आप बाहर से थककर घर आते हैं. बड़ी ज़ोरों की प्यास लगी है. आप फ्रिज से पानी की ठंडी-ठंडी बोतल निकालते हैं और उसे गटककर पी जाते हैं. इतने में पीछे से मम्मी की आवाज़ आती है. 'कितनी बार मना किया है, खड़े होकर पानी मत पिया करो. घुटनों में दर्द होने लगेगा. बैठकर पियो.' आप चिढ़कर जवाब देते हैं. ‘क्या मम्मी. कुछ भी. खड़े होकर पानी पीने से घुटने क्यों दुखने लगेंगे. पानी जाना तो पेट में ही है, कैसे भी पियो.’ मम्मी मुंह बनाकर कहती हैं. 'जो करना है करो. पर बड़े-बुज़ुर्ग कह गए हैं.'
खड़े होकर पानी पीना कितना नुकसानदेह, जानकर मम्मी को सॉरी जरूर बोलेंगे?
'कितनी बार मना किया है, खड़े होकर पानी मत पिया करो. घुटनों में दर्द होने लगेगा.' ये आपने भी सुना है?

सही बात है. बड़े-बुज़ुर्ग बहुत कुछ कह गए हैं. ‘बट विद ऑल ड्यू रिस्पेक्ट’. जो बात पीढ़ियों से कही जा रही है. ज़रूरी नहीं वो सच भी हो. हम सबको कभी न कभी किसी बड़े न खड़े होकर पानी पीने पर टोका है. तो क्या वाकई खड़े होकर पानी पीना नुकसानदेह है? या ये बस एक मिथक है. चलिए डॉक्टर्स से जानते हैं.
खड़े होकर पानी पीना क्यों मना किया जाता है?ये हमें बताया डॉक्टर विक्रमजीत सिंह ने.

हमारा शरीर 70% पानी से बना है. पानी एक मीडियम की तरह काम करता है जिसके ज़रिए पोषण शरीर में एक जगह से दूसरी जगह जाता है. अक्सर लोग खड़े-खड़े पानी पी लेते हैं ऐसा करने से फ़ायदा होता है या नुकसान?
अगर पुरानी रिसर्च और आयुर्वेद को देखा जाए तो उनका कहना है कि खड़े होकर पानी पीना बहुत गलत है क्योंकि जब आप सीधे खड़े-खड़े पानी पीते हैं तो पानी बहुत फ़ोर्स से नीचे की तरफ़ जाता है. इसका पहला नुकसान पेट को होता है. जिसकी वजह से लोगों को अक्सर एसिडिटी रहती है. इसोफैगस (गले और पेट को जोड़ने वाला ट्यूब) के स्फिंक्टर (रिंग के आकार की मांसपेशी) पर प्रेशर पड़ता है. वो काम करना बंद कर देता है. जिसकी वजह से एसिडिटी की प्रॉब्लम हो सकती है.
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दूसरा. ये पानी बहुत तेज़ी से डाइजेस्टिव ट्रैक्ट से गुज़रता है. इसके कारण जितना इसे डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में अब्सॉर्ब होना चाहिए वो नहीं होता. जब ये अब्सॉर्ब नहीं हो पाता तो नेचुरल न्यूट्रीएंट और शरीर का इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बिगड़ जाता है. इसके कारण किडनी पर असर पड़ता है क्योंकि किडनियां इस पानी पर निर्भर होती हैं. किडनियां शरीर से गंदगी को नहीं निकाल पातीं. ये गंदगी किडनी में डिपॉजिट रह जाती है.
तीसरा. जब शरीर में ठीक इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस नहीं बन पाता है तो ये पानी जॉइंट्स में भी जमने लगता है. जिसकी वजह से जोड़ों, घुटनों में दर्द होता है.
सबसे बड़ी बात. नर्वस सिस्टम को संतुष्टि नहीं मिलती ऐसे पानी पीने से. इसलिए प्यास भी सही तरह नहीं बुझती.

आयुर्वेद के मुताबिक बैठकर, कमर को सीधा रखकर पानी पीना चाहिए. घूंट-घूंट पानी पीना चाहिए ताकि पानी सही तरह से डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में जाए. जहां पानी को अब्सॉर्ब होना है, वहां वो अब्सॉर्ब हो. जब पानी अब्सॉर्ब होगा तो न्यूट्रीएंट भी सही तरह से एक जगह से दूसरी जगह जा पाएंगे. इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बना रहेगा. किडनी में जो गंदगी है, उसकी सफ़ाई होगी. जॉइंट्स हेल्दी रहेंगे. नर्वस सिस्टम स्ट्रेस नहीं लेगा. प्यास बुझेगी. आपको ख़ुद अच्छा महसूस होगा. पानी पीने का सबसे बढ़िया तरीका है बैठकर पीना. सुबह उठने के बाद गुनगुना पानी पीजिए. गुनगुना पानी सबसे अच्छी तरह अब्सॉर्ब होता है. बहुत ठंडा पानी कभी भी अच्छा नहीं होता. खाने से आधा घंटा पहले पानी पिएंगे तो आपका हाज़मा अच्छी तरह काम करेगा. दिनभर पानी पीते रहें. 6-8 ग्लास पानी पीजिए.
अब समझ में आया, बड़े-बुज़ुर्ग खड़े होकर पानी पीने से क्यों मना करते थे. इसलिए जब अगली बार आपकी मम्मी या कोई ऐसा करने से रोके तो उनकी बात सुनिएगा. डॉक्टर्स भी ये अवॉइड करने के लिए कहते हैं.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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