दिल्ली का कनॉट प्लेस इलाका, बड़ा फेमस. यहां की रीगल बिल्डिंग, जहां कभी बरसों पुराना रीगल सिनेमा हुआ करता था, ये भी बड़ी फेमस है. फिर एक है मैडम तुसाद म्यूज़ियम, ये तो गज़्जब ही फेमस है, पूरी दुनिया में. तो इतनी सारी फेमस चीज़ें एकसाथ आकर मिलीं नवंबर 2017 में. यानी एक मैडम तुसाद म्यूज़ियम खुला रीगल बिल्डिंग में. लेकिन अब महज़ तीन साल बाद ही ये म्यूज़ियम बंद हो गया है. वैसे तो ये मार्च में लगे लॉकडाउन के बाद से ही 'अस्थायी तौर पर बंद' था, लेकिन अब इसे परमानेंटली बंद करने का फैसला किया गया है.
जिस म्यूज़ियम में अपना पुतला लगने को लोग खुशनसीबी मानते हैं, उसे खोलने वाली औरत आखिर कौन थी?
मैडम तुसाद की वो कहानी, जो हर किसी को जाननी चाहिए.

इसे चलाने वाली कंपनी है मर्लिन एंटरटेनमेंट इंडिया. इसके जनरल मैनेजर एंड डायरेक्टर हैं अंशुल जैन. 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, अंशुल जैन का कहना है कि भले ही ये म्यूजियम दिल्ली की प्राइम लोकेशन पर था, लेकिन बाद में महसूस किया गया कि यहां कई दिक्कतें हैं- फुटपाथ पर सामान बेचने वालों, फेरी वालों का अतिक्रमण है, पार्किंग की दिक्कत है. ये जगह इतनी ज्यादा भीड़-भाड़ वाली है कि बच्चों के साथ म्यूज़ियम आने वाली फैमिली के लिए ठीक नहीं है.

दिल्ली के कनॉट प्लेस की रीगल बिल्डिंग में बना मैडम तुसाद म्यूज़ियम. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)
वहीं, कुछ रिपोर्ट्स ये भी कह रही हैं कि म्यूज़ियम को जितना बिज़नेस होने की उम्मीद थी, उतना हुआ नहीं. खैर, मामला जो भी हो, अभी इतना कन्फर्म है कि ये म्यूज़ियम दिल्ली में बंद हो गया है. लेकिन अगर बात उठी है तो दूर तक जाना तो लाज़मी है. तो हमने सोचा कि ये मैडम तुसाद म्यूज़ियम का आखिर क्या खेला है? कौन थीं असल मैडम तुसाद? कैसे बनाए इतने नामी म्यूज़ियम? शुरू से शुरुआत करते हैं.
कहानी शुरू होती है फ्रांस से
फ्रांस का स्ट्रासबर्ग शहर. यहां ग्रोसहोल्ट्ज़ परिवार रहता था. दिसंबर 1761 में इस परिवार में एक बच्ची का जन्म हुआ. नाम रखा गया मैरी ग्रोसहोल्ट्ज़. यही बच्ची आगे चलकर बनी मैडम तुसाद. मैडम तुसाद ने 1838 में अपने एक दोस्त से अपना संस्मरण लिखवाया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उनका जन्म फ्रांस के बर्न शहर में हुआ था. ये भी लिखवाया कि उनके पिता मिलिट्री में थे, और उनके जन्म के दो महीने पहले ही एक जंग में शहीद हो गए. हालांकि इतिहासकार इन दावों को सही नहीं मानते. 'BBC' की एक डॉक्यूमेंट्री में इतिहासकार क्लॉड म्यूलर बताते हैं कि ग्रोसहोल्ट्ज़ परिवार जल्लादों का परिवार था. और मैरी के पिता मौत की सज़ा पाए लोगों को मारने का काम करते थे.
खैर, 'दी गार्जियन' और 'BBC' की डॉक्यूमेंट्री की मानें, तो मैरी के जन्म के बाद उनकी मां उन्हें लेकर बर्न शहर गईं. वहां उन्होंने अपने एक रिश्तेदार से मदद मांगी. रिश्तेदार का नाम था फिलिप कर्टिस. लोकल डॉक्टर थे और शरीर-रचना-विज्ञान पर काम करते थे. मोम के पुतले भी बनाते थे, ताकि शरीर रचना पर ठीक से स्टडी की जा सके. मैरी की मां फिलिप के घर हाउसकीपर का काम करने लगीं. छोटी मैरी फिलिप को अंकल बुलाती थीं. उन्हें भी मोम के पुतलों में दिलचस्पी हुई. अपने अंकल से वो पुतले बनाना सीखने लगीं और उनकी मदद करने लगी. फिलिप कर्टिस कुछ दिन बाद पेरिस शिफ्ट हो गए, साथ में मैरी और उनकी मां भी गईं. यहां फिलिप ने अपने वैक्स स्टैच्यू के लिए एग्जीबिशन खोल लिया. फ्रांस के राजघराने के लोगों के पुतले बनाने लगे, जो देखते ही देखते काफी पॉपुलर होते गए. मैरी ने भी अब तक पुतला बनाना सीख लिया था. उन्होंने पहला स्टैच्यू बनाया वॉल्टेयर का. ये फेमस राइटर, हिस्टोरियन और फिलॉसफर थे. फिर मैरी भी इस काम में सेट हो गईं. नामी लोगों के स्टैच्यू बनाने लगीं.

