The Lallantop

इस लड़की ने 'नथनी' पहनकर विदेश में बवाल करवाया था, आप हिजाब में फंसे हैं!

जब एक नोज़ पिन का मामला साउथ अफ्रीका के हाईकोर्ट पहुंचा था.

Advertisement
post-main-image
कहानी दक्षिण अफ़्रीका में पढ़ रही दक्षिण भारतीय लड़की से जुड़ी है (फोटो - PTI/BBC)

कर्नाटक हिजाब विवाद. इस साल का सबसे हाइलाइटेड विवाद. जनवरी के आख़िरी हफ़्ते से शुरू हुआ, इस बात से कि क्या छह लड़कियां क्लास में हिजाब पहन कर बैठ सकती हैं. और, 'क्या राज्य ये तय कर सकता है कि कोई क्या पहनेगा, क्या नहीं?' से होता हुआ पहुंच चुका है इस सवाल पर कि क्या हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है? मामले (Karnataka Hijab Row) की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने मार्च में फ़ैसला सुनाया था कि लड़कियां स्कूल में हिजाब नहीं पहन सकतीं. इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिकाएं दायर की गईं. इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. केस धार्मिक स्वतंत्रता से पहचान की लड़ाई के बीच झूल रहा है.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

सुनवाई के दौरान अपने तर्क मज़बूत करने के लिए वक़ील पुराने केसेज़ का हवाला दे रहे हैं. कॉमन प्रैक्टिस है. इसी दौरान एक केस का ज़िक्र आया. केस, जो जुड़ा है एक नोज़-पिन यानी नाक में पहनने वाले फूली या लॉन्ग, या कहें नथनी से. एक नथनी, जिसने दक्षिण अफ़्रीका के क़ानून बदल दिए. इसी केस के बारे में इस आर्टिकल में बात करेंगे.

नोज़ पिन: एक तमिल हिंदू पहचान?

साल 2004. साउथ अफ़्रीका का डर्बन शहर. गर्ल्स हाई स्कूल में एक भारतीय लड़की पढ़ती थी. दक्षिण भारतीय लड़की. नाम, सुनाली पिल्लई. केस इसी दक्षिण अफ़्रीका में पढ़ रही दक्षिण भारतीय लड़की से जुड़ा हुआ है. बसंत की छुट्टियों के बाद सुनाली वापस अपने स्कूल आई. सब वैसा ही था. बस एक बदलाव था. लड़की ने एक नोज़ पिन पहन ली थी. बस्स्स.. यहीं से शुरू हुआ बवाल. स्कूल प्रशासन ने कहा कि नोज़ पिन ड्रेस-कोड का हिस्सा नहीं है और इसीलिए वो इसे नहीं पहन सकती. कुछ दिन की मोहलत दी कि नाक छेदे जाने पर जो घाव हुआ है, वो भर जाए. लेकिन सुनाली नहीं मानी. नोज़ पिन पहन कर आती रही.

Advertisement

फिर स्कूल ने सुनाली की मां से कहा कि वो अपनी बेटी को मना करें. मां भी नहीं मानीं. कहा कि नथनी उनके परिवार और संस्कृति की परंपरा है.

डर्बन हाई स्कूल (फोटो - फेसबुक)

सुनाली कोर्ट चली गई. डर्बन इक्वॉलिटी कोर्ट. वहां की कचहरी मान लीजिए. दावा किया कि स्कूल उनके साथ भेदभाव कर रहा है. सुनाली की मां नवनीतम पिल्लई ने मजिस्ट्रेट को बताया कि नाक की नथनी हिंदू धर्म के अनुसार आभूषण नहीं है. बल्कि जब एक लड़की प्यूबर्टी तक पहुंच जाती है, तो पारिवारिक परंपरा और सांस्कृतिक प्रथा के तहत उसे ये नथनी पहनाई जाती है.

इसके जवाब में स्कूल की प्रिंसिपल ऐनी मार्टिन ने कहा कि स्कूल का कोड इस बात पर स्पष्ट है कि पियर्सिंग यूनिफ़ॉर्म का हिस्सा नहीं है. और, विशेषज्ञों की राय ये है कि नथनी धर्म पर नहीं, संस्कृति पर आधारित है. इक्वॉलिटी कोर्ट ने स्कूल के तर्क को सही माना और कहा कि ये कोई भेदभाव नहीं है और यूनिफ़ॉर्म का पालन होना चाहिए.

Advertisement
मामला चला गया हाई कोर्ट

वहां भी यही होता है. कोर्ट के बाद कोर्ट. तारीख़ पर तारीख़. मामला गया कवाज़ुलू-नतल हाई कोर्ट. और, 5 अक्टूबर 2007 को हाई कोर्ट ने कचहरी (पढ़ें, इक्वॉलिटी कोर्ट) के फ़ैसले को पलट दिया. सुनाली के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और माना कि स्कूल प्रशासन का प्रतिबंध भेदभावपूर्ण था. मुख्य न्यायाधीश ने फ़ैसले में कहा कि आभूषण पहनने पर रोक लगाने में भेदभाव की संभावना है क्योंकि ये पढ़ने वालों के कुछ समूहों को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को स्वतंत्र तौर पर व्यक्त करने की इजाज़त देता है. वहीं, दूसरों को उस अधिकार से वंचित करता है.

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पिल्लई के ख़िलाफ़ स्कूल की कार्रवाई अनुचित थी. कहा,

"अगर आप उसे नथनी नहीं पहनने देते, तो उसे हर दिन के कई घंटों के लिए नथनी उतारनी पड़ेगी. ये उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का उल्लंघन होगा. उसे थोड़े समय के लिए भी इसे पहनने के अधिकार से वंचित करना एक गलत संदेश देता है. ये ऐसा संदेश देता है कि दक्षिण अफ़्रीका में सुनाली, उसके धर्म और उसकी संस्कृति का स्वागत नहीं है."

साथ ही अदालत ने स्कूल से कहा कि अलग-अलग धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के 'उचित समायोजन' (reasonable accommodation) के लिए वो अपने कोड में संशोधन करें.

Reasonable accommodation या उचित समायोजन या वाजिब गुंजाइश. इसी की बात हिजाब विवाद की सुनवाई में भी हो रही है. जस्टिस गुप्ता ने सुनवाई के दौरान कहा कि रुद्राक्ष और क्रॉस, हिजाब से अलग हैं. कपड़े के अंदर पहने जाते हैं और इसीलिए किसी को दिखते नहीं. इसी पर जवाब देते हुए वकील कामत ने कहा कि सवाल दिखने या नहीं दिखने का नहीं, सवाल 'वाजिब गुंजाइश' का है. अब देखना होगा कि भारत का सुप्रीम कोर्ट इस प्रतीकात्मक प्रभाव के बारे में क्या सोचता है?

हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'चुन्नी और पगड़ी से हिजाब की तुलना नहीं हो सकती!'

Advertisement