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लड़कियों की साइकिल में डंडा क्यों नहीं होता है, पता चल गया

जब भी महिलाओं के चलने के लिए बने दोपहिया साधन की बात होती है तो उसके स्ट्रक्चर पर हमारा ध्यान जाता है. महिलाओं के साइकिल में डंडे नहीं होते हैं और उनके लिए बनने वाली गाड़ियों में भी सामने खुली जगह होती है.

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एक्ट्रेस कीर्ति कुल्हरी (फोटो-इंस्टाग्राम)

आज इंस्टाग्राम स्क्रोल करते हुए मेरी नज़र पड़ी एक्ट्रेस कीर्ति कुल्हरी की एक फोटो पर. फोटो में एक हिमालयन बाइक थी और कीर्ति उसे चूम रही थीं. फोटो के साथ कीर्ति ने लिखा,

"चलो आखिर से शुरुआत करते हैं. आठ दिन में 800 किलोमीटर बाइक चलाकर अभी लेह पहुंची हूं. मैं एकदम सुरक्षित हूं और बेहद खुश हूं कि मैं ये कर पाई. ये मेरी पहली ऐसी बाइक ट्रिप है. इसके बारे में मैंने लगभग एक साल पहले सोचा था और आज मैं यहां पर हूं. इसके लिए मैं कुछ खास लोगों का शुक्रिया करना चाहूंगी जो इस पूरे सफर में मेरे  साथ रहे, मेरे पंख पसारने और ऊंचा उड़ने में मेरे साथ रहे. मैं विजयी और ग्रेटफुल महसूस कर रही हूं."

कृति की ये फोटो और पोस्ट देखकर मुझे एकदम से बाइक चलाने का मन कर गया. एकदम से  न 'ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा' वाली कैटरीना की याद आई. बैकग्राउंड में ख्वाबों के परिंदे गाना बज रहा है. पिक्चर में कटरीना दिख रही हैं, बाइक चलाती हुई. वैसे बाइक से तो अनुष्का वाला भी सीन याद आता है. वही जिसमें शाहरुख को पीछे बैठाकर वो गुंडों को मस्त भगा रही हैं. लेकिन रियल लाइफ में बाइक चलाती लड़की उतनी ही अनकॉमन है जितनी मानसून में दिल्ली की बारिश. वेरी रेयर!

 

और जब कोई लड़की हमें बाइक चलाती दिखती है तो हममें से ज्यादातर लोग उसे पलटकर ज़रूर देखते हैं. अगर आपने ध्यान न दिया हो तो बता दूं कि मैं अभी तक बाइक की बात कर रही हूं, स्कूटर की नहीं. लड़कियों को स्कूटर चलाते देखना कस्बों और शहरों में अब काफी आम हो गया है. कॉलेज या ऑफिस जाने वाली लड़कियां स्कूटर पर चलती हमें दिख जाती हैं. बाइक के पीछे बैठी लड़कियां और औरतें भी हमें दिखती हैं. लेकिन चलाती बहुत कम दिखती हैं.

बाइक की सोशियोलॉजी और बायोलॉजी!

ऐसा है क्यों? हम बाइक के साइंस पर जाएं, उससे पहले जाएंगे बाइक की सोशियोलॉजी पर. तो एक वक्त ऐसा था कि जब घरों में कोई चीज़ आती थी तो उन पर पहले पुरुषों का हक मान लिया जाता था. भारत के कॉन्टेक्स्ट में बात करें तो चाहे किताबों की बात हो, चाहे बैठक में लगने वाली कुर्सी. जब समय बदला तो आम घरों में साइकिल आने लगा, घरों का बड़ा इनवेस्टमेंट होती थी साइकिल. उसे चलाते थे घर के पुरुष. कैरियर में पत्नी बैठती थी, सामने के डंडे पर बच्चे. फिर जब लूना, स्कूटर और बाइकें आईं तो उनके साथ भी यही हुआ. वो घर पुरुषों और बेटों के हक में गए. इस तरह एक आम धारणा बन गई कि ‘गाड़ी’ तो पुरुष चलाते हैं. देश के कई हिस्सों में आज भी गाड़ी का मतलब दो पहिया वाहन से लगाया जाता है. मेरे अपने शहर में भी.

सोशियोलॉजी के बाद चलते हैं बायोलॉजी पर. स्त्री और पुरुष के शरीर की संरचना अलग होती है. दोनों का फिजिकल स्ट्रेंथ भी अलग-अलग होता है. तो इस बायोलॉजी को आधार बनाकर कहा गया कि औरतें बाइक का भार संभाल नहीं पाएंगी. और इस आधार पर घरों में उन्हें बाइक के हिसाब-किताब से दूर ही रखा गया.

इसके बाद आती है सोच. अच्छे घरों की औरतें अकेले बाहर नहीं निकलतीं. घर के पुरुष हैं तो उन्हें लाने-ले जाने के लिए. स्कूल, अस्पताल, कॉलेज, बाज़ार कहां जाना है बताओ, लड़का छोड़ आएगा हमारा. लड़का साथ चला जाएगा हमारा. बाइक से गिरकर लड़की के हाथ-पैर टूट गए, चेहरे पर चोट का कोई निशान लग गया तो कौन ब्याह करेगा लड़की से?

लड़कियों तक स्कूटर कैसे पहुंचा?

एक लंबे वक्त तक लड़कियों के पास अपने वाहन नहीं रहे. अभी भी हमारे घरों में मम्मियां हम पर या पापा पर या हमारे भाई-बहनों पर निर्भर होती हैं कहीं भी जाने के लिए. हालांकि, लड़कियों को पढ़ाने के लिए चले अभियानों का फायदा ये रहा कि लड़कियों को पहले अकेले बाहर निकलने की आज़ादी मिली. फिर उनके हाथ में साइकिल आई.

