चार अक्षर का एक शब्द है, जो आपके और हमारे लिए बड़ा नया है. लेकिन इतना पावरफुल है कि उसके चलते सीधे सरकार पर ही गंभीर आरोप लग रहे हैं. ज्यादा पहेलियां नहीं बुझाएंगे, सीधे मुद्दे पर आते हैं. इस वक्त पूरे देश में जिस शब्द ने तहलका मचा रखा है, वो है 'पेगासस'. इस नए-नवेले शब्द का दायरा इतना बढ़ रहा है कि पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया पर लगे यौन शोषण के आरोपों का मामला फिर से खबरें बनाने लगा. हम बात कर रहे हैं पूर्व CJI रंजन गोगोई की. उन पर अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की ही एक पूर्व महिला कर्मचारी ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे. क्या था वो मामला, वो जानने से पहले थोड़ा पेगासस से रूबरू हो जाते हैं.
पूर्व CJI रंजन गोगोई पर यौन शोषण के आरोप लगाने वाली महिला की जासूसी हो रही थी?
पेगासस वाली लिस्ट में महिला और उसके परिवारवालों के 11 फोन नबंर शामिल हैं.

पेगासस किस चिड़िया का नाम है?
18 जुलाई को दुनिया के 17 अखबारों-पोर्टल्स पर एक खबर छपी. ये कि इज़रायल में सर्विलांस का काम करने वाली निजी कंपनी के डेटाबेस में दुनिया के हज़ारों लोगों के मोबाइल नंबर मिले हैं. इज़रायल की इस कंपनी का नाम NSO ग्रुप है और इसके जासूसी करने वाले स्पाईवेयर का नाम पेगासस है. तो पेगासस का डेटाबेस लीक हुआ और ये सबसे पहले मिला फ्रांस की नॉनप्रॉफिट मीडिया कंपनी- फॉरबिडन स्टोरीज़ और मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल को. इन दोनों ने ये डेटा दुनिया के 17 मीडिया हाउस के साथ शेयर किया. इन हाउसेस में भारत से 'द वायर' शामिल है. डेटा की जांच को नाम दिया गया पेगासस प्रोजेक्ट. अब धीरे-धीरे उन लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, जिनके नंबर लीक्ड डेटाबेस में हैं. हालांकि जितने लोगों के नंबर मिले हैं सबकी जासूसी हुई है या नहीं, इस पर पुख्ता तौर पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन वो नंबर्स पोटेंशियल टारगेट्स हो सकते हैं.
'द वायर' की रिपोर्ट के मुताबिक, लीक्ड डेटाबेस में भारत के 300 मोबाइल नंबर्स हैं. इनमें से कुछ बड़े पत्रकार हैं, कुछ नेता हैं, कुछ मंत्री हैं. इन्हीं नंबर्स में 11 मोबाइल नंबर उस महिला से जुड़े हैं, जिसने पूर्व CJI रंजन गोगोई पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे. 11 में से तीन फोन नंबर्स महिला के हैं, बाकी आठ फोन नंबर्स महिला के पति और पति के भाई के हैं. ये नंबर्स अप्रैल 2019 में संभावित टारगेट्स की लिस्ट में शामिल किए गए थे. 'द वायर' की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला द्वारा पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दायर करने के कुछ ही दिन बाद. हालांकि बिना फोरेंसिक एनालिसिस के ये जानना मुमकिन नहीं है कि क्या वाकई उन 11 नंबर्स में पेगासस सॉफ्टवेयर से हैकिंग हुई है कि नहीं. लेकिन लीक्ड डेटाबेस में रंजन गोगोई पर आरोप लगाने वाली महिला और उसके परिवार का नंबर होना बड़े सवाल खड़े करता है.