लंदन के मैडम तुसाद म्यूज़ियम में उसैन बोल्ट के स्टैच्यू को मास्क पहनाया गया था कोरोना को लेकर अवेयरनेस लाने के लिए (फोटो- PTI)
जब राजा की बहन को सिखाया ये काम
मैरी ने अपने संस्मरण में बताया कि उनका काम इतना फेमस हो गया कि ये बात राजा लुई सोलहवें तक पहुंच गई. राजा ने अपनी बहन एलिज़ाबेथ को भी मोम के पुतले बनाने का गुर सिखाने का फैसला किया. इसके लिए मैरी को अपॉइंट किया. मैरी ने संस्मरण में ये भी दावा किया कि राजा उनके काम से इतने खुश हुए कि उन्हें राजमहल में रहने का न्योता तक दे दिया था. खैर, इन दावों को भी इतिहासकार सही नहीं मानते. हिस्टोरियन्स का कहना है कि मैरी का नाम कहीं भी किसी भी राजशाही दस्तावेज़ों में नहीं मिलता है.
अब बारी फ्रांस की क्रांति की
1789 में फ्रांस की क्रांति शुरू हो गई. मकसद था राजशाही को खत्म करना. राजा के खिलाफ विद्रोह हो गया. अब मैरी और फिलिप को भी इस क्रांति से थोड़ा डर लगा. क्यों? क्योंकि वो ज्यादातर राजशाही लोगों के पुतले बनाते थे और एग्जीबिशन में रखते थे, तो आम लोगों के सामने उनकी छवि राजा के हितैषी के तौर पर बनी हुई थी. 'द गार्जियन' की रिपोर्ट्स के मुताबिक, 12 जुलाई 1789 को लोगों की भीड़ ने राजशाही से जुड़े दो नामी लोगों के पुतले एग्जीबिशन से निकाले और सड़क पर उन्हें घुमाया.
'मैडम तुसाद' की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, 1793 में मैरी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. लेकिन मैरी के ऊपर रिवॉल्यूशन को लेकर वफादारी साबित करने का प्रेशर था, इसके लिए उन्हें क्रांति के फेमस विक्टिम्स के डेथ मास्क बनाने पड़े. डेथ मास्क, मरने वाले व्यक्ति के शव से खांचा तैयार करके बनाया जाता था. इन विक्टिम्स में शामिल थे राजा लुई सोलहवें, फ्रांस की आखिरी रानी मैरी एंटोनेट और राजशाही से जुड़े अन्य कई नामी लोग. इनमें से ज्यादातर का सिर कलम किया गया था. फिर 1794 में फिलिप कर्टिस की भी मौत हो गई. उनके सारे पुतलों और एग्जीबिशन की वारिस बनीं मैरी ग्रोसहोल्ट्ज़. 1795 में मैरी ने शादी कर ली. पति इंजीनियर था, नाम था फ्रांसुआ तुसाद. और इसी के साथ वो बन गईं मैडम तुसाद.