दूसरी तरफ, दूसरे विश्व युद्ध के दौर में भारत में आया स्कूटर. गियर वाली दोपहिया गाड़ी. इसे सामान आसानी से लाने-लेजाने के लिए लाया गया था. इसे मेनली पुरुष चलाते थे. वर्ल्ड वॉर के बाद कुछ सालों तक तो ये स्कूटर खूब चला. लेकिन धीरे-धीरे इसकी डिमांड कम होने लगी? क्योंकि मार्केट में जगह बाइक्स ने ले ली थी. और पुरुष बाइक्स को ज्यादा पसंद करने लगे थे. इसके बाद 70 के दशक में काइनेटिक ने भारत में लूना लॉन्च की. बिना गेयर वाली, पेट्रोल से चलने वाली हल्की गाड़ी. ये गाड़ी चल पड़ी. और मार्केट वालों ने पाया कि लूना महिलाओं में खासी पॉपुलर है. इसके बाद टीवीएस ने स्कूटी लॉन्च की. स्कूटी भी महिलाओं में खासी पॉपुलर हुई और उसके बाद स्कूटी को महिलाओं की दोपहिया के नाम से बेचा जाने लगा. उसके बाद तो तमाम कम्पनियों के, बेहतर मॉडल वाले स्कूटर्स महिलाओं के लिए आए. अब तक चल रहे हैं. यही वजह है कि महिलाओं का स्कूटर पर चलना अब एक आम दृश्य होता है.

लड़कियों की साइकिल में डंडा क्यों नहीं होता?

जब भी महिलाओं के चलने के लिए बने दोपहिया साधन की बात होती है तो उसके स्ट्रक्चर पर हमारा ध्यान जाता है. महिलाओं के साइकिल में डंडे नहीं होते हैं और उनके लिए बनने वाली गाड़ियों में भी सामने खुली जगह होती है. इसकी संभावित वजह हमें पता चली ‘टुडे आई फाउंड आउट’ नाम की वेबसाइट में. इसके मुताबिक, साइकिल का डंडा असल में उसके फ्रेम को मजबूती देता है. लेकिन महिलाएं चूंकि ड्रेस पहनती थीं, तो डंडे की वजह से साइकिल चलाने में दिक्कत होती थी. कपड़ा उठ जाता था. इस वजह से लेडीज़ साइकिल से वो डंडा हटा दिया गया. मेरी कलीग कुसुम बताती हैं कि उन्होंने बचपन में अपने भाई की साइकिल कैंची चलाई है, क्योंकि स्कर्ट या फ्रॉ की वजह से उन्हें सीट पर बैठने में समस्या होती थी. वहीं, कई ग्रामीण महिलाएं साड़ी पहनकर साइकिल चलाती हैं, और साड़ी के साथ डंडे वाली साइकिल चलाना बहुत मुश्किल है. यानी लड़कियों के ड्रेसअप की वजह से उनकी साइकिल से डंडा हटाया गया. बाद में जब उनके लिए गाड़ियां बनीं तो उसमें भी इसी बात का ध्यान रखा गया. लॉजिक सही भी है, मेरी भाभी और मामी साड़ी पहनकर स्कूटी आसानी से चला लेती हैं. बाइक कैसे ही चला पातीं साड़ी में? खैर,

जब लड़कियों के बाइक नहीं चलाने की वजहों पर बात होती है तो इसके पीछे बाइक के भारी होने, उसमें गियर होने और लड़कियों के परिधान के हिसाब से उसके फीज़िबल न होने का लॉजिक दिया जाता है. हालांकि अब लड़कियों के कपड़े बाइक चलाने में बाधा नहीं बनते, गियर कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो केवल पुरुष हैंडल कर सकें. तो अब कई लड़कियां बाइक चला रही हैं. और हज़ारों किलोमीटर का रास्ता तय कर रही हैं.  बाइक चलाने में कैसा लगता है, ये जानने के लिए हमने बात की बाइक राइडर नीतू चोपड़ा से बात की.

उन्होंने बताया कि बाइक चलाना उनको आज़ादी का अहसास कराता है. उन्होंने कहा,

“तीन साल से बाइक राइड कर रही हूं. सेफ्टी एक बड़ा ईशू है. इसके लिए मैं कहूंगी कि लड़कियां अपने आपको कमज़ोर न समझें. फिजिकली फिट रहें, कोई न कोई एक्सरसाइज़ करें, फोकस अच्छा रखें. दूसरी चीज़ है, लोगों का घूरना. लोग ऐसे घूरते हैं जैसे आप कोई एलियन हैं. कुछ लोग तो अप्रिशिएट करते हैं, लेकिन कुछ लोग गलत नज़र से देखते हैं. अगर आप लंबे डिस्टेंस के लिए या कई दिनों की बाइक राइड पर जा रहे हों तो हो सकता है कि पीरियड के दिनों में थोड़ी समस्या आए. क्योंकि तब हमारे शरीर में कई बदलाव हो रहे होते हैं, साथ ही हर जगह साफ वॉशरूम नहीं मिलता है. कई बार तो वॉशरूम ही नहीं मिलता है. तो उसके लिए थोड़ा प्रिपेयर्ड रहना होता है.”

तो दोस्तों, आपको भी बाइक चलाने का मन करता है तो खुद को रोकिए मत. ट्राई कीजिए. अब तो मानसून भी आ गया है, जबर मज़ा आएगा. हमको बताइएगा अपना एक्सपीरियंस.

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