वो पैदा हुई थी एक लड़के के शरीर में. जब होश संभाला तो पाया कि वो अलग है. सहज नहीं थी अपने शरीर में, न जन्म के समय असाइन हुए अपने जेंडर में. बरसों तक लंबा संघर्ष किया. खुद को सोसायटी के तय किए गए 'आदर्श ढांचे' में ढालने की कोशिश की. कामयाबी नहीं मिली. आखिर में समझ आया कि खुद की खुशी बहुत अहम होती है. अपने ज़िंदगी के फैसले खुद लेना ज़रूरी है. फिर लिया ऐसा फैसला, जो बहुत कठिन था. पुरुष के शरीर का त्याग कर वो बन गई एक महिला. नाम रखा अक्सा शेख. उर्फ डॉक्टर अक्सा शेख. ये भारत के एक कोविड वैक्सिनेशन सेंटर की नोडल अधिकारी हैं. ऐसा करने वाली पहली ट्रांस वुमन हैं डॉक्टर अक्सा.
कहानी ट्रांस महिला डॉ अक्सा शेख की, जो पूरा एक कोविड वैक्सिनेशन सेंटर संभाल रही हैं
बचपन का अकेलापन, सुसाइड का ख्याल, डिप्रेशन से जूझकर खुद को दी नई पहचान.

कौन हैं Aksa Sheik और क्या है उनकी कहानी?
डॉक्टर अक्सा 38 बरस की हैं. दिल्ली के हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च के कोविड वैक्सिनेशन सेंटर की नोडल अधिकारी हैं. इसी इंस्टीट्यूट में कम्युनिटी मेडिसिन में असोसिएट प्रोफेसर भी हैं. सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं और एक प्राउड ट्रांसजेंडर महिला हैं. जब वो एक वैक्सिनेशन सेंटर की हेड बनीं, तो उन पर कई सारी खबरें हुंईं. हेडलाइन्स बनीं कि पहली ट्रांसजेंडर महिला, जो किसी कोविड वैक्सिनेशन सेंटर की नोडल अधिकारी बनी. लेकिन अक्सा की कहानी इस एक फैक्ट पर आकर खत्म नहीं होती. उनकी कहानी तब पूरी होगी जब आप उनके असल संघर्ष के बारे में जानेंगे. इसे आप तक लाने के लिए हमने बात की खुद डॉक्टर अक्सा शेख से.
कैसा रहा बचपन?
मुंबई में जन्म हुआ था. एक चॉल वाले सेटअप में घर था. घर पर माता-पिता और दो बड़े भाई थे. घरवालों ने लड़के की तरह अक्सा को पाला. ज़ाकिर नाम रखा. पैरेंट्स के लिए तो तीन बेटे थे, लेकिन जब अक्सा तीन-चार साल की हुईं, माने उस उम्र में पहुंची, जहां से इंसान को अपनी मेमोरी थोड़ी बहुत याद रहती है, तब से ही अक्सा को महसूस होने लगा कि वो अलग हैं. उन्हें लगता था कि वो लड़का नहीं हैं. पर उतनी कम उम्र वो खुद ही नहीं समझ पाईं कि उनके साथ क्या हो रहा है. किसी से कुछ कह भी नहीं पाती थीं. लड़कों की बजाए लड़कियों के साथ खेलना अच्छा लगता था, इसलिए लोग सवाल भी उठाते थे. अक्सा बताती हैं-
"मैं अपने भाइयों के साथ खेलने नहीं जाती थी. मेरी बहुत सारी सहेलियां थीं, मैं उनके साथ खेलती थी. जब रोल प्ले होता था, मैं फीमेल रोल अदा करती थी. चाहे वो टीचर का हो, हाउस वाइफ का हो या किसी छोटी बच्ची का हो. लोग ये देखते थे. कहते थे कि बच्चा लड़कियों जैसी हरकतें कर रहा है. तुम इसको खेलने भेज दो तो ये ठीक हो जाएगा. या क्रिकेट खेलेगा तो ठीक हो जाएगा. लड़कों के साथ रहेगा तो ठीक हो जाएगा. उम्र के साथ ठीक हो जाएगा. नज़र लग गई है शायद. ऐसी बातें कही जाती थीं."