लंदन के मैडम तुसाद म्यूज़ियम (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)
फ्रांसुआ तो उम्मीद से एकदम परे निकला. पैसों के मामले में पूरी तरह मैरी पर निर्भर था. मैरी के पैसे वो इधर-उधर इन्वेस्ट करने लगा. चालू भाषा में कहें तो उड़ाने लगा. मैरी और फ्रांसुआ के दो बेटे और एक बेटी हुई. लेकिन बेटी बच नहीं सकी. मैरी जैसे-तैसे अपने दो बच्चों को खुद पाल रही थी. फ्रांसुआ की हरकतों से परेशान थी. फ्रांस की क्रांति के कारण मोम के पुतलों का बिज़नेस एकदम ठप्प हो गया था. एग्जीबिशन भी ठीक से नहीं चल रहा था. इसलिए मैरी ने ब्रिटेन जाने का फैसला किया. 1802 में अपने बड़े बेटे के साथ, जो उस वक्त पांच साल का था. वो इंग्लैंड निकल गईं. कई सारे पुतले भी अपने साथ ले गईं. पति से जाते हुए कहा कि छोटे बेटे, मां और एग्जीबिशन का ध्यान रखे.
फिर इंग्लैंड में क्या हुआ?
मैरी को न इंग्लिश बोलना आती थी, न समझना. साथ में एक छोटा बच्चा. नया देश. दिक्कतें कई थीं, लेकिन मैरी का दिमाग एकदम व्यापारियों जैसा था. वो इंग्लैंड में जगह-जगह घूमतीं रहीं. ज्यादा दिनों तक किसी एक जगह पर टिकी नहीं. मोम के पुतले बनाती गईं. उनको एग्जीबिशन में लगाती गईं. इतिहासकारों का कहना है कि मैरी ने फ्रांस के तानाशाह नेपोलियन के कई पुतले बनाए, जो इंग्लैंड में काफी पॉपुलर हुए. इतने कि नेपोलियन के पुतले मैरी के बेस्ट फ्रेंड बन गए. उनके पुतले इतने शानदार होते कि लगता अब बस बोलने ही वाले हैं. मैरी अपने एग्जीबिशन में सबसे ज्यादा पैसे खर्च करती थीं एडवर्टाइज़मेंट में. एकदम रॉयल तरीके से वो पर्चे बनवाती थीं. बाकायदा उसमें हर पुतले की जानकारी होती थी. कोई एक पन्ने का पर्चा नहीं होता था, बल्कि एक बुकलेट होती थी. एग्जीबिशन के लिए भी मैडम तुसाद बड़ा सा कमरा या थियेटर किराये पर लेती थीं. उन्होंने शुरू से ही अपने एग्जीबिशन की फीस काफी ज्यादा रखी थी. इतनी कि गरीब तबके का व्यक्ति देखने ही नहीं जा पाता था.
यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन की प्रोफेसर पमेला बताती हैं कि मैरी ने एक बार 'गरीबों' के लिए भी अपना एग्जीबिशन खोला था. पोस्टर चिपकाया, जिसमें लिखा था-
गरीब तबके के लोग, वर्किंग क्लास के लोग आधे दाम में एग्जीबिशन देखने आ सकते हैं. लेकिन रात के केवल 9:15 से लेकर 10 बजे के बीच ही, क्योंकि 10 बजे एग्जीबिशन बंद हो जाता है.

लंदन के मैडम तुसाद म्यूज़ियम में लगे अमिताभ बच्चन और माधुरी दीक्षित के स्टैच्यू (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)
मैडम तुसाद का नाम और काम पूरे इंग्लैंड में फैलने लगा. वो कभी वापस पेरिस नहीं जा पाईं. 1817 में उनका छोटा बेटा खुद उनके पास आ गया. दोनों बेटे मां के काम में मदद करने लगे. इतिहासकारों के मुताबिक, बिज़नेस पर पूरा कंट्रोल मैडम तुसाद का ही था. बेटे केवल उनके लिए काम करते थे. मैडम तुसाद एक-एक पैसों का हिसाब रखती थीं. एक डायरी थी उनके पास, जिसमें वो रोज़ाना खर्च हुए पैसे लिखती जाती थीं. हिसाब की बड़ी तगड़ी थीं. तीन दशकों तक ब्रिटेन में जगह-जगह घूमकर एग्जीबिशन लगाने के बाद, फाइनली 1835 में मैडम तुसाद लंदन में सैटल हुईं. उन्होंने लंदन की फेमस बेकर स्ट्रीट के बीचोंबीच 'मैडम तुसाद एंड सन्स म्यूज़ियम' खोला. कमाई अच्छी हुई, इसलिए फिर यहां से मैडम तुसाद कहीं नहीं गईं. ब्रिटेन की पहली रानी विक्टोरिया का पुतला बनाया, जो रानी को बहुत पसंद आया. इसके बाद तो मैडम तुसाद पूरे लंदन में छा गईं. राजघराने से जुड़े लोग अक्सर उनके म्यूज़ियम आने लगे. फेमस लोगों के पुतले बनने लगे और म्यूज़ियम में रखे जाने लगे.
1850 में 88 बरस की उम्र में मैडम तुसाद की मौत हो गई. उनके बेटों ने उनके बिज़नेस को आगे बढ़ाया. इतना कि लंदन के अलावा अब यूरोप के कई हिस्सों में ये म्यूज़ियम है. अमेरिका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी. इस म्यूज़ियम का इतना नाम है कि यहां जिसका पुतला लग जाए, वो खुशनसीब माना जाता है. इंडिया के कई सेलेब्स के पुतले इस म्यूज़ियम में लगे हुए हैं. सोचिए, आज से 150-170 बरस पहले, एक सिंगल मदर ने पूरा अंपायर खड़ा कर दिया. मैडम की लेगेसी उनके जाने के 170 बरस बाद भी ज़िंदा है.