नेहा 27 साल की हैं. दिल्ली की रहने वाली हैं. उनका हमें मेल आया. वो बताती हैं कि साल 2020 से उनका वर्क फ्रॉम होम चल रहा है. उनका सारा दिन लैपटॉप के आगे स्क्रीन पर आंखें गड़ाए निकल जाता है. रात में काम खत्म करके भी वो अपना ज़्यादातर समय मोबाइल या टीवी के सामने ही बिताती हैं. आंखों पर ज़्यादा जोर पड़ने के कारण पिछले कई समय से उनको दर्द, पानी आना और खुजली की शिकायत थी. पर दो महीने पहले उनकी पलकों पर अजीब सी सूजन होने लगी. ऐसा दोनों आंखों पर हो गया. जब उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला उन्हें ब्लेफेराइटिस नाम की समस्या है.
लॉकडाउन के दौरान ब्लेफेराइटिस के केसेस में अच्छा-खासा उछाल आया है. कई लोगों को ये दिक्कत हो रही है. नेहा चाहती हैं कि हम ब्लेफेराइटिस पर एक एपिसोड बनाएं. ये क्या होता है, क्यों होता है, इसका इलाज क्या है, डॉक्टर से पूछकर सही जानकारी लोगों को दें. तो सबसे ब्लेफेराइटिस क्या है, ये समझ लेते हैं. ब्लेफेराइटिस क्या होता है? ये हमें बताया डॉक्टर अनीता सेठी ने.

-लॉकडाउन के दौरान मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी ज़्यादा देखने से यानी ज़्यादा स्क्रीन टाइम के कारण ब्लेफेराइटिस के केसेस ज़्यादा आ रहे हैं.
-पलकों पर आई सूजन या इन्फेक्शन को ब्लेफेराइटिस कहते हैं. कारण -आईलिड यानी पलकों में मौजूद छोटी ग्रंथियों में इन्फेक्शन होने के कारण ब्लेफेराइटिस होता है.
-ख़ासकर ये ऊपर वाली पलकों में होता है.
-ये आंखों के डैंड्रफ की तरह होता है.
-बालों के डैंड्रफ से इसका कनेक्शन है.
-बच्चों में ब्लेफेराइटिस ज़्यादा होता है.
-पलकों की ग्रंथियों में इन्फेक्शन होने के कारण उनसे रिसाव होता है.
-ये रिसाव पलक के ऊपर जमा हो जाता है.
-पपड़ी बन जाती है.
-इसी को ब्लेफेराइटिस कहा जाता है.

लक्षण -पलकों में सूजन.
-पलकों में खुजली.
-लाल हो जाना.
-आंख भी लाल हो जाना.
-आंख से पानी आना.
-आंख में उलझन.
-कभी-कभी दर्द.
-आंखों पर स्टाई (फोड़ा सा) हो जाना.
-सर्दियों के मौसम में ये ज़्यादा होता है.
-जिन लोगों को एलर्जी या स्किन की बीमारी है, उनमें ये ज़्यादा पाया जाता है. हेल्थ रिस्क -वैसे तो ब्लेफेराइटिस से कोई डायरेक्ट हेल्थ रिस्क नहीं है.
-पर अगर ग्रंथियों में सूजन का इलाज न हो.
-ये लंबे अरसे तक चले तो फिर कुछ प्रॉब्लम्स हो सकती हैं.
-जैसे ड्राई आंखें.
-इसमें आंखों की नमी कम हो जाती है.
-उससे आंखों में लाली, जलन, आंखों में मिट्टी जाने का एहसास होता है.
-ये बहुत ज़्यादा बढ़ जाए तो कॉर्निया (आंखों पर मौजूद ट्रांसपेरेंट झिल्ली) पर भी असर पड़ता है.
-कुछ लोगों में बार-बार स्टाई होता है.

-ऊपर की पलक में, नीचे की पलक में फिर दूसरी आंख में होता है. इलाज -इलाज के लिए सबसे पहले जांच की जाती है, ये देखने के लिए कि ब्लेफेराइटिस कितना सिवियर है.
-उसी के हिसाब से इलाज शुरू किया जाता है.
-खाने और आंखों में डालने के लिए एंटीबायोटिक दी जाती हैं.
-आंखों की नमी को बचाने के लिए ड्रॉप्स दी जाती हैं.
-पलकों की सफाई बेहद ज़रूरी है.
-10-15 दिनों के लिए गर्म सिकाई करनी है.
-गर्म पानी में एक चुटकी मीठा सोडा डालकर किसी कपड़े या रूई को उसमें डुबोकर उससे आंखों की सिकाई करनी है.
-उसी पानी से आंख की धुलाई भी करनी है.
-जो पपड़ियां जमती हैं, उन्हें खींचना नहीं है.
-गर्म पानी लगाने के बाद जब वो सॉफ्ट हो जाएंगी तो अपने आप झड़ जाएंगी.
-खींचने से पलकें भी गिरेंगी.
-सिकाई के बाद स्क्रब करना होता है.
-स्क्रब मतलब थोड़ा रगड़ना है.
-कान को साफ़ करने वाले बड को बेबी शैम्पू में डुबोकर पलकों के किनारे बहुत हल्के हाथों से रगड़ना है.
-ताकि जो भी कीटाणु वहां हैं, वो सारे निकल जाएं.

-उसके बाद एंटीबायोटिक मरहम लगाकर रात में सोना है.
-ये 15 दिन का ट्रीटमेंट है.
-हो सकता है 6 महीने या सालभर बाद ये दोबारा करना पड़े.
-क्योंकि ब्लेफेराइटिस कभी-कभी सीज़नल भी होता है.
-अगर आंख पर स्टाई यानी फोड़ा जैसा हो जाए और वो दवाइयों से नहीं ठीक हो रहा.
-तो उसके लिए एक छोटी सी सर्जरी की जाती है.
-जिन लोगों को क्रोनिक ड्राई आंखों की दिक्कत है तो उनकी जांच की जाती है.
-जैसे मीमोग्राफी, ड्राई आई स्क्रीनिंग.
-उस हिसाब से दवाइयां दी जाती हैं.
-अगर दिक्कत ज़्यादा है तो कुछ इलाज उपलब्ध हैं जैसे IPL और लिपिफ्लो. बचाव -आंखों को रगड़ना या मलना नहीं है.
-आंखों को कम से कम छूना चाहिए.
-क्योंकि कीटाणु आंखों के आसपास होते हैं.
-रगड़ने से वो अंदर चले जाते हैं.
-बहुत ज़्यादा देर तक कंप्यूटर, लैपटॉप, टीवी, मोबाइल का इस्तेमाल न करें.
-इससे आंखों में ज़्यादा ड्राईनेस होती है.
-इन्फेक्शन का चांस ज़्यादा बढ़ जाता है.
ब्लेफेराइटिस क्या होता है, ये तो आपको समझ में आ ही गया होगा. सर्दियों के मौसम में ये दिक्कत ज़्यादा बढ़ जाती है. इसलिए ध्यान रखिए. बचाव की जो टिप्स डॉक्टर अनीता ने बताई हैं, उनको फॉलो करिए. ब्लेफेराइटिस से बचे रहेंगे.