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कंगना ने उर्मिला को सॉफ्ट पॉर्न एक्ट्रेस कहा, लेकिन फिल्मों की ये कौन-सी कैटेगरी होती है

परिभाषा और उदाहरण के साथ विस्तार से समझ लीजिए.

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बाईं तरफ से- कंगना रनौत, 'द डर्टी पिक्चर' फिल्म का एक पोस्टर, उर्मिला मातोंडकर.
कंगना रनौत और उर्मिला मातोंडकर के बीच तीखी बहस ख़बरों में है. इसी बहस में कंगना रनौत ने उर्मिला को 'सॉफ्ट पॉर्न एक्ट्रेस' कह दिया. कंगना ने उर्मिला के लिए कहा,
"उर्मिला सॉफ्ट पोर्न स्टार हैं. वो अपनी एक्टिंग के लिए तो नहीं जानी जातीं, तो फिर किसलिए जानी जाती हैं. सॉफ्ट पॉर्न करने के लिए न. जब उन्हें टिकट मिल सकता है, तो मुझे क्यों नहीं?"
इसके बाद बॉलीवुड के कई लोग उर्मिला के सपोर्ट में आए.
लेकिन आखिर ये सॉफ्ट पॉर्न होता क्या है?
पॉर्न यानी एडल्ट फिल्में. जिनको बोलचाल की भाषा में अक्सर 'ब्लू फिल्म' भी कहा जाता है. इसमें दो या दो से अधिक लोग एक-दूसरे को उत्तेजित करते, या शारीरिक संबंध बनाते देखे जा सकते हैं. बाकायदा पूरी इंडस्ट्री है एक, जो पॉर्न वीडियो बनाती है. उसके लिए एक्टर्स हायर करती है. कई कैटेगरीज़ होती हैं पॉर्न की. उन्हीं कैटेगरीज में एक होता है सॉफ्ट पोर्न.
'कपल्स गेस्ट हाउस' से एक सीन. 'कपल्स गेस्ट हाउस' नाम की सीरीज से एक सीन.

परिभाषा
ऐसा पॉर्न, जो इंटरकोर्स की प्रक्रिया को पूरी तरह न दिखाए. या दिखाए तो उसमें किसी भी तरह की उग्रता या हिंसा न हो. कई वीडियोज में पूरी तरह न्यूडिटी भी नहीं होती.
उदाहरण
कई ऐसी फिल्में या वीडियो भी काफी चलते हैं, जिनमें क्लीवेज शॉट्स, बैकलेस शॉट्स इत्यादि काफी होते हैं. लोगों के प्राइवेट पार्ट भले न दिखाए जाएं, लेकिन उन्हें एक-दूसरे को चूमते हुए, उत्तेजित होते हुए दिखाया जाता है. आम तौर पर ऐसी फिल्में 'बी ग्रेड' या 'सी ग्रेड' कही जाती हैं. मेनस्ट्रीम फिल्मों में अगर ऐसे शॉट्स हों, तो उन्हें बेहद ध्यान से सेंसर किया जाता है.
सिर्फ 'देवर-भाभी' जैसे कीवर्ड डालने पर यूट्यूब एक नयी दुनिया में पहुंच जाता है. सिर्फ 'देवर-भाभी' जैसे कीवर्ड डालने पर यूट्यूब एक नयी दुनिया में पहुंच जाता है.

बैकग्राउंड
दक्षिण में सिल्क स्मिता जैसे कैरेक्टर जब लोकप्रिय हो रहे थे, तब सॉफ्ट पॉर्न का ये ट्रोप काफी लोकप्रिय हुआ था. भले ही फिल्म में नग्नता न हो, घुटनों से ऊपर शरीर के शॉट्स तक न लिए जाएं. लेकिन अगर कहानी किसी ऐसी औरत की हो, जो अपनी इच्छा से सेक्स करना चाहती है. या फिर सेक्शुअली आज़ाद है, तो वो फिल्म खुद-ब-खुद ऐसे दर्शकों को खींच लेती थी थियेटर्स में, जो स्क्रीन पर सॉफ्ट पॉर्न की उम्मीद लगाए हुए जाते थे.
90 के दशक में इस तरह की फिल्मों के कई मॉर्निंग और लेट नाइट शो चलाए जाते थे सिंगल स्क्रीन थियेटर्स में. तकरीबन हर छोटे शहर में एक ऐसा सिंगल स्क्रीन थियेटर ज़रूर हुआ करता था, जिसमें ‘वैसी’ ही फिल्में लगा करती थीं. इन फिल्मों के पोस्टर्स पर लिखा होता था- 'मनोरंजन एवं सेक्स से भरपूर'. पोस्टर के कोने में अंग्रेजी का बड़ा लेटर A लिखा होता. उस पर अक्सर दिल बना होता था. उसी के बगल में लिखा होता- केवल वयस्कों के लिए.  ऐसे थियेटर्स में मेनस्ट्रीम फिल्में कम ही लगा करती थीं.
ये वो समय था, जब मेनस्ट्रीम में बन रही फिल्में लिप टू लिप किस भी नहीं दिखाती थीं. सुहागरात के सीन घूंघट उठाने तक खत्म हो जाते थे. हीरोइन चंचल हुई थी, लेकिन उसकी चंचलता उसकी चाल–ढाल, पहनावे और बोली तक ही आ पाई थी. शरीर और सेक्शुअलिटी तक नहीं. ऐसे समय में किस करती हुई, अपना शरीर दिखाती, लोगों को उत्तेजित करती एक्ट्रेस स्क्रीन पर दिखना ही लोगों के लिए बहुत बड़ा टर्न ऑन हुआ करता था.
भारत में सॉफ्ट पोर्न
वीडियो के रूप में सॉफ्ट पॉर्न या इरॉटिका का होना तब से ही शुरू हो गया था, जबसे डेटा पैक इंडिया में आए. लगभग 10-12 साल पहले, डायल अप कनेक्शन मिलने लगे और इसी वक़्त इंडिया में यूट्यूब की एंट्री हुई. साल 2008 में यूट्यूब इंडिया में लॉन्च हुआ. उस वक़्त न वहां पायरेसी को लेकर कड़े नियम थे, न कॉन्टेंट को लेकर. नतीजा ये कि आने वाले छह-सात साल तक धड़ल्ले से सॉफ्ट पॉर्न चलता रहा.
कम्युनिटी स्टैंडर्ड कड़े होने के बाद भी यूट्यूब पर सॉफ्ट पॉर्न की खपत बनी रही, क्लीन व्याकरण के चलते. इनमें कभी फुल न्यूडिटी यानी जननांग या महिला के निपल नहीं दिखते. मगर पूरे वीडियो द्विअर्थी संवाद, ड्रीम सीक्वेंस और चेहरे के सेक्शुअल एक्सप्रेशन से भरा होता है.
'कूकू' पर स्ट्रीम हो रही 'सुनो ससुरजी' से एक सीन. महज़ इस फिल्म के ट्रेलर के यूट्यूब पर करोड़ों व्यू हैं. 'कूकू' पर स्ट्रीम हो रही 'सुनो ससुरजी' से एक सीन. महज़ इस फिल्म के ट्रेलर के यूट्यूब पर करोड़ों व्यू हैं.

जब से इंटरनेट का प्रचार प्रसार बढ़ा, तब से लोगों का इंटरेस्ट बी ग्रेड और सी ग्रेड की उन फिल्मों से कम हो गया, जिनमें अक्सर महिलाओं को काफी कम कपड़ों में दिखाया जाता था. उनके पोस्टर भी इसी तरह के होते थे, जिन पर अक्सर बड़े स्तनों वाली या भरे शरीर वाली महिला की तस्वीर होती थी. और टाइटल भी ऐसे ही- 'क़ातिल जवानी', या फिर 'कच्ची कली'. जिससे पोस्टर देखने वालों को एहसास हो जाए कि फिल्म किस बारे में है.
Softcore Films ऐसी ही फिल्म का एक पोस्टर.

अब इस तरह के सॉफ्ट पॉर्न वाली फिल्में और सीरीज OTT प्लेटफॉर्म तक पहुंच गई हैं. वहां पर लोग धड़ल्ले से इन्हें देख रहे हैं. थियेटर उठकर छोटी-सी स्क्रीन में फिट हो गया है. लेकिन सॉफ्ट पॉर्न की ‘भाभियां’, सालियां’ और ‘नटखट सेक्रेटरी’ वही हैं. वैसे ही कपड़ों में. उन्हीं एक्सप्रेशंस के साथ.


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