डॉक्टर अक्सा एक वैक्सिनेशन सेंटर की नोडल अधिकारी भी हैं. (फोटो- इंस्टाग्राम: dr.aqsa.shaikh)
अक्सा को बच्चों की तरफ से भी अपने लिए 'हिजड़ा' और 'छक्का' शब्द सुनाई देते थे. उन्होंने आगे बताया कि वो खुद को न तो गे कम्युनिटी और न ही 'हिजड़ा' समुदाय से जुड़ा हुआ पाती थीं. जो जेंडर मिला था जन्म के समय, उसमें तो सहज थी ही नहीं. इसलिए ये कश्मकश उनके दिमाग में बनी रहती थी कि वो आखिर हैं कौन? अक्सा ने आगे बताया-
"ट्रॉमा कि हद ये कि मेरा एडमिशन एक ऑल बॉयज़ स्कूल में हो गया. तो घर आने के बाद तो मेरे पास सहेलियां थीं, लेकिन स्कूल में वो ऑप्शन नहीं था. मेरा स्कूल का समय काफी अकेलेपन में बीतता था. वॉशरूम जाने में भी मन सहम जाता था. इतना कि रिसेस के टाइम पर मैं कभी नहीं जा पाती थी क्योंकि दूसरे लोग वहां होते थे. मैं पीरियड के दौरान टीचर से परमिशन लेकर जाती थी. 12वीं में मेडिकल एंट्रेंस एग्ज़ाम में टॉप 100 में रही. इसके बलबूते में अच्छे मेडिकल कॉलेज में पढ़ने गई. मेडिसिन एक ब्रांच है, जो काफी स्ट्रेसफुल है. लेकिन जब आप उसमें एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के तौर पर जाते हो, तो और ज्यादा स्ट्रेसफुल हो जाता है. टॉयलेट्स केवल मेल-फीमेल के लिए थे. हॉस्टल्स मेल-फीमेल के लिए थे. MBBS के साढ़े पांच साल में मैंने एक दिन भी हॉस्टल में कदम नहीं रखा. किसी कॉलेज फेस्ट में भाग नहीं लिया. कॉन्वोकेशन में नहीं गई. क्योंकि एक ऐसा फेज़ आ जाता है, जब आप चाहते हो कि आप गायब हो जाओ. कोई आपको देखे, सुने नहीं. जब कोई आपको देखेगा नहीं, सुनेगा नहीं, तो निगेटिव रिएक्शन्स नहीं मिलेंगे. आप ये कोशिश करते हो कि आप गायब हो जाओ छुप जाओ."
जब नया मोड़ आया
डॉक्टर अक्सा के मेडिकल कॉलेज का जब तीसरा साल था, तब ब्लड प्रेशर बढ़ना शुरू हो गया. कॉलेज के डॉक्टर्स को दिखाना शुरू किया. इसी दौरान एक एंडोक्रायनोलॉजिस्ट से अक्सा की मुलाकात हुई. यहां पर पहली बार किसी डॉक्टर ने अक्सा से उनकी सेक्शुअलिटी या जेंडर के बारे में पूछा. उसके बाद उन्हें सायकायट्री डिपार्टमेंट में भेजा गया. यहां सायकायट्रिस्ट, सायकोलॉजिस्ट वगैरह से लंबी काउंसलिंग के बाद पहली बार अक्सा अपनी पहचान से रूबरू हुईं. ये बात थी साल 2003 की. उन्हें अपनी दिक्कत का डायग्नोसिस मिला था, जो था gender identity disorder यानी GID.
