione Autori)

बताया जाता है कि 1600 के आस-पास यह तहखाना, मिलान के गरीब लोगों के लिए कब्रिस्तान हुआ करता था. जो यहां के विशाल क’ ग्रैंडा (Ca’ Granda) अस्पताल में इलाज करवाने आया करते थे.

लेकिन तहखाने में दबे इन कंकालों ने यूरोप में ड्रग्स के व्यापार की नई कहानी बताई. दरअसल, जिओर्डानो ने कुल नौ खोपड़ियों और दिमाग के टिश्यू के सैंपल का एनालिसिस किया.

जो कुछ 1600-1700 के बीच दफनाए गए थे. जिसके बाद जिओर्डानो और उनके साथियों को पता चला कि इनमें से दो शख्स शायद कोकेन का इस्तेमाल करते रहे होंगे. 

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 मिलान का विशाल अस्पताल (Image: F.B. Werner, Veduta della Ca’ Granda nel 1740)
यूरोप में कोका का पहला इस्तेमाल

दरअसल जर्नल ऑफ फॉरेंसिक टॉक्सिकोलॉजी में ये रिसर्च छपी है. जिसमें यूरोप में कोका के इस्तेमाल का शायद पहला सुराग मिला है. वो भी इस पौधे से पहली बार कोकेन निकालने से करीब 200 साल पहले. 

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इन सुरागों को देखते हुए, कहा जा रहा है कि मिलान के लोग भी शायद कोका पौधे की पत्तियों का इस्तेमाल करते रहे होंगे. जैसा कि दक्षिणी अमेरिका की प्राचीन सभ्यताओं में किया जाता था. ताकि दर्द वगैरह से राहत मिल सके.

लेकिन बाद में इस ड्रग को जब केमिकली इस्तेमाल किया जाने लगा, तो इसके खराब असर के बारे में पता चला. और आज भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में ये ड्रग गैरकानूनी है. इसकी लत और सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.

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