
मार्शा पी. जॉनसन. अमेरिका के साठ के दशक में एक आइकन के रूप में उभरे. गे लोगों के अधिकारों के लिए जमकर काम किया. खुद को 'ड्रैग क्वीन' कहते थे. जेंडर के मामलों में वो खुद को पुरुष या स्त्री की बाइनरी में बांधकर रखना पसंद नहीं करते थे. उस समय ट्रांसजेंडर शब्द इस्तेमाल में नहीं था, इसलिए कहीं पर उनके लिए ये शब्द पढ़ने को नहीं मिलता. लेकिन मार्शा पी. जॉनसन को महिलाओं वाले कपड़े पहनना और मेकअप करना बेहद पसंद था. जन्मे तो पुरुष थे, लेकिन ड्रैग क्वीन के रूप में उनकी एक अलग पहचान थी, जिसने उन्हें लोकप्रिय बनाया.
मैल्कम से मार्शा तक
जब जन्मे, तो उनका नाम मैल्कम माइकल्स था. पांच साल की उम्र से ही उन्होंने लड़कियों वाली ड्रेसेज वगैरह पहनना शुरू कर दिया था. लेकिन आस-पड़ोस के लड़कों द्वारा हैरेसमेंट झेलने की वजह से उन्होंने कुछ समय के लिए ये बंद कर दिया. जहां जन्मे थे, वो छोटी जगह थी. लोग खुले विचारों के थे नहीं. कथित रूप से खुद उनकी अपनी मां कहती थीं कि गे होना तो कुत्ता होने से भी बदतर है. तो उन्होंने अपनी आइडेंटिटी छुपाकर रखी. अपनी सेक्शुअल प्रेफरेंस भी. ये कि वो गे थे. पुरुषों की तरफ सेक्शुअली अट्रैक्ट होते थे. जब वो अपना घर छोड़कर न्यूयॉर्क शिफ्ट हुए, तब उन्होंने अपनी आइडेंटिटी पर बात करना और अपनी सेक्शुअलिटी को एक्सप्लोर करना शुरू किया. वहां उन्हें अपने जैसे लोग मिले. जिनको उनकी पहचान या उनके कपड़ों की चॉइस से आपत्ति नहीं थी.

स्टोनवॉल रायट्स, जिन्होंने मार्शा को लाइमलाइट में ला दिया
28 जून 1969 को न्यूयॉर्क के स्टोनवॉल इन नाम के बार में पुलिस का छापा पड़ा. इस बार में गे पुरुष और ड्रैग क्वींस भी मौजूद थे. उन्होंने पुलिस के छापे का विरोध किया. और दंगे भड़क गए. कुछ लोग कहते हैं कि मार्शा पी. जॉनसन ने पुलिस विरोध में पहली ईंट फेंकी, जिसकी वजह से पूरे दंगे शुरू हुए. लेकिन बाद में मार्शा ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा था कि उनके वहां पहुंचने से पहले ही दंगे शुरू हो गए थे.
इसके बाद मार्शा ने गे लिबरेशन फ्रंट नाम के संगठन के साथ जुड़कर काम किया. अपनी साथी सिल्विया रिवेरा के साथ मिलकर Street Transvestite Action Revolutionaries (STAR) organization (पहले इसका नाम Street Transvestites Actual Revolutionaries रखा गया था) शुरू किया. गे प्राइड मार्च में वे खुलकर भाग लिया करते थे. कई बार उन्हें गे लोगों का गुस्सा भी झेलना पड़ा, क्योंकि वो खुद को ड्रैग क्वीन की तरह तैयार करके पहुंचते थे इन विरोध प्रदर्शनों में. और गे पुरुष कथित रूप से इससे अनकम्फर्टेबल महसूस किया करते थे.

मार्शा के बारे में पढ़ने को मिलता है कि उनकी मार्शा वाली ड्रैग क्वीन की पर्सनैलिटी जहां बेहद शांत और सौम्य थी, वहीं जब वो अपने मैल्कम माइकल वाले कैरेक्टर में आते थे, तो अग्रेसिव हो जाते थे. उनकी मेंटल हेल्थ भी ठीक नहीं थी. 6 जुलाई 1992 को मार्शा की लाश हडसन नदी में तैरती हुई मिली थी. उस वक़्त पुलिस ने इसे सुसाइड करार दिया था. लेकिन उनके दोस्तों और जानने वालों ने लगातार इस बात पर जोर दिया कि उनकी हत्या हुई है. अपने जीवन में काफी कुछ झेलने वाले मैल्कम उर्फ़ मार्शा अपनी मौत के बाद ड्रैग क्वीन कल्चर और LGBTQIA समुदाय के लिए एक आइकन बनकर उभरे. उनके जीवन पर बनी डाक्यूमेंट्री नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है, जिसका नाम है ‘द लाइफ एंड डेथ ऑफ मार्शा पी. जॉनसन’.
गूगल ने इनका डूडल आज इसलिए बनाया है, क्योंकि जून का महीना प्राइड मंथ के रूप में मनाया गया. LGBTQIA समुदाय के अधिकारों और समाज में उनकी स्वीकार्यता को लेकर इस पूरे महीने लगातार बात हुई. और मार्शा पी. जॉनसन का नाम गे अधिकारों की लड़ाई में बेहद पॉपुलर रहा..
कौन होते हैं 'ड्रैग क्वीन'?
'ड्रैग क्वींस' वे लोग होते हैं, जो बेहद ड्रामैटिक मेकअप इत्यादि करके खुद को महिला के रूप में प्रस्तुत करते हैं. अधिकतर मामलों में ये व्यक्ति पुरुष होते हैं. अपने-आप को 'ड्रैग क्वीन' कहते हैं. इस तरह ड्रामैटिक मेकअप करने और कपड़े पहनने की कला को 'ड्रैग' कहा जाता है.