फिर डॉक्टर्स ने परिवार को बताया कि उनके बच्चे को GID है. वो अपना जेंडर अफर्मेशन सर्जरी करवाना चाहते हैं. माने अपने शरीर को लड़की के शरीर की तरह बनाना चाहते हैं. परिवार वालों को ये सुनकर सदमा सा लगा. अक्सा कहती हैं कि वो अपने परिवार वालों की तब की मनोस्थिति बखूबी समझती हैं, क्योंकि किसी व्यक्ति को उसके पैरेंट्स 20 साल या उससे ज्यादा तक एक लड़के की तरह पालें और एक दिन उन्हें पता चले कि उनका बच्चा अपना सेक्स चेंज सर्जरी करवाना चाहता है, क्योंकि वो लड़की की तरह महसूस करता है, तब उन्हें सदमा तो लगेगा ही. अक्सा को तब अपने परिवार की तरफ से एक्सेप्टेंस नहीं मिला. न केवल एक्सेप्टेंस, बल्कि ये कहा गया कि ये दिमाग का कोई भ्रम है. तब अक्सा ने जेंडर अफर्मेशन सर्जरी का विचार दिमाग से निकालने की कोशिश की और उसी तनाव के साथ आगे पढ़ाई जारी रखी.
MBBS-MD दोनों हो गया. फिर परिवार वालों ने सोचा कि अक्सा की शादी करा दी जाए किसी लड़की से. ये परिवार वालों के लिए एक सॉल्यूशन जैसा था. इसके बाद अक्सा आज से करीब 10 साल पहले मुंबई छोड़कर दिल्ली आ गईं. शुरुआत में एक NGO में जॉब की, फिर एक मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर जॉइनिंग की. इसके बाद लाइफ में एक ऐसा फेज़ आया जब डिप्रेशन का सामना करना पड़ा, तब दिमाग में सुसाइड तक करने का ख्याल आया. अक्सा कहती हैं-
"मेरे पास पैसे थे, मैं सर्जरी कराने का फैसला भी ले सकती थी. लेकिन कई बार आपके ऊपर जो जंज़ीरें होती हैं वो मानसिक होती हैं. ये भी सवाल आता था कि क्या इस्लाम में इसकी परमिशन है, क्योंकि मैं काफी रिलिजियस बैकग्राउंड से भी आती थी. तो ये सारी जद्दो-जहद चलती रही. इस दौरान मानसिक स्वास्थ्य इतना ज्यादा बिगड़ गया कि एक रात मैंने खुद को खत्म करने का फैसला ले लिया. क्योंकि इस तरह से मैं जीना नहीं चाहती थी, जैसे जीना चाहती थी वैसे कोई जीने देगा नहीं. फिर मैंने सोचा कि अगर मैं दूसरों की खुशी के लिए जियूं तो मैं शायद एक ज़िंदा लाश बन जाऊं. एक झूठा जीवन होगा. और अगर मैं अपनी खुशी के लिए जियूं तो बाकी सबको शायद नाराज़ कर दूंगी, लेकिन मैं तो एक दिन जी पाऊंगी. तो फाइनली उस दिन मैंने बाकी सबके ऊपर खुद को चुना. वहां से शुरुआत हुई अक्सा की."
आज से करीब चार साल पहले अक्सा ने डिसाइड किया था कि उन्हें ट्रांज़िशन करना है. उन्होंने हॉर्मोनल, सर्जिकल, लीगल, हर तरह का ट्रांज़िशन एक के बाद एक कराया. और आज हम सब उन्हें डॉक्टर अक्सा शेख के नाम से जानते हैं.
परिवार का सपोर्ट ज़रूरी है, लेकिन खुद की खुशियां सबसे अहम
अक्सा बताती हैं कि उन्हें सर्जरी के लिए उनकी मां की परमिशन नहीं मिली थी. और सर्जरी के बाद मां ने उन्हें एक्सेप्ट करने में भी वक्त लगाया. लेकिन अब वो दिल्ली में अपनी मां के साथ ही रह रही है. मां-बेटी का ये रिश्ता अभी नया ही है. दोनों ने धीरे-धीरे एक-दूसरे को एक्सेप्ट किया है. अक्सा का कहना है कि परिवार का सपोर्ट बहुत ज़रूरी होता है, लेकिन लाइफ आपकी खुद की है. अगर आपको अपनी खुशी के लिए सर्जरी करानी है, अपनी पहचान के लिए करानी है, तो फैसला लें. तब खुद को प्राथमिकता दें.