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क्या खून चढ़वाते हुए ब्लड ग्रुप मैच होना ज़रूरी है?

अगर ग़लत ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया दिया गया तो क्या होता है? क्या पेशेंट को सेम ब्लड ग्रुप का खून ही चढ़ाना ज़रूरी है? आज जानेंगे इन सवालों के जवाब.

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कुछ ऐसे ब्लड ग्रुप भी होते हैं, जिनमें अलग ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया जा सकता है

आपने अक्सर ये देखा होगा कि जब किसी को खून चढ़ाने की ज़रूरत पड़ती है, तब डॉक्टर उसका ब्लड ग्रुप ज़रूर पूछते हैं. ऐसी इमरजेंसी में खून ब्लड बैंक से लिया जाता है. फिर रिश्तेदार, दोस्त अपना खून डोनेट करते हैं ताकि ये लेन-देन बना रहे. ब्लड बैंक में खून की कमी न हो. पर मरीज़ को कोई भी, किसी का भी खून यूं ही नहीं चढ़ाया जाता. उस खून की जांच होती है. सफ़ाई की जाती है. फिर अगर वो खून फ़िट है, तब पेशेंट को चढ़ाया जाता है. ऐसा ही खूब ब्लड बैंक में स्टोर होता है. पर ऐसे में एक सवाल ज़रूर दिमाग में आता है, क्या पेशेंट को सेम ब्लड ग्रुप का खून ही चढ़ाना ज़रूरी है? आज जानेंगे इस सवाल का जवाब. साथ ही जानेंगे खून चढ़ाते हुए किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है? और अगर ग़लत ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया दिया गया तो क्या होता है?

पेशेंट को सेम ब्लड ग्रुप का खून ही चढ़ाना ज़रूरी है?

ये हमें बताया डॉ. हरप्रीत कौर ने.

डॉ. हरप्रीत कौर, हेड, ब्लड सेंटर, आकाश हेल्थकेयर

ऐसा जरूरी नहीं है. हालांकि अगर सेम ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया जाए तो ज्यादा बेहतर है. कुछ ऐसे ब्लड ग्रुप भी होते हैं, जिनमें अलग ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया जा सकता है. जैसे B ब्लड ग्रुप को सेम ब्लड ग्रुप का खून तो चढ़ाया जा सकता है. लेकिन इसके अलावा O ब्लड ग्रुप वाला खून भी चढ़ाया जा सकता है. AB ब्लड ग्रुप को यूनिवर्सल रेसिपेंट कहते हैं. इसे किसी भी ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया जा सकता है. O को यूनिवर्सल डोनर कहते हैं. O किसी भी ब्लड ग्रुप को खून दान दे सकता है.

ब्लड ग्रुप Rh पॉजिटिव या नेगेटिव भी होता है. कोशिश यही रहती है कि पॉजिटिव ब्लड ग्रुप को पॉजिटिव चढ़ाया जाए. नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाले को नेगेटिव वाला चढ़ाया जाए. लेकिन पॉजिटिव वाले को नेगेटिव का खून भी चढ़ा सकते हैं.

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क्या पेशेंट को सेम ब्लड ग्रुप का खून ही चढ़ाना ज़रूरी है?
खून चढ़ाते हुए किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है?

-बहुत सी चीज़ों का ध्यान रखना जरूरी है.

-सबसे पहले तो मैच होने वाला ब्लड ग्रुप चढ़ रहा है, इस बात का ध्यान रखें.

-डोनर और रेसिपेंट की टेस्टिंग जरूरी है.

-इसे क्रॉस मैचिंग कहते हैं.

-दूसरी बात ये है कि शुरू में बहुत धीरे-धीरे खून चढ़ाया जाता है.

-खून चढ़ाने के शुरूआती 15 मिनट मरीज पर निगरानी रखी जाती है.

-मरीज में रिएक्शन हो सकता है इसलिए ध्यान रखा जाता है.

-जैसे ही ब्लड बैंक से खून आ जाता है, उसको जल्दी से जल्दी ट्रांसफर किया जाता है.

-उस खून को ज्यादा देर नॉर्मल तापमान में न रखा रहने दें.

अगर ग़लत ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया दिया गया तो क्या होता है?

मौत हो सकती है. जॉन्डिस या कई दूसरे ब्लड के रिएक्शन भी हो सकते हैं.

खून डोनेट करते हुए, और खून चढ़वाते हुए सतर्क रहना ज़रूरी है. सही जानकारी होना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है. किसी सर्टिफाइड ब्लड बैंक में ही खून डोनेट करें और वहीं से खून लें. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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