भारत में भी कई ड्रैग क्वींस हैं. जो बार और क्लब्स में बाकायदा परफॉर्म करती हैं. और अपनी आर्ट से लोगों को भौंचक कर देती हैं. 'इंडिया टुडे' के लिए 2018 में की गई एक स्पेशल रिपोर्ट के लिए पत्रकार चिंकी सिन्हा ने कई ड्रैग क्वींस से बात की.
दिल्ली में रहने वाले इशाकू बेज्बारोआ के मुताबिक़,
‘ड्रैग एक कला है और मेरी बॉडी मेरा कैनवास है. मेकअप और कपड़े मेरे पेंट्स हैं. स्टेज मेरे एग्जिबिशन की जगह है.अगर मैं अपनी मर्दानगी को चैलेन्ज नहीं करूंगा, तो फिर इसका मतलब क्या है?’चिंकी लिखती हैं कि ड्रैग का मिलता-जुलता रूप लोककला में भी देखा जा सकता है, जहां पुरुष महिलाओं की तरह तैयार होकर उनके रोल किया करते थे, क्योंकि स्टेज पर महिलाओं का जाना मना था. बंगाली भाषा में इसे 'जतरा' कहते हैं.

दिल्ली में ड्रैग क्वींस के बीच 'किटी सू' नाम की जगह बेहद पॉपुलर है. यहां पर दिन में लॉयर, MBA, प्रोफेशनल्स का रोल निभाने वाले लोग शाम को आकर अपनी ड्रैग क्वीन की पर्सनैलिटी को अपना लेते हैं. उनके लिए ये एक परफॉरमेंस है. अपने-आप को एक्सप्रेस करने का. अपनी इमैजिनेशन दुनिया को दिखाने का.
कुछ सवाल जो ड्रैग क्वींस के बारे में अक्सर पूछे जाते हैं.
क्या सभी ड्रैग क्वींस गे होती हैं?
आम तौर पर नहीं. ड्रैग एक आर्ट है. खुद को पुरुष मानने वाले, हेटेरोसेक्शुअल लोग भी ड्रैग क्वीन बन सकते हैं. हालांकि कई ऐसी ड्रैग क्वीन सभी होती हैं, जो खुद को गे या बाइसेक्शुअल मानती हैं. पहले के समय में, जब ड्रैग इतना पॉपुलर नहीं हुआ था, तब गे पुरुष ही अधिकतर ड्रैग किया करते थे. लेकिन अब ये अंतर धुंधला पड़ता गया है.
क्या ड्रैग क्वींस ट्रांसजेंडर होती हैं?
नहीं. सभी ड्रैग क्वींस ट्रांसजेंडर नहीं होतीं. ट्रांसजेंडर एक बेहद स्पेसिफिक टर्म है, जो संभलकर इस्तेमाल किया जाना चाहिए. सामने वाले की सहमति और जानकारी के बिना उन्हें ट्रांसजेंडर समझने या ये शब्द उनके लिए इस्तेमाल करने की गलती न करें. कुछ ड्रैग क्वींस ट्रांसजेंडर भी होती हैं, लेकिन वो जब तक खुद को इस शब्द के साथ आइडेंटिफाई न करें, तब तक ये शब्द यूज नहीं करना चाहिए. ट्रांसजेंडर का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति, जो जन्म के समय मिले अपने जेंडर से खुद को न जोड़ पाता हो, और अपना जेंडर बदलने की बात करता हो. स्त्री से पुरुष या पुरुष से स्त्री बनने का विकल्प जिसने चुना हो, वो ट्रांस कहलाते हैं.
क्या ड्रैग क्वींस महिलाएं हो सकती हैं?
कई महिलाएं भी ड्रैग क्वींस की तरह कपड़े पहन और मेकअप कर परफॉर्म करती हैं. लेकिन उनको लेकर उतनी स्वीकार्यता नहीं है. हां, जो महिलाएं पुरुषों के कपड़े पहन, उनकी तरह तैयार होती हैं, उन्हें ड्रैग किंग कहा जाता है.
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