'द वायर' की रिपोर्ट के मुताबिक, डेटाबेस में महिला के नंबर्स शामिल होने की खबर जब सामने आई, तो महिला और उसके परिवार से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया. वहीं NDTV की रिपोर्ट की मानें, तो रंजन गोगोई ने भी इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से मना कर दिया. उन्होंने कहा- "मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा". लीक्ड डेटाबेस में पोटेंशियल टारगेट्स के जो नाम सामने आए हैं, वो कई सवाल खड़े कर रहे हैं. ये कि ये नंबर्स इस सॉफ्टवेयर के पास तक पहुंचे कैसे, क्या मकसद रहा होगा? क्या वाकई जासूसी की गई होगी या नहीं? विपक्षी नेता सरकार पर जासूसी करवाने के आरोप लगा रहे हैं. सरकार की तरफ से रविशंकर प्रसाद ने पक्ष रखा था, और उन्होंने एमनेस्टी इंटनेशनल पर ही गंभीर आरोप लगाए.
खैर, रंजन गोगोई के ऊपर आरोप लगाने वाली महिला का नंबर पोटेंशियल टारगेट्स की लिस्ट में शामिल होने के बाद एक बार फिर ये केस खबरों में है. अब हम आपको बताते हैं कि आखिर ये मामला था क्या?
पूरी कहानी जानिए-
अप्रैल 2019 की बात है. तब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद पर थे रंजन गोगोई. 19 अप्रैल 2019 के दिन सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने एक एफिडेविट सुप्रीम कोर्ट में दायर किया और रंजन गोगोई पर यौन शोषण के आरोप लगाए. साथ ही एक लेटर भी दायर किया, और सुप्रीम कोर्ट सभी जजों से अपील की कि "एक स्पेशल इन्क्वायरी कमिटी बनाई जाए, सीनियर रिटायर्ड जजों की, जो यौन शोषण और उसके बाद होने वाले उत्पीड़न के आरोपों की जांच करें". महिला ने अपने एफिडेविट में बताया था कि वो 1 मई 2014 से 21 दिसंबर 2018 तक, सुप्रीम कोर्ट में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के तौर पर काम करती थीं. जिसमें अक्टूबर 2016 से अक्टूबर 2018 तक उन्होंने जस्टिस गोगोई के कोर्ट में काम किया था. महिला ने आरोप लगाया था कि 10 और 11 अक्टूबर 2018 के दिन पूर्व CJI रंजन गोगोई ने उनका यौन शोषण किया था.

रंजन गोगोई ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज किया था. (फोटो- PTI)
क्या लिखा था महिला ने अपने एफिडेविट में?
महिला ने बताया था कि जब उन्हें पूर्व CJI रंजन गोगोई के कोर्ट में पोस्ट किया गया, तब गोगोई उनके काम से काफी प्रभावित हुए. एफिडेविट के मुताबिक, रंजन गोगोई अक्सर महिला के काम की तारीफ करते थे. उनसे कई सारे अहम काम भी करवाते थे. काम का समय खत्म होने के बाद भी वो महिला को फोन करते थे. काम के सिलसिले में बात करते थे. गोगोई कई बार महिला की पर्सनल लाइफ को लेकर भी उनसे बात करते थे. 11 अगस्त 2018 के दिन महिला की ड्यूटी रंजन गोगोई के रेसिडेंस ऑफिस में लगा दी गई. ये ट्रांसफर भी पूर्व CJI ने करवाया था. उनका कहना था कि वो CJI बनने वाले हैं, तो काम ज्यादा होगा, इसके चलते उन्हें महिला की ज्यादा हेल्प लगेगी.
महिला ने अपने एफिडेविट ने बताया कि उनके काम का समय वैसे तो सुबह 10 से शाम 5 बजे तक होता था. लेकिन उनसे सुबह आठ बजे ही काम पर आने को कहा गया. वो सुबह आठ बजे आतीं और रात को CJI रंजन गोगोई के कोर्ट से लौटने के बाद ही घर रवाना होतीं. महिला ने दावा किया था कि रंजन गोगोई ने उनसे कहा था कि वो रोज़ाना वॉट्सऐप पर उन्हें सुबह 'गुड मॉर्निंग' मैसेज किया करें और शाम में घर पहुंचने के बाद जानकारी दें.
महिला ने बताया कि जब रंजन गोगोई CJI बने, तो उन्होंने महिला के पति के एक भाई को, जो कि डिसेबल्ड थे, उन्हें CJI विवेकाधीन कोटा के तहत सुप्रीम कोर्ट में जूनियर कोर्ट अटेंडेंट के पोज़िशन पर जॉब पर लगाया. इसके बाद उन्होंने महिला से पूछा कि वो उनके लिए क्या कर सकती हैं.
महिला ने अपने एफिडेविट में ये कहा था कि उन्होंने CJI को अपने और अपने परिवार की तरफ से थैंक्यू कहा था. उनसे CJI ने एक नोट भी लिखवाया था, उन्होंने नोट में भी थैंक्यू कहा था. महिला का आरोप था कि 10 अक्टूबर 2018 के दिन CJI ने उन्हें गलत तरीके से टच किया था. महिला ने आरोप लगाया था कि 11 अक्टूबर 2018 के दिन भी CJI ने उन्हें गलत तरीके से टच किया था, उनका यौन शोषण किया था.
और क्या आरोप लगाए थे?
महिला का आरोप था कि जब उन्होंने CJI के मंशा के अनुसार सेक्शुअल फेवर्स नहीं दिया, तो उनका उत्पीड़न किया जाने लगा. महिला ने जो अपने लेटर में लिखा था, उसका कुछ हिस्सा हम यहां शब्दश: लिख रहे हैं. महिला ने कहा था-
"अक्टूबर 2018 से नवंबर 2018 तक मेरा तीन बार ट्रांसफर हुआ. मेरा और मेरे परिवार का लगातार विक्टिमाइज़ेशन हुआ. मेरी सेवा दिसंबर 2018 को समाप्त कर दी गई. इसी महीने मेरे पति और उनके भाई, जो दोनों ही दिल्ली पुलिस में हेड कॉन्सटेबल्स थे, उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. मेरे पति के एक और भाई, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में नौकरी दी गई थी, उन्हें जनवरी 2019 में टर्मिनेट कर दिया गया, बिना कोई कारण बताए. मेरे ऊपर झूठे आरोपों के तहत FIR दर्ज कर दी गई. आरोप लगे कि 2017 में मैंने किसी व्यक्ति से पचास हज़ार रुपए लिए थे, सुप्रीम कोर्ट कैम्पस में जॉब लगवाने के एवज में. इस आरोप के चलते मुझे देर रात अरेस्ट किया गया. मेरे पैर में बेड़ियां बांधी गईं. मेरे पति को पुलिस कस्टडी में पीटा गया, हालांकि वो अरेस्टेड नहीं थे. मुझे एक दिन के लिए पुलिस कस्टडी में और एक दिन जूडिशियल कस्टडी में रखा गया. बाद में बेल पर बाहर आई. मैंने सबकुछ अपने एफिडेविट में बताया है. आप देखेंगे कि जब मैंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस रंजन गोगोई के सेक्शुअल एडवांसेस से सहमति नहीं जताई, तो मुझे और मेरे परिवार को परेशान किया गया."
एफिडेविट दायर करने के बाद क्या हुआ?
अब जिस वक्त एफिडेविट दाखिल किया गया था, उस वक्त CJI जस्टिस रंजन गोगोई ही थे. उन्हीं ने मामले की इन-हाउस जांच करने के लिए उस वक्त के सबसे सीनियर जज जस्टिस एस.ए बोबडे को अपॉइंट किया. एक पैनल बना, इसमें जस्टिस बोबडे ने जस्टिस एन.वी. रमन्ना औऱ जस्टिस इंदिरा बनर्जी को शामिल किया. हालांकि महिला ने जब ये सवाल उठाए कि जस्टिस रमन्ना, CJI रंजन गोगोई के काफी करीब हैं, तो फिर जस्टिस रमन्ना की जगह पैनल में जस्टिस इंदू मल्होत्रा को शामिल किया गया.
पैनल ने सुनवाई शुरू हुई. लेकिन तीन सुनवाई होने के बाद ही महिला ने खुद को पैनल की जांच से अलग कर लिया. महिला ने कहा था कि जांच के लिए बने पैनल का रवैया उनके प्रति सेंसिटिव नहीं है. पैनल उनसे बार-बार एक ही सवाल पूछ रहा है कि उन्होंने मामले की शिकायत इतनी देर से क्यों की? शिकायतकर्ता के इन-हाउस पैनल की जांच में शामिल होने से इनकार के बाद भी पैनल ने जांच जारी रखी.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के मुताबिक, महिला के जांच से हटने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने 2 मई को जस्टिस बोबडे के अध्यक्षता वाली इन-हाउस कमेटी को पत्र लिखा था. उन्होंने लिखा कि शिकायतकर्ता ने जांच में शामिल होने से इनकार कर दिया है. लिहाजा, कमेटी का जांच जारी रखना पक्षपातपूर्ण होगा. ऐसे में जांच के लिए कोई और तरीका निकालना होगा. लेकिन पैनल ने जांच जारी रखी थी. और 6 मई 2019 के दिन इस मामले में CJI को क्लीन चिट दे दी गई. कहा गया कि सभी आरोप निराधार हैं. इस फैसले के बाद कुछ महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के बाहर विरोध भी जताया था, कुछ एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार भी किया गया था.

राज्य सभा सांसद पद की शपथ लेते पूर्व CJI रंजन गोगोई. (फोटो- PTI)
शिकायतकर्ता महिला ने क्या कहा था?
पैनल का फैसला आने के बाद 'द वायर', 'द कारवां' और 'स्क्रॉल' ने मिलकर महिला का इंटरव्यू किया था. जिसमें महिला ने कहा था-
"जब मैंने एफिडेविट फाइल किया था, तब मुझे लगा था कि उन्हें सच्चाई दिखेगी. क्योंकि जो भी मेरे एफिडेविट को पढ़ेगा, वो ये जान जाएगा कि मेरे और मेरे परिवार के साथ आखिर हुआ क्या? मैंने उम्मीद की थी कि मुझे इंसाफ मिलेगा. लेकिन आप देख सकते हो कि क्या नतीजा रहा. ये पैनल कह रहा है कि मेरे एफिडेविट में कुछ तत्व नहीं है. आरोप बेबुनियाद हैं. वो भी तब जब मैंने सारे जरूरी सबूत दिए थे. मैं पैनल का फैसला आने के बाद हैरान थी. मैंने अपनी नौकरी खो दी थी. सबकुछ मैंने अपना खो दिया. मेरे परिवार के लोगों ने अपनी नौकरियां खो दी थी. मेरे साथ और मेरे परिवार के साथ अन्याय हुआ है. मैंने सारे सबूत दिए थे, फिर भी पैनल ने कहा कि एफिडेविट में कोई तत्व ही नहीं है."
CJI रंजन गोगोई को क्लीन चिट मिलने के बाद क्या हुआ?
कुछ दिन बाद मामला लाइम लाइट से हट गया. शिकायतकर्ता के पति और उनके भाई को दिल्ली पुलिस में उनके संबंधित पदों पर दोबारा रख लिया गया. जनवरी 2020 में शिकायतकर्ता को भी सुप्रीम कोर्ट से दोबारा नौकरी ऑफर की गई, लेकिन उन्होंने लेने से मना कर दिया, मेंटल हेल्थ के हवाला देते हुए. बहाली के प्रस्ताव को ऑब्ज़र्वर्स ने उस बात की मौन स्वीकृति माना कि महिला की बर्खास्तगी वाकई अनुचित थी.
इधर जस्टिस रंजन गोगोई ने 17 नवंबर 2019 तक चीफ जस्टिस का कार्यकाल पूरा किया और रिटायर हुए. उनके बाद जस्टिस एस.ए. बोबडे CJI बने थे. अब वो भी रिटायर हो चुके हैं. जस्टिस रंजन गोगोई के रिटायरमेंट के छह महीने के अंदर ही केंद्र सरकार ने उन्हें राज्य सभा में "प्रतिष्ठित सदस्य" के तौर पर नॉमिनेट किया था. मार्च 2020 में रंजन गोगोई ने राज्य सभा सांसद की शपथ भी ले ली. ये एक ऐसा मूव था, जिसे विपक्षी नेताओं ने और लीगल फ्रेटरनिटी ने काफी क्रिटिसाइज़ किया था.