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साइकिल पर फ्री में लाइट लगाने वाली ये लड़की कौन है, कहानी जानकर दुआएं देंगे

साइकिल से एक्सीडेंट में खुशी के नाना जी की मौत हो गई थी.

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खुशी का प्रोजेक्ट उजाला (फोटो: GNT)

लखनऊ में एक 23 साल की लड़की है, खुशी पांडे, जो लोगों की साइकिल पर लाइट लगाती है. फ्री में. क्यों? ताकि अंधेरे में साइकिल वालों का एक्सीडेंट ना हो जाए. कुछ साल पहले खुशी के नाना की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. दिसंबर महीने की रात थी. अंधेरा और कोहरा था. खुशी के नाना अपने साइकिल से घर लौट रहे थे. इस दौरान एक कार से उनकी टक्कर हो गई. अंधेरे में कार वाले को साइकिल नहीं दिखी. इसी दुर्घटना के बाद खुशी ने शुरू किया ‘साइकिल पर लाइट लगवा लो’ का काम. 

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रोड सेफ्टी के लिए प्रोजेक्ट उजाला

अब तक खुशी लखनऊ में 1500 से ज्यादा साइकिलों पर लाइट लगा चुकी हैं. उनकी इस पहल का नाम 'प्रोजेक्ट उजाला' है. 

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अपने मिशन को लेकर खुशी ने GNT डिजिटल को बताया,

मैंने इसी साल जनवरी से ये मिशन शुरू किया है. इसके पीछे बस यही मिशन है कि रोड एक्सीडेंट को कम किया जा सके और साइकिल से जो कारीगर या लोग रोज चलते हैं, वो सुरक्षित अपने घर पहुंच सके. इसीलिए ये शुरू किया गया है.

इसके साथ ही खुशी सड़क सुरक्षा अधिकारियों को पत्र लिखकर सभी साइकिलों पर लाइट लगवाना अनिवार्य करने की अपील भी कर चुकी हैं. 

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और भी सोशल प्रोजेक्ट चला रही हैं खुशी

खुशी कई और प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं. पीरियड्स पर लोगों को जागरूक करने के लिए खुशी 'प्रोजेक्ट दाग' चला रही हैं. भुखमरी मिटाने के लिए 'प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा' पर काम कर रही हैं. वो गर्मियों में 'छांव' नाम का एक प्रोजेक्ट लॉन्च करने की भी सोच रही हैं. इसमें वो सड़कों पर धूप में काम करने वालों के लिए छाते का इंतजाम करेंगी.

इसके अलावा खुशी एसिड अटैक सर्वाइवर को ट्रेनिंग देती हैं. वो गरीब बच्चों को पढ़ाती भी हैं. इसके बारे में खुशी बताती हैं,

मेरी शिक्षा एक NGO द्वारा करवाई गई है. मेरा उस समय का सपना था कि अगर मेरी शिक्षा एक NGO ने करवाई है तो कम से कम मैं एक बच्चे की पढ़ाई तो पूरी करवा पाऊं.

अपने सोशल वर्क के लिए खुशी तीन जगह काम कर रही हैं. वो बताती हैं,

मैं इस वक्त तीन जगह काम कर रही हूं. दो जगह में पब्लिक रिलेशन का काम देखती हूं. एक लीगल फर्म के जरिए बच्चों को यूट्यूब पर पढ़ा रही हूं.

खुशी के मुताबिक वो अपनी सैलरी का 80 फीसदी हिस्सा सोशल कामों में लगाती हैं. इसके अलावा कुछ डोनर्स भी हैं, जो अक्सर मदद कर देते हैं. 

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