राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu)ने देश की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर 25 जुलाई को शपथ ली. इस दौरान उन्होंने एक सफेद रंग की साड़ी पहनी हुई थी जिसके बॉर्डर पर हरे और लाल रंग का डिज़ाइन बना हुआ था. वैसे इस साड़ी की चर्चा एक-दो दिन पहले से ही काफी हो रही थी, ख़बरों में बताया जा रहा था कि द्रौपदी मुर्मू की भाभी उनके लिए एक ख़ास साड़ी लेकर आ रही हैं जो उनके समुदाय यानी संथाली आदिवासी समुदाय के लिए काफी मायने रखती है. तो मैं तो बस इंतज़ार कर रही थी कि कब उस साड़ी की फोटो आये और मैं उसे देख पाऊं.
शपथ लेते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जो साड़ी पहनी, उसकी ये खासियत नहीं जानते होंगे आप
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ग्रहण में संथाली साड़ी पहनी थी.

अब जब ये फोटो आ गयी है तो हमने सोचा क्यों न थोड़ा ज्ञानवर्धन ही कर लिया जाए. ये साड़ी क्यों ख़ास है, कैसे बनती है, इसका क्या महत्व है? इन सवालों के जवाब के लिए मैंने बात की ध्यानचंद सोरेन से. उनकी ओडिशा में UPAL नाम की एक साड़ी की दुकान है, वो लंबे से साड़ियों के बिजनेस में हैं और भारत की ट्रेडिशनल साड़ियों पर अच्छी जानकारी रखते हैं.

उन्होंने हमें बताया कि द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ग्रहण में संथाली साड़ी पहनी थी. ये एक हैंडलूम साड़ी है, जो हाथ से बुनी जाती है. पहले ये साड़ी केवल कॉटन के धागों से बनती थी, लेकिन अब सिल्क के धागों से भी इसे बनाया जाने लगा है. उन्होंने बताया कि अब संथाली साड़ियां मशीनों की मदद से बड़े पैमाने पर भी बनाई जाती है. उन्होंने बताया कि संथाली साड़ियों को खास मौके पर पहनना शुभ माना जाता है.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सादे रंग की ‘झल’ साड़ी पहनी हुई थी. क्योंकि ये साड़ी एकदम प्लेन थी तो इसे झल साड़ी कहा जाता है. वहीं अगर इस साड़ी में चेक बने होते या उसमें बूटियां होती तो उसे ‘फुटा झल’ कहा जाता. इसी तरह पुरुषों की धोती को 'फुटा कचा' कहते हैं.
ध्यानचंद सोरेन ने हमें बताया कि वक्त के साथ संथाली साड़ियों को भी मॉडर्न टच दिया जाने लगा. इनमें पंछी, फूल, पत्तियां और हाथी जैसे अलग-अलग मोटिफ्स बनाए जाने लगे. साड़ी में ज़्यादातर पल्लू या बॉर्डर पर मोटिफ बनाए जाते हैं. इसके अलावा ‘फुटा झल’ साड़ी में धनुष और तीर भी बना रहता है. जो एक शुभ सिम्बल माना जाता है. राष्ट्रपति की साड़ी में हालांकि इस तरह का कोई डिज़ाइन नहीं बना हुआ है.
रंगों की बात करें तो पहले ये साडियां ज़्यादातर हरी, सफेद और संतरे रंग में बनाई जाती थी. इसके पीछे वजह थी कि ये रंग प्रकृति के करीब होते हैं. अब समय के साथ अलग-अलग रंगों में इन साड़ियों को बनाया जाने लगा. समय के साथ इस साड़ी में एक और चीज़ जो बदली वो है इसकी लम्बाई. पहले ये साड़ी लम्बाई में कम हुआ करती थी. अब इसकी लम्बाई बढ़ाकर नॉर्मल साड़ियों जैसी की गई. ये साड़ियां शुरुआती समय में सिर्फ संथाल परगना इलाके में ही पहनी जाती थीं. अब ये झारखंड और उड़ीसा के अलावा मध्य प्रदेश में भी काफी पॉपुलर हो गई हैं.
कांजीवरम साड़ियां कैसे बनती हैं?