आपने दि गटलेस फूडी (The Gutless Foodie) का नाम सुना होगा! बिना पेट वाली फूड ब्लॉगर नताशा डिड्डी (Natasha Diddee). कुछ समय पहले उनका निधन हो गया. बताया जाता है कि करीब 12 साल पहले एक ट्यूमर के चलते डॉक्टर्स को उनका पेट निकालना पड़ा था. वो बिना पेट के ही जी रही थीं. लेकिन, अपने फॉलोअर्स के लिए खाने से जुड़ी कई चीज़ें अक्सर शेयर करती रहती थीं. नताशा ने कई बार यह बताया था कि उन्हें डंपिंग सिंड्रोम भी है. इसमें खाना बहुत देर तक पेट में नहीं रह पाता. वो तुरंत छोटी आंत में पहुंच जाता है और इस वजह से खाना सही से पचता नहीं. इससे व्यक्ति को उल्टी, मतली, अपच, दस्त जैसी दिक्कतें होने लगती हैं.
क्या है डंपिंग सिंड्रोम जिसकी वजह से खाना पेट में नहीं रहता?
डंपिंग सिंड्रोम में खाना बहुत देर तक पेट में नहीं रह पाता. वो तुरंत छोटी आंत में पहुंच जाता है. फिर खाना सही से पच नहीं पाता. इससे लूज़ मोशन, क्रैंप्स और पेट में दर्द शुरू होने लगता है.
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आज डंपिंग सिंड्रोम पर बात करेंगे. डॉक्टर से जानेंगे कि डंपिंग सिंड्रोम क्या होता है? यह किन वजहों से होता है? इसके लक्षण क्या हैं? साथ ही समझेंगे कि डंपिंग सिंड्रोम से बचाव और इलाज कैसे किया जा सकता है?
डंपिंग सिंड्रोम क्या होता है?
ये हमें बताया डॉ. गुरबख्शीश सिंह सिद्धू ने.

आमतौर पर खाना पेट में पचता है. फिर धीरे-धीरे छोटी आंत में जाता है. अगर सारा का सारा खाना, एक साथ, एकदम से छोटी आंत में जाता है तो इसकी वजह से कई तरह के लक्षण महसूस होते हैं. इसको डंपिंग सिंड्रोम (Dumping Syndrome) कहा जाता है. यह ज़्यादातर किसी सर्जरी के बाद मरीज़ों में देखा जाता है. जैसे पोस्ट-गैस्ट्रेक्टोमी और पोस्ट-गैस्ट्रिक सर्जरी यानी गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी. इनके बाद हमें इस सिंड्रोम के लक्षण देखने को मिलते हैं. कई बार कुछ मेडिकल कंडीशन के कारण भी ये देखा जाता है. जैसे डायबिटीज के मरीज़ और ऑटोनोमिक डिसफंक्शन के मरीज़ों में. ऑटोनोमिक डिसफंक्शन यानी ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम की नसों का ख़राब हो जाना.
लक्षण
जब छोटी आंत में खाना बहुत तेज़ी से पहुंच जाता है तो वो उसे संभाल नहीं पाती है. ऐसे में मरीज़ को कई लक्षण महसूस होते हैं. जैसे लूज़ मोशन, क्रैंप्स और पेट दर्द. कई बार शरीर खाना सोख नहीं पाता, तब शुगर लेवल कम हो जाता है. ठंडा पसीना आता है. एकदम से बीपी और दिल की धड़कन गिर जाती है. इससे बेहोशी आने लगती है.

बचाव और इलाज
इसमें बचाव बेहद ज़रूरी है. अगर हमें अंदाज़ा है कि किसी मरीज़ को एक खास सेटिंग में डंपिंग सिंड्रोम होगा तो उसे कुछ सलाह दी जाती है. मरीज़ को थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए. सिंपल शुगर वाली चीज़ें खाना अवॉइड करें. जैसे कोल्ड ड्रिंक, जूस वगैरह. मरीज़ को कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट लेने चाहिए. जैसे मटर, सेम, साबुत अनाज, चावल, छोले, शकरकंद, सब्ज़ियां आदि. फाइबर ज़्यादा खाना होता है. प्रोटीन की मात्रा ज़्यादा रखनी होती है. दूध, कोल्ड ड्रिंक, जूस और सिंपल फ्रैक्टोज़ बेस्ड शुगर अवॉइड करें. खाना कम-कम खाना है, पर कुछ-कुछ समय में खाते रहना है. डंपिंग सिंड्रोम के लिए कुछ दवाएं भी आती हैं. आमतौर पर उनकी ज़रूरत नहीं पड़ती है. हालांकि बहुत ज़रूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे अगर डॉक्टर को लग रहा है कि डाइट में बदलाव करने के बाद भी मरीज़ को आराम नहीं पहुंच रहा है.
डंपिंग सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को अपने खाने-पीने का खास ध्यान रखना होता है. अधिक शुगर और फैट वाली चीज़ों से दूरी बनानी होती है. अपनी डाइट में बदलाव करना एक अहम कदम है. अगर बताए गए लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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