एमपॉक्स (Mpox). इसको मंकीपॉक्स भी कहते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है. पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी का सिंपल शब्दों में मतलब ये है कि बीमारी तेज़ी से फैल रही है. और हमें इससे बचकर रहना है.
अचानक क्यों आने लगे हैं मंकीपॉक्स के मामले? क्या ये बनेगा नया कोविड?
भारत में फिलहाल Monkeypox का कोई केस नहीं है. लेकिन पाकिस्तान में इसके मामले सामने आए हैं. इसलिए हमें भी सावधान रहने की जरूरत है.


बता दें कि एमपॉक्स के मामले पहले सिर्फ अफ्रीका महाद्वीप में ही आते थे. खासकर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में. यानी ख़ासतौर पर एक देश में. लेकिन, अब दूसरे महाद्वीपों से भी इसके मामले सामने आ रहे हैं. स्वीडन जो कि यूरोप में है और अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से. यानी एशिया.
इस बार Mpox का जो स्ट्रेन फैल रहा है. वो क्लेड 1 बी भी है. ये पहले के स्ट्रेन क्लेड 1 से ज़्यादा संक्रामक है. WHO की मानें, तो पिछले महीने क्लेड 1 बी के 100 से ज़्यादा मामले तो सिर्फ कॉन्गो के पड़ोसी देशों से ही आए हैं. ये देश हैं- बुरुंडी, केन्या, रवांडा और युगांडा. खास बात ये है कि इन चारों देशों में पहले कभी भी मंकीपॉक्स का कोई केस नहीं आया था.
Mpox का जो ये स्ट्रेन है, वो ज़्यादातर यौन संपर्क से फैल रहा है. इसके अलावा ये किसी संक्रमित इंसान के पास आने, उसकी स्किन छूने, करीब से बात करने से भी फैलता है. एमपॉक्स का वायरस आंख, नाक, मुंह और सांस के ज़रिए शरीर में दाखिल होता है. ये उन चीज़ों को छूने से भी फैल सकता है, जिसे संक्रमित इंसान ने इस्तेमाल किया हो. जैसे, कपड़े वगैरह. यही नहीं, अगर कोई इंसान एमपॉक्स वायरस से संक्रमित जानवर जैसे बंदर, चूहे और गिलहरी के संपर्क में आता है. तो ये उसे भी हो सकता है.
भारत में फिलहाल एमपॉक्स का कोई केस नहीं है. लेकिन, हमारे पड़ोस में आ चुका है. तो, सावधानी हमें भी बरतनी चाहिए. आज हम डॉक्टर से जानेंगे कि एमपॉक्स क्या है? इसके मामले अचानक से क्यों बढ़ रहे हैं? इसके लक्षण क्या हैं? एमपॉक्स कितना घातक है और इससे बचाव और इलाज कैसे किया जाए?
एमपॉक्स क्या है?ये हमें बताया डॉ. कुलदीप कुमार ग्रोवर ने.

- एमपॉक्स यानी मंकीपॉक्स.
- हाल ही में 116 देशों में इसके काफी ज़्यादा मामले सामने आए हैं.
- मंकीपॉक्स एक ज़ूनोटिक बीमारी है.
- ये जानवरों से इंसानों में होती है.
- फिर एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलती है.
- एमपॉक्स एक वायरल इंफेक्शन है यानी ये एक से दूसरे में होता है.

- बुखार आना.
- सिरदर्द होना.
- स्किन में घाव पड़ जाना.
- ये घाव पहले छोटे होते हैं, फिर बड़े होकर फफोले बन जाते हैं.
- फिर मरीज़ तब तक संक्रमित रहता है, जब तक कि फफोले सूख न जाएं.
- मंकीपॉक्स का इनक्यूबेशन पीरियड 5 से 21 दिनों का होता है यानी वो समय जो वायरस के संपर्क में आने के बाद लक्षणों के विकसित होने में लगता है.
- अगर लक्षण हल्के हैं, तो अक्सर मरीज़ ठीक हो जाते हैं.
- हालांकि मरीज़ को ठीक होने में कम से कम 4 हफ्ते लगते हैं.
एमपॉक्स से बचाव और इलाज- एमपॉक्स का इलाज इसके लक्षणों पर निर्भर करता है.
- अगर आपको बुखार और दूसरे लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो आपको आइसोलेशन वॉर्ड में रखा जाएगा.
- आपकी मॉनिटरिंग होगी और कई तरह के टेस्ट किए जाएंगे.
- जैसे लिवर फंक्शन टेस्ट और किडनी फंक्शन टेस्ट.
- इन टेस्ट के जरिए ये देखा जाता है कि इससे किसी दूसरे अंग पर तो असर नहीं पड़ रहा.
- अगर दूसरे अंगों पर असर पड़ता है, तो मंकीपॉक्स जानलेवा हो सकता है.
- खासकर उन लोगों में जिनकी इम्यूनिटी बहुत कमज़ोर होती है.
- जैसे बच्चे, बुज़ुर्ग और प्रेग्नेंट महिलाएं.
- अगर किसी को मंकीपॉक्स हो जाता है, तो उसे हाइड्रेटेड रखना है.
- आईवी फ्लूइड देने हैं.
- अगर ज़रूरत हुई तो ऑक्सीज़न देना पड़ता है.

- कई तरह के स्पेशल ट्रीटमेंट और एंटीवायरल्स पर स्टडी चल रही है.
- हालांकि, इलाज में इनका इस्तेमाल अभी नहीं किया जा रहा है.
- लेकिन मॉनीटरिंग ज़रूरी है क्योंकि 95% लोग ठीक हो जाते हैं.
- अगर मंकीपॉक्स गंभीर स्थिति में पहुंच जाए, तो इंटेसिव केयर की ज़रूरत पड़ सकती है.
एमपॉक्स के मामले अचानक क्यों बढ़ रहे हैं?- एमपॉक्स के मामले अनुकूल वातावरण मिलने की वजह से बढ़ रहे हैं.
- एमपॉक्स एक ज़ूनोटिक बीमारी है.
- इस मौसम में बारिश होती है, तो जंगल से जानवर बाहर आते हैं.
- अपने खाने के लिए वो इधर-उधर घूमते हैं.
- फिर जब वायरस से संक्रमित जानवर किसी व्यक्ति को काटता है, तो ये वायरस उस व्यक्ति में भी पहुंच जाता है और फिर दूसरे लोगों में फैलने लगता है.
इस बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन है. हालांकि, वो फिलहाल उन्हीं लोगों के लिए है जो संक्रमित हैं, या संक्रमित व्यक्ति के करीबी हैं. इसलिए, अगर आपके आसपास किसी में मंकीपॉक्स यानी एमपॉक्स के लक्षण हों, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास जाने को कहें. इसमें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है. हमारे देश में अभी इसके मामले रिपोर्ट नहीं किए गए हैं. पर हमारे लिए सतर्क रहना ज़रूरी